भले ही मोदी सरकार ने न्यायपालिका पर लगातार हमले करने के लिए कुख्यात अपने कानून मंत्री किरेन रिजिजू को हटा दिया हो पर सुप्रीम कोर्ट का हथौड़ा अभी भी सरकार के सांप्रदायिक एजेंडे पर चल रहा है। 2024 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में हिंदू-मुसलमान का एजेंडा सेट करने के लिए बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद और इसमें अधीनस्थ न्यायपालिका और इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अपने कंधे का इस्तेमाल करने की इजाजत देने पर सुप्रीम कोर्ट ने हथौड़ा चला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पाई गई उस संरचना की वैज्ञानिक जांच पर रोक लगाने का निर्देश दिया, जिसे हिंदू वादी ‘शिवलिंग’ होने का दावा करते हैं और मस्जिद कमेटी एक फव्वारे का दावा करती है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12 मई को पारित आदेश के खिलाफ अंजुमन इस्लामिया मस्जिद कमेटी (जो वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) की विशेष अनुमति याचिका पर यह आदेश पारित किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में संरचना की आयु का पता लगाने के लिए ‘शिवलिंग’ के वैज्ञानिक सर्वेक्षण का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने निर्देश दिया कि हाईकोर्ट के आदेश में निहित निर्देशों का कार्यान्वयन सुनवाई की अगली तारीख तक स्थगित रहेगा। मस्जिद कमेटी की ओर से सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी ने कहा कि सर्वेक्षण अगले सोमवार से शुरू होगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए। उन्होंने प्रक्रिया के दौरान संरचना को नुकसान के बारे में चिंता व्यक्त की। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आदेश में कहा, चूंकि आक्षेपित आदेश के निहितार्थों की बारीकी से जांच की जानी चाहिए, इसलिए आदेश में संबंधित निर्देशों का कार्यान्वयन अगली तिथि तक स्थगित रहेगा।
अहमदी ने प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट ने आदेश पारित किया, भले ही मस्जिद कमेटी द्वारा दायर याचिका पर फैसला दिसंबर 2022 से सुरक्षित रखा गया है। उन्होंने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट 11 मई को अदालत के समक्ष पेश की गई थी और मस्जिद कमेटी को विस्तृत आपत्ति दर्ज करने का उचित अवसर दिए बिना अगले दिन आदेश पारित कर दिया गया। मामले में हिंदू वादियों की ओर से पेश एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट कहती है कि संरचना को नुकसान पहुंचाए बिना सर्वेक्षण किया जा सकता है और पीठ से रिपोर्ट मांगने का अनुरोध किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 मई को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को ‘शिव लिंग’ का वैज्ञानिक सर्वेक्षण (आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके) करने का निर्देश दिया था, जो कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर कथित तौर पर पाया गया था। सर्वेक्षण का उद्देश्य संरचना की उम्र का पता लगाना है। यह आदेश जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा-I की बेंच ने वाराणसी कोर्ट के 14 अक्टूबर के आदेश को चुनौती देने वाली 4 महिला हिंदू उपासकों द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया था, जिसमें अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि प्रक्रिया वाराणसी के जिला न्यायाधीश की देखरेख में की जानी चाहिए। एएसआई के संबंधित प्राधिकरण को संरचना की वैज्ञानिक जांच करने के लिए उपयुक्त निर्देश लेने के लिए 22 मई को ट्रायल जज के सामने पेश होने का निर्देश दिया गया था।
‘शिव लिंग’ की वैज्ञानिक जांच के लिए पहले सितंबर 2022 में वाराणसी कोर्ट के समक्ष एक प्रार्थना की गई थी, हालांकि, उस स्थान की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के 17 मई, 2022 के आदेश को ध्यान में रखते हुए इसे खारिज कर दिया गया था।
16 मई को वाराणसी जिला न्यायालय ने 19 मई तक अंजुमन इस्लामिया मस्जिद कमेटी को 4 हिंदू महिला उपासकों द्वारा दायर एक नए आवेदन पर अपना जवाब/आपत्ति दर्ज करने के लिए समय दिया, जिसमें पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा पूरे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने की मांग की गई थी ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर के पहले से मौजूद ढांचे पर किया गया था।
(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)