
क्या कोई बताएगा कि आदमज़ात के ब्रहमा के मुंह-भुजा-पेट-पैर से पैदा होते-होते नौबत औरत की योनि तक कैसे पहुंच गई? चलो स्त्री योनि से संतान उत्पत्ति भी ठीक। ये माहवारी का चक्कर क्यों डाला! क्यों पुरुष पर बेलगाम वीर्य का ताप चढ़ा दिया। क्या ब्रह्मा को भी वीर्य की ज़रूरत पड़ी थी ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र जनमते वक़्त?
क्या ब्रह्मा के मुंह-भुजा-पेट-पैर भी हर महीने के माहवारी चक्र से गुज़रते थे? 7 से 9 महीने का समय लगाकर ब्रह्मा केवल 4 संतान ही पैदा कर पाते थे ? और इसीलिए थक-हार कर ब्रह्मा ने ये काम स्त्रियों के मत्थे मढ़ दिया।
पर क्या संतान जनमने की सारी ज़िम्मेदारी स्त्रियों को ही देकर ब्रह्मा ने उनके साथ पक्षपात नहीं किया? अरे भई! पुरुष-स्त्री को बराबर ये ज़िम्मेदारी देनी चाहिये थी। जब ब्रह्मा अपने शरीर के चार-चार हिस्सों से मानव पैदा कर सकते हैं तो पुरुष एक तो कर ही सकता है। अच्छा होता कि ब्राह्मण संतान ब्राह्मण पुरुष अपने मुख से जनमते। भुजाओं से क्षत्रिय अपनी औलादें निकालते। पेट से बनिये और पैरों से शूद्र।
इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता कि आज जो ब्राह्मण-शूद्र के जन्म को बहुजन चुनौती दे रहे हैं वो झंझट ही ख़त्म हो जाता। प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या? फिर ना अंबेडकर अपने वंशजों को भड़का पाते ना कांशीराम-मायावती ब्राह्मणों को धूल चटाते और न चंद्रशेखर आज़ाद रावण जैसे नौजवान वर्ण व्यवस्था के लिए चुनौती बनते।
और न स्त्रियों के लिए बलात्कार, कुल्टा-कलंकनी, चरित्रवान- चरित्रहीन, सती, जैसे शब्द गढ़े जाते। ना इज़्ज़त के नाम पर क़त्ल होते, ना चारदीवारियों में बेटियों के शरीर में विराजमान तथाकथित इज़्ज़त को सुरक्षित रखने का झंझड होता। न बुर्के़ होते, न घूंघट।
पुरुषों के लिए बेहद ज़रूरी फ़ायदा ये होता कि आज पुरुषों के लिए मुसीबत बना मी टू न होता। न बलात्कार विरोधी कानून और न दहेज विरोधी कानून की ज़रूरत पड़ती। ये सब मर्द के दुश्मन कानून औरतों की योनि के अस्तित्व की वजह से ही तो हैं।
ब्रह्मा शायद इतनी दूर तक सोच नहीं पाए होंगे कि स्त्री की कोख़ और योनि बनाकर वो अपने पुरुष वारिसों के लिए कितनी दुश्वारियों की खेती बो दे रहे हैं।
वैसे जब ब्रह्मा खुद अपनी पैदा की गई बेटी सरस्वती के रूप के मोहपाश में फंसकर उसका बलात्कार करने या जबरन उसे अपनी पत्नी बनाने से खुद को नहीं रोक पाए तो उसी वक़्त उन्हें समझ जाना चाहिये था कि स्त्री रूपी अपनी इस रचना के सम्मान-सुरक्षा के लिए और स्वयं पुरुष वंशजों की सुरक्षा के लिए योनि-माहवारी-संतान चक्र से स्त्री को मुक़्त रखना चाहिये। ये जिम्मेदारी पुरुष को ही देनी चाहिये थी।
और अगर ब्रह्मा पलक झपकते ही अपने मुंह-भुजा-पेट-पैर से धड़ाधड़ लाखों स्त्री-पुरुष ज़मीन पर उगल देने का सामर्थ्य रखते थे तो फिर स्त्री-पुरुष किसी के गले ये मुसीबत मढ़ने की ज़रूरत नहीं थी?
मेरा बीजेपी-संघ, मोदी-अमितशाह को एक सुझाव है। जिस तरह उन्होंने बिहार में नीतीश कुमार के साथ सीटों का आधा-आधा बंटवारा किया है। उसी तरह देश की आधी आबादी महिलाओं के साथ भी फेयर डील कर लें।
केरल की वामपंथी सरकार को डराने-धमकाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। चोटी वाले अविवाहित ब्रह्मचारी संघी चीफ मोहन भागवत हों या बिना चोटी वाले विवाहित संघी ब्रह्मचारी प्रधानमंत्री मोदी आदि-आदि हों, यक़ीनन इन सबकी पहुंच मनु-ब्रह्मा, अयप्पा आदि-आदि तक होगी। जैसाकि मोदी जी स्वयं कहते हैं कि ऐसा क्या है जो हिंदू धर्म में नहीं हो सकता। यहां पार्वती के मैल से गणेश पैदा हो सकते हैं। गणेश के धड़ पर सर्जरी से हाथी का मुंह लगाया जा सकता है। शिव के वीर्य को किसी योनि की आवश्यकता नहीं वो पृथ्वी के पत्थर को संतान में बदल सकता है।
तो फिर आम औरतों को योनि-माहवारी-संतान उत्पत्ति के झंझट से अलग करो न महापुरुषों! क्यों बेकार में अयप्पा श्रद्धालुओं को पिटवा रहे हो, जेल भिजवा रहे हो। दिला दो औरतों को वरदान या श्राप। जो भी कहना चाहो इसे कि -“जाओ आज से अभी से तुम योनि-माहवारी-संतान उत्पत्ति से मुक़्त की जाती हो। ढीठ औरतों! जाओ करो अयप्पा के दर्शन।“ ऐसा करने से अयप्पा का ब्रह्मचर्य भी सुरक्षित! और स्त्रियों का ‘‘वयस्क’’ अयप्पा दर्शन न कर पाने का मलाल भी ख़त्म।
वैसे विज्ञान कहता है कि नर चाहे वो पुरुष हो या जानवर उसे अपने वीर्य को ज़्यादा से ज़्यादा मादाओं तक पहुंचाने की उसकी इच्छा प्रकृति ने उसमें भरी है। ताकि वो ज़्यादा से ज़्यादा संतान पैदा कर ‘‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’’ की प्रतिस्पर्धा जीत सके। मादा के प्रति नर का आकर्षण केवल संतानोत्पत्ति है जो प्राकृतिक है। पुरुष बड़े नितंबों-उरोजों वाली महिला की तरफ आकर्षित होते हैं क्योंकि ऐसी महिलाएं प्राकृतिक रूप से बाक़ियों की तुलना में स्वस्थ बालक को जन्म देने में ज़्यादा सक्षम होती हैं।
जैसे महिलाओं के प्रति आकर्षित होना और संतान उत्पन करना प्राकृतिक व्यवहार है ठीक इसके उलट ब्रह्मचर्य अप्राकृतिक है। प्रकृति ने सभी जीव-जंतुओं को आगे उत्पादन के लिए उत्पन्न किया है। प्रकृति की जटिल रचनाओं का यही सरल उद्देश्य-नियम है। प्रकृति ने न किसी को पवित्र बनाया है न अपवित्र। न ऊंच न नीच। न ब्राह्मण, न शूद्र।
तो अमितशाह बाबू! वामपंथियों पर चिल्लाने-खीज उतारने से कुछ नहीं होगा। अगर प्राकृतिक नियमों के आधार पर चलना है तो अपनी भगवा सेना को वापस बुला लो। और अगर ब्राह्मण धर्म आपका आखि़री सत्य है तो ब्रह्मा-अयप्पा, शिव-विष्णु आदि-आदि से सलाह-मशविरा करके आधी आबादी के साथ जो नाइंसाफ़ी की गई है उसे अब ख़त्म करवाओ। बहुत हुआ, अब महिलाओं को माहवारी-योनि-कोख़ के झंझटों से मुक़्त कराओ। ऐसा कर पाओ अगर तो आधी आबादी पूरी तरह से आपके साथ होगी। वरना तो नइया डूबी ही डूबी।
(वीना फिल्मकार, व्यंग्यकार और पत्रकार हैं।)
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