Saturday, April 27, 2024

यहां से कहां जाएगा इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध?

फिलिस्तीन की समाजशास्त्री एवं मीडिया रिसर्चर सारा बारामेह से बातचीत (क्या गुजर रही है फ़िलिस्तीन के लोगों पर?-YouTube) में जब इस स्तंभकार ने पूछा कि एक फिलिस्तीनी के नजरिए से पिछले सात अक्टूबर के बाद सामने आई अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया का आकलन वे कैसे करती हैं, तो उन्होंने जो राय जताई, वह उससे काफी अलग है, जो इन दिनों फिलिस्तीन से हमदर्दी रखने वाले भू-राजनीतिक विश्लेषक जता रहे हैं।

गौरतलब है कि सात अक्टूबर को ही हमास ने इजराइल पर ऐसे हमले किए, जिससे दुनिया चौंक गई थी। हमास ने उस रोज इजराइल की सुरक्षा व्यवस्था के अभेद्य होने और इजराइली खुफिया एजेंसियों के सर्वज्ञाता होने के भ्रम को तोड़ दिया था। लेकिन उसके बाद का दौर गजा में रहने वाले फिलिस्तीनियों की अग्नि परीक्षा का रहा है।

सात अक्टूबर के बाद पश्चिमी देशों से मिले समग्र समर्थन के कारण इजराइल ने निर्भय होकर गजा में आम नागरिकों पर अकथनीय अत्याचार ढाए हैं। विश्व जनमत के एक बड़े हिस्से ने इन इजराइली गतिविधियों को युद्ध अपराध माना है। इस दौरान आठ हजार से ज्यादा नागरिकों की मौत हो चुकी है, जिनमें आधे से अधिक बच्चे हैं।

गजा में आम बुनियादी सुविधाएं ध्वस्त कर दी गई हैं और लोग पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए भी तरसने को मजबूर हो चुके हैं। वहां के ऐसे दृश्यों से जब विश्व का संवेदनशील जनमत मर्माहत है, तो समझा जा सकता है कि सारा बारामेह जैसी फिलहाल लेबनान की राजधानी बेरूत में मौजूद एक फिलिस्तीनी बुद्धिजीवी को कैसा महसूस होता होगा।

इसलिए इंटरव्यू में उन्होंने जो कहा, उसे हमें फिलिस्तीन- खासकर गजा- में इस समय मौजूद हालात के संदर्भ में ही देखना और समझना चाहिए।

सारा ने कहाः

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न सरकारों की प्रतिक्रिया से उन्हें आश्वासन नहीं मिला है। विभिन्न देशों ने जुबानी तौर पर इजराइली करतूतों की निंदा जरूर की है, लेकिन उनमें से कोई भी फिलिस्तीनियों की जमीनी मदद के लिए आगे नहीं आया है।
  • जनता के स्तर पर हुई प्रतिक्रिया (खासकर अनेक देशों में विशाल जन प्रदर्शनों) से यह संकेत जरूर मिलता है कि विश्व जनमत इजराइल के खिलाफ हो रहा है। लेकिन इस निष्कर्ष तक पहुंचने में एक मुश्किल जरूर है कि आज के दौर में विरोध एवं असहमति से जुड़ी लगभग तमाम सूचनाएं सोशल मीडिया के जरिए आती हैं, जबकि इस मीडिया पर कोई व्यक्ति किस सूचना को किस हद तक देखेगा, यह संबंधित मीडिया प्लेटफॉर्म के एल्गोरिद्म से तय होता है। ऐसे में यह अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि उसके दिमाग में बन रहा इम्प्रेशन आखिर किस हद तक ठोस है।
  • सारा ने कहा कि जो भी कोई व्यक्ति या समूह अपनी मुक्ति की लड़ाई लड़ रहा हो, उसके पास आशावादी होने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होता। लेकिन फिलिस्तीन के मामले में ऐसी उम्मीद वहां के लोग सिर्फ अपने संघर्ष और एकजुटता के आधार पर ही बांध सकते हैं। जाहिर है, फिलिस्तीनियों में ऐसी धारणा पिछले साढ़े सात दशक के अनुभव से बनी है, जिस दौर में विश्व समुदाय/ जनमत ने जुबानी खानापूर्ति के अलावा उनके लिए और कुछ नहीं किया है। जबकि इस दौर में फिलिस्तीनियों को लगातार उनकी जमीन से बेदखल किया गया है और बेखौफ ढंग से उनकी जान, भावनाओं, एवं इज्जत के साथ खिलवाड़ जारी रहा है।

तो यह एक फिलिस्तीनी नागरिक की समझ और भावना है।

मगर दुनिया के दूसरे हिस्सों में इजराइल और गजा के घटनाक्रम एक दूसरे नजरिए से भी समझा जा रहा है।

चूंकि जबकि यूक्रेन युद्ध जारी है, और इसी बीच इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के और फैलने तथा दुनिया के दूसरे हॉटस्पॉट्स के भी सुलग उठने की आशंकाएं भी गहराने लगी हैं। इससे खुद पश्चिमी देशों- खासकर अमेरिका- में भी चिंताएं बढ़ने के ठोस संकेत हैं।

इस सिलसिले में अमेरिकी वेबसाइट एक्सियोस डॉट कॉम में छपी एक रिपोर्ट (Biden’s White House confronts heaviest week in over 1,000 days (axios.com)) खास तौर पर गौरतलब है, जिसका शीर्षक हैः युद्ध फैलने की आशंका से बाइडेन प्रशासन उद्विग्न है। इस रिपोर्ट के लेखकों ने कहा है- ‘निजी बातचीत में इतनी बड़ी संख्या में हमने अमेरिकी सरकार के बड़े अधिकारियों को कभी चिंतित नहीं देखा। उनकी राय है कि कई संकटों के एक साथ खड़े हो जाने से हमारे लिए अति गंभीर चिंता पैदा हो गई है और हमारे सामने ऐतिहासिक खतरा आ खड़ा हुआ है।’

उधर अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार थॉमस फ्रीडमैन ने [Opinion | Israel Is About to Make a Terrible Mistake – The New York Times (nytimes.com)] लिखा है-

“मेरी राय में हमास को नष्ट करने के लिए अगर इजराइल गजा में घुसता है, तो वह गंभीर गलती करेगा। इसका इजराइली और अमेरिकी हितों पर विनाशकारी असर होगा। इससे ऐसी गंभीर आग फैलेगी, जिससे अमेरिका द्वारा निर्मित अमेरिका समर्थक गठबंधन का पूरा ढांचा विस्फोट का शिकार हो जाएगा। मैं यहां कैंप डेविड शांति संधि, ओस्लो शांति समझौते, अब्राहम समझौतों, और इजराइल और सऊदी अरब के बीच संबंध के संभावित सामान्यीकरण की बात कर रहा हूं। ये सभी लपटों के दायरे में आ सकते हैं।”

इस प्रकरण में एक महत्वपूर्ण पहलू इजराइल की अंदरूनी स्थिति का भी है। इसका विवरण देते हुए विश्लेषक एलेस्टेयर क्रुक ने लिखा [Escalations Cannot Be Stopped – The White House Is Rattled; Escalations Might All Fuse Into ‘One’- Strategic Culture (strategic-culture.su)] है –

“इजराइल की आंतरिक स्थिति के बारे में यह भ्रामक धारणा बनी हुई है कि वहां के सभी नागरिक- चाहे वे इजराइल में रहने वाले यहूदी हों या अधिकृत क्षेत्रों के वासी- इजराइली राज्य के साथ हैं- इजराइली राज्य का साथ देना सिर्फ एक सामाजिक समझौते का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह इजराइल में रहने वाले सभी यहूदियों का आध्यात्मिक कर्त्तव्य है।… जबकि सुरक्षा संबंधी सामाजिक समझौता अभी हाल में ही ढह गया। गजा में बसाई गई बस्तियां खाली करानी पड़ी हैं, उत्तरी क्षेत्र से 20 बस्तियां खाली कराई गई हैं, कुल मिलाकर 43 सीमाई शहर खाली कराए गए हैं।…

क्या ये विस्थापित परिवार फिर से इजराइली राज्य पर भरोसा करेंगे? क्या फिर से किसी रोज वे अपनी बस्तियों में लौट पाएंगे? उनका यह भरोसा टूट गया है। ये लोग हिजब्बुलाह की मिसाइलों से भयभीत नहीं हैं। बल्कि वे गजा की सीमाओं पर बसे समुदायों से डरे हुए हैं- जहां सात अक्टूबर को दर्जनों जगहों पर घेरे को तोड़ दिया गया था और वहां मौजूद सैनिक चौकियों को रौंद दिया गया था, उन शहरों पर हमास ने कब्जा जमा लिया था, जिस दौरान मौत का नजारा देखने को मिला और तकरीबन 200 इजराइलियों को बंधक बनाकर गजा ले जाया गया। इसके बाद इन लोगों के पास अच्छी कल्पना करने का कोई आधार नहीं बचा है। (उनके मन में सवाल है कि) अगर हमास इतना सफल रहा, तो फिर हिज्बुल्लाह को कौन रोक पाएगा?”

इसके साथ ही पूरे पश्चिम एशिया में बन रहे नए समीकरण भी इजराइल और प्रकारांतर में अमेरिकी खेमे के लिए उभरती गंभीर चुनौती का संकेत दे रहे हैं। कुछ घटनाओं की कड़ियां जोड़ते हुए विश्लेषक पेपे एस्कोबार ने लिखा है कि रूस और ईरान फिलिस्तीन में पश्चिम के लिए जाल बिछा रहे हैं [Iran-Russia set a western trap in Palestine (thecradle.co)]। एस्कोबार ने खासकर इन घटनाओं का जिक्र किया है-

  • लेबनान स्थित हिज्बुल्लाह इस बार फिलिस्तीनी प्रतिरोध को पूरा समर्थन दे रहा है, जबकि अतीत में इन दोनों संगठनों में टकराव खड़ा होता रहा है। सीरिया में दोनों के बीच झड़पें भी हुई थीं।
  • ईरान फिलिस्तीन की मुक्ति को खुलकर समर्थन दे रहा है। ईरान जितना अधिक समर्थन देगा, फिलिस्तीनी गुट उतना अधिक अपने फैसले खुद लेने की स्थिति में होंगे।
  • हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (पीआईजे) के प्रतिनिधि हिज्बुल्लाह के महासचिव हसन नसरुल्लाह से मिलने लेबनान गए। यह इन संगठनों में मजबूत हो रही उद्देश्य की एकता का सूचक है, जिसे ये संगठन “यूनिटी ऑफ फ्रंट्स” (मोर्चों की एकता) कहते हैं।
  • उससे भी ज्यादा ध्यान खींचने वाली घटना हमास प्रतिनिधियों की मास्को यात्रा रही, जिस पर इजराइल भड़का हुआ नजर आया। हमास के दल का नेतृत्व उसकी पोलित ब्यूरो के सदस्य अबू मरजॉक ने किया। इस मौके पर इजराइल के उप विदेश मंत्री अली बाघेरी विशेष तौर पर मास्को पहुंचे, जहां उनकी रूस के दो विदेश उप मंत्रियों सर्गेई रयाबकोव और मिखाइल गेलुजिन के साथ बातचीत हुई।
  • ये घटनाएं दिखाती हैं कि हमास, ईरान और रूस समान धरातल हैं।
  • हमास ने विदेशों में रहने वाले लाखों फिलिस्तीनियों से एकजुट होने का आह्वान किया है। 
  • धीरे-धीरे पूरे अरब जगत, बल्कि पूरी इस्लामी दुनिया में, इस मुद्दे पर उद्देश्य की एकता पैदा होने का संकेत मिल रहा है।
  • इन घटनाक्रमों में अपनी बारीक कूटनीति के जरिए चीन भी उपस्थित नजर आता है। इसके पहले कि स्थिति विस्फोटक रूप लेती, चीन और रूस की मध्यस्थता में इसी वर्ष सऊदी अरब और ईरान के बीच महत्वपूर्ण समझौता हुआ था।

यह भी गौरतलब है कि अरब देशों के अंदर यूरोपीय और अमेरिका समर्थक देशों के खिलाफ तेल प्रतिबंध लगाने की मांग मजबूत हो रही है।

तो यह वो संदर्भ है, जो हमास के हमलों के साथ उभरा है। यह आने वाले दिनों में क्या ठोस रूप लेगा, अभी कहना शायद संभव ना हो। मगर फिलहाल ऐसे संकेत जरूर ग्रहण किए जा सकते हैं कि आने वाले दिनों में पश्चिम की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं। इजराइली युद्ध अपराधों को दो टूक समर्थन देकर पश्चिम पहले ही विश्व जनमत की आंखों में अपना अख़लाक़ गंवा चुका है। उसके बाद अब उसे सिर्फ अपने सैनिक बल का सहारा ही बचा है।

मगर उसके लिए भी सात अक्टूबर के बाद की घटनाओं ने चुनौतियां और बढ़ा दी हैं। इस रूप में यह घटनाक्रम उस परिघटना का हिस्सा बनता नजर आ रहा है, जिसके जरिए पश्चिमी वर्चस्व से निकलने की कोशिश में ग्लोबल साउथ (विकासशील दुनिया) के देश अपनी धुरी मजबूत कर रहे हैं। यूक्रेन युद्ध ने इस परिघटना को रफ्तार दी थी- हमास के प्रतिरोध ने उसे और तीव्रता प्रदान कर दी है।

अगर ये घटनाएं इसी रूप में आगे बढ़ती हैं, तो संभव है कि सारा बारामेह और उन जैसी संवेदनशील और बौद्धिक शख्सियतों के लिए अभी जो मायूसी और दर्द भरा माहौल है, वह बहुत लंबा ना खिंचे। मुमकिन है कि सुबह उससे कहीं ज्यादा करीब हो, जितना अभी मालूम पड़ रहा है।

(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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