झारखंड: पेयजल संकट, सुखाड़ और हाथियों के उत्पात से परेशान किसान

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झारखंड वैसे तो कई समस्याओं के मकड़-जाल में है। लेकिन फिलहाल जो सबसे बड़ी जनसमस्याएं हैं, उनमें पेयजल संकट, सुखाड़ और हाथियों का उत्पात मुख्य है। शुद्ध पेयजल पर बात करें तो भारत सरकार द्वारा जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की ओर से 15 अगस्त 2019 में शुरू हुई जल जीवन मिशन योजना के तहत झारखंड के 61.30 लाख घरों में से अब तक मात्र 24.04 लाख घरों तक ही नल से जल पहुंचाया जा सका है। यानी 37.25 लाख घरों तक अब भी नल से जल नहीं पहुंच पाया है।

जबकि इस योजना का मार्च 2024 में समाप्त हो जाने की संभावना है। अगर ईमानदारी से काम हो तब भी राज्य सरकार को बचे हुए 37.25 लाख घरों तक आठ महीने में शुद्ध पेयजल पहुंचाना एक चुनौती होगी। इस योजना का राष्ट्रीय औसत 65.25 प्रतिशत है। वहीं झारखंड सरकार की उपलब्धि मात्र 39.23 प्रतिशत है।

झारखंड में मौसम की बेरुखी से उत्पन्न हो रही सूखे की स्थिति पर बात करें तो राज्य में संभावित सूखे का आभास हेमंत सरकार को हो गया है। यही वजह रही कि 24 जुलाई को कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग द्वारा संचालित योजनाओं की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि पिछली बार की तरह इस बार भी सुखाड़ जैसी स्थिति बन रही है। इसको लेकर सरकार गंभीर है। राज्य के लगभग 70% से अधिक लोग खेती पर निर्भर हैं। किसानों के लिए हम क्या बेहतर कर सकते हैं? इस मुद्दे पर गंभीरता से बात हुई है। कई निर्णय भी लिए हैं। हम मौसम पर नजर बनाए हुए हैं। विभागों को हर परिस्थिति से निपटने के लिए निर्देश भी दिये गये हैं।

वहीं राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से 9,131 करोड़ रुपये की मांग की थी। जिसके बाद केंद्र सरकार ने झारखंड को सूखा राहत मद में 502 करोड़ रुपये देने की घोषणा की है। केंद्र सरकार राज्य को एग्रीकल्चर इनपुट सब्सिडी में 407.24 करोड़ और ऐच्छिक राहत मद में 95.28 करोड़ रुपये देगी।

राज्य सरकार ने बीते वर्ष 2022 में खरीफ की फसल के समय बारिश नहीं होने के कारण 22 जिलों के 226 प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित किया था। सरकार ने इसकी सूचना अक्तूबर में केंद्र सरकार को दी थी। भारत सरकार ने राज्य को भेजे पत्र में कहा है कि आपदा की स्थिति में राज्य सरकार अपने आपदा फंड से खर्च कर सकती है। अगर राज्य सरकार वर्ष 2022 के सूखे में खर्च करना चाहती है, तो इसके लिए समुचित राशि राज्य आपदा रिलीफ फंड (एसडीआरएफ) में जमा है। राज्य के आपदा फंड में करीब 3,000 करोड़ रुपये रहते हैं।

राज्य की सूचना पर केंद्र सरकार ने जनवरी में जांच टीम झारखंड भेजी थी। टीम ने तीन दिनों तक सभी प्रमंडलों का दौरा किया था। अब भारत सरकार ने राज्य सरकार को जानकारी दी है कि वर्तमान परिस्थिति में झारखंड को सूखा राहत की राशि देना संभव नहीं है। झारखंड सरकार ने जिस आधार पर सूखाग्रस्त होने का दावा किया था, वह तकनीकी रूप से उचित नहीं है। इसमें बताया गया है कि जब फसल नहीं लगी, तो उसका मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है। जो फसल लगी है उसके नुकसान की भरपाई की जा सकती है।

राज्य सरकार ने केंद्रीय टीम को बताया था कि राज्य के 226 प्रखंडों में स्थिति बेहद खराब रही। 90 दिनों तक 22 लाख परिवारों को काम का संकट रहा। हर परिवार के दो लोगों को रोजगार नहीं मिला। यानी करीब 42 लाख लोगों के समक्ष काम का संकट रहा। इनको सहयोग देने के लिए 9139 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। किसानों के समक्ष पेट पालने का संकट हो गया था, इसलिए राज्य सरकार ने तत्काल राहत के रूप में प्रति परिवार 3,500 रुपये उपलब्ध कराये। केंद्रीय टीम को बताया गया था कि सूखे से राज्य के करीब 30 लाख किसान प्रभावित हुए हैं।

वर्ष 2022 में राज्य के कुल 33 लाख 62 हजार 823 किसानों ने सूखा राहत के लिए आवेदन दिया था। इनमें से करीब 10 लाख किसानों को राज्य सरकार ने प्रति किसान 3,500 रुपये की सहायता राशि दी है। आवेदन करने वाले किसानों में 17 लाख 49 हजार 806 वैसे हैं, जिन्होंने कम बारिश के कारण बुआई ही नहीं की। वहीं 10 लाख 259 किसानों ने फसल तो लगायी, लेकिन उनकी एक तिहाई फसल क्षतिग्रस्त हो गयी। वहीं 6 लाख 12 हजार 758 वैसे भूमिहीन कृषक मजदूर हैं, जो इस आपदा से प्रभावित हुए हैं। अभी भी राज्य के लगभग 23 लाख किसान राहत का इंतजार कर रहे हैं। इसी बीच लगातार दूसरे साल इस बार भी राज्य में सूखे का आसार दिख रहा है।

झारखंड में हाथियों का आतंक

झारखंड में हाथियों का आतंक भी आम जनजीवन के लिए गंभीर समस्या बन गई है। दरअसल झारखंड जंगल, पहाड़ और कई खनिज सम्पदाओं का प्रदेश है। यहां जंगल में नक्सल उन्मूलन के नाम पर सुरक्षा बलों द्वारा सर्च अभियान के दौरान मुठभेड़ में फायरिंग वगैरह होती रहती हैं। कई क्षेत्रों में लकड़ी माफियाओं द्वारा अवैध रूप से जंगल की कटाई भी जारी है। दूसरी तरफ पहाड़ों पर वैध-अवैध उत्खनन हो रहा है। उत्खनन के लिए विस्फोटक का इस्तेमाल होता है, जो जंगली जानवरों की शांति में खलल डालता है। जिससे डरे सहमे ये बेजुबान जंगलों से बाहर निकलने को बाध्य हो जाते हैं।

राज्य में दर्जनों पहाड़ उत्खनन के कारण खत्म हो चुके हैं। पहाड़ की जगह अब जमीन समतल हो गयी है। इसकी वजह से पहाड़ों से निकलने वाली नदियां सूखने के कगार पर हैं। यही वजह है कि गुस्से में जानवर अब जंगल छोड़ गांवों की ओर आ रहे हैं। ऐसे में भालू, तेंदुआ और हाथी के हमले झारखंड के लिए अब नयी बात नहीं रह गई है।

हाथियों के हमले मारे जा रहे हैं लोग

झारखंड में 2020 से 2022 तक हाथियों ने 217 लोगों को मार डाला है। 2020-21 में 84 और 2021-22 में 133 लोग हाथियों के गुस्से का शिकार हुए हैं। वहीं बिजली विभाग की लापरवाही के कारण बिजली का करेंट लगने से लगभग 20 हाथियों की मौत झारखंड में हुई है।

हाथियों के हमले से लोगों की जानें तो जाती ही हैं, साथ साथ उनकी फसलें भी बर्बाद होती हैं। कभी कभी रात में उनके हमलों से लोगों के घर भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इस बाबत पीड़ित परिवार को मुआवजा का प्रावधान तो है लेकिन हमले से बचाव की कोई ठोस व्यवस्था अभी तक नहीं हो सकी है।

वैसे भी किसी की मौत के मुआवज़े का सवाल हो या फसल की बर्बादी या घर के क्षतिग्रस्त होने पर मुआवजा देने की प्रक्रिया, यह लगभग प्रावधान तक ही सीमित है। हाथी के हमले में हुई मौत पर मुआवजे के तौर पर तत्काल एक छोटी रकम दाह-संस्कार के नाम पर मिल जाती है। यह इसलिए होता है कि आर्थिक रूप से विपन्न आश्रित परिवार तत्काल घटना की पीड़ा से अपना ध्यान हटा ले और प्रशासन किसी प्रतिरोध से बचा रहे। इसके बाद मुआवजे के बाकी पैसे लेने में आश्रितों को कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं इसकी कोई तय सीमा नहीं है। फसल की बर्बादी और क्षतिग्रस्त घरों के मुआवज़े को लेना तो पीड़ितों के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं है।

पानी का संकट

राज्य में शुद्ध पेयजल की बात छोड़िए, मौसम की बेरुखी का आलम यह है कि सामान्य पानी के लिए भी लोग चुंआ और दाड़ी पर निर्भर हैं। राज्य में पानी के लिए परेशान लोगों की खबरें, चाहे गांव हो या शहरी क्षेत्र, आए दिन हमें देखने सुनने को मिल रही हैं। एक अध्ययन के अनुसार, झारखंड की भौगोलिक संरचना के कारण लगभग 80 प्रतिशत सतही जल और 74 प्रतिशत भूजल राज्य के बाहर चला जाता है और 38 प्रतिशत जल संकट अनावृष्टि के कारण होता है।

बता दें कि 2022 के प्री-मॉनसून सीजन में राज्य के भूजल स्तर में दो मीटर की गिरावट आई थी। 2022 में प्राप्त मॉनसून की वर्षा 60 प्रतिशत से भी कम थी और लगभग 90 प्रतिशत जलाशय केवल 40 प्रतिशत ही भरे हुए थे। राज्य में दामोदर, मयूराक्षी, बराकर, कोयल, शंख, सोन, औरंगा, मोर, करो, बांसलोई, दक्षिण कोयल, खरकई, स्वर्ण रेखा, गंगा, गुमानी नदियों के अलावा झारखंड में तालाबों और धाराओं के रूप में कई ताजे पानी के संसाधन हैं। जो ज्यादातर अब पूरी तरह या आंशिक रूप से सूख चुके हैं। जिसके भरने की संभावना दूर दूर तक नहीं दिख रही है।

भू-जल स्तर में गिरावट

पिछले दो दशकों में राज्य में भूजल स्तर में गिरावट आई है। विशेष रूप से राजधानी रांची के शहरी क्षेत्र, पूर्वी सिंहभूम के जमशेदपुर, सरायकेला-खरसावाँ के आदित्यपुर वगैरह के अधिकांश क्षेत्रों में भूजल घट रहा है। कहना ना होगा कि जलवायु परिवर्तन के कारण कम वर्षा होने से जल संकट बढ़ा है। औद्योगीकरण ने भी साफ-सुथरे जल स्रोतों को प्रदूषित किया है। साथ ही कंक्रीट का फर्श होने की कारण जल पृथ्वी के अंदर नहीं पहुंच पाता और वर्षा का जल बह जाता है, जिसके कारण भूमिगत जल स्तर नहीं बढ़ रहा है।

वहीं दूसरी तरफ पहले जहां लंबे समय तक जो बारिश हुआ करती थी, अब जलवायु परिवर्तन की वजह से उसका टाइम कम हो गया है, जबकि बारिश का अनुपात वही है। ऐसे में जहां लंबे समय तक होने वाली बारिश से जमीन में पानी धीरे धीरे समाता चला जाता था, वह तेज बारिश की वजह से बह जाता है।

सुखाड़ के आगोश में झारखंड

मॉनसून की बेरुखी और अनावृष्टि से राज्य पूरी तरह सुखाड़ की आगोश में समा रहा है। 24 जिलों में 13 जिलों में एक प्रतिशत भी रोपाई का काम नहीं हुआ है। जिसके चलते जहां बड़े किसान आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं छोटे-मोटे किसान जिनके परिवार का पेट खेती से ही भरता रहा है, वे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अभी से ही चिंतित हैं। दूसरी तरफ ऐसे खेतिहर मजदूर जिनकी भी रोज़ी-रोटी बरसात के दिनों में खेतों की जुताई, बुआई, रोपाई पर निर्भर है, अब वे भी सुखाड़ की आशंका से भयाक्रांत हैं। इन परिस्थितियों में ये लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं।

लोहरदगा

लोहरदगा जिला तेजी से सुखाड़ की ओर बढ़ रहा है। अल्प बारिश व मॉनसून की दगाबाजी ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी है। मौसम की बेरुखी ने किसानों की कमरतोड़ दी है। अब किसान अपने सूखे पड़े खेतों को देख मायूस हो रहे हैं। किसान अब अपनी श्रमशक्ति के साथ खेती में लगायी गयी पूंजी डूबने की आशंका से भयाक्रांत हैं।

लोहरदगा जिले में जुलाई महीने में औसतन 305 मिमी वर्षा होती है, परंतु इस वर्ष अब तक महज वास्तविक वर्षा 26.91 प्रतिशत हुई है। कम वर्षा के कारण खेतों में लगे धान के बिचड़े बर्बाद हो रहे हैं। महंगे बीज लेकर बिचड़ा लगाने वाले किसान बेचैन हैं। किसान रोज बारिश की आस में आसमान की ओर टकटकी लगाए रहते हैं। कभी-कभार आसमान में घने बादल भी छा रहे हैं, परंतु हल्की रिमझिम बारिश बाद आसमान साफ हो जा रहा है तथा सूर्य की चमकती किरणें किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर रही है।

बोकारो

बोकारो जिले में जून के पहले व दूसरे सप्ताह में लक्ष्य से 99% और तीसरे सप्ताह में 86 प्रतिशत कम बारिश हुई। लेकिन इसके अगले सप्ताह में यानी 21 से 28 जून तक बारिश सामान्य हुई। लगा कि इस साल माॅनूसन की बारिश पिछले साल के सुखाड़ को कम करेगी। लेकिन अचानक मौसम का मिजाज बदल गया। जुलाई के प्रथम सप्ताह में 22 प्रतिशत, दूसरे सप्ताह में 76 प्रतिशत, तीसरे सप्ताह में 52 प्रतिशत व अंतिम सप्ताह में अब तक 33 प्रतिशत कम बारिश हुई है।

ऐसे हालात में किसानों ने जैसे-तैसे बिचड़ा तो लगाया था, लेकिन अब रोपनी करने से कतरा रहे हैं। जिले में 33 हजार हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य है। लेकिन कहीं भी रोपनी की शुरुआत नहीं हुई है। पिछले साल 2022 में जिले में 68 प्रतिशत से कम खेती हुई थी।

गुमला

गुमला जिले की भी स्थिति भयावह है। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में खेती के लायक बारिश नहीं होने से किसान काफी चिंतित हैं। सबसे बुरा हाल पहाड़ व जंगलों में बसे गांवों का है। जहां खेत में बिचड़ा तो लग गया है, लेकिन बारिश नहीं होने से बिचड़ा सूखने लगा है। यहां तक कि बिचड़ा लगाये खेतों में दरार पड़ने लगी है।

सबसे बुरा हाल घाघरा प्रखंड के पहाड़ी इलाकों का है। इलाके के किसानों ने बताया कि कुछ बारिश हुई थी तो खेत की जुताई कर बिचड़ा लगा दिया। बिचड़ा तैयार हुआ तो अब बारिश नहीं हो रही है। जिस कारण एक दर्जन गांवों में अब तक धान रोपनी नहीं हुई है। कुछ खेत जहां पानी जमा है, वहां कुछ किसानों ने धान रोपनी की। लेकिन अभी भी 90 प्रतिशत किसान बारिश की आस में हैं।

जिले के कामडारा प्रखंड मुख्यालय सहित आसपास के इलाकों की भी यही स्थिति है। खेती योग्य बारिश नहीं होने से किसान परेशान हैं। कोल्हान प्रमंडल के जिलों में भी अनावृष्टि से किसान परेशान हैं। खेत सूखने लगे हैं, खेतों में डाले बिचड़े खराब होने लगे हैं। अब तो क्षेत्र के किसान सूखाड़ घोषित करने की मांग करने लगे हैं।

पश्चिमी सिंहभूम

पश्चिमी सिंहभूम जिले में बारिश के अभाव में कोहराम मचा है। मजदूरों के हाथ में काम नहीं है। किसानों की हालत खस्ता है, बाजार पस्त हो चुका है, क्षेत्र में आषाढ़ पूरी तरह सूखे में तब्दील हो गया। किसानों को सावन से बड़ी आस थी, वह भी समाप्त होने के कगार पर है, बावजूद बारिश गायब है। रोपनी के लिए लगाए गए बिचड़े पानी अभाव से खेतों में ही बर्बाद हो रहे हैं। अधिकांश किसानों ने बारिश की हालत देख अभी तक खेती का काम शुरू भी नहीं किया है।

क्षेत्र के किसान बताते हैं कि बारिश के अभाव में पिछले तीन साल से खेती में नुकसान हो रहा है। इस साल तो अकाल की स्थिति है। 30% भी खेती होने की संभावना नहीं है। किसानों ने मांग की है कि क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित कर राहत योजना चलायी जाए।

कृषि वैज्ञानिक डॉ हेमंत पांडेय का कहना है कि कम वर्षा से खेती प्रभावित हुई है। जुलाई माह के अंत तक हर हाल में धान की रोपाई का कार्य समाप्त हो जाना चाहिए था, लेकिन वर्षा की वर्तमान स्थिति के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया है। ऐसे में कम पानी वाली फसल में किसानों को उरद, कुर्थी, मूंग, मसूर आदि की वैकल्पिक खेती की ओर ध्यान देना चाहिए। किसान सब्जी की खेती करके भी घाटे की भरपाई कर सकते हैं।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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