मोदी सरकार के निशाने पर क्यों है राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग ?

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नई दिल्ली। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCMEI) का गठन 2004 में अल्पसंख्यकों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। यह एक अर्ध-न्यायिक निकाय है जो अपने समुदायों के भीतर शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान का प्रमाण पत्र प्रदान करता है। लेकिन विगत दिनों से आयोग खस्ताहाल है, आयोग में अध्यक्ष समेत चार सदस्यों की संख्या निर्धारित की गई थी। लेकिन लंबे समय से आयोग में अध्यक्ष और दो सदस्यों के पद रिक्त हैं।

आयोग चार की निर्धारित संख्या के मुकाबले सिर्फ एक सदस्य के भरोसे चल रहा है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग (NCMEI) में अध्यक्ष और दो सदस्यों के पद रिक्त हैं, वहीं पिछले आठ वर्षों से आयोग में कोई ईसाई सदस्य नहीं है। आयोग के अंतिम ईसाई सदस्य सिरिएक थॉमस का कार्यकाल 11 अप्रैल, 2015 को पूरा हो गया था। जिसके बाद किसी ईसाई सदस्य की नियुक्ति नही हुई।

आयोग का अध्यक्ष उसे बनाया जाता है जो धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय का होने के साथ ही किसी उच्च न्यायालय (High Court) का न्यायाधीश रह चुका होता है। तीन सदस्य केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत किये जाते हैं। उन्हें भी धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित होने के साथ ही “प्रतिष्ठित, योग्य और ईमानदार व्यक्ति” होना चाहिए। इन सभी को केंद्र सरकार द्वारा पांच साल के लिए नामित किया जाता है।

न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार जैन ने 30 सितंबर को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। दो सदस्य, एन. आबिदी और बी.एस. मान ने दिसंबर 2020 में अपना कार्यकाल पूरा कर लिया था। शाहिद अख्तर वर्तमान में आयोग के एकमात्र सदस्य हैं। जबकि करीब 124 आवेदन आयोग के विचाराधीन हैं। लेकिन अभी तक सरकार उसमें से तीन योग्य सदस्यों का चयन नहीं कर पायी है।

NCMEI के पूर्व सदस्य जेसी कुरियन ने कहा “अल्पसंख्यक संस्थानों के हित में सरकार को बिना किसी देरी के रिक्त पदों को भरना चाहिए।”

कुरियन ने कहा कि आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति न होने के कारण और अल्पसंख्यक संस्थानों के निरीक्षण में देरी के कारण अल्पसंख्यक प्रमाणपत्र जारी करने में लंबी देरी हो रही है।

आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति को लटकाने के साथ ही किसी भी संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा का प्रमाणपत्र देने के लिए जिला कलेक्टर और राज्य शिक्षा और अल्पसंख्यक कल्याण विभागों के अधिकारियों से बनी तीन सदस्यीय समिति द्वारा निरीक्षण का प्रावधान आवश्यक कर दिया है।

आयोग ने यह प्रावधान लगभग तीन साल पहले पेश किया था जब उसने पाया कि कुछ ट्रस्टों और सोसाइटियों ने गैर-मौजूद संस्थानों के लिए अल्पसंख्यक प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया था। लेकिन अब निरीक्षण में अक्सर देरी हो जाती है क्योंकि समिति में शामिल तीन सिविल सेवकों को समय नहीं मिल पाता है। कुरियन ने कहा, “इसके बजाय, आयोग इस उद्देश्य के लिए दो अधिवक्ताओं की एक समिति गठित कर सकता है।”

कुरियन ने कहा कि “NCMEI में सदस्यों की रिक्ति और निरीक्षण प्रक्रिया में देरी को देखते हुए, यह माना जाता है कि सरकार का संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा देने का कोई इरादा नहीं है।”

अल्पसंख्यक समुदायों के बीच, ईसाइयों ने बड़ी संख्या में शैक्षणिक संस्थान स्थापित किए हैं। यह अपेक्षा की जाती है कि आयोग में समुदाय से कम से कम एक सदस्य होना चाहिए। लेकिन आठ वर्षों से कोई ईसाई सदस्य नहीं है।

2018 में, देश में कैथोलिकों की सर्वोच्च संस्था, कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया ने आयोग में किसी भी ईसाई सदस्य को नियुक्त करने में केंद्र सरकार की विफलता पर सवाल उठाया था।

सामान्य तौर पर ईसाई समुदाय और विशेष रूप से कैथोलिक चर्च हजारों शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं। कैथोलिक चर्च में 50,000 संस्थान हैं जिनमें 6 करोड़ छात्र हैं।

वाल्सन थम्पू 2004 में आयोग में नियुक्त पहले तीन सदस्यों में से थे। 2007 में उनके इस्तीफा देने के बाद उनकी जगह वसंती स्टेनली को नियुक्त किया गया। उन्होंने 2008 में इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद कुरियन को बचे हुए कार्यकाल (2009 तक) के लिए नियुक्त किया गया।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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