भारत की आज़ादी के दिन लंदन में लगे ‘मोदी गद्दी छोड़ो’ के बैनर

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आज भारत की आज़ादी के 75वीं वर्षगांठ की भोर में लंदन में ऐतिहासिक वेस्टमिन्स्टर पुल से ‘मोदी गद्दी छोड़ो’ का बैनर लटकाया गया।

आज 15 अगस्त को जैसे ही लंदन में भोर हुई, प्रवासी भारतीयों के सदस्य और भारत के हितैषी लोगों ने ब्रिटेन में लंदन के प्रतिष्ठित वेस्टमिंस्टर पुल से ‘मोदी इस्तीफा दो’ लिखा हुआ एक विशाल बैनर लटकाया। पुल के रास्ते में, भारतीय उच्चायोग के सामने प्रतिभागियों ने मोदी शासन के सभी पीड़ितों को याद करते हुए मोमबत्ती की रोशनी में जागरण किया था।

आयोजकों में से एक, दक्षिण एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप के मुक्ति शाह ने इस आयोजन के कारणों के बारे में बताया कि-“जैसे ही भारत का 75वां स्वतंत्रता दिवस होता है, देश का धर्मनिरपेक्ष संविधान बिखर जाता है। साम्प्रदायिक और जातिगत हिंसा ने भूमि को जकड़ रखा है। हजारों राजनीतिक कैदी कोविड-संक्रमित होकर जेल में मरे, और सैकड़ों हजारों लोग कोरोना महामारी में मोदी सरकार की घोर लापरवाही और कुप्रबंधन के परिणाम स्वरूप अपने प्रियजनों को खोकर शोकग्रस्त हैं। हम, प्रवासी सदस्यों और मित्रों का एक समूह, उनके साथ एकजुटता से खड़े हैं।

भारत के लोग, भारत में हिंसा, अन्याय और आपराधिक लापरवाही के मुख्य वास्तुकार नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

पुल पर बैनर लटकाने के साथ ही प्रदर्शनकारी समूहों द्वारा एक बयान भी जारी किया गया। जिसमें मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, वैचारिक, सौहार्द्र और ताने-बाने को पहुंचाई क्षति और जनता को दिये गये अथाह पीड़ा व जख्मों को प्रथामकिता से स्थान दिया गया है। बयान में मोदी सरकार से इस्तीफा मांगने के 10 विभिन्न कारणों को बिंदुवत यूँ बताया गया है –

मुसलमानों के जनसंहार और मॉब लिंचिंग और पोग्रोम्स को सामान्य बनाने का आह्वान

राष्ट्रीय राजधानी में रैलियों में और देश में कहीं और ऐसे लोगों द्वारा जो हिंदू वर्चस्ववादी आतंकवादी समूहों से संबंधित लोगों द्वारा खुलेआम मुसलमानों के जनसंहार का आह्वान किया जा रहा है। इन समूहों की जांच कर उन्हें खत्म कर इन घटनाओं को दरकिनार किया जा सकता है। लेकिन नहीं ‘सामान्य जीवन’ का हिस्सा बनकर यह भयावह हिंसा के क्रमिक सामान्यीकरण से आगे बढ़ता है। 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से मुसलमानों के खिलाफ मॉब लिंचिंग, पोग्रोम्स और पुलिस द्वारा मुस्लिम मोहल्लों पर हमले अब आम बात हो गई है। यह सामान्यीकरण, इस तथ्य के साथ कि मोदी ने 2002 के गुजरात नरसंहार के लिए कभी माफी नहीं मांगी,जो मुख्यमंत्री के रूप में उनकी निगरानी में हुआ, यह बताता है कि भारत किसके द्वारा तैयार किया जा रहा है ? मुसलमानों पर एक और बड़े पैमाने पर जनसंहार के लिए मोदी को कभी भी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसलिये मोदी को इस्तीफा देना चाहिए।

दलित महिलाओं और लड़कियों के बलात्कार और हत्याएं

दलितों के ख़िलाफ़ लगातार हिंसा नरेंद्र मोदी के शासनकाल में कई गुना बढ़ गई है। दलित महिलाओं और लड़कियों के साथ अत्याचारी-जाति के पुरुषों द्वारा सामूहिक बलात्कार और हत्या की जा रही है, जो कि राज्य और केंद्र स्तर पर सत्तारूढ़ भाजपा सरकारों द्वारा संरक्षित हैं। हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या जगजाहिर है। इसी तरह के मामले व्यापक हैं और हर दिन ताजा भयावहता लाता है। हाल ही में दिल्ली में एक श्मशान घाट के पुजारी ने नौ साल की दलित लड़की के साथ बलात्कार और हत्या कर दी थी। और उसके शरीर को जलाने का प्रयास किया। इस तरह के की घटनाओं के विरोध के बजाय प्रधानमंत्री चुप हैं। अकथनीय हिंसा और ब्राह्मणवादी कुप्रथा के लिये भी मोदी को इस्तीफा देना चाहिए।

कृषि का कॉर्पोरेट अधिग्रहण

मोदी शासन में तीन कृषि कानून पारित किए हैं जो पूरे कृषि क्षेत्र को अपने कॉरपोरेट साथियों गौतम अडानी और मुकेश अंबानी को हैंडओवर की सुविधा प्रदान करते हैं। निजीकरण भारत के पहले से ही गरीब किसानों को बर्बादी और भूमिहीनता के दल दल में धकेल देगा। देश की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता नष्ट होगी, भुखमरी बढ़ती जाएगी।

इन कानूनों को चुनौती देने के लिए बड़े पैमाने पर किसान आंदोलन खड़ा हो गया है और पिछले साल नवंबर महीने से ही राजधानी दिल्ली के दरवाजे पर आ गया है। बावजूद इसके भारत के इस मुख्य क्षेत्र के कामकाजी वर्ग की आवाज़ को मोदी ने लगातार नजरअंदाज़ किया है। मोदी को इस्तीफा देना चाहिए।

असंतुष्टों और मानवाधिकार रक्षकों को क़ैद

मोदी सरकार ने हजारों लोगों को यूएपीए जैसे ड्रैकोनियन क़ानून के तहत कैदखाने में डाल दिया है जिनका ‘अपराध’ सिर्फ़ असहमत होना, सबसे हाशिए पर और उत्पीड़ित समूहों की वकालत करना, या अहिंसक विरोध में भाग लेना है।

बुजुर्ग और कमजोर शिक्षाविद और हजारों आदिवासी युवाओं सहित वकील, छात्र और युवा कार्यकर्ता एक महामारी के बीच में भीड़भाड़ और अस्वच्छ स्थिति में जेल में बंद हैं। उनका जीवन अत्यधिक जोखिम में है। कुछ पहले ही वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और उन्हें इलाज से वंचित किया जा रहा है, या अपने दोस्तों और परिवारों के भारी दबाव के बाद ही उपचार प्रदान किया। अन्य, जैसे कि फादर स्टेन स्वामी की तरह, एक 84 वर्षीय ईसाई पुजारी जो पार्किंसंस रोग से पीड़ित थे उन्हें यहां तक कि उसकी सबसे बुनियादी ज़रूरतों में से कुछ से भी वंचित कर दिया गया था, पहले ही मर चुका है – मोदी शासन द्वारा हिरासत में हत्या कर दी गई है। मोदी को इस्तीफा देना चाहिए।

कश्मीर में उपनिवेशवाद

कश्मीरियों ने दशकों के गहन सैन्यीकरण, गंभीर मानवाधिकारों के हनन और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित रहे हैं। नरेंद्र मोदी के तहत भारत के संबंध कश्मीर ने इजरायल के बसने वाले उपनिवेशवाद के समान कब्जे के एक नए चरण में प्रवेश किया है।

5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करके दो साल के क्रूर तालाबंदी, कर्फ्यू, सामूहिक कैद कारावास और लोकतंत्र के इतिहास में अब तक का सबसे लंबा इंटरनेट और संचार नाकाबंदी, भारत के संविधान और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून दोनों का उल्लंघन है। इसके पीछे मोदी शासन की जनसांख्यिकीय परिवर्तन की योजनाएँ, कॉर्पोरेट को कश्मीर में लूट की छूट और पारिस्थितिक विनाश जैसे मंसूबे हैं। मोदी को इस्तीफा देना चाहिए।

मोदी के नूर्नबर्ग (Nuremberg) कानून

मोदी सरकार द्वारा लाया गया नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) भारतीय नागरिकता की बुनियाद पर हमला है। भारतीय नागरिकता के आधार यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के प्रवासियों को अनुमति देता है कि वो भारतीय नागरिक बनें बशर्ते वे हिंदू, सिख, पारसी, जैन या ईसाई हों। स्पष्ट रूप से भारतीय नागरिकता को धार्मिक संबद्धता से जोड़ना और स्पष्ट रूप से मुसलमानों को छोड़कर, सीएए भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान का उल्लंघन करता है और फासीवादी हिंदू राज्य बनाने का भाजपा का घोषित सपना साकार करने के लिए कानूनी आधार तैयार करना चाहता है।

संयुक्त रूप से भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR), नए नागरिकता नियम के परिणाम स्वरूप भारत के 20 करोड़ मुसलमानों को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है। इस दौरान बीजेपी शासित राज्यों ने तथाकथित ‘लव जिहाद’ कानून पेश किए हैं, जो इंटरफेथ रिलेशपशिप को गैरकानूनी घोषित करने की मांग कर रहे हैं। इन सभी कानूनों में नाजियों के नूर्नबर्ग कानूनों के समान समानता है। इसलिए भी मोदी को इस्तीफा देना चाहिए।

मोदी के पर्यावरण अपराध

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में भारत दुनिया का चौथा सबसे खराब देश है। सफ़ेद वैश्विक जलवायु संकट तेज होने के साथ ही, मोदी बड़े पर्यावरणीय अपराधों के दोषी हैं। उन्होंने अपने कुख्यात गौतम अडानी समेत पूंजीवादी साथियों द्वारा वाणिज्यिक खनन के लिए बड़े पैमाने पर कोयला क्षेत्रों की नीलामी की और खनन और ढांचागत परियोजनाओं को मंजूरी दी और वनों, भूमि और पानी तक अभूतपूर्व पहुंच प्रदान की। मोदी को इस्तीफा देना चाहिए।

लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया का उल्लंघन

नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से कोई भी चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं हुआ है। चुनाव मुसलमानों को बलि का बकरा बनाने, मतपेटियों और ईवीएम से छेड़छाड़ और बहुत कुछ करने, जैसे कि हाल ही में घातक हिंसा के लिए एक अवसर के रूप में रहा है। इस साल की शुरुआत में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में केंद्र सरकार के नियंत्रण वाली सशस्त्र पुलिस ने वोट के लिए कतार में खड़े लोगों पर गोलियां चलाई – जिसमें चार की मौत हो गयी और कई अन्य घायल हुए। यह मोदी के अधीन भारत के ‘लोकतंत्र’ की स्थिति है। मोदी को इस्तीफा देना चाहिए।

कोविड-19 महामारी का आपराधिक कुप्रबंधन

मोदी कोविड-19 से हुई व्यापक और रोकी जा सकने वाले मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। चार घंटे के नोटिस पर प्रारंभिक लॉकडाउन ने गंभीर संकट पैदा कर दिया और सैकड़ों हजारों प्रवासी कामगारों में से अज्ञात संख्या में मृत्यु हो गई जो शहरों में संसाधानहीन अवस्था में फंसने के बाद पैदल ही हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके अपने घर वापिस जाने के लिये मजबूर कर दिये गये थे।

हाल ही में कोविड -19 की दूसरी लहर ने देश को तबाह कर दिया है। अनुमान है कि चालीस लाख मौतें हुयी। यह मोदी की घोर लापरवाही और घोर अक्षमता का नतीजा है। कुम्भ मेला और पश्चिम बंगाल चुनावों के दौरान उनकी अपनी पार्टी के बड़े पैमाने पर रोड़ शो जैसे ‘सुपरस्प्रेडर’ आयोजनों की स्वीकृति सहित अक्षमता और उनके कॉरपोरेट साथियों द्वारा टीकों से ‘सुपरप्रॉफिट्स’ कमाने देने की मोदी की प्राथमिकता जिम्मेदार है। मोदी ने दिखाया है कि उनके लिए, जीवन बचाने से ज्यादा महत्वपूर्ण शक्ति को मजबूत करना है। ये मानवता के ख़िलाफ़ अपराध हैं। मोदी को इस्तीफा देना चाहिए।

ब्रिटेन में दक्षिणपंथी हिंदू वर्चस्ववादी हमारे लिए नहीं बोलते।

वर्तमान में दक्षिणपंथी ब्रिटेन सरकार के मंत्री प्रीति पटेल, ऋषि सनक और आलोक शर्मा सभी मोदी के अनुचर हैं, और एचएसएस (खुले तौर पर फासीवादी आरएसएस की अंतरराष्ट्रीय शाखा, के जिसके मोदी आजीवन सदस्य हैं) और अन्य हिंदू-वर्चस्ववादी संगठन सक्रिय रूप से हैं और ब्रिटेन में नफ़रत फैला रहे हैं। उनका दावा है कि मोदी को प्रवासी भारतीयों का समर्थन प्राप्त है। लेकिन वे समर्थन नहीं करते हैं। इसलिये भी मोदी इस्तीफा दो।

-जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट

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