शहर को स्वच्छ रखने वाले, आज आंदोलन के लिए बाध्य

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2014 में अपने कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के आह्वान के साथ शुरुआत करते हुए देश की जनता के समक्ष एक नए कलेवर में भारत की तस्वीर पेश की थी। देश की आम जनता को भी लगा कि साफ़-सफाई रखना बेहद आवश्यक है। लोगों में स्वास्थ्य एवं बेहतर जीवन के साथ-साथ सकारात्मक सोच की दिशा में आगे बढ़ने की ललक भी पैदा हुई। हाल के वर्षों में दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर सुबह-सुबह कचरा ले जाने वाली गाड़ी आती है तो हर कोई अपने घर से कचरा निकालकर उसमें डाल देता है। अगर किसी दिन कचरा उठाने वाली गाड़ी ना आये तो घर का कचरा घर में ही रह जाता है, और अगर किसी दिन कोई गाड़ी किसी घर के पास ना रुके तो वो मामला ट्विटर पर ट्रेंडिंग में चलना शुरू हो जाता है। लेकिन इस शहर को स्वच्छ बनाए रखने की जिन लोगों पर जिम्मेदारी है, आज जब वे लोग अपने वेतन में बढ़ोत्तरी के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं तो उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है।  

राहुल पारचा जो 33 साल के हैं, ने सोमवार को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के कार्यालय के सामने नारे लगाते हुए कहा “हम आपके शहर को सुंदर बनाए रखने के लिए हर दिन गंध में उतरते हैं। हर संस्थान में कर्मचारियों का वेतन उनके काम के मूल्यांकन के आधार पर हर साल खुद-ब-खुद बढ़ जाता है, लेकिन हमारी बात कोई भी तब तक नहीं सुनता जब तक हम सड़कों पर गर्मी, ठंड और बारिश का सामना करते हुए थक कर चूर नहीं हो जाते। ”

राहुल उन सैकड़ों संविदा सफाई कर्मचारियों में से हैं जो पिछले 14 दिनों से अपने वेतन को 17,170 रुपये से बढ़ाकर 20,600 रुपये करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

वे कहते हैं, “कटौती के बाद मुझे मात्र 14,256 रुपये मिलते हैं। इसमें से हर महीने 5,000 रुपया किराये में, 4,000 रुपये से अधिक भोजन पर खर्च हो जाते हैं। इसके अलावा स्कूल की फीस जैसे दूसरे खर्चे भी होते हैं। अच्छेजा गांव में काम करने वाले पारचा ने बताया, ”मेरे उपर सात सदस्यों वाले परिवार की जिम्मेदारी है।”

हापुड़ जिले के रहने वाले राहुल पारचा, फिलहाल कासना में रहते हैं। राहुल गुस्से में कहते हैं कि, “मैं अपने बेटे के बेहतर भविष्य के लिए यहां आया था। अगर मेरी सैलरी इतनी कम रही तो उसके भविष्य का क्या होगा? इस काम को संपन्न करने के लिए मुझे प्रतिदिन करीब 60 किमी की यात्रा करनी पड़ती है, ताकि अन्य लोगों के परिवेश को साफ रखा जा सके, और उनके बच्चे स्वस्थ जीवन जी सकें”। पांच साल पहले पारचा सेक्टर 62 में एक पेंट्री में काम करते थे।

सेक्टर Xu-1 में काम करने वाले 28 वर्षीय सतीश महरौलिया ने बताया कि आठ भाइयों में वे सबसे छोटे हैं। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें बारहवीं कक्षा के बाद से काम करने के लिए बाध्य होना पड़ा। “हमें हर तरह की गंदगी साफ करनी पड़ती है, कभी-कभी कूड़े से निकलने वाली गैस के कारण हम बेहोश हो जाते हैं। हमें किसी प्रकार के सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए गये हैं। कुछ चीजें ऐसी हैं जिन्हें सिर्फ मशीनों द्वारा संपन्न किया जाना चाहिए, लेकिन हमें उसे भी साफ करने के लिए नालों में घुसना पड़ता है।”

अखिल भारतीय सफाई मजदूर कांग्रेस के नगर-अध्यक्ष सुनील मकवाना ने कहा कि मांगें पूरी होने तक हमारा विरोध जारी रहेगा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पहले दिए जाने वाले 5 लाख रुपये के जीवन बीमा कवर को 10 लाख रुपये के दुर्घटना मृत्यु बीमा कवर में तब्दील कर दिया गया है। उन्होंने कहा, “हमारी मांग है कि हमें जीवन बीमा के तौर पर 10 लाख रुपये मिलने चाहिए।”

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एनजी रवि कुमार ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। “मैं दो बार सफ़ाई कर्मचारियों से मिल चुका हूँ। समिति यह देखेगी कि करीब 2,000 सफाई कर्मचारियों की वेतन वृद्धि से क्या वित्तीय प्रभाव पड़ेगा, उसके आकलन के बाद उनका वेतन बढ़ाया जा सकता है… जहां तक बीमा का प्रश्न है, हम बैंक के साथ इस पर चर्चा करेंगे। मैंने राजस्व में वृद्धि के लिए श्रमिकों से समय और उनका सहयोग मांगा है, ताकि हम इस प्रस्ताव को बोर्ड के माध्यम से पारित करा सकें।”

(द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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