Sunday, April 28, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: धान के कटोरे चंदौली में किसानों की उम्मीदों पर सूखी नहरों ने फेरा पानी

चंदौली। उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में चंदौली जनपद धान के कटोरे के रूप में सुविख्यात है। लगन और परिश्रम के दम पर धान उत्पादन के क्षेत्र में यहां के किसान मिट्टी से सोना उपजाने में माहिर हैं। जिले में धान की मंसूरी, सोनम, बासमती, जीराबत्ती, आदमचीनी, महीन और सुगंधित क़िस्म के साथ काला धान (ब्लैक राइस) की खेती होती है, जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी भी मुरीद हैं। फिलहाल धान के कटोरे के किसान असमय बारिश और नहरों का संचालन ठीक से नहीं होने से परेशान हैं।

किसानों के सामने परिवार के भरण पोषण का भी खतरा मंडरा रहा है। जनपद के सैयदराजा से आगे जो सड़क के किनारे खेत हैं, उनकी रोपाई हो गई है। लेकिन जो बीच में या जो नहरों से दूर हैं, वो खेत अब भी सूखे पड़े हैं। धान की रोपाई के पीक पर पानी की कमी से पिछड़ते किसानों में नाउम्मीदी घर करने लगी है।

धान के कटोरे में बरहनी-नरवन इलाका सुविख्यात है। उपजाऊ खेत और नहरों का सघन नेटवर्क होने के बाद भी नरवन के लाखों लघु और बंटाई पर खेत लेकर खेती करने वाले किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें उभरी हुई हैं। रोपाई के पीक सीजन में किसान पानी के लिए तरस रहे हैं। नदी में भी पानी की मात्रा कम होने से आस-पास लगे पंप कैनाल भी हाथी के दांत बने हुए हैं।

सूखी नहर में खड़े किसान।

पिछले वर्ष सूखे की मार झेल चुके नरवन के किसान व किसान संगठन चालू खरीफ सीजन से पहले धरना-प्रदर्शन कर पंप कैनाल, क्षतिग्रस्त नहर, माइनर को सही कराने और टेल तक पानी पहुंचाने के लिए कई बार आंदोलन कर सिंचाई विभाग व जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया था। समय बितता रहा, मॉनसून की दस्तक के साथ किसान धान की रोपाई में भी जुटे कि इससे पहले वे कई समस्याओं से घिर गए।

गुजरते जा रहे दिन, पिछड़ते जा रहे किसान

बरहनी नरवन बेल्ट के लघु जोत के किसान शिवम कुमार बुधवार को एक बीघे खेत में धान की रोपाई की तैयारी में जुटे हैं। मूसलाधार बारिश का इंतजार, बिजली कटौती, भू-जलस्तर का गिरने और दूसरे किसानों के ट्यूबवेल से पानी की जुगाड़ में शिवम के दस दिन गुजर गए व खेत तक पानी की व्यवस्था करने में उनके पसीने छूट गए। इसके बाद भी उनके खेतों में रोपाई नहीं हो सकी है।

मुश्किल में धान की रोपाई

शिवम “जनचौक” से कहते हैं कि “मेरा खेत नहर से लगा हुआ है। मुझे याद ही नहीं है कि कभी धान की रोपाई के समय नहर में पानी आया हो। बिजली आपूर्ति की स्थित भी बहुत अच्छी नहीं है। आए दिन कहीं न कहीं फॉल्ट रहता है। रात भर जागकर मशीन चलने के बाद, जो थोड़ा बहुत पानी खेत में लगा भी रहता है, वह बिजली के गुल होने से सूख जाता है। बहुत प्रयास करने के बाद नतीजा शून्य रहता है। आसपास के किसानों के सहयोग से बहुत मुश्किल से एक बीघे खेत को ट्रैक्टर से लेव (कीचड़) किया गया है। मंगलवार-बुधवार की रात से बिजली भी गुल है। ऐसे ही रहा तो कह पाना मुश्किल है कि मैं धान की रोपाई कर पाऊंगा।”

कम पानी में खेत तैयार करते किसान शिवम कुमार।

कैनाल और नहर बने शो-पीस

शिवम आगे कहते हैं कि “मानिकपुर-भुजना पंप कैनाल बीते नौ सालों से बन ही रहा है। कर्मनाशा नदी में महज 20 क्यूसेक पंप कैनाल को चालू करने में सौ-दो सौ साल लगेंगे क्या? स्थानीय प्रशासन और कैनाल सिंचाई विभाग हजारों किसानों के साथ आखिर मजाक करना कब बंद करेगा? कैनाल के आस में बहुत से किसान पिछड़ रहे हैं। इधर किसी भी खरीफ के सीजन में नहर में पानी नहीं आने से हर साल किसानों को मुसीबत झेलनी पड़ती है। जंगली घास, कूड़े और मिट्टी के ढेर से पटी नहर में पानी रबी के सीजन में आता है। इससे नहर के सटे गेहूं किसानों की फसलें डूबकर नष्ट हो जाती हैं। ऐसा लगता है जैसे सिंचाई विभाग अपनी जिम्मेदारी के प्रति गंभीर नहीं है।”

‘ये नहर…मेरे किसी काम की नहीं’

चंदौली जिला मुख्यालय से बमुश्किल 16-18 किमी दूरी पर चकिया-नवही राजमार्ग के किनारे बसा कांटा-जलालपुर गांव। एक बीघा खुद का और शेष चार बीघा बंटाई पर लेकर खेती करने वाले प्रगतिशील किसान राजनारायण की परेशानी यह है कि उनका खेत नहर के समीप है, लेकिन नहर उनके किसी काम का नहीं है।

खेत के एक कोने में धान की नर्सरी तैयार हो चुकी है। गांव में और गांव के आसपास के लघु और बंटाई पर खेत लेकर खेती करने वाले किसानों ने अपने खेत को जैसे-तैसे तैयार कर धान की रोपनी शुरू कर दी है। चकिया-भगवान तला मुख्य नहर से कांटा माइनर निकाली गई है, लेकिन नहर में पानी की जगह जंगली घास-पतवार उगे हैं। जबकि कुछ ही दिनों में धान की रोपनी अपने पीक पर होगी।

सफ़ेद हाथी बना मानिकपुर-भुजना पंप कैनाल।

पुरानी बोरिंग से निकल रहा आधा पानी

किसान राजनारायण की चिंता भी गहराती जा रही है। वह “जनचौक” से बताते हैं कि “मूसलाधार बारिश का इंतजार है। जिससे खेतों में नमी हो और उसी पर मोटर-मशीन चलाकर लेव (धान रोपाई के लिए खेत की तैयारी) लगा दिया जाए। लेकिन, बारिश भी हाथ से फिसलती जा रही है। हम लोगों के खेत की दोमट मिट्टी घंटे भर में पूरा पानी सोख जाती है। अब बिजली का पंप पहले जैसा पानी नहीं देता है।”

वो कहते हैं कि “पहले बारिश के बाद कुएं में लगे बिजली पंप से ही धान की रोपनी हो जाती थी। अब पंप अपनी क्षमता का आधा ही पानी दे रहा है। नहर है लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए है। वह पूरे गांव के किसानों के लिए अनुपयोगी है। यदि नहर चलती तो तकरीबन 200 हेक्टेयर कृषि जोत के 5,000 से अधिक छोटे-बड़े किसान खुशहाल होते।”

अधर में छोटे व बंटाई वाले किसानों की खेती

चंदौली जनपद में अन्नदाता राजनारायण ही नहर होने के बाद भी पानी की कमी से परेशान नहीं है, अपितु चंदौली जनपद के सकलडीहा, बरहनी, सैयदराजा, धानापुर, चहनिया, सदर और नरवन के किसान भी पानी की कमी से धान की रोपाई में पिछड़ रहे हैं। पूर्णतः मॉनसूनी बारिश पर निर्भर रहने वाले संसाधन विहीन, आर्थिक रूप से कमजोर लाखों बंटाईदार और लघु किसानों की धान की खेती अधर में लटकी हुई है।

कांटा माइनर नहर में पानी न होने से खेत में उगी घास को दिखाते बंटाईदार किसान राजनारायण।

जबकि, चंदौली जनपद में आधा दर्जन पानी के बड़े-बड़े बांध हैं, जनपद के कोने-कोने में सैकड़ों किलोमीटर नहरों का जाल है, 20 से अधिक गांवों की नदियों में पंप कैनाल लगाए गए हैं। इनकी ही बदौलत चंदौली के किसान उपजाऊ मिट्टी में धान का बंपर उत्पादन कर उत्तर प्रदेश में “धान का कटोरा” का तमगा हासिल किया है। लेकिन हाल के सालों में भागते भूमिगत जलस्तर, मछली मारने के लिए असमय बहाये गए बंधियों-बांध के पानी, जर्जर नहरें, क्षतिग्रस्त तटबंध और सफाई के अभाव में जंगली घास, कूड़े और गाद से पटी नहरें किसानों के लिए सुविधा की बजाए मुसीबत का सबब बनी हुई हैं।

80 फीसदी आबादी करती है खेती

पूर्वी उत्तर प्रदेश का चंदौली धान का कटोरा कहा जाता है और यहां पर धान की बेहद अच्छी पैदावार होती है। जनपद में साल 2011 की जनगणना के अनुसार कुल आबादी की 80 फीसदी जनसंख्या कृषि कार्य से जुड़ी है। अधिकांश किसान खेती-बाड़ी पर ही निर्भर हैं। ऐसे में नहरों में समय से पानी की उपलब्धता नहीं होने से किसानों की चिंता लाजिमी है। चंदौली में कुल 2,56,000 किसान धान की खेती करते हैं। जनपद में इस साल कुल 1,13,400 हेक्टेयर से अधिक रकबे पर धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

अहिकौरा-बासगांव माइनर के टेल तक नहीं पहुंचा पानी

धानापुर रजवाहा से निकली अहिकौरा-बासगांव माइनर के टेल तक आज तक पानी नहीं पहुंच सका है। यही स्थिति सिधना रजवाहे के साथ भी है। गांव के किनारे सिधना रजवाहा जंगली घास और गाद से पटा हुआ है। इससे दोनों माइनरों से लगे हजारों बीघे खेतों में धान की रोपाई नहीं हो सकी है। किसान मदन यादव, अशोक, संजीव, रामदुलारे, राजेश कुशवाहा पानी की किल्लत से परेशान हैं।

सिधना रजवाहा जंगली घास, कूड़े और गाद से पटा है

किसानों का कहना है कि “विभाग प्रत्येक वर्ष लाखों खर्च कर अहिकौरा-बासगांव माइनर की सफाई कराता है, लेकिन सीजन में सिंचाई के लिए हम लोगों को कई वर्षों से पानी नहीं मिल पा रहा है। इससे बहुत सारे खेत परती रह जाते हैं। इतना ही नहीं समीप के बसौली, अटौली, बसगांवा, पपरौल, तोरवा समेत आधा दर्जन गांव के किसान परेशान हैं।

उक्त किसानों की समस्या के संबंध में सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता राजेश कुमार ने बताया कि “नहरों की सफाई अंतिम चरण में है, कोशिश है कि इस वर्ष टेल के किसानों को भी पर्याप्त मात्रा में पानी मिल जाए।” 

सीजन में नतीजा सिफ़र

धान के कटोरे चन्दौली में धान को लेकर जिले के राजनीतिक मंच के साथ-साथ अफसरों की बैठक में खूब चर्चाएं होती हैं, लेकिन धान की समस्याओं को जड़ से खत्म करने के लिए अफसरों और राजनेताओं द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की जाती है। ऐसी बात इसलिए कहनी पड़ रही है क्योंकि चंदौली जनपद के किसानों की मूलभूत समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। हंगामा मचने पर मौके पर पहुंचकर अफसर और राजनेता झूठे और दिखावे वाले आश्वासन तो दे देते हैं, लेकिन उसका फर्क पड़ता कहीं भी नजर नहीं आता है। 

चुनौतियों से मुठभेड़ में पिछड़ रहे अन्नदाता

बरहनी विकासखंड के प्रगतिशील किसान व नेता राम विलास मौर्य “जनचौक” से कहते हैं, “कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के बावजूद किसान खरीफ सीजन में धान की रोपाई के लिए झेल जाते हैं। यह हाल तब है, जब यूपी में सबसे अधिक नहरों से आच्छादित जनपद चंदौली के हर कोने में नहरें पहुंची हैं।”

बरहनी क्षेत्र के किसानों के साथ किसान नेता रामविलास मौर्य (लाल गमछा में)।

रामविलास मौर्य कहते हैं, “प्रशासनिक उपेक्षा, सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों, खेती के दबाव, फ़सल की नाकामी जैसे कारणों से किसान पहले से ही परेशान हैं। वर्तमान समय में बेहताशा बढ़ती कृषि-खेती की लागत, कीटों का प्रकोप, महंगे खाद व रसायन, लागत के सापेक्ष कम बचत, बिचौलियों का बोलबाला, असमय बारिश, सूखा, बाढ़ और बढ़ती आबादी से घटते खेती के रकबे के चलते पूर्वांचल में प्रति व्यक्ति अनाज उत्पादन में कमी आ रही है।”

आखिर कब लागू होगी स्वामीनाथन रिपोर्ट

राम विलास कहते हैं, “सत्ता किसी की रहे, किसानों की बुनियादी समस्याओं पर काम करने की आवश्यकता किसी को महसूस नहीं होती। किसानों के हितकारी राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष डॉ एमएस स्वामीनाथन की रिपोर्ट पर 2005 से आज तक संसद में बहस कराने की जरूरत नहीं समझी गई। क्या सिर्फ यह गाना गाने से किसानों की चुनौतियां दूर हो जाएंगी कि ‘भारत कृषि प्रधान देश है। देश की 60 फीसदी से अधिक जनसंख्या सीधे कृषि कार्यों से जुड़ी है..वैगरह-वगैरह।’ नहीं..बिल्कुल नहीं।” 

(उत्तर प्रदेश के चंदौली से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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