Friday, March 29, 2024

तीनों काले कानून किसानों को मज़दूर नहीं खानाबदोश बना देंगे: शिवाजी राय

किसान नेता डॉ. दर्शन पाल ने सरकार के साथ नौवीं वार्ता की रस्मअदायगी ख़त्म होने के बाद कहा कि बातचीत 120 प्रतिशत असफल रही है। वहीं केंन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तौमर पुराने वक़्त में दूरदर्शन में समाचार पढ़ने की भाव भंगिमा लिए हुए (हमें किसी से कोई लेना-देना नहीं वाली) हमेशा की तरह ढीठता से दोहराते हैं कि वार्ता सकारात्मक रही। हम खुले मन से कानूनों में संशोधन के प्रस्तावों पर ग़ौर करने को तैयार हैं। तोमर ने 19 तारीख़ की सरकार की किसानों के साथ फिर तय हुई मुलाक़ात को इस तरह बयान किया जैसे किसानों की विनती पर वो फिर बात करने को मान गए। वरना हमें क्या…

डॉ. दर्शन पाल बताते हैं कि सरकार किसानों से कहती है आपके लिए जो कानून काले हैं हमारे लिए वो गोरे हैं। रिपील की जगह कुछ और सुझाओ। यानि ग्रे एरिया खोजो। इस बार किसानों ने इसेन्शियल कमोडिटी एक्ट के दो क्लाज़ हटाने की बात की जो सरकार ने जोड़े हैं। मीटिंग में तोमर को कुछ नहीं सूझा बाद में बयान आया कि इस बारे हम कुछ नहीं कर सकते। ये तो बहुत ज़रूरी क्लाज़ है। यानि देश के सारे अनाज-वस्तुओं की क्रीम अंबानी-अडानी के गोदामों में ही जमा होनी है। वही तय करेंगे कि कौन कितना गोरापन चाहता है। यानि पेट की भूख, धन की लूट से एकबार फिर माथापच्ची करके बैरंग लौट गई। फिर किसान, सरकारी गुरूर की बेरहम, सर्द खुली खिड़की पर अपने मजबूत इरादों के गर्म कम्बल डाल कर अपने तंबुओं को लौट गए।  

मोदी के मन की खिड़की रास न आए तो बोबडे की परोसो। जबकि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बोबडे को भी किसानों की पीड़ा समझने के लिए नहीं अपने मन की संतुष्टि के लिए ही कमेटी की ज़रूरत महसूस होती है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस मार्कण्डेय काटजू सवाल कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट कमेटी बनाकर पंचायती-नेतागीरी करने में क्यों लगा है? जबकि उसका काम सिर्फ इन तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को आंकना है।

वैसे मोदी सरकार में जजों को संविधान-कानून, निष्पक्षता को एकतरफ रख कर पंचायती-नेतागीरी करने की लत लग गई है। हम देख चुके हैं किस तरह चीफ जस्टिस रंजन गोगाई बाबारी मस्जिद मामले में पंचायती करके राम मंदिर बनवा गए और इसी नेतागीरी की वकालत करने राज्य सभा की कुर्सी से जा चिपके। सवाल है कि क्या राम मंदिर बनवाने, शाहीनबाग़ उजड़वाने, धारा 370 को दफनाने जितना ही आसान होने जा रहा है इन तीन काले कृषि कानूनों की पंचायती कर देश के हर घर को बर्बादी की चादर से ढक देना। जबकि इस चादर को तार-तार करने के लिए पंजाब-हरियाणा के साथ अब देशभर के किसान-मेहनतकश, औरतें-बच्चे-बुर्जुग-नौजवान एक आवाज़, एक कदम ताल से आगे बढ़ते ही जा रहे हैं।

दिल्ली पहुंचे जत्थों को कुछ किसानों का विरोध कहकर सरकार ने हलका करने की कोशिश की है। पहले सरकार ने कहा कि सिर्फ़ पंजाब के किसान और वो भी अमीर किसान कानूनों का विरोध कर रहे हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर की कुर्सी ख़तरे में पड़ने और उत्तर प्रदेश के किसानों के दिनों-दिन आंदोलन में भारी मात्रा में दिल्ली पहुंचने, इन सभी के  बार्डरों पर अड़े रहने और सोशल मीडिया में छा जाने के बाद अब सरकार कह रही है कि सिर्फ दो-तीन प्रदेशों के किसान ही विरोध में हैं।

जो खबरें आ रही हैं उससे लग रहा है कि 26 जनवरी तक सरकार ये भी मानने को मजबूर होगी कि देश के हर राज्य में किसान ही नहीं बल्कि सभी नागरिक किसानों के सर्मथन में और सरकार के विरोध में उतर चुके हैं। एक तरफ किसानों का दिल्ली आना लगातार जारी है और दूसरी तरफ जो जहां है वहीं संघर्ष तेज करे कि तर्ज पर किसान आंदोलन समर्थन समीतियां बनाई जा रही हैं।

ऐसी ही एक समिति अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की उत्तर प्रदेश, लखनऊ में 12 जनवरी को लोहिया मजदूर भवन, नरही में बैठक आयोजित हुई। बैठक की अध्यक्षता शिवाजी राय ने की। बैठक में केन्द्रीय वर्किंग ग्रुप के सदस्य अतुल अंजान महासचिव एआईकेएसए डा. आशीष मित्तल महासचिव एआईकेएमएस, रिचा सिंह एनएपीएम मौजूद थीं।

समिति के संयोजक शिवाजी राय ने जनचैक को बताया कि ये समितियां किसान आंदोलन के केन्द्रीय मोर्चे की घोषणाओं को देश भर में लागू करने के साथ-साथ अपने स्तर पर भी आंदोलन को मजबूत करने के लिए काम करेंगी। गांव-शहर के घर-चैराहों, बाज़ारों में जाकर सरकार के तीनों काले कृषि कानूनों के बारे में बताएंगी। पर्चे बांटे जाएंगे, सभाएं की जाएंगी। सरकार के हर झूठे प्रचार का मुंहतोड़ जवाब दिया जागा।

सभी इलाकों से दिल्ली धरने में भाग लेने के लिए जत्थे भेजे जाएंगे। केंन्द्रीय नेतृत्व् के तय कार्यक्रम के मुताबिक 13 जनवरी को कानून की प्रतियां जलाई गईं। 18 तारीख़ को महिला किसान दिवस मनाया जाएगा। 23 को सुभाष जयंती  कार्यक्रम होगा और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस और किसानों के योगदान पर दोपहर बाद गोष्ठियां आयोजित की जाएंगी। कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक इन काले कानूनों का विरोध हो रहा है। इन कानूनों से सारा अनाज अंबानी-अडानी के गोदामों में चला जाएगा। गैस अंबानी के पास चला गया तो सब्सिडी गई। अनाज अगर उपलब्ध नहीं होगा तो सबसे बड़ा संकट महिलाओं के लिए होगा। बच्चा अपनी हर ज़रूरत के लिए मां के पास जाकर रोता है। मां से खाना मांगता है। फूड स्क्यिोरिटी बिल का संकट मां के पास खड़ा होगा। पिता के पास नहीं। ये बहुत संवेदनशील मामला है। इसलिए ये देश का एक सामाजिक आंदोलन बन गया है। अब ये केवल राजनीतिक, आर्थिक नहीं सामाजिक अर्थशास्त्र का सवाल है।

सवाल: सरकार कह रही है कि वो तो सब्सिडी का अनाज खरीदेगी। फिर ये दिक्कत क्यों होने लगी?

शिवाजी राय: कानून कह रहा है कि नहीं खरीदेंगे। हम कानून का लिखा माने कि सरकार का मुंह से बोला हुआ माने। 1955 में अनाज को आवश्यक वस्तु के दायरे में लाया गया। ताकि आवश्यक वस्तु की सूची की वस्तुओं की कोई जमाखोरी न कर सके। इसीलिए सरकार राशन की दुकान पर जीने के लिए आवश्यक वस्तु गेहूं, चीनी, दाल, नमक, मिट्टी का तेल देती थी। फिर फूड स्क्यिोरिटी एक्ट बना। जिसमें कहा गया कि उन तमाम लोगों को भी अनाज दिया जाएगा जो गरीब हैं, बीपीएल हैं, अन्तोदय हैं। अन्तोदय में बिना पैसे के भी अनाज दिया जाता है। तो सरकार ये सब तब देती थी जब आवश्यक वस्तुओं के दायरे में ये सब आया। अब जब आवश्यक वस्तु के दायरे से तमाम चीज़ों को बाहर कर दिया गया है। और सेठ जितना चाहे उतना भंडारण कर सकता है। काला बाज़ारी की खुली छूट दी जा रही है तो आप क्या समझते हैं इससे? यही ना कि सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। आप झूठ बोलते रहिये कि जिम्मा लिया हुआ है। कानून कह रहा है कि नहीं लिया है।

सवाल: सरकार इन तीन कानूनों को कड़वी दवाई बता रही है। जिसे देश और किसानों को आंख-नाक बंद करके पी जाना चाहिये। आंदोलन करने वाले समझ ही नहीं रहे कि बाद में ये कड़वाहट मिठास में बदलने वाली है।

शिवाजी राय: इस देश में जिनको किसान, गरीब कहते हैं उन्हीं किसानों – गरीबों के बीच से आईएएस, पीसीएस अफसर, प्रोफेसर, वकील, जज, इंजीनियर, डॉक्टर सब पैदा हुए हैं। तो क्या ये सारे पढ़े-लिखे बच्चे अपने मां-बाप को नहीं समझा पा रहे हैं कि ये बिल तुम्हारे खि़लाफ़ हैं। उन्होंने बताया है तभी तो बैठ गए सब सड़क पर। अब खाली मोदी और उसकी सरकार ही नहीं समझ पा रहे हैं। बाकी सब जनता समझ गई है। प्रेमचंद ने अपने उपन्यास गोदान में किसान के मज़दूर बनने की परिस्थियों का वर्णन किया है। भाजपा सरकार के तीनों काले कानून किसानों को मज़दूर नहीं खानाबदोश बना देंगे।

आरएसएस का एक मार्च।

नोट कर लीजियेगा, जनसंघ-आरएसएस के लोगों का कभी मज़दूरों, किसानों से वास्ता नहीं रहा है। इनका इतिहास रहा है किसान, मज़दूर, कर्मचारी के खिलाफ़ कानून बनाने का। उदाहरण देख लीजिये -अटल बिहारी वाजपेयी ने पेंशन खत्म कर दी। कंपनियों और सरकार में वीआरएस लागू कर दिया। कर्मचारियों को संविदा पर रखने का कानून ले आए। विनिवेश मंत्रालय बनाया, कंपनियां बेचने का कानून बनाया, बाल्को, भेल को बेचने का प्रस्ताव अटलबिहारी वाजपेयी के समय आया। अरुण शौरी इसके गवाह हैं जो विनिवेश मंत्रालय के मंत्री बनाए गए।

सवाल: बीजेपी का आरोप है कि आंदोलन किसान नहीं कांग्रेसी, वामपंथी चला रहे हैं।

शिवाजी राय: भारत के संविधान ने हर आदमी को अधिकार दिया है कि वो संगठन बना सकता है। और उसके मानक भी दिए हुए हैं। कम्युनिष्ट अगर हैं तो उनका रजिस्ट्रेशन चुनाव आयोग में है। अपराधी तो वो हैं जो कह रहे हैं कि कम्युनिष्ट आए हुए हैं या कांग्रेसी आए हुए हैं। देश के इतिहास में कांग्रेस ने देश को आज़ाद करवाया। इतिहास गवाह है कि देश की आज़ादी में कम्युनिष्ट पूरी ताकत के साथ आगे रहे। कितने फांसी पर चढ़े।

100 साल में भाजपा वाले अपने आकाओं को मैदान में लेकर नहीं आ पाए। ये षड्यंत्र करते हैं। इतिहास गवाह है सावरकर ने अंग्रेज़ों से छह बार माफ़ी मांगी थी। क्या हमें इनको सफाई देने की ज़रूरत है कि हम देशभक्त हैं कि नहीं हैं। इनको सिद्ध करना है कि ये देशभक्त हैं।

ये पटेल को लेकर आते हैं। गांधी का चश्मा लाते हैं। गांधी, पटेल से इनका क्या लेना-देना। ये विवेकानंद से चिपकते हैं। विवेकानंद कहते हैं – ‘‘मैं उस ईश्वर की पूजा करता हूं जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं”। उन्होंने आदमी को ईश्वर माना है। ये तो आदमी को आदमी नहीं मानते।

इस कानून के खि़लाफ़ त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, कश्मीर में आंदोलन चल रहा है। केरल के लोग दिल्ली आए हुए हैं। उन्होंने मदद भी भेजी है। तो क्या केरल के लोग आतंकवादी हैं। वहां कम्युनिष्ट पार्टी की सरकार नहीं है क्या? बंगाल में ममता ने कहा हम ये कानून रद्द करेंगे, तो क्या ममता आतंकवादी है। पंजाब, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ ने कानून का विरोध किया। उन्होंने बताया कि ये हमारा राज्यों का अधिकार है। आप जिस पर कब्ज़ा कर रहे हैं। कोरोना का बहाना लेकर ये जनता का सारा हिस्सा छीनकर अंबानी-अडानी को दे देंगे पर ये आतंकवादी नहीं हैं। हमें इनके और इनके द्वारा चलाई जा रही मीडिया के सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है। ये देश के शत्रु हैं। आज़ादी की लड़ाई में भी इन्होंने देश के साथ शत्रुता की है। आज़ादी की लड़ाई में ये अछूत घोषित कर दिए गए थे। आज भी ये अछूत थे। मोदी अंबानी-अडानी की कृपा से देश का प्रधानमंत्री बन गया। इनको कंपनियों की बदमाशी की वजह से मान्यता मिल गई। अब जनता सब समझ रही है कि उसका वोट ठग लिया गया है।

कंपनियां किसी की नहीं होतीं। दुनिया की फासीवादी ताकतों का इतिहास रहा है कि कंपनियां ही उनको बनाती हैं और वो ही बिगाड़ती हैं। कंपनियों ने हिटलर-मुसोलिनी को बनाया, बर्बाद किया। अंग्रेजों को डंडा मारकर लोगों ने भगा दिया। जहां तक कुर्बानी का सवाल है जलियांवाला बाग में जो लोग मरे उसमें एक भी आरएसएस का नहीं होगा। चौरी-चौरा, मधुबनी में एक भी नहीं मरा होगा। आजादी की लड़ाई में एक भी आदमी के जेल का इतिहास नहीं है। जो गया उसने माफी मांग ली। इदिरा गांधी ने इमरजेंसी में जब जेल भेजा तो इनके मुखिया ने बाहर आकर माफी मांगी। ये कभी आंदोलन में नहीं रहे। जनता के साथ हमेशा षड्यंत्र किया है।

इन्होंने धन्ना सेठों का माल खाया है और मज़दूर किसानों के साथ षड्यंत्र किया है। एक प्रतिशत लोगों के पास देश की 73 प्रतिशत पूंजी चली गई। ये आंकड़े कहते हैं। और ये उन एक प्रतिशत के साथ जाकर खड़े हो गए। हमारा माल तो लुटवा दिया। इस बार इनको मज़ा चखा दिया जाएगा।

अब ये इस चक्कर में न रहें कि सिर्फ किसान लड़ रहा है। इन्होंने छ सालों में जिनके-जिनके ऊपर हमला किया है। वो सब मैदान में हैं। नौजवानों को बेरोज़गार बनाया है। छोटे व्यापारियों को बर्बाद किया। छात्रों की पूरी पढ़ाई खत्म कर दी। मजदूरों के हित के श्रम कानून सब ख़त्म कर दिए। महिलाओं पर इन्होंने हमला बोला है। इन्होंने हमारे समाज में हिंदू-मुस्लिम विभाजन किया। अब इस लड़ाई में हिंदू-मुस्लिम एका हो गया है। लोग इनकी चालों को अब समझ गए हैं। बंगाल में मज़दूर-किसान के आंदोलन की वजह से ये गायब हो जाएंगे।

असम में आंदोलन चल रहा है। पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ से गायब हो गए हैं। जहां ज़मीन तलाश रहे हैं वहां इनको मिलनी नहीं है।

शिवाजी राय ज़ोर देकर कहते हैं कि ‘मेरी पॉलिटिकल एनालिसिस है। मैं दावा करता हूं, मोदी के सांसद भागेंगे। इसी पार्लियामेंट में इनके खि़लाफ महाभियोग आएगा। किसान जीतेगा इसमें दो राय नहीं है। देश जनता से बनता है। इन्होंने जनता के विरोध में काम किया है। ये पक्का देश विरोधी काम है। इसलिए इनको जाना है, इनका मामला अब खत्म।”

(वीना जनचौक की दिल्ली हेड हैं।)

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