अनुबंधकर्मियों की समस्याओं पर श्वेत पत्र जारी करे झारखंड सरकार

आज झारखंड अलग राज्य गठन के 21 वर्ष पूरे हो गए, इस अवसर पर राज्य में 21वां स्थापना दिवस बड़े धूम—धाम से मनाया जा रहा है। जाहिर है इस अवसर पर सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए नई घोषणाएं भी करेगी, जैसा की हर बार होता है। जबकि हम देंखें तो जिन अवधारणाओं के आधार पर अलग राज्य का गठन हुआ, वह आज भी वहीं की वहीं खड़ी नजर आती हैं। 21 साल में झारखंड 11 मुख्यमंत्रियों सहित तीन बार राष्ट्रपति शासन को झेला है, जो शायद भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में किसी राज्य की यह पहली घटना है।

इस 21 साल में 11 मुख्यमंत्री हुए, जिसमें रघुबर दास को छोड़कर दस मुख्यमंत्री आदिवासी समुदाय के रहे हैं। सभी ने केवल वादे किए, किसी ने अपनी घोषणाओं को जमीन पर उतारने में कोई दिलजस्पी नहीं दिखाई, चुनाव के वक्त जरूर नए नए वादे किए। मतलब झारखंड अलग राज्य की अवधारणा केवल भाषणों, वादों तक सिमट कर रह गया। जिसके उदाहरणों की लंबी फेहरिस्त है, इन्हीं फेहरिस्तों में है सरकार के अनुबंध कर्मियों के मुद्दे।
 
इन अनुबंधकर्मियों की मानें तो झारखण्ड सरकार हर मुद्दे पर असफल है। अनुबंधकर्मी कहते हैं कि यह सरकार सिर्फ और सिर्फ झूठ धोखा और जुमले बाजी की सारकार रह गई है। उनका आरोप है कि जब वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नेता प्रतिपक्ष थे तो उन्होंने अनुबंधकर्मियों की समस्याओं पर काफी विलाप किया और 20 अक्टूबर 2019 को वे संविदा—संवाद में साफ कहा कि मुझे मौका दीजिए आपका समाधान हम जरूर करेंगे, आज उनके वादे के 2 वर्ष पूरे हो गए वहीं सरकार गठन के भी 2 वर्ष पूरे हो गए, 29 दिसंबर 2020 को हेमंत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। लेकिन हम संविदा कर्मियों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। बता दें कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश पर संविदाकर्मियों के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन 18 अगस्त 2020 को किया गया था जिसके भी एक वर्ष पूरे हो गए, लेकिन अभी तक इस कमेटी का कोई लाभ संविदाकर्मियों को नहीं हो पाया है।

इस सरकार के मंत्री विधायक और सचिव को राज्य के मूलवासी आदिवासी और अनुबन्ध कर्मियों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं है। राज्य का दुर्भाग्य यह है कि राज्य के मंत्री को मनरेगा मजदूर और मनरेगाकर्मियों में कोई अंतर समझ में नहीं आता है। जेएसएलपीएस (झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी) का सही उच्चारण तक नहीं करने वाले अयोग्य मंत्रियों से राज्य का क्या भला होगा, लोगों का विश्वास टूटने लगा है।

मनरेगाकर्मियों के साथ वार्ता कराने वाले गिरिडीह के विधायक सुदिव्य सोनू एक वर्ष से न जाने कहां गुम हो गए हैं, उनका अब कोई दायित्व नहीं है कि जिन मनरेगा कर्मियों के साथ सरकार से मध्यस्थता करवाकर हड़ताल तुड़वाये, उसे पूरा करने के लिए उनके द्वारा क्या प्रयास हुआ, यह जवाब देना भी वे उचित नहीं समझते।

राज्य के वित्त मंत्री को झररखण्ड की भाषा और 8वीं अनुसूची की भाषा के प्रति सम्मान नहीं है, ऐसे लोगों से राज्य की भलाई कैसे हो सकती है। ये विभागीय मंत्री, सचिव और विधायक पारा शिक्षकों सहित सभी अनुबंध कर्मियों के साथ तारीखों का खेल खेल रहे हैं। उनके साथ बाल सुलभ हरकत करके उनकी भावनाओं के साथ मजाक किया जा रहा है।

पूर्ववर्ती सरकार के माननीय वेतन भत्ते, गाड़ी सुविधा बढ़ाने में मशगूल थे, तो वर्तमान सरकार मंत्री बंगले बनाने, ट्रान्सफर-पोस्टिंग उद्योग चलाने और जनता को धोखा देने में ही अपनी सारी ऊर्जा लगा दिए हैं। कोरोना में अनुबंध कर्मी भूख और बीमारी से मर रहे हैं और मंत्रियों को अपने बंगलों की पड़ी है। 7वीं जेपीएससी की उम्र सीमा विवाद से लेकर प्रारंभिक परीक्षा परिणाम से झारखण्ड सरकार की भूमिका पर झारखण्ड के युवाओं में सरकार से नफरत सी हो गई है। सरकार के क्रियाकलाप से उसकी छवि को काफी चोट पहुंची है।

2020 में संविदाकर्मियों की एक सभा।


इस सरकार ने 2 वर्षों में अनुबंध कर्मियों की फूटी कौड़ी भी मानदेय नहीं बढ़ाया, बल्कि 332 ई—ब्लाक मैनेजर और 1800 14वें वित्त कर्मी की नौकरी ही खा गई। आज एक हजार एसबीएम (स्वच्छ भारत मिशन) व पीएचईडी कर्मी बेरोजगारी के कगार पर हैं।

अनुबन्ध कर्मियों को आसन्न नियुक्तियों में उम्र सीमा में छूट और आरक्षण तो सरकार नहीं दे पायी ऊपर से पुराने विज्ञापन को रद्द कर यह साबित कर दिया कि हर परीक्षा की हालत 7वीं जेपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम की तरह सीरियल सेटिंग ब्लास्ट जैसा ही होगा। बता दें कि 7वीं जेपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में साहेबगंज और लोहरदगा के परिणाम क्रमवार तरीके से घोषित कर दिये गये हैं, जाहिर है ऐसा बिना जांच किए ही परिणाम घोषित कर दिये गये हैं, जो जांच का विषय है।

अनुबंध कर्मी कहते हैं कि इस सरकार के मंत्री और सचिव अयोग्य हैं, यही वजह है कि ये अपना कोई मॉडल अभी तक नहीं बना पाए हैं, जिसकी दूसरे राज्य नकल करें। बल्कि स्थायीकरण वेतनमान के लिए अन्य राज्यों के मॉडलों के नकल के लिए भी इन्हें अक्ल नहीं है। जब अन्य प्रदेशों के मॉडल को कट कॉपी, पेस्ट कर ही नकल करना है तो फिर इतने नखड़े क्यों, तारीख पर तारीख क्यों?

सरकार के अधिकारियों, मंत्री और विधायकों के चाल, चरित्र व व्यवहार से जनता और अनुबंध कर्मियों में खासी नाराजगी, गुस्सा और आक्रोश बढ़ रहा है। सभी लोग त्रस्त हैं।
अब तो लोग तुलना करने लगे हैं कि पूर्ववर्ती सरकार में नौकरशाह इतने बेलगाम नहीं थे। इस शासन काल में सभी भ्रष्टाचार मे लिप्त हैं। नौकरशाहों की सम्पत्ति को सीबीआई से जाँच कराना जरूरी हो गया है। राज्य में सेवा का अधिकार सिस्टम फेल हो गया है, कोई भी काम और निर्णय निर्धारित समय सीमा पर नहीं हो रहा है।

सरकारी अधिकारियों का महंगाई भत्ता भी समय पर जारी हो जाता है, परंतु अनुबन्ध कर्मियों को तो पर्व त्योहार में भी मानदेय के लिए लाले पड़े रहते हैं। अयोग्य बेकार और भ्रष्ट अधिकारियों मंत्रियों की चपेट में फंसे अनुबंध कर्मियों को किसी मसीहा का इंतजार है। विगत 2 वर्षों के झारखण्ड सरकार का शासन इन्हें निराश और हताश कर दिया है।

अनुबंध कर्मी कहते हैं कि 15 नवम्बर के बाद राज्य में अनुबंध कर्मियों का जोरदार आंदोलन होगा, गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करेंगे कि जनता की भावनाओं के विपरीत यह सरकार सिर्फ ठेकेदारों दलालों और लुटेरों के हित के लिए काम कर रही है।

रोजी रोटी रोजगार के साथ मजाक करने वाले सरकार की नाकामियों को अब हम लोग जनता की अदालत में ले जाएंगे। हालत यह है कि झारखण्ड के बेरोजगार अनुबंध कर्मियों और आम जनता ने यह कहना शुरू कर दिया कि झारखंड के अयोग्य माननीय और भ्रष्टाचार की गंगोत्री बने नौकर शाहों से मुक्ति का अब एक ही उपाय है कि इसे बिहार में पुनः मिला दिया जाए। कम से कम मूर्ख व अयोग्य शासन से तो मुक्ति मिल जाएगी ।

अनुबंध कर्मचारी महासंघ के केंद्रीय संयुक्त सचिव सुशील पाण्डेय कहते हैं कि झारखण्ड के अनुबंध कर्मचारियों की समस्याओं का सरकार के विगत 2 वर्षों में कितना समाधान हुआ इस पर सरकार श्वेत पत्र जारी करे।

मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष महेश सोरेन कहते हैं कि झररखण्ड सरकार हर मुद्दे पर फेल है और उसने अनुबंध कर्मियों के साथ धोखा किया है। वे कहते हैं वर्तमान महागठबंधन की सरकार को सात लाख अनुबंध कर्मी और 70 लाख परिवारिक वोट के साथ अनुबंध कर्मियों ने समर्थन देकर बनाया है। बावजूद इसके अनुबंध कर्मियों ने समर्पण नहीं किया है, सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश सचिव डॉ. राजेश दास कहते हैं कि मूलवासी, आदिवासी, जनजाति, हरिजन दलित और अल्पसंख्यक विरोधी है यह सरकार।
एनआरएचएम के प्रदेश अध्यक्ष विनय सिंह कहते हैं कि झारखण्ड के संविदाकर्मियों की भावनाओं की भ्रूण ह्त्या कर रही है यह सरकार।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

More From Author

केंद्र ने अध्यादेश लाकर सीबीआई और ईडी निदेशकों का कार्यकाल किया 5 साल

EXCLUSIVE: महाराष्ट्र पुलिस ने मर्दिनटोला नहीं, छत्तीसगढ़ में स्थित परेवा की पहाड़ियों में दिया नक्सली मुठभेड़ को अंजाम

Leave a Reply