Sunday, April 28, 2024

पटना में विपक्ष का महा जमावड़ा क्या करेगा?

पटना में 23 जून को लगभग 18 विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ व्यापक गठबंधन बनाने के मकसद से एक साथ बैठेंगे। विपक्षी दलों की ऐसी बैठक लंबे अरसे बाद हो रही है। बैठक में 18 विपक्षी दलों के नेता शामिल होंगे। बैठक दिन भर चलेगी, जिसमें आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर चर्चा होगी। जनता दल (यू) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर हो रही इस बैठक को लेकर सवाल है कि क्या इस बैठक में विपक्षी गठबंधन की घोषणा हो जाएगी? दरअसल यह विपक्षी एकता के सिलसिले में पहली बैठक है, लिहाजा इसमें गठबंधन की घोषणा तो नहीं ही होना है और ज्यादातर पार्टियों का मानना भी है कि अभी ऐसी घोषणा का समय नहीं आया है। इसके बावजूद इस बैठक को लेकर भाजपा में काफी बेचैनी है, जो उसके नेताओं के बयानों में साफ झलक रही है। वे उपहास उड़ाने के अंदाज में कह रहे हैं कि यह जमावड़ा फ्लॉप शो साबित होगा। 

बहरहाल इस बैठक में न तो गठबंधन का ऐलान होगा और न ही सीटों के बंटवारे पर बातचीत होनी है। कहां सीटों का रणनीतिक तालमेल किया जाना है और कहां किसको आमने-सामने लड़ना है, यह राज्यवार बातचीत में तय होगा। इस बैठक में कोई न्यूनतम साझा कार्यक्रम और चुनावी एजेंडा भी तय नहीं होने वाला है। मोटे तौर पर यह बैठक देश को यह संदेश देने के लिए होगी कि विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ एक व्यापक गठबंधन बनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। इस कवायद के सबसे बड़े लाभार्थी नीतीश कुमार हो सकते हैं। माना जा रहा है कि उन्हें और शरद पवार को विपक्षी गठबंधन को औपचारिक रूप देने और विभिन्न दलों के बीच सीटों का तालमेल बनवाने की जिम्मेदारी दी जा सकती है। 

नीतीश कुमार के पूरे राजनीतिक करिअर में यह पहला मौका है जब उन्होंने अपने प्रदेश से बाहर राजनीति करते हुए विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने के प्रयास में देश भर का दौरा किया है। मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, सीताराम येचुरी, हेमंत सोरेन, अरविंद केजरीवाल, के. चंद्रशेखर राव, एचडी कुमारस्वामी आदि विपक्षी नेताओं से उन्होंने निजी तौर पर मुलाकात कर उन्हें बैठक में शामिल होने का न्योता दिया है। इस सिलसिले में वे ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक से भी मिले थे लेकिन वे बैठक में शामिल नहीं होंगे। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मिलने वे खुद नहीं जा सके तो उन्होंने अपनी ओर से तेजस्वी यादव को भेजा था।

पटना की बैठक में संभावना है कि गठबंधन की रूपपेखा को लेकर चर्चा होगी। समझा जाता है कि कांग्रेस दबाव डालेगी कि यूपीए के बैनर तले ही सारी पार्टियां चुनाव लड़ें। दूसरी ओर प्रादेशिक पार्टियां चाहेंगी कि नया गठबंधन बने। इसका कारण यह है कि ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल और के. चंद्रशेखर राव कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए के बैनर तले चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हैं। इसके अलावा वामपंथी पार्टियों के अपने कुछ अलग कारण हैं जिनके चलते वे भी यूपीए का हिस्सा नहीं बनेंगी। इसलिए कोई नया गठबंधन बन सकता है। पटना बैठक में इसी मुद्दे पर बातचीत होगी। 

इसके अलावा भाजपा के खिलाफ चुनावी एजेंडा तय करने और न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने के बारे में भी पटना बैठक में चर्चा होगी। बताया जा रहा है कि इसके लिए एक कमेटी अलग बनाई जा सकती है। सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय करने के लिए भी एक अलग कमेटी बन सकती है। इन कमेटियों की अलग-अलग बैठकें होती रहेंगी और उनकी सिफारिशों पर विचार करने के लिए सभी पार्टियों की एक नियमित बैठक हर महीने या दो महीने पर हो सकती है। इस बारे में भी फैसला होगा कि बिहार जैसी ग्रैंड बैठक अलग-अलग राज्यों में हर महीने या दो महीने पर हो। अगली बैठक किसी कांग्रेस शासित राज्य में हो सकती है।

पटना बैठक में एक बड़ी बात यह भी होगी कि जो पार्टियां विपक्षी एकता को लेकर गंभीर नहीं हैं, उनकी छंटनी हो जाएगी। जैसे अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और के. चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति। इन दोनों पार्टियों का अपने-अपने प्रभाव वाले राज्यों में कांग्रेस से सीधा टकराव है और ये अब उन राज्यों में भी चुनाव लड़ना चाहती हैं जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होना है। कांग्रेस के प्रभाव वाले राज्यों में इन पार्टियों के चुनावी मुकाबले में उतरने का सीधा फायदा भाजपा को मिलना है। 

ये दोनों ही पार्टियां शुरू से कांग्रेस को अलग रख कर विपक्षी एकता की बात करती रही हैं। इन दोनों ने कुछ समय पहले कुछ अन्य प्रादेशिक पार्टियों के साथ मिल कर तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश भी की थी जो सिरे नहीं चढ़ पाई। ये दोनों पार्टियां पटना की बैठक में शामिल ज़रूर हो रही हैं लेकिन इस बैठक को लेकर जरा भी गंभीर नहीं हैं या यूं कहें कि इस बैठक को पलीता लगाने की कोशिश कर रही हैं। इस सिलसिले में केजरीवाल ने सभी दलों को पत्र लिख कर मांग की है कि पटना बैठक में सबसे पहले केंद्र सरकार के उस अध्यादेश पर चर्चा हो जिसके जरिए उसने दिल्ली सरकार से अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार छीन लिया है। 

जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाने और वहां अनुच्छेद 370 को बेअसर करने का समर्थन करने वाले केजरीवाल अब संविधान, लोकतंत्र और संघीय ढांचे की दुहाई देते हुए सभी दलों से केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी पार्टी के लिए समर्थन चाह रहे हैं। उनका मकसद इस मुद्दे के जरिए खुद को विपक्षी एकता की धुरी बनाना माना जा रहा है। इस सिलसिले में उन्होंने पटना बैठक से पहले अपने समर्थकों से पूरे पटना शहर में पोस्टर भी लगवाए हैं जिनमें कहा गया है कि ‘पूरे देश का एक ही लाल केजरीवाल’। केजरीवाल की मंशा को दूसरे दल भी समझ रहे हैं, इसलिए संभव है कि कल की बैठक के बाद केजरीवाल को विपक्षी गठबंधन की कवायद से दूर रखा जाए।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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