सज़ा उम्रकैद की, सुनवाई में ही कटे 17 साल जेल में, मामला लम्बित

उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से कहा है कि वह उन तीन आरोपियों की अपील पर जल्दी सुनवाई करे जिन्हें मर्डर केस में दोषी करार दिया गया था और तीनों ने हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर रखी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 2004 के मर्डर केस में तीनों को उम्रकैद की सजा हुई थी और तीनों 17 साल जेल काट चुके हैं।

जस्टिस एएम खानविलकर की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि यह अनोखा केस है और तीनों ही मुजरिम 17 साल पहले ही जेल काट चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से कहा है कि वह इन तीनों की अपील पर जल्द सुनवाई करे। तीनों ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दे रखी है।

इन तीन की ओर से अर्जी दाखिल कर उच्चतम न्यायालय से कहा गया था कि उनकी अपील 2006 से हाई कोर्ट में पेंडिंग है और 17 साल वह जेल काट चुके हैं। यूपी सरकार के वकील ने कहा कि इन तीनों पर अपहरण और हत्या का केस है और तीनों को निचली अदालत से सजा हुई और तीनों की अपील पेंडिंग है। इन्होंने खुद की हाई कोर्ट में तारीखें ली हैं। याची के वकील ने कहा कि हाई कोर्ट से कहा जाए कि जल्दी सुनवाई करे।

खारिज हो सकता है एससी-एसटी एक्‍ट में दर्ज केस

एससी-एसटी एक्ट सहित स्पेशल एक्ट में दर्ज केस भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट निरस्त कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज केस में चलने वाली क्रिमिनल कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर निरस्त किया जा सकता है या फिर सीआरपीसी की धारा-482 का इस्तेमाल कर रद्द किया जा सकता है।

चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि मामला स्पेशल एक्ट के तहत दर्ज हो, इस आधार पर केस रद्द करने से परहेज नहीं हो सकता है। हाई कोर्ट सीआरपीसी की धारा-482 के तहत और सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर केस रद्द कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोर्ट को एससी-एसटी का केस प्राथमिक तौर पर प्राइवेट लगे और सिविल नेचर का लगे जिसमें ऐसा प्रतीत हो कि लीगल कार्रवाई कानून का दुरुपयोग हो तो फिर ऐसी कार्यवाही को खारिज करने के लिए कोर्ट अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि अगर दोनों पक्षों में मामले में समझौता हो गया हो और कोर्ट इस बात से संतुष्ट हो कि केस निरस्त हो सकता है तो फिर केस खारिज किया जा सकता है।इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि मामले में समझौता हो गया है।सुप्रीम कोर्ट ने समझौते के आधार पर केस खारिज कर दिया।

अपराध की ‘तैयारी’ और ‘प्रयास’ दोनों खतरनाक

सुप्रीम कोर्ट ने कानून के तहत अपराध करने के लिए ‘तैयारी’ और ‘प्रयास’ के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए सोमवार को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया। हाई कोर्ट ने साल 2005 में दो नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार के प्रयास के सख्त आरोप से एक व्यक्ति को बरी कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को रद्द करते हुए आरोपी को तत्काल जेल में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अपराध के लिए शर्तों, ‘तैयारी’ और ‘प्रयास’, के बारे में विस्तार से चर्चा की।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध के प्रयास में इरादा व नैतिक अपराध शामिल है। अपराध का प्रयास भी समाज के लिए उतना ही खतरनाक है। सामाजिक मूल्यों पर इसका प्रभाव वास्तविक अपराध से कम नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मध्य प्रदेश सरकार की एक अपील पर आया है। सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाई कोर्ट के फैसले को “त्रुटिपूर्ण” बताया। उच्च न्यायालय ने आठ और नौ साल की दो बच्चियों से बलात्कार के प्रयास के कठोर आरोप से यह कहते हुए एक अभियुक्त को बरी कर दिया था कि उसने केवल तैयारी की थी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आरोपी ने नाबालिगों के साथ बलात्कार का प्रयास नहीं किया था।

रोहिंग्या को डिपोर्ट करने का नहीं है कोई प्लान

कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि राज्य में जो भी रोहिंग्या रिफ्यूजी हैं उन्हें तुरंत डिपोर्ट करने का कोई प्लान नहीं है। राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता व बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पर जवाब दाखिल करते हुए ये बातें कही है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि अवैध रोहिंग्या और बंग्लादेशी घुसपैठियों को तुरंत उनके देश डिपोर्ट किया जाए और इसके लिए निर्देश जारी किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की अर्जी पर कर्नाटक सरकार ने अपने जवाब दाखिल किए हैं। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश जारी कर के कि वह अवैध रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करे और उन्हें डिपोर्ट करे।

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2021 में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को इस मामले में नोटिस जारी किया था। कर्नाटक सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि 72 रोहिंग्या की पहचान सुनिश्चित की गई है और वह अलग-अलग जगह काम कर रहे हैं। बेंगलुरु सिटी पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया है और उन्हें तुरंत डिपोर्ट करने का कोई प्लान भी नहीं है।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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