Sunday, April 28, 2024

न्यूज़क्लिक के संस्थापक और एचआर हेड की गिरफ्तारी का मामला: SC ने दिल्ली पुलिस को जारी किया नोटिस

नई दिल्ली। न्यूज़क्लिक के संस्थापक और एचआर हेड की गिरफ्तारी और रिमांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर गवई और पी.के. मिश्रा की खंडपीठ ने गुरुवार 19 अक्टूबर को कठोर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और कर्मचारी अमित चक्रवर्ती की गिरफ्तारी और रिमांड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया।

शुरुआत में, कोर्ट ने तीन सप्ताह बाद की तारीख दी, लेकिन वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से इस मामले को दशहरा की छुट्टियों के तुरंत बाद सूचीबद्ध करने का आग्रह किया। कपिल सिब्बल ने इस तथ्य पर कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया कि उनके मुवक्किल पुरकायस्थ, 70 वर्ष से अधिक उम्र के थे और वह पहले से ही बीमार थे। चक्रवर्ती की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत कोर्ट में मौजूद थे।

मामला शुरू में 18 अक्टूबर को सामने आया था, लेकिन बेंच ने पुलिस को नोटिस जारी करने का संकेत देते हुए इसे एक दिन के लिए स्थगित कर दिया था।

दिल्ली हाई कोर्ट ने पुरकायस्थ और चक्रवर्ती की गिरफ्तारी और पुलिस रिमांड में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया।

पुरकायस्थ और चक्रवर्ती को 3 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस के विशेष सेल ने गिरफ्तार कर लिया था। उनके खिलाफ 17 अगस्त को एक एफआईआर दर्ज की गई थी। दिल्ली पुलिस ने एफआईआर में पुरकायस्थ, कार्यकर्ता गौतम नवलखा जो एक आतंकी मामले में नजरबंद हैं और अमेरिका स्थित व्यवसायी नेविल रॉय सिंघम का नाम लिया है।

दोनों ने अपनी गिरफ्तारी को हाईकोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी थी कि गिरफ्तारी के समय या आज तक गिरफ्तारी के कारणों के बारे में उन्हें लिखित रूप में नहीं बताया गया था। उन्होंने 4 अक्टूबर को एक विशेष न्यायाधीश द्वारा दिए गए रिमांड के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि यह उनके वकीलों की गैरमौजूदगी में पारित किया गया था।

होई कोर्ट ने उनके तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि गिरफ्तारी और रिमांड आदेश के संबंध में कोई “प्रक्रियात्मक कमजोरी” या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं था। हाई कोर्ट ने कहा था कि “वर्तमान मामले में जो कथित अपराध हैं, वे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के दायरे में आते हैं, और सीधे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा, स्थिरता, अखंडता और संप्रभुता को प्रभावित करते हैं और अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे प्रभावित होंगे।”

हाई कोर्ट ने आगे कहा था कि पंकज बंसल मामले में सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला, जांच एजेंसियों को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) मामलों में आरोपियों को गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में प्रदान करने का निर्देश यूएपीए मामलों पर लागू नहीं होगा।

इस मामले में देश भर के कई पत्रकारों के समूहों ने कुछ दिन पहले मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ को संज्ञान लेने और ऑनलाइन पोर्टल न्यूज़क्लिक से जुड़े 46 पत्रकारों, संपादकों, लेखकों और पेशेवरों के घरों पर छापे और उनके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जब्ती के पीछे “छिपी दुर्भावना” की जांच करने के लिए एक पत्र लिखा था।

पत्रकारों ने कहा कि “पत्रकारिता पर आतंकवाद के रूप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।” पत्र में कहा गया है कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) का न्यूजक्लिक के पत्रकारों पर लागू किया जाना “विशेष रूप से भयावह” था।

पत्र में कहा गया है कि पुलिस ने अब तक किसानों के आंदोलन, सरकार की महामारी से निपटने और नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के कवरेज के बारे में पत्रकारों से सवाल करने के बहाने केवल “कुछ अनिर्दिष्ट अपराध के अस्पष्ट दावे” प्रदान किए हैं।

पत्र में कहा गया है कि “मीडिया की धमकी समाज के लोकतांत्रिक ताने-बाने को प्रभावित करती है। पत्रकारों को एक केंद्रित आपराधिक प्रक्रिया के अधीन करना क्योंकि सरकार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उनके कवरेज को अस्वीकार करती है, सरकार बदले की कार्रवाई करके मीडिया का मुंह बंद करने की कोशिश कर रही है।”

उसमें ये भी कहा गया था कि यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए पत्रकारों को वर्षों नहीं तो महीनों जेल में बिताने पड़ते हैं।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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