Friday, April 19, 2024

मनरेगा के बजट में कटौती के खिलाफ जंतर-मंतर पर 100 दिन का धरना

मनरेगा के बजट में बड़े पैमाने पर कटौती, मजदूरों की हर दिन 2 दफा मोबाइल आधारित हाजिरी प्रणाली अनिवार्य किये जाने एवं आधार कार्ड नंबर आधारित भुगतान प्रणाली के विरोध में झारखंड के सैकड़ों मजदूर, मेट, सामाजिक कार्यकर्ता दिल्ली के जंतर-मंतर पर विगत 15 मार्च से आंदोलनरत हैं।

नरेगा वाच के झारखण्ड राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने बताया कि यह आंदोलन वैसे तो अगले 100 दिनों तक तय है, लेकिन यह उस वक्त तक चलेगा जब तक केंद्र सरकार मनरेगा में लाए गए नई तकनीकों को खारिज करते हुए मजदूरों के मजदूरी भुगतान को सरल नहीं बनाती है और मनरेगा के बजट को नहीं बढ़ाती।

इसके एक दिन पूर्व 14 मार्च को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों एवं पार्टी पदाधिकारियों के साथ देशभर के सामाजिक संगठनों ने मनरेगा पर सरकार द्वारा किये जा रहे हमलों को तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत किया।

अपनी बात को रखते हुए देश के जाने-माने अर्थशास्त्री प्रो ज्यां द्रेज ने कहा कि 2023-24 के लिए मनरेगा बजट को 60 हजार करोड़ रुपये में सीमित कर दिया गया है। इसमें यदि वित्तीय वर्ष 2022-23 की बकाया मजदूरी को घटा दें तो वास्तविक बजट आवंटन 50 हजार करोड़ रुपये से भी कम होगा।

मनरेगा कर्मियों का धरना

ज्यां द्रेज ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने बजट आवंटन को आने वाले समय में न्यायसंगत बताने के लिए जनवरी महीने से नई तकनीक का सहारा लेना शुरू कर दिया है। जिसके तहत नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम को नरेगा कार्यों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। जिसके कारण करोड़ों मजदूर मनरेगा के कामों से खुद को अलग करने लगे हैं। क्योंकि देशभर से शिकायतें आ रही हैं कि वास्तविक हाजिरी की तुलना में एक तिहाई दिन की ही मजदूरी मिल पा रही है।

ठीक इसी प्रकार 1 फरवरी से मंत्रालय द्वारा आधार आधारित भुगतान प्रणाली के अनिवार्य किये जाने से मजदूरों द्वारा काम किये जाने के बाद भी मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है। इससे मजदूर थक जा रहे हैं और निकट भविष्य में मनरेगा में कुल मानव दिवस खुद ब खुद कम हो जाएगा और सरकार को ये साबित करने का स्वत: मौका मिल जाएगा कि बजट का आवंटन तर्कसंगत है।

राजनेताओं में सबसे पहले कांग्रेस के सांसद दिग्विजय सिंह ने स्वीकार किया कि ज्यां द्रेज द्वारा उठाये गए सभी सवाल वाजिब हैं। उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि गरीबों के लिए लाभकारी योजना मनरेगा की केंद्र सरकार लगातार अनदेखी करती रही है। इसका साफ उदाहरण बजट में कटौती है।

दिग्विजय सिंह ने कहा कि फ़िलहाल तो सत्ता पक्ष ही संसद सत्र नहीं चलने दे रहा है। यदि सत्र चलने लगेगा तो पार्टी मनरेगा से जुड़े सवालों को संसद में उठाएगी। इसी प्रकार अन्य पार्टी के सांसदों ने भी मजदूरों के सवालों को संसद में उठाने की बात दोहराई।

धरने में अपनी बात रखते मनरेगा कर्मी

जंतर-मंतर पर आयोजित धरना कार्यक्रम में अपनी आपबीती सुनाते हुए झारखंड के लातेहार जिला के महुआडांड़ प्रखण्ड की मनरेगा मेट विनीता तिग्गा, कृपा खाखा व सरिता बेक ने कहा कि उनके इलाके में मजदूर विगत दिसंबर महीने से मनरेगा में रोजगार करना बन्द कर दिए हैं। क्योंकि डर है कि उनकी हाजरी नहीं बन पाएगी, जिससे उनकी मजदूरी को भुगतान नहीं हो पाएगा क्योंकि पूरे प्रखण्ड में मोबाइल नेटवर्क बिल्कुल न के बराबर रहता है।

इसी वजह से किसी भी महिला मेट को काम नहीं मिल पा रहा है और उन्हें रोजगार से वंचित होना पड़ा है। यही हाल पूरे झारखण्ड का है।

लालगंज संसदीय क्षेत्र की बसपा की सांसद संगीता आजाद ने धरने को संबोधित करते हुए मनरेगा योजना के खिलाफ सरकार द्वारा किये जा रहे लगातार हमले पर चिंता जाहिर की। उन्होंने लोकसभा में इस मुद्दे को उठाने की प्रतिबद्धता दोहराई तथा पार्टी के स्तर से भी आन्दोलन चलाने की बात कही।

धरना स्थल पर जानीमानी अर्थशास्त्री जयति घोष ने कहा कि नरेगा मजदूरों द्वारा 100 दिनों तक चलाया जा रहा संघर्ष कोई साधारण आन्दोलन नहीं है, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था को बचाने की लड़ाई है। ग्रामीण इलाके में जहां भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, पलायन, अशिक्षा जैसी समस्याएं हैं, ऐसे में लोगों को मनरेगा के तहत 100 दिन रोजगार की गारन्टी मिल सकती है लेकिन गरीबों को मजदूरी उपलब्ध कराने के एकमात्र साधन को भी वर्त्तमान राजसत्ता छीन लेने पर अमादा है। क्योंकि उसको अपने पूंजीपति यारों के लिए सस्ते मजदूर उपलब्ध कराने हैं।

धरना स्थल पर सांस्कृतिक कार्यक्रम

अर्थशास्त्री रितिका खेड़ा ने कहा कि विगत 13 सालों से भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जो भी तकनीक (आधार कार्ड, ई मस्टर रोल, एनएमएमएस) लाई गई, उससे कभी चोरी नहीं रुकी, बल्कि यह जरूर हुआ कि लोगों को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लेने में परेशानियां बढ़ती गईं।

गर्भवती महिलाओं का उदाहरण देते हुए रितिका खेड़ा ने कहा कि आवेदन के समय आधार कार्ड में जो पिता का नाम और मायके का पता होता है उसे बदलने को मजबूर किया जाता है। जबकि उस समय उनको आराम की जरूरत होती है।

केन्द्रीय रोजगार गारन्टी परिषद के पूर्व सदस्य संदीप दीक्षित भी धरना स्थल पर पहुंचे। उन्होंने भी आन्दोलन का समर्थन किया।

पश्चिम बंगाल की सामाजिक कार्यकर्ता अनुराधा तलवार ने बताया कि राज्य और केंद्र की राजनीतिक लड़ाई में राज्य के मनरेगा कर्मी और मजदूर पिस रहे हैं। वहां पिछले 16 महीनों से केंद्र सरकार ने मनरेगा का फंड रोक रखा है। केंद्र सरकार दावा करती है कि राज्य में मनरेगा में भ्रष्टाचार बहुत है इसलिए फंड रोका गया है। यदि यह दावा सही है तो फिर सरकार ये बताये कि अब तक कितने अधिकारियों को सजा दी गई है?

इस देशव्यापी आन्दोलन में झारखण्ड के गोड्डा, खूंटी, पश्चिम सिंहभूम, लोहरदगा, लातेहार, गिरीडीह, कोडरमा आदि जिलों से दर्जनों लोग शामिल हुए हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

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