Saturday, April 27, 2024

झारखंड: मौसम की बेरुखी से किसान परेशान, रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में कर रहे हैं पलायन

रांची। झारखंड में मानसून फिर कमजोर पड़ने लगा है। पिछले दिनों राज्य के कुछ जिलों में अच्छी बारिश हुई, तो किसानों की उम्मीद जगी थी कि देर सही, धान की रोपाई हो तो जाएगी। लेकिन अचानक पुनः पूर्व वाली वही स्थिति आ गयी है। राज्य के कुछ जिलों में रोपाई हुई मगर मानसून की पुनः बेरुखी से खेत सूखने लगे हैं। राज्य में कहीं भी सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से किसानों की चिंता बढ़ने लगी है। जिन लोगों ने किसी तरह उधार लेकर धान के बिचड़े लगाए और रोपनी की वे काफी परेशान दिख रहे हैं।

किसान इस बरसात के मौसम में भी खेतों की सिंचाई के लिए परेशान हो रहे हैं। क्योंकि झारखंड की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि अगर कभी जोरदार बारिश भी हुई तो पानी बहकर निकल जाता है। अगर किसान खेतों की मेड़ों को ऊंचा भी करते हैं तो भी खेत का पानी दो-चार दिनों में सूख जाता है। कुल मिलाकर झारखंड की खेती पूरी तरह वर्षा पर आश्रित है।

झारखंड में एक ऐसा वर्ग भी है जो रोजी-रोजगार के लिए अन्य राज्यों (गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बंगाल आदि) में पलायन करता है और खरीफ फसल के वक्त धान रोपनी या मकई, मड़ुआ आदि की बुआई के लिए ही घर वापस आता है। फसल बुआई के बाद पुनः वापस चला जाता है और फसल कटाई के वक्त वापस आकर कटाई करके पुनः चला जाता है। इससे उसके परिवार को कुछ समय के लिए खाने की व्यवस्था हो जाती है, बाकी जरूरतें वह बाहर काम करके पूरी करता है।

राज्य के मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार 22 अगस्त को राज्य के उत्तर-पूर्वी और उत्तर-पश्चिमी भागों में कहीं-कहीं भारी बारिश हो सकती है। 23 और 24 अगस्त को भी राज्य के उत्तर-पूर्वी हिस्से (गुमला, सिमडेगा, खूंटी, पश्चिमी सिंहभूम) में कहीं-कहीं भारी बारिश का अनुमान है। इस दौरान गर्जन और वज्रपात की भी संभावना है। विभाग ने इसे लेकर येलो अलर्ट जारी किया है।

अब मौसम विभाग की ओर से मिले ताजा अपडेट के मुताबिक ऐसी ही स्थिति 26 अगस्त तक जारी रहेगी। इससे पहले 28 अगस्त तक बारिश होने का अनुमान है। लेकिन 22 अगस्त को इन क्षेत्रों में बारिश तो हुई लेकिन काफी कम। इसके पहले भी मौसम विभाग का पूर्वानुमान फेल होते देखा गया है। यही कारण है कि किसान आगे बारिश होगी, को लेकर सशंकित हैं।

धनबाद

धनबाद जिला अंतर्गत टुण्डी प्रखंड के मछियारा गांव के लोग भी मौसम की बेरुखी का दंश झेल रहे हैं। जिले का टुण्डी प्रखंड संताल आदिवासी बहुल क्षेत्र है। मछियारा गांव में संताल समुदाय के लगभग 300 घर हैं। जहां की आबादी लगभग 1300 के आसपास है। इस गांव के लोग पूरी तरह खेती पर निर्भर हैं। वहीं कुछ लोग जिनके पास खेती की जमीन कम है वे दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए पलायन करते हैं और खेती के वक्त धान की बुआई और कटाई के वक्त गांव आते हैं।

इसी गांव के दरबारी टुडू के बड़े भाई नायके हड़ाम (संताल समाज की सामाजिक व्यवस्था के तहत गांव का पुजारी) हैं। दरबारी टुडू से हुई बातचीत पर उन्होंने बताया कि यहां सुखाड़ की पूरी संभावना दिख रही है। अबतक जितनी बारिश हुई है उससे धान की बुआई संभव नहीं हो पा रही है। किसी तरह नीचे वाले खेतों में बुआई हो सकी है।

दरबारी टुडू

उन्होंने बताया कि मेरे खेतों में अभी तक 5 फीसद ही रोपाई हो सकी है। आगे अगर बारिश नहीं हुई तो पटवन यानी सिंचाई की दिक्कत हो जाएगी। खेत में ही रोपे हुए धान के पौधे सूख जाएंगे। क्योंकि यहां सिंचाई का कोई साधन नहीं है। यहां न जोरिया है, न नदी है, न चुंआ है, यानी हम लोग पूरी तरह मानसून पर ही निर्भर हैं। ऐसे में हम लोगों को मेहनत और आर्थिक स्तर पर दोतरफा मार झेलनी पड़ेगी।

इसी गांव के सुखदेव टुडू जो रोजी-रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं, अभी वे खेतों की बुआई करने गांव आए हुए हैं, बताते हैं कि वे काम करने बाहर जाते हैं। कभी गुजरात, कभी दिल्ली, कभी बंबई। वहां वे कभी बोरिंग गाड़ी में काम करते हैं तो कभी किसी कंपनी में काम करते हैं। रोपनी के लिए घर आए हैं, लेकिन पानी नहीं है, इसलिए खेती कैसे करेंगे, समझ में नहीं आता है।

वे बताते हैं कि ‘हमारे पास खेत का 8-10 छोटा-छोटा टुकड़ा है। जिसमें से मात्र दो टुकड़े में ही रोपनी हुई है। सिंचाई का कोई साधन नहीं है, अतः हम लोग प्रकृति पर ही निर्भर हैं। न तालाब है, न कुंआ, न कोई अन्य साधन है। हम लोग बोरिंग भी नहीं कर सकते इतना पैसा भी नहीं है। हम लोग गरीबी के चलते बराबर परेशान रहते हैं। साल दो बार आते हैं रोपनी और फसल की कटाई के लिए। अगर बारिश नहीं हुई तो हम लोग का दोतरफा नुकसान होगा। एक रोजगार का, दूसरा खेती के लिए जो बीज वगैरह के लिए पैसा लगा है उसका भी’।

गांव के सोनालाल टुडू के पास 12 खेत के टुकडे़ हैं। उनमें से मात्र 2-3 खेतों में ही रोपाई हो सकी है। वे बड़े ही कातर स्वर में कहते हैं कि ‘अगर वर्षा नहीं हुई तो खेत में लगा धान का पौधा सूख जाएगा। क्योंकि हम लोगों के पास सिंचाई का कोई भी साधन नहीं है। हम लोग पूरी तरह से खेती पर ही निर्भर हैं, यही हमारे आजीविका का एकमात्र आधार है। खेती के लिए भी हम पूरी तरह से बरसात पर ही निर्भर हैं।’

एक सवाल के जवाब में सोनालाल बताते हैं कि ‘हम बाहर काम करने नहीं जाते हैं। खेती ही हमारा और हमारे परिवार की जीविका है। परिवार में छः सदस्य हैं सब खेती पर ही निर्भर हैं। धान के अलावा थोड़ा बहुत मकाई बोते हैं। कभी-कभी गांव-जवार में ही मजदूरी कर लेते हैं।’

सोनालाल टुडू

टुण्डी प्रखंड के ही सर्रा गांव निवासी अयोध्या राय लगभग 20 एकड़ जमीन के मालिक हैं। वे भी काफी परेशान हैं। वे बताते हैं कि ’20 प्रतिशत भी रोपाई नहीं हुई है। जितनी रोपाई हुई है, अगर आगे चलकर बारिश नहीं हुई तो जितनी भी रोपनी हुई है वह सब सूख जाएगा। हमें भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा।’

मछियारा गांव के ही गोविन्द टुडू जो बोकारो जिले के जैनामोड़ में रहते हैं, वे कहते हैं कि ‘यहां कि भौगोलिक स्थिति ऐसी विकट है कि बोरिंग से भी सिंचाई नहीं हो सकती है। हां, अगर वृहद स्तर पर ऐसी व्यवस्था हो तो फायदा हो सकता है। जो केवल सरकारी स्तर पर ही संभव है, लेकिन सरकार का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है। सरकार किसी भी पार्टी की हो, इनके आला नेताओं को केवल वोट से मतलब है, चाहे वे आदिवासी समाज से ही क्यों न हों।’

गोविन्द कहते हैं कि ‘यहां की आजीविका का साधन खेती और मजदूरी है। इस कारण कुछ लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं। जिनके पास खेती के लिए बहुत कम जमीन है वे प्रायः दूसरे राज्यों को पलायन करते हैं। वो खेती के लिए कुछ दिनों के लिए वहां से छुट्टी लेकर आते हैं और रोपनी वगैरह करके पुनः चले जाते हैं। जब कटनी का वक्त होता है तो पुनः आकर कटाई कर वापस चले जाते हैं। ऐसा इसलिए है कि यहां न तो रोजगार की कोई सुविधा है न ही कृषि के लिए सरकार की ओर से कोई व्यवस्था।’

धनबाद में जिले में एक जून से अभी तक में सामान्य वर्षापात 726 एमएम बारिश होनी चाहिए थी। लेकिन अब तक 426.7 एमएम बारिश रिकॉर्ड की गयी है, जो सामान्य वर्षापात से 41 प्रतिशत कम है। जिसके कारण जिले के प्रखंडों में 5 से 15 प्रतिशत तक ही धान की रोपाई हो पाई है।

गुमला

वहीं गुमला जिले की बात करें तो पहले जहां अगस्त माह में 265.7 मिलीमीटर सामान्य वर्षा की जरूरत रहती है, वहीं अब तक मात्र 119.9 मिमी सामान्य वर्षा हुई है। जिसकी वजह से जिले की खेती प्रभावित हो रही है।

कृषि वैज्ञानिक की मानें, तो गुमला जिले में अच्छी खेती के लिए जून माह में 205.3 मिमी, जुलाई माह में 299.7 मिमी और अगस्त माह में 265.7 मिमी सामान्य वर्षा की जरूरत रहती है। जबकि जून माह में महज 115 मिली, जुलाई माह में 170.2 मिमी तथा अगस्त माह में 18 अगस्त तक 119.9 मिमी सामान्य वर्षा हुई है। यानी तीन माह जो बारिश होती, उसके आधा से कम बारिश हुई है।

बारिश के बाद गुमला जिले में खरीफ फसलों की खेती पर नजर डाले, तो यह चिंताजनक इसलिए है कि खरीफ की विभिन्न फसलों धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, मड़ुआ, अरहर, उरद, मूंग, कुल्थी, मूंगफल, तिल, सोयाबीन, सूर्यमुखी, अरंडी आदि की खेती जून से शुरू होने के बाद जुलाई माह तक खत्म हो जाती थी। इसके बाद किसान तैयार हो रहे पौधों और उसमें लगने वाले फलों की देखरेख में जुट जाते थे। लेकिन इस साल समुचित बारिश के अभाव में अगस्त माह के अंतिम सप्ताह तक भी समुचित खेती नहीं हो पायी है।

धान गुमला जिले की मुख्य फसल है। लेकिन पर्याप्त बारिश के अभाव में अब तक जिले के प्राय: सभी प्रखंडों में 40 से 50 प्रतिशत तक ही धान की खेती हो सकी है। कहना ना होगा कि झारखंड में मौसम की बेरूखी के बावजूद धान रोपनी कर रहे राज्य के किसानों को अब भी अच्छी बारिश का इंतजार है।

गिरिडीह

गिरिडीह के देवरी में धान रोपनी का समय बीतने व अल्पवृष्टि के बाद भी किसान खेतों में धान की रोपाई कर रहे हैं। 15 अगस्त तक का समय धान की रोपाई के लिए अनुकूल माना जाता है। लेकिन जून, जुलाई के बाद आधे अगस्त तक बारिश काफी कम हुई है। इसके कारण 15 अगस्त तक महज तीन फीसदी भूमि पर धान की फसल की रोपाई हो पायी थी। इधर, 17 व 18 अगस्त को हुई थोड़ी अच्छी बारिश के बाद प्रखंड के किसान धान की फसल की रोपाई कार्य में जुट गये हैं। बारिश के बाद तीन दिनों में बारह फीसदी भूमि पर रोपाई हो गयी है। यानी खेतों में पानी जमा रहने से किसान रोपाई कर रहे हैं।

धान की रोपाई करते किसान

प्रखंड के प्रभारी कृषि पदाधिकारी संजय साहू ने बताया कि 15 अगस्त तक महज तीन फीसदी भूमि पर रोपाई हुई थी। लेकिन 17 व 18 अगस्त हो हुई बारिश के बाद रोपाई तेज गति से हो रही है। 20 अगस्त तक 15 फीसदी भूमि पर रोपाई हो गयी है।

लोहरदगा

लोहरदगा जिले में भी मॉनसून की बेरुखी से किसानों की चिंता बढ़ गयी है। बारिश के अभाव में धान के बिचड़े खराब हो चुके हैं। वहीं रोपनी किये गये धान के पौधे भी पानी के अभाव में खराब होने लगे हैं। उनमें पीलापन छाने लगा है।

पहले जिस नदी या तालाब में बाढ़ की स्थिति बनी रहती थी, वह सूखे पड़े हैं। अगस्त महीना समाप्त होने के कगार पर हैं, जिसके बाद भी अभी तक खेत और तालाब सूखे हुए हैं। खेतों के नीचले हिस्सों में किसानों ने किसी तरह रोपनी तो कर ली, परंतु पानी के अभाव में धान खराब हो रहे हैं।

वहीं वैसे स्थान जहां पानी की व्यवस्था नहीं हो पायी, वहां रोपनी नहीं हो पायी और वहां का बिचड़ा पूरी तरह खराब हो चुका है। इस कारण किसानोंं के मन में अनिश्चितता का भाव पैदा हो रहा है। अभी तक खेती शुरू करने लायक बारिश नहीं हुई है। जिससे किसानों के चेहरे पर निराशा देखने को मिल रही है। किसान सरकार से क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग कर रहे हैं। बारिश के बजाय अगस्त माह में आसमान में बादलों की उपस्थिति व उमस भरी गर्मी ने किसानों को चिंता में डाल दिया है। आसमान में बादल सिर्फ़ उमड़-घुमड़ रहे हैं, लेकिन बारिश नहीं हो रही है।

लोहरदगा जिले में पिछले साल भी बारिश के अभाव में अधिकांश किसान खेती नहीं कर पाये थे। इस बार बारिश के अभाव में किसान अपने खेतों की जुताई भी नहीं कर सके हैं। खेतों में लगे बिचड़े मवेशी का चारा बन रहे हैं। किसान सुखदेव रजवार, भगीरथ उरांव, सुनील साहू, बिनोद साहू, रामधनी साहू, बबलू प्रजापति, जयपाल उरांव, नरेश साहू, आदि ने बताया की किसानों को उम्मीद थी कि इस बार अच्छी खासी बारिश होगी, लेकिन बारिश नहीं होने से हमें काफी निराशा हुई है।

यहां तक कि धान के बिचड़े बचाने में किसानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पानी के अभाव में पौधे सब सुख रहे हैं। नदी, तालाब, सब सूखे पड़े हैं। पानी का जलस्तर नीचे जा रहा है। बोरिंग भी दम तोड़ने लगा है।

अगर यही हाल रहा तो गर्मी के दिनों में लोगों को पीने के पानी के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। बारिश नहीं होने के कारण अब किसान रोजी-रोटी की तालाश में दिल्ली- मुंबई जैसे अन्य राज्यों में पलायन की तैयारी में हैं। अधिकांश किसान पलायन भी कर चुके हैं।

वैकल्पिक खेती करनी होगी

कृषि मौसम वैज्ञानिक शाउन चक्रवर्ती के अनुसार नियमित बारिश नहीं होने से खेती काफी प्रभावित हो रही है। इसके लिए किसानों को अभी से ही तैयार होना होगा। उन्हें औसत से कम बारिश के अनुसार तकनीकी रूप से वैकल्पिक खेती करनी होगी, तभी किसान इस चुनौती का सामना कर पाएंगे।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार राज्य में मौसम की बेरुखी के विकल्प के रूप में मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, मडु़आ की खेती की पूरी संभावना है। इजराइल के तर्ज पर कम पानी में भी खेती की तकनीकी का इस्तेमाल करना पड़ेगा।

भारत में कृषि सिंचाई योजना के तहत बूंद-बूंद सिंचाई के लिए कई प्रावधान किये गये हैं, जिससे कम पानी में पर्याप्त सिंचाई की जा सकती है। बाकी फसल के साथ-साथ मोटे अनाज की भी खेती हो सकती है। मोटे अनाज में पौष्टिक गुणवत्ता बहुत ज्यादा होती है और कम बारिश में भी यह अच्छी पैदावार देते हैं।

(विशद कुमार पत्रकार हैं, और झारखंड में रहते हैं।)

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