एक ओर उच्चतम न्यायालय है जिसे कोरोना संकट के दौर में ऐसा प्रतीत होता है कि जो मोदी सरकार कर रही है वो ठीक है, इसमें न्यायपालिका के हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय को मीडिया में बड़े पैमाने पर छप रहीं, लाइव प्रसारित और सोशल मीडिया पर आ रहीं फोटो और तत्संबंधी वीडियो दिखाई नहीं दे रहा है। वहीं आन्ध्र प्रदेश हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट , गुजरात हाईकोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट ने इसका संज्ञान लिया है और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने बच्चों और सामान के साथ हजारों किलोमीटर पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों की पीड़ा पर यहाँ तक कहा है कि यदि कोर्ट ने अब भी कुछ नहीं किया तो यह कोर्ट का पीड़ितों की रक्षा करने में असफल होना होगा।
उच्चतम न्यायालय 31 मार्च 20 से 15 मई 20 तक प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा से सम्बन्धित बड़े-बड़े वकीलों, समाजसेवियों द्वारा दाखिल अनेक याचिकाएं सुन चुका है और हर बार सालिसीटर जनरल तुषार मेहता के आश्वासनों और दलीलों को सत्य मानकर बिना किसी आदेश/निर्देश के याचिकाओं का निस्तारण कर चुका है। शुक्रवार 15 मई को उच्चतम न्यायालय ने प्रवासी मजदूरों के संबंध में याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए मौखिक तौर पर कहा था कि उच्चतम न्यायालय मजदूरों को चलने से कैसे रोक सकता है और उसके लिए इस बात की मॉनिटरिंग करना मुश्किल है कि कौन पैदल चल रहा है और कौन नहीं।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस डी सोमायाजुलू एवं जस्टिस ललिता कन्नेगंती की पीठ ने बच्चों और सामान के साथ हजारों किलोमीटर पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा पर कहा है कि यदि कोर्ट ने अब भी कुछ नहीं किया तो यह कोर्ट का पीड़ितों की रक्षा करने में असफल होना होगा। पीठ ने कहा है कि बेहतर जीवन की तलाश में शहरों में आने वाले और हमें खुशहाल जीवन देने वाले मजदूर आज सड़कों पर हैं। सड़कों पर चल रहे यह मजदूर अलग-अलग काम करते हैं और इन्हीं के कारण हम आरामदायक और खुशहाल जीवन जीते हैं। इसलिए इस स्थिति में भी यदि कोर्ट ने प्रतिक्रिया नहीं दी और तो यह पीड़ितों के संरक्षक के तौर पर अपनी भूमिका में फेल होना होगा। यह स्थिति संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन जीने के अधिकार के तहत है और मजदूरों को अधिक सहायता की जरूरत है विशेषकर तब जब कि वह किसी की दया पर रहने के स्थान पर गर्व से पैदल अपने घरों को वापस जा रहे हैं।
पीठ ने पैदल चल रहे मजदूरों के लिए केन्द्र और राज्य सरकार को कई निर्देश जारी किए हैं। पीठ ने हाईवे पर प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन की व्यवस्था करने, मजदूरों को चेकपोस्ट पर पीने का पानी, ओरल डिहाईड्रेशन साल्ट, ग्लूकोज के पैकेट दिए जाने, महिलाओं के लिए अस्थाई और साफ टायलेट बनाए जाने, सैनेटरी पैड वेडिंग मशीन लगाई जाने, एनएचएआई और पुलिस मजदूरों को नजदीकी शेल्टर होम पहुंचाने और उन्हें सरकारी बसों या ट्रेन से जाने के लिए मनाने, सभी पुलिस और राजस्व अधिकारियों को मजदूरों को नजदीकी शेल्टर होम की जानकारी देते रहने का निर्देश दिया है।
पीठ ने हिन्दी और तेलुगू में पैम्फलेट छपवाकर नजदीकी शेल्टर होम और आपात स्थिति के लिए फोन नंबर बताए जाने, शेल्टर होम में सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करने, सभी किस्म की मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध करने, शेल्टर होम की देखभाल के लिए तहसीलदार और डीएसपी रैंक के अफसर लगाए जाने तथा जरूरत होने पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, पैरा लीगल वॉलेंटियर सहित अन्य संस्थाओं की मदद लिए जाने का निर्देश दिया है ।
इसी तरह मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन किरुबाकरन और जस्टिस आर हेमलता की पीठ ने भी लाखों मजदूरों के हाईवे पर पैदल चलने के मामले में स्व:प्रेरित संज्ञान लिया है। पीठ ने कहा है कि प्रवासी श्रमिकों के सिर्फ मूल राज्यों का ही नहीं बल्कि उन प्रदेशों का भी कर्तव्य है कि वे उनका ध्यान रखें, जहां वे काम करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। पीठ ने कहा है कि कोविड-19 संकट काल में प्रवासी श्रमिक और कृषि कामगार काफी उपेक्षित हैं। पीठ ने ऐसे श्रमिकों के बारे में केंद्र और राज्य सरकारों से 22 मई तक रिपोर्ट पेश करने को कहा।
पीठ ने कहा कि हालांकि सरकारों ने समाज के हर वर्ग की अधिकतम सीमा तक देखभाल की है लेकिन प्रवासी श्रमिकों और कृषि कामगारों की उपेक्षा की गई है। यह पिछले एक महीने में प्रिंट और विजुअल मीडिया की रिपोर्टों से स्पष्ट है। पीठ ने प्रवासी श्रमिकों की पीड़ा का जिक्र करते हुए कहा है कि पिछले एक महीने से मीडिया में प्रवासी मजदूरों की दिख रही दयनीय स्थिति को देखकर कोई भी अपने आंसुओं को नहीं रोक सकता है। पीठ ने कहा है कि यह मानवीय त्रासदी के अलावा कुछ नहीं है।
पीठ ने केन्द्र और राज्य सरकार से मजदूरों की सहायता के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी है। कोर्ट ने कहा कि यह देखना बेहद करुणा जनक है कि मजदूर अपने घरों तक पहुंचने के लिए हजारों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। इस दौरान कई मजदूरों को एक्सीडेंट में अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। सभी राज्यों की सरकारों को इस संबंध में इन मजदूरों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए था।
इसी तरह कर्नाटक हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि कोई भी मजदूर किराया नहीं देने के कारण अपने घर जाने से वंचित ना रहे। गुजरात हाईकोर्ट ने भी स्व:प्रेरित संज्ञान लेकर कहा है कि लॉक डाउन के कारण मजदूर भूखे प्यासे चल रहे हैं।
इस बीच गृह मंत्रालय ने राज्यों से कहा कि वे ये सुनिश्चित करें कि कोई प्रवासी मज़दूर सड़क/रेलवे ट्रैक पर न जाए, उन्हें आश्रय गृह में जाने की सलाह दें। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सरकार द्वारा प्रवासी मज़दूरों को आवाजाही की सुविधा देने के बाद प्रवासी श्रमिकों को सड़कों और रेलवे पटरियों पर न चलने दिया जाए।
गृह सचिव ने शुक्रवार रात भेजे एक पत्र में कहा कि प्रवासी श्रमिकों की परिवहन आवश्यकता को पूरा करने के लिए केंद्र द्वारा ‘श्रमिक’ ट्रेनें और विशेष बसें तैनात की गई हैं, जो कि सरकार के फैसले को लागू करती हैं। पत्र में कहा गया कि “जैसा कि आप जानते हैं, सरकार ने बसों और ‘श्रमिक’ विशेष रेलगाड़ियों द्वारा प्रवासी श्रमिकों की आवाजाही की अनुमति दी है, ताकि वे अपने मूल स्थानों की यात्रा कर सकें। यह अब सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जिम्मेदारी है कि वे फंसे हुए प्रवासियों की आवाजाही को सुनिश्चित करें, जो अपने गृह राज्यों में जाने के इच्छुक हैं।
पत्र में, सड़कों पर और रेलवे पटरियों पर घूमने वाले प्रवासी श्रमिकों की स्थिति पर प्रकाश डाला गया और यह सलाह दी गई कि ऐसी स्थिति में पाए जाने पर, उन्हें उचित रूप से परामर्श दिया जाना चाहिए, पास के आश्रयों में ले जाया जाना चाहिए और भोजन उपलब्ध कराया जाना चाहिए, ऐसे समय तक जब तक कि उन्हें अपने मूल स्थानों पर ‘श्रमिक’ विशेष रेलगाड़ियों या बसों में चढ़ने की सुविधा नहीं मिल जाए।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)
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