Sunday, April 28, 2024

झारखंड: ‘माल पहाड़िया’ आदिम जनजाति तक नहीं पहुंचीं सरकारी योजनाएं, बिचौलिए खा जाते हैं पैसा

दुमका/पाकुड़ झारखंड के दुमका जिला के गोपीकांदर प्रखण्ड में अवस्थित है तन्याजोर पंचायत। इस पंचायत के सिद्दपहरी गांव में आदिम जनजाति ‘माल पहाड़िया’ के 75 परिवार निवास करते हैं। इस गांव के इन आदिम जनजाति समुदाय के लोग सरकार की लगभग सभी कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से पूरी तरह वंचित हैं। जिसमें मुख्य रूप से प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, आदिम जनजाति पेंशन योजना, आदिम जनजाति डाकिया खाद्यान्न योजना और मनरेगा योजना जैसी कई योजनाएं शामिल हैं।

इस बात की जानकारी तब हुई जब पिछले दिनों सिद्दपहरी प्राथमिक विद्यालय परिसर में स्थित छात्रावास में ‘भोजन के अधिकार अभियान’ के बैनर तले एक बैठक की गई। बैठक में ग्रामीणों से सरकार की इन कल्याणकारी योजनाओं के बारे चर्चा कर योजना से सम्बंधित जमीनी हालात की जानकारियां हासिल की गईं।

बैठक में 48 महिलाएं और 30 पुरुष शामिल थे। इस बैठक में आस-पास के 3 अन्य गांवों के भी ग्रामीण मौजूद थे। बैठक में जब प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के बारे में उपस्थित लोगों से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि योजना के सम्बन्ध में उन्हें कोई जानकारी नहीं है।

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली एक मातृत्व लाभ योजना है, जिसके तहत महिलाओं को आर्थिक मदद की जाती है। गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को 6,000 रुपये की मदद प्रदान की जाती है। मातृ और बाल स्वास्थ्य से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परिवार के पहले जीवित बच्चे के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।

ग्रामीणों ने बताया कि योजना के सम्बन्ध में उन्हें कोई जानकारी नहीं है और न ही इस योजना का लाभ किसी योग्य गर्भवती महिला को मिला है। बैठक में आंगनबाड़ी सेविका भी मौजूद थीं। उनका कहना था कि योजना का लाभ नहीं मिलने के मुख्य कारण हैं- लाभार्थी का समय पर आधार कार्ड में सुधार न होना और उनका बैंक खाता न होना।

बैठक में एक चौंकाने वाला तथ्य उभरकर आया कि ऑपरेशन के भय के कारण ‘माल पहाड़िया’ महिलाएं या उनके परिवार के लोग अस्पताल में प्रसव कराने से डरते हैं और सरकारी अस्पताल जाना नहीं चाहते हैं। दूसरी तरफ आवेदनों को ऑनलाइन करने में भी काफी परेशानी होती है।

बैठक में आदिम जनजाति पेंशन योजना पर चर्चा के दौरान उपस्थित महिलाओं में से सिर्फ 8 महिलाओं ने बताया कि उनको पेंशन का लाभ मिल रहा है।

आदिम जनजाति पेंशन योजना के तहत जिला सामाजिक सुरक्षा कोषांग की ओर से पेंशन दी जाती है। इस पेंशन योजना का लाभ उसे मिलता है, जो किसी सरकारी, निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी नहीं करता है और नियमित मासिक आय प्राप्त नहीं करता है। इस योजना का लाभुक परिवार की मुख्य महिला को ही बनाया जाता है।

बैठक में यह बात उभरकर सामने आई कि बाकी लोगों को उक्त पेंशन का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। इसके कारणों के तह में जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि ये ‘माल पहाड़िया’ आदिम जनजाति समुदाय से तो आते हैं, लेकिन इस समुदाय के पुरुष “देहरी” टाइटिल लिखते हैं और महलाएं “महारानी” टाइटिल लिखती हैं। इसी वजह से सरकारी पदाधिकारी इनको आदिम जनजाति की मान्यता नहीं देते हैं।

इनसे आवेदन के साथ जाति प्रमाण पत्र मांगा जाता है। इसके लिए इन महिलाओं को उनके मायके से जाति प्रमाण पत्र बनवा कर लाना पड़ेगा। साथ ही उनके खतियान में भी कुछ सरकारी अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण टाइटिल दर्ज किया है। इस कारण जाति प्रमाण पत्र बनाने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जाति प्रमाण पत्र के आवेदन के साथ शपथ पत्र मांगा जाता है, जो इन समुदायों के लिए काफी कठिन होता है। क्योंकि शपथ मजिस्ट्रेट द्वारा निर्गत किया जाता है, जिसके कारण ये चुप बैठ जाते हैं। बैठक में इस बात पर भी चर्चा की गई कि इनकी परेशानियों को दूर करने का रास्ता मिलकर ढूंढना होगा।

बैठक में लखी महारानी ने 3 साल से पेंशन नहीं मिलने की शिकायत की। जब उनके पासबुक का अवलोकन किया गया तो पता चला कि उनकी पेंशन लगातार खाते में आ रही है। जुलाई महीने की 6 तारीख को भी खाते में पैसा आया था और 12 तारीख को निकासी की गई है। इसका यह मतलब हुआ कि उन्हें सीएसपी में अंगूठा लगवाकर पेंशन राशि नहीं दी जा रही है। उन्हें सुझाव दिया गया कि वो जब भी खाते से पैसे निकालने जाएं तो गांव के किसी समझदार व्यक्ति के साथ जाएं।

आदिम जनजाति डाकिया खाद्यान्न योजना पर चर्चा के दौरान बड़ा पत्थर गांव के PDS लाभुकों ने बताया कि उनको राशन लेने के लिए 6-7 किमी दूर खरौनी बाजार जाना पड़ता है। जबकि आदिम जनजातियों के संरक्षण के लिए आदिम जनजाति डाकिया खाद्यान्न योजना (पीटीजी) लागू की गयी है। इस योजना में सरकार की ओर से प्रत्येक परिवार को माह में 35 किलो चावल दिया जाता है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग से जुड़े अधिकारी अनाज आदिम जनजाति के घरों तक पहुंचाते हैं। हर माह यह प्रक्रिया चलती है।

वहीं यहां के इन आदिम जनजाति लोगों को उनके घरों तक पहुंचाने का उन्हें लाभ नहीं मिलता है। दूसरी तरफ इन आदिवासियों को एक बार आवागमन के लिए 20 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। कई बार अंगूठा लगाने के लिए 3-4 दिन आना-जाना पड़ता है। कई बार अंगूठा लगवा लेने के बाद भी राशन नहीं दिया जाता है। उदाहरण के लिए अगस्त महीने का राशन बैठक की तिथि तक नहीं मिली थी। जबकि डेढ़ महीना पूर्व ही पॉश मशीन में अंगूठा लगवा लिया गया है। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि यहां टेंडर धारक के माध्यम से राशन मिलता है, प्रखण्ड के आपूर्ति पदाधिकारी के माध्यम से नहीं।

मनरेगा पर पर हुई बातचीत में यह मामला प्रकाश में आया कि इस गांव में मनरेगा प्रारंभ होने से अब तक काम मांगने की कोई जानकारी ग्रामीणों को नहीं है। जब गांव में कोई काम खुलता है तब गांव के लोगों को कोई न कोई ठेकेदार/बिचौलिया के माध्यम से काम कराया जाता है। लेकिन इसके बदले सही से मजदूरी का भुगतान भी नहीं मिलता है।

मोदी सरकार ने इस साल मनरेगा बजट में 33 फीसदी की कटौती की है। इसके साथ ही वर्तमान सरकार पर 18 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों पर मनरेगा मजदूरी का 6,366 करोड़ रुपये बकाया है। इस बात का खुलासा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पिछले दिनों सोशल मीडिया पर किया है।

अभी गांव में सभी मजदूर काम खुलने की उम्मीद लगाये बैठे हैं। इस बावत यहां के लोगों को यह सुझाव दिया गया कि वे गोपीकांदर प्रखण्ड में नागरिक सहायता केंद्र के माध्यम से मनरेगा में काम मांगने, मजदूरी भुगतान, जॉब कार्ड आदि की समस्याओं को समाधान की दिशा में बढ़ सकते हैं।

इसी भांति पीएम आवास, बिरसा आवास, एमडीएम जैसी अन्य योजनाओं पर भी चर्चा की गई। जिसमें बड़ा पत्थर गांव के लोगों ने बताया कि वहां मात्र 2 लाभुकों को ही पीएम आवास मिला है। इस बैठक में ग्राम प्रधान, आईसीडीएस सहायिका एवं दुमका के सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम मोहली व भोजन का अधिकार अभियान के राज्य संयोजक अशर्फीनन्द प्रसाद, बलराम, मुनमुन एवं जेम्स हेरेंज शामिल थे।

पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा में भी हुई बैठक

दुमका जिले के सिद्दपहरी में हुई बैठक के दूसरे दिन पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखण्ड अंतर्गत बिचपहाड़ गांव में पहाड़िया आदिम जनजाति समुदाय के साथ वहीं के प्राथमिक विद्यालय के पास एक बैठक की गई। बैठक में 30 महिलाएं और 16 पुरुष शामिल हुए। यहां शंकर पहाड़िया और सूरज पहाड़िया अपने समुदाय के अगुवा के तौर पर जाने जाते हैं।

बैठक में लोगों ने बताया कि इनके प्रयास से डाकिया खाद्यान्न योजना और आदिम जनजाति पेंशन योजना की स्थिति सिद्दपहरी की अपेक्षा काफी बेहत्तर है। अन्त्योदय योजना के लाभुकों को पूरा 35 किलो का पैकेट अपने ही गांव में प्रखण्ड के मार्केटिंग ऑफिसर द्वारा प्रत्येक महीना पहुंचाया जाता है। लेकिन आंगनबाड़ी सेविका काफी दूर के इलाके से आती है। इस कारण वो नियमित रूप से केंद्र में उपस्थित नहीं रहती हैं और बच्चों का पोषाहार और मातृत्व हक़ में मिलने वाले पैसे से महिलाएं और बच्चे वंचित हैं।

गांव के प्राथमिक विद्यालय में 30 बच्चे नामांकित हैं। लेकिन शिक्षक के नियमित उपस्थिति के बाद भी बच्चे स्कूल नहीं आते हैं, अतः स्कूल बन्द होने की स्थिति में है। ग्राम सभा में कई बार बच्चों को नियमित स्कूल भेजने के मुद्दे पर निर्णय किया गया है लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है। यहां पेंशन धारकों को खाते में पेंशन आ जाने की सूचना किसी एक के फोन में मैसेज आने पर उनके द्वारा अन्य लोगों को भी इसकी सूचना कर दी जाती है या किसी एक ने पैसा निकाला तो वह अन्य लोगों को भी वो बता देता है।

इस कारण पेंशन राशि में कोई गड़बड़ी घपला की घटना यहां नहीं है। शंकर पहाड़िया और सूरज पहाड़िया ने बताया कि दूसरे गांव में दो घटनाएं हुई थीं। एक में सीएसपी वाले ने पेंशन धारक को अंगूठा लगवा कर 4000 रुपये और दूसरे में 1000 रुपये नहीं दिए थे। ग्रामीणों सहित संगठन को फर्जी निकासी की बात मालूम होते ही उनको सम्बंधित ग्राम सभाओं में बुलाया गया और 4000 रुपये वाले सीएसपी संचालक से दण्ड स्वरूप 8000 रुपये तथा एक हजार रुपये की फर्जी निकासी करने वाले से 10 हजार रुपये दण्ड वसूला गया। इन कार्रवाईयों से कोई भी सीएसपी वाला पेंशन धारकों की राशि को गबन करने का साहस कम ही करता है।

लेकिन मनरेगा की प्रक्रियाओं से ग्रामीण अब भी अनभिज्ञ हैं। 2 माह पूर्व गांव में टीसीबी में कार्य किया गया है। इसमें पहले दौर में ऐसे मजदूरों द्वारा कार्य मांग कागज में नाम दिया गया जो वास्तविकता में कार्य नहीं करते हैं। योजना में वैसे लोगों ने कार्य किया जिनका नाम मस्टर रोलों में नहीं था। फिर दस्तावेज में जिनके नाम थे उनके खाते में पैसे भेजे गए थे। उन लोगों से पैसे निकलवाकर वास्तविक मजदूरों को पैसे दिए गए साथ में जिनके खातों में पैसे भेजे गए थे, उन्होंने भी कुछ पैसे रख लिए थे।

दूसरी बार भी पैसा भेजा गया था, लेकिन उस बार खाता धारकों ने पैसे की निकासी कर वास्तविक मजदूरों को नहीं दिए, इसके कारण मनरेगा में काम बाधित है। लोगों ने यह भी बताया कि काम मांग के लिए सम्बंधित रोजगार सेवक प्रति मजदूर 100 रुपये लेते हैं, तभी वह मस्टर रोल निकलते हैं। योजना के मामले में ब्लॉक के कर्मचारी/अधिकारी न्यूनतम 5000 रुपये रिश्वत लेने के बाद ही कोई काम को स्वीकृत करते हैं। लेकिन गारन्टी नहीं कि पैसे देने के बाद भी कोई योजना पास हो ही जाएगी। इन सब वजहों से गांव के लोग मनरेगा में काम नहीं करना चाहते हैं। बैठक में ऐसी स्थिति में लोगों को नागरिक सहायता केंद्र के कार्यकर्त्ताओं से मदद लेने का सुझाव दिया गया।

(विशद कुमार पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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