Saturday, April 20, 2024

मुग़ल साम्राज्य से शर्म कैसी?

देश के वर्तमान शासकों के लिए आजकल इतिहास बदलने की जैसे हड़बोंग सी मची हुई है। साम्प्रदायिक आधार पर इतिहास को नकारने और नए सिरे से लिखे जाने के शोर में सच जैसे कहीं दब सा गया है।

तकरीबन दो शताब्दियों तक मुग़ल साम्राज्य पश्चिम में सिंधु बेसिन के बाहरी किनारे, उत्तर पश्चिम में उत्तरी अफगानिस्तान, उत्तर में कश्मीर, पूर्व में बांग्लादेश और दक्षिण भारत में दक्कन के पठार के ऊपरी इलाकों तक फैला हुआ था। इतना बड़ा और इतने लंबे अरसे तक कायम रहने वाला मुग़ल साम्राज्य क्या भारत भूमि के लिए शर्म का विषय होना चाहिए जबकि बाबर के अलावा मुग़ल वंश का एक भी शासक विदेशी भी नहीं था?

ऐतिहासिक सिल्क रूट पर स्थित उज्बेकिस्तान का शहर अंदिजान किर्गिस्तान के साथ लगती सीमा के पास फ़रगना घाटी के दक्षिण-पूर्वी किनारे पर स्थित है। इसी शहर का एक योद्धा था बाबर। समरक़न्द उज़बेकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। मध्य एशिया में स्थित यह नगर ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण शहर रहा है। बाबर इसी समरकंद का शासक बनने की चेष्टा करता रहता था। लगातार कई प्रयासों के बाद भी जब वह विफल हो गया तो भागकर काबुल आ गया। बाबर के पास ओटोमन साम्राज्य की कास्ट आयरन की बनी तोप और बारूद था। 1526 में पानीपत की प्रथम लड़ाई में बाबर ने आधुनिक युद्धास्त्रों के साथ और सुनियोजित रणनीति बनाकर दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली के तख़्त पर कब्ज़ा कर लिया और मुगल साम्राज्य की स्थापना की। मुग़ल साम्राज्य अकबर के शासनकाल से होते हुए औरंगजेब के शासनकाल तक अपने चरम अवस्था में पहुंचा और फिर धीरे धीरे क्षीण होकर औरंगजेब की मृत्यु तक अनौपचारिक तौर पर और 1857 में औपचारिक तौर पर खत्म हो गया।

बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल साम्राज्य को सुदृढ़ किया तीसरे मुग़ल बादशाह अकबर ने। अकबर ने साम्राज्य विस्तार के साथ साथ अपने पूर्ववर्ती शासकों की तुलना में अधिक व्यवस्थित और केंद्रीकृत शासन लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे भारत भूमि के एक विशाल भूभाग पर प्रशासनिक नियमों और प्रथाओं में अधिक एकरूपता आई। दूसरी तरफ अकबर की आर्थिक नीतियों ने वाणिज्यिक गतिविधियों के विकास को प्रेरित किया, जिसने दक्षिण एशिया के विभिन्न हिस्सों को तेजी से एक दूसरे से जोड़ने का काम किया।

इस दिशा में एक और प्रभावी कदम अकबर के राजस्व सुधारों के माध्यम से साकार हुआ, जिसके साथ उसके मंत्री टोडर मल का नाम जुड़ा है। टोडरमल 1561 में अकबर की सेवा में शामिल हुआ और साम्राज्य के सबसे धनी प्रांत बंगाल के गवर्नर के पद तक पहुंचा। अकबर की नई व्यवस्था में राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा भू-राजस्व का था और इस मामले में उसने बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए अपने पूर्ववर्ती अफ़ग़ान शासक शेर शाह सूरी की व्यवस्था को जारी रखा। भारतीय मामलों के विशेषज्ञ अमेरिकन इतिहासकार Burton Stein अपनी किताब ‘A History of India’ में पृष्ठ 164 पर लिखते हैं: “The resource base of Akbar’s new order was land revenue.”

शासक वर्ग हमेशा अपनी सत्ता को सुदृढ़ करने के उपाय करता है। इस बहाने राज्य में विधि व्यवस्था, यातायात, बाजार आदि सुदृढ़, सुचारू और सुगम बनते जाते हैं। भू राजस्व ठीक से प्राप्त हो सके और इसकी सही गणना हो सके इसके लिए उपलब्ध कृषि योग्य भूमि के माप की आवश्यकता थी क्योंकि अब तक कृषि भूमि का कोई व्यवस्थित लेखाजोखा नहीं था। अकबर के शासनकाल में टोडरमल ने भूमि के माप की व्यवस्था लागू की जो थोड़े बहुत सुधारों के साथ आज भी लागू है। इस तरह सरकार के पास कृषि भूमि का आंकड़ा उपलब्ध हो गया और कृषि उपज में से लागत मूल्य निकालने के पश्चात तकरीबन आधा हिस्सा सरकार कर के रूप में ले लेती थी। अकबर के शासनकाल में करों के संग्रहण का नियम बदल चुका था। पहले जहां कर कृषि उपज के रूप में लिए जाते थे, अब सरकार ने कर नकद रूप में लेना शुरू किया। इस हेतु एक केंद्रीकृत मजबूत मुद्रा प्रणाली की आवश्यकता हुई और चांदी के सिक्के जारी किए गए। शाही मुद्रा के मानकीकरण ने धन के बदले माल का आदान-प्रदान आसान बना दिया। कृषि उपज से कर का भुगतान करने के लिए किसानों को बाजार का रुख करना पड़ा जहां वह कृषि उपज बेचकर आवश्यक मुद्रा प्राप्त कर सकते थे और इस तरह बाजार का नेटवर्क सुदृढ़ हुआ।

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से प्रकाशित ‘India Before Europe’ में मुग़ल साम्राज्य पर विशेष रूप से लिखने वाली इतिहासकार द्वय Catherine B. Asher और Cynthia Talbot पृष्ठ 152 पर लिखती हैं: “His stipulation that land taxes be paid in cash forced peasants into market networks, where they could obtain the necessary money, while the standardization of imperial currency made the exchange of goods for money easier.” आगे पृष्ठ 158 पर इतिहासकारद्वय ने लिखा है: “The Mughal empire was based in the interior of a large land-mass and derived the vast majority of its revenues from agriculture.”

16वीं शताब्दी के बाद की शताब्दियों में मुग़लकालीन भारत की जैसी विशेषता थी, करीब करीब उसी तरह की विशेषता यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में भी पाई जाती है। 16वीं शताब्दी में यूरोप, एशिया और अमेरिका के बीच सीधे समुद्री संपर्क स्थापित होने के बाद दुनिया के विविध क्षेत्रों में फैली एक वैश्विक अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे उभरने लगी। यही कारण है कि 1500 से 1800 तक के 300 वर्षों को इतिहासकारों द्वारा अक्सर प्रारंभिक आधुनिक काल के रूप में वर्णित किया जाता है। दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के बीच घटती दूरियों के साथ-साथ प्रत्येक समाज के आंतरिक संस्थानों के आकार और जटिलता में वृद्धि होना इस दौर की एक सामान्य प्रवृत्ति थी।

इस प्रकार हम विश्व में महान साम्राज्यों के उदय की एक श्रृंखला देखते हैं: मध्य पूर्व में ओटोमन और सफ़वी साम्राज्य और चीन के मिंग-किंग राजवंश के साथ साथ भारत में मुगल साम्राज्य। इन प्रारंभिक आधुनिक साम्राज्यों द्वारा प्रयुक्त नियंत्रण की नवीन तकनीकियां उनके पूर्ववर्तियों की तुलना में बहुत अधिक प्रभावी थीं और आधुनिक दुनिया की कुशल नौकरशाही की ओर मार्ग प्रशस्त कर रही थीं।

इस तरह अगर राजनीतिक कारणों को नजरअंदाज कर दें, मुग़ल शासकों द्वारा राजपूत राजाओं की कन्याओं से वैवाहिक संबंध और उनसे उत्पन्न पुत्रों को भी उत्तराधिकारी बनाने में संकोच न करने को किनारे कर दें, तब भी मुग़ल साम्राज्य तत्कालीन दुनिया के साथ भारत को कदम से कदम मिलाकर चलने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा था। इसलिए इतिहास में मुग़लकाल ने न सिर्फ भारत के स्थापत्य, साहित्य, कला आदि में अतुलनीय योगदान दिया बल्कि भारत को आधुनिक काल में ले जाने की पूर्वपीठिका तैयार की। इसलिए मुग़लकाल से चिढ़ने या शर्माने जैसी कोई बात नहीं है। साम्प्रदायिक आधार पर देश को विभाजित करके स्वयंभू इतिहासकार बनने वालों को यह बात जितनी जल्दी समझ में आए, देश के लिए यह उतना ही अच्छा होगा।

(अनेक विषयों में परास्नातक प्रखर चिंतक एवं लेखक मनोज अभिज्ञान साइबर एवं कॉर्पोरेट मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता हैं।)

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