Saturday, April 27, 2024

क्यों हैं नागालैंड, मेघालय, मिजोरम के राजनीतिक दल समान नागरिक संहिता के विरोध में   

‘समान नागरिक संहिता’ ( UCC) को भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक मुख्य हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है। इसकी शुरूआत स्वयं प्रधानमंत्री ने मध्यप्रदेश के अपने एक चुनावी भाषण से किया। जिन मुसमलानों के खिलाफ भाजपा इसका इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए कर रही है, उनके संगठन अभी इस मुद्दे पर करीब-करीब चुप हैं। सबसे पहला और सबसे मुखर विरोध आदिवासियों की ओर से आया। अब पूर्वोत्तर के भाजपा के सहयोगी राजनीतिक दल मुखर रूप में इसके विरोध में आ गए हैं।

इन पार्टियों में नेशनल ‘डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी’ (एनडीपीपी), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और ‘मिज़ो नेशनल फ्रंट’ (एमएनएफ) शामिल है। एनडीपीपी नागालैंड में चल रही सरकार का नेतृत्व करती है, जिसमें भाजपा भी शामिल है। मेघालय में एनपीपी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार है, जिसमें भाजपा शामिल है। एमएनएफ भाजपा के साथ मिजोरम में सरकार में साझेदार तो नहीं है, लेकिन वह भाजपा के नेतृत्व में बने ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन’ (एनडीए) का हिस्सा है।

विरोध का सबसे मुख्य कारण यह है कि पूर्वोत्तर में भाजपा की सहयोगी इन पार्टियों का मुख्य राजनीतिक आधार आदिवासी समुदाय है। ये सभी राज्य आदिवासी बहुल राज्य हैं। यहां 86 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति (St) है। एसटी का यह दर्जा उन्हें भारतीय संविधान ने दिया है। जिसके तहत इनकी प्रथाओं, परंपराओं और रिवाजों को संविधान के तहत विशेष संरक्षण प्राप्त है। पूरे देश में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की अनिवार्य शर्त यह है कि (St) दर्जे के तहत प्राप्त इनके विशेष संरक्षण को खत्म किया जाए।

इन राजनीतिक दलों के अलावा कई आदिवासी निकायों और संगठनों ने भी ‘समान नागरिक संहिता’ का विरोध किया। नागालैंड के ये संगठन संविधान के अनुच्छेद 371 एक तहत नागा आदिवासी समुदायों के रीति-रिवाजों, परंपराओं, संस्कारों, अनुष्ठानों और प्रथाओं के प्राप्त विशेष संरक्षण को खत्म करने के पूरी तरह खिलाफ हैं। 371A का भारतीय संविधान कहता है कि, “नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं के संबंध में भारत के संसद की कोई भूमिका नहीं है।” संविधान का यह अनुच्छेद नागाओं को नागा प्रथागत कानून और प्रक्रिया का पालन करने की उन्हें पूरी तरह छूट और अनुमति देता है। यहां तक कि उनका अपना क्रिमिनल लॉ है, जिसे लागू करने की उन्हें पूरी छूट है। नागाओं को भूमि और उसके संसाधनों का स्वामित्व और हस्तांतरण तय करने का भी अधिकार है। भारतीय संसद इसमें तभी कोई परिवर्तन कर सकती है। नागालैंड विधान सभा इसके संदर्भ में कोई प्रस्ताव बहुमत से पास करे।

नागालैंड में सरकार का नेतृत्व कर रही नेशनल ‘डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी’ (एनडीपीपी) ने कहा कि ‘समान नागरिक संहिता’ का विरोध करते हुए कहा कि, “हम एक ऐसी पार्टी हैं, जिसकी विचारधारा हमारे लोगों के अधिकारों, रीति-रिवाजों और परंपराओं की रक्षा करना है। पार्टी ने कहा कि जब इस मामले (समान नागरिक संहिता) पर हमारी सरकार की राय मांगी जाएगी तो, ‘हम नागा लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटेंगे।”

अपने बयान में पार्टी ने यह भी कहा कि यदि यूसीसी लागू किया जाता है, तो राज्य में चल रही शांति प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है। उन्होंने यह संकेत दिया कि नागा समस्या के समाधान की दिशा में बात-चीत ‘एक महत्वपूर्ण मोड़ पर’ थी। लोग अंतिम समाधान के माध्यम से स्थायी शांति की आशा कर रहे थे। पार्टी ने अपने बयान में कहा कि ‘समान नागरिक संहिता’ कानून ‘व्यक्तिगत कानूनों पर गहरा प्रभाव डालेगा’ और अनिश्चितता पैदा करेगा। यह कानून (यूसीसी) शांतिपूर्ण वातावरण को खतरे में डाल सकता है।

इसके अलावा, पार्टी ने यह भी रेखांकित किया कि नागा समाज के कई वर्ग अभी भी भारतीय संघ के साथ “भावनात्मक रूप से पूरी तरह से एकीकृत” नहीं हुए हैं। और वे अभी भी “मुख्य भूमि” (भारत मुख्य हिस्से) की प्रथाओं, संस्कृतियों और मान्यताओं को “अजीब और विदेशी” मानते हैं।

मेघालय के मुख्यमंत्री और एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने कहा कि उनकी पार्टी का मानना ​​है कि यूसीसी भारत की विविधता के विचार के खिलाफ है। एनपीपी मेघालय में सरकार का नेतृत्व तो करती ही है, इस पार्टी के विधायक नागालैंड और मणिपुर में भी हैं।

क्यों ‘समान नागरिक संहिता’ भारत की विविधता के खिलाफ है, विशेष तौर पर क्यों पूर्वोत्तर के खिलाफ है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि, “बुनियादी अवधारणा की दृष्टि से हम एक मातृसत्तात्मक समाज हैं। वही हमारी शक्ति रही है, वही हमारी संस्कृति रही है। वह बदला नहीं जा सकता है। एक राजनीतिक दल के रूप में हम महसूस करते हैं कि हमारे समाज (उत्तर पूर्व) की एक अनूठी संस्कृति और अद्वितीय तरीका है। इसीलिए हम चाहेंगे कि वह बना रहे और हम नहीं चाहेंगे कि उसे छुआ जाए।”

इसी बीच संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त निकाय के रूप में गठित ‘खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद’ ने एक प्रस्ताव पारित करके ‘समान नागरिक संहिता’ नहीं लागू करने का आग्रह किया है। उसने कहा कि भूमि स्वामित्व की हमारी प्रथागत व्यवस्था है, हमारी विशिष्ट मातृसत्तात्मक प्रणाली है। खासी समाज की हमारी अपनी संस्कृति है। इसे समान नागरिक संहिता के नाम पर खत्म नहीं किया जा सकता है।

समान नागरिक संहिता की वर्तमान पहल से पहले ही एमएनएफ के नेतृत्व वाली मिजोरम सरकार ने यूसीसी के खिलाफ स्टैंड लिया था। मिजोरम के विधान सभा में एक प्रस्ताव पेश को गृह मंत्री लालचामलियाना ने संविधान के अनुच्छेद 371जी का उल्लेख किया था। जो मिज़ो प्रथागत कानून और सामाजिक प्रथाओं को नागालैंड के मामले में अनुच्छेद 371ए के समान सुरक्षा प्रदान करता है।

(डा.सिद्धार्थ जनचौक के संपादक हैं।)

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