Sunday, April 28, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: जंगल कटाई से छत्तीसगढ़ में बढ़ रहा मानव-हाथी संघर्ष

अंबिकापुर। “मैंने जब उन लोगों की दर्दनाक मौत देखी तभी मैंने निर्धारित किया कि हाथियों के प्रकोप से बचने का कोई उपाय किया जाना चाहिए। ताकि लोग और हाथी दोनों सुरक्षित रहें”। यह कहना है उदयपुर के सामजिक कार्यकर्ता कन्हाई राम बंजारा का, जो सोशल मीडिया के दौर में व्हाट्सएप ऐप की सहायता से लोगों को हाथियों के विचरण का मैसेज देते हैं।

हाथी-मनुष्य दोनों को नुकसान

सरगुजा जिले के हसदेव अरण्य में लगातार जंगलों की कटाई के कारण हाथियों का दल एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण कर रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला का कहना है कि 21 दिसंबर को जिस दिन 90 हेक्टेयर जमीन पर 50 हजार पेड़ों की कटाई शुरू हुई उसी दिन 33 हाथियों का दल जंगल से निकलकर अंबिकापुर की तरफ बढ़ा और रास्ते में आने वाले गांव और फसलों को नुकसान पहुंचाया।

छत्तीसगढ़ में पिछले एक दशक में मानव-हाथी संघर्ष लगातार बढ़ा है। जिसमें हाथी और मनुष्य दोनों को ही जान गंवानी पड़ी है। आंकड़ों के अनुसार हाथियों की संख्या कम हुई है लेकिन संघर्ष उच्च स्तर पर है। हाथी के आवागमन से किसी की जान न जाए इसको रोकने के लिए कन्हाई राम बंजारा ने व्हाट्सऐप पर छह अलग-अलग ग्रुप बनाए हैं। जिसमें लगभग पांच हजार लोग जुड़ें हैं। इस ग्रुप की शुरुआत के बारे में उन्होंने जनचौक से विस्तार पूर्वक बात की।

2019 से बढ़ा हाथियों का आतंक

उन्होंने बताया कि साल 2019 के बाद से ही हाथियों ने आतंक मचाना शुरू कर दिया था। इससे पहले साल 2005 से 2010 तक हाथी थे और 2011 से 19 के बीच हाथियों का आवागमन पूरी तरह बंद हो गया था। इतने लंबे समय तक हाथियों के नहीं आने का सबसे बड़ा कारण वह मानते हैं कि उन्हें जंगल में भरपूर खाना मिलना था।

उनका कहना है कि इतने लंबे समय के लिए हाथी कोरबा जिले में हसदेव अरण्य के जंगल में रहते थे। उसके बाद कोरबा जिले में भी कोयला खदानों की संख्या बढ़ी, अलग-अलग इंडस्ट्री लगी। जिसके कारण जंगल को काटा गया होगा। जिसके कारण हाथी गांवों के तरफ बढ़ने लगे।

साल 2019 के बाद से हाथी कोरबा जिले के बाद सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक में प्रवेश करने लगे और आजतक स्थिति ऐसी ही है। हर दूसरे दिन हाथी और मनुष्य के संघर्ष की खबरें देखने सुनने को मिलती है। यहां तक की फसलों को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है।

पूरे परिवार को मार डाला

कन्हाई राम उदयपुर ब्लॉक ऑफिस से मात्र पांच किलोमीटर दूर हाईवे पर जांजगी में रहते हैं। सड़क के किनारे घर पर ही एक दुकान है। यही दुकान इनके जीवकोपार्जन का सहारा है।

वह बताते हैं कि साल 2019 में उदयपुर में नौ हाथियों का दल आया था। उस वक्त स्थानीय लोगों को हाथियों के तांडव के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। इसी दौरान एक परिवार जिसमें पति पत्नी और एक बच्ची थी, को हाथियों ने मार डाला।

ब्लॉक ऑफिस से मात्र छह किलोमीटर दूर मोहनपुर पंचायत के पास अंबिकापुर-बिलासपुर हाईवे से हाथी का दल पार हुआ। जिसमें कुछ हाथी चले गए और कुछ पीछे थे। इसी दौरान दंपत्ति हाथियों को देखने के लिए सड़क पर रूक गया।
वह सड़क की दाहिनी तरफ खड़े होकर हाथियों को देख रहे थे और उन्होंने बाई ओर हाथियों के एक झुंड को नहीं देखा। इसी दौरान हाथियों का दल आया और पूरे परिवार को अपनी चपेट में ले लिया।

सड़क पर लंबी दूरी तक उनको उठा-उठाकर पटका, उनके पूरे कपड़े निकल गए। सड़क पर लंबी दूरी तक फुटबॉल की तरह एक दूसरे की तरफ फेंक-फेंककर खेलते रहते। स्थिति ऐसी थी कि लोग चीख पुकार रहे थे लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाया।

तीनों के शरीर के अलग-अलग अंग यहां-वहां अलग-अलग करके फेंक दिए। महिला को पूरी तरह से निर्वस्त्र कर दिया। यह दृश्य बहुत ही भयावह और मर्मिक था। पूरा का पूरा मामला कुछ मिनटों में पूरी तरह खत्म हो गया। माना जाता है उदयपुर की यह पहली घटना है।

घटना के बाद बनाया ग्रुप

कन्हाई मुझे बताते हैं कि इसी घटना के बाद मैंने लोगों को हाथियों से सचेत करने के लिए ग्रुप बनाने के बारे में सोचा, और साल 2019 में ही “हाथी आगमन की सूचना ग्रुप” बनाया। जिसके अब पांच ग्रुप है। इसमें गांव के कुछ प्रतिष्ठित लोग और कुछ एक्टिव लोग जुड़े हैं।

वह कहते हैं इस ग्रुप में फिलहाल पांच हजार लोग जुड़ें हुए हैं। जिसमें लोग जहां हाथी आते हैं उसके अगले गांव के लोगों को जानकारी दे देते हैं। जिससे आगे के लोग सतर्क हो जाते हैं।

हाथी की उपस्थिति के बारे में वरिष्ठ पत्रकार आलोक पुतुल का कहना है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य जंगल में मुगल काल के समय से हाथी खरीदे जाते थे। इससे साफ पता चलता कि यह क्षेत्र हाथियों का पुराना रहवास है। जिसे समय-समय पर खनिज के नाम पर उजाड़ा जा रहा है।

बिजली आपूर्ति के लिए जंगल उजाड़ा

साल 2010 में छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य को उजाड़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो लगातार जारी है। साल 2010 में राजस्थान में बिजली आपूर्ति को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा हसदेव अरण्य में तीन खदानों का आवंटन दिया।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और केंद्रीय पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के बाद भी साल 2015 कटाई शुरू हो गई। जिसका सीधा असर ये हुआ कि ग्रामीणों, जीव-जन्तुओं को परेशानी होने लगी।

कोयले की आपूर्ति के लिए परसा ईस्ट केते खुली खदान परियोजना शुरू हुई। जिसमें इंसान, पशु-पक्षी सबका घर उजाड़ा गया। जिसका नतीजा यह हुआ कि हाथी और मनुष्य आमने-सामने हो गए।

छत्तीसगढ़ में हाथी मानव-संघर्ष लगातार बढ़ रहा है। साल के पहले रविवार को एक तरफ उदयपुर के हरिहरपुर में हसदेव बचाओ आंदोलन चल रहा था। वहीं दूसरी तरफ शाम को कल्याणपुर गांव में हाथियों ने खूब आतंक मचाया। वन विभाग के लोग और ग्रामीण उन्हें भागने की कोशिश कर रहे थे। गांव में आग जलाने से लेकर सायरन तक बजाए गए। लेकिन हाथियों ने गांव में उत्पात मचाया।

हाथियों का निवाला छीना जा रहा है
पर्यावरणविद दयाशंकर श्रीवास्तव का कहना है कि इस तरह के संघर्ष के लिए हाथियों को दोष नहीं दिया जा सकता है। उनके मुंह से निवाला छीना जा रहा है। हाथी कंद-मूल खाता है। जंगल में कई तरह की पत्तियां फल फूल हैं जिसे वह खाता है। जब जंगल काट दिया जाएगा तो हाथियों पर खाने का खतरा मंडराता रहेगा।

इसी खाने की तलाश में वह बाहर निकल रहे हैं और रास्ते में आऩे वाली चीजों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
मानव-हाथी संघर्ष की अगर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अऩुसार राज्य बनने के बाद साल 2000-01 में हाथी के हमले से एक व्यक्ति की मौत हो गयी। बाद में यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ता गया। साल 2006-07 में 23, 2015-16 में 53 और साल 2022-23 में यह 74 तक पहुंच गया।

वहीं दूसरी ओर हाथियों के ऊपर भी हमला बढ़ा। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद साल 2001-02 में पहली बार रायगढ़ के बालभद्र में एक हाथी को लोगों ने मार दिया। इसमें भी साल दर साल आंकड़ों का सिलसिला बढ़ने लगा। साल 2005-06 में हाथी को मारने के दो मामले दर्ज किया गए। साल 2010-11 में 13, 2016-17 में 16 और 2022-23 में यह आंकड़ा 19 हाथियों की मौत तक पहुंच गया। इसमें कई हाथियों की मौत हाई वोल्टेज कंरट की चपेट में आऩे से हुई।
जंगल की लगातार होती कटाई हाथियों के विस्थापन और मानव के संघर्ष का बड़ा कारण है। अंबिकापुर से बिलासपुर जाते वक्त रास्ते में पेड़ों पर हाथी प्रभावित क्षेत्र लिखकर टांगा गया है ताकि लोग सतर्क रहें।

सोशल मीडिया ट्रेंड चलाया गया
दिसंबर के महीने में कोयले की खनन के लिए हसदेव अरण्य के 90 हेक्टेयर पर 50 हजार पेड़ काटे गए। जिसका विरोध छत्तीसगढ़ के साथ-साथ पूरे देश में हुआ। सोशल मीडिया पर लगातार #savehasdeb ट्रेंड कराया गया। मानव श्रृंखला बनाकर विरोध किया गया।

हसदेव को बचाने की लड़ाई लड़ रहे सामजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला का कहना कि इस जंगल के कारण ही छत्तीसगढ़ में बारिश होती है। पर्यावरण के लिहाज से यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि इसे बचाया जाए। इसमें रहने वाले जानवर को सुरक्षित किया जाय। पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने लिए हमें इसे बचाना होगा। मानव-हाथी संघर्ष के बारे में वह कहते हैं कि हसदेव हाथियों का रहवास है अगर उनके घर को उजाड़ा जाएगा तो वह बाहर निकलेंगे और इसका सीधा नुकसान हाथी और मनुष्य दोनों को हो रहा है।

(अंबिकापुर से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

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