प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना का मामला, अब केवल अवमानना का ही मामला नही रह गया है। सच कहें तो इस अवमानना के मामले में अदालत अपनी सुनवाई पूरी कर चुकी है और अब वह सज़ा के ऊपर विचार कर रही है। एक मुकदमे के रूप में इस मामले में बस सज़ा की घोषणा होनी शेष है, जो 25 अगस्त को हो जाएगी।
लेकिन इस मुकदमे के दौरान प्रशांत भूषण का जो स्टैंड रहा वह बेहद मजबूत, दृढ़ और संकल्प शक्ति से भरा रहा है। आज जब सर्वत्र सरीसृप चरित्र की बाढ़ आ गयी है तो, ऐसी दृढ़ता की सराहना की जानी चाहिए। भारत के इतिहास मे दृढ़ इच्छाशक्ति के अनेक उदाहरण रहे हैं और इसकी एक समृद्ध परंपरा भी रही है।
आज जब सभी संवैधानिक संस्थाएं एक-एक कर के अपनी जीवनी शक्ति खोती जा रही हैं और उन संस्थाओं के आका भी शनैः शनैः मुरझाते जा रहे हैं तो, कुछ ऐसी ही दृढ़ संकल्प शक्तियां होती हैं जो उस सूख रहे वॄक्ष के जड़ में बरस कर जीवनी का संचार कर देती हैं और कानन फिर सरसब्ज़ हो जाता है।
डॉ. राजमोहन गांधी जो, एक प्रसिद्ध लेखक और सरदार पटेल के जीवनीकार हैं साथ ही गांधी जी के पोते हैं, ने इस प्रकरण पर जो कहा है उसे एक बार पढ़ा जाना चाहिए। वे कहते हैं,
” प्रशांत भूषण एक निडर व्यक्ति हैं। उन्होंने एक ऐसे कार्य का बीड़ा उठाया है, जो उन्हें अलोक प्रिय भी बना सकता है। ”
डॉ. गांधी ने यह बात, 19 अगस्त को, प्रशांत भूषण के पक्ष में भारतीय और अमेरिकी वकीलों की एक संस्था द्वारा आयोजित एक आभासी सेमिनार में कही थी। आगे वे कहते हैं,
” भारत भाग्यशाली है कि उसके पास, उनके (प्रशांत भूषण) जैसे सत्यनिष्ठ लोग मौजूद हैं। “-
इस सेमिनार के अगले ही दिन यानी 20 अगस्त को ही प्रशांत भूषण की सज़ा पर बहस हुयी और उन्हें कुछ दिन का अवसर ” पुनर्विचार करने और माफी मांगने ” के लिये दिया है। हालांकि प्रशांत पहले ही यह कह चुके हैं कि उन्हें जो कहना था वह कह चुके हैं।
वे दो ट्वीट, जिनमें से, एक सीजेआई द्वारा पचास लाख की मोटरसाइकिल पर बैठे हुए, और दूसरा ट्वीट जो सुप्रीम कोर्ट के कोरोना काम में किये गए क्रियाकलाप पर अमर्यादित, टिप्पणी के रूप में अदालत द्वारा माने गए हैं, में,अवमानना के मुकदमे के, पहले से ही दुनिया भर में हज़ारों बार रीट्वीट और शेयर हो चुके थे। साथ ही अखबारों में भी उनकी खूब चर्चा हुयी। लोग उसे धीरे-धीरे भूल भी जाते, तभी लगभग एक महीने बाद महक माहेश्वरी नामक एक एडवोकेट द्वारा दाखिल एक अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही शुरू कर दी तो वे ट्वीट पुनः चर्चा में आ गए।
अब उन्हें अवमानना का दोषी पाया जा चुका है और, इस बात पर बहस केंद्रित हो चुकी है कि, न्यायपालिका की स्वस्थ आलोचना हो सकती है या नहीं ? अब इसी बिंदु पर विचार विमर्श के लिये, छह इंडो अमेरिकन समूहों ने एक संयुक्त सेमिनार का आयोजन किया था, जिसमें डॉ. गाँधी ने उपरोक्त बात कही है। डॉ. राजमोहन गांधी के अतिरिक्त, प्रमुख वक्ताओं के रूप में, इस सेमिनार में सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट, इंदिरा जयसिंह भी शामिल थीं।
” हम अदालत की आलोचना, उसके मौलिक मूल्यों को बचाये रखने के लिये करते हैं। ”
यह कहना है इन्दिरा जयसिंह का। आगे वे कहती हैं,
” अदालत कहती है कि यह न्याय में हस्तक्षेप है। हम पूछते हैं, किस न्याय में हस्तक्षेप है ? पर इस पर अदालत मौन हो जाती है।”;
“एक विचारशील लोकतंत्र में सभी संस्थाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि, वैधानिकता बनाये रखने के लिये, वे पारदर्शिता के साथ अपने कर्तव्य और दायित्व का निर्वहन करें। संस्थाओं की जवाबदेही पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। ”
यह कहना है इन्दिरा जयसिंह का। आगे वह कहती हैं,
” भारत का सर्वोच्च न्यायालय आप का और मेरा है। कोई भी व्यक्ति अदालत को अपमानित नहीं कर सकता है पर राज्य की शक्ति, मदांध हो कर अदालत को अपमानित कर सकती है। किसी लोक सेवक के विचलन के हर कृत्य के पीछे, राज्य द्वारा उसे कानूनी दंड से बचा लेने की कोशिश तो होती ही है, और उसे पुरस्कृत भी बहुधा किया जाता है। लेकिन नागरिक समाज ( सिविल सोसायटी ) ऐसा कोई पुरस्कार नहीं दे सकता है। ”
प्रशांत भूषण के ट्वीट के संदर्भ में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल की युवा एक्टिविस्ट अमीना अहमद इसे मिसकैरेज ऑफ जस्टिस, न्याय की भ्रूणहत्या कहती हैं और यहां उन्होंने यह टिप्पणी की,
” हम पूरी तरह से न्याय की भ्रूणहत्या होते हुए देख रहे हैं। उनके ट्वीट जो कुछ भी नहीं कह रहे हैं, यह बात किभी भी लोकतंत्र का दावा करने वाले देश का हर नागरिक कह सकता है और उसे ऐसा कहने की अनुमति होनी भी चाहिए।”
इस सेमिनार में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के अतिरिक्त, हिन्दूज फ़ॉर ह्यूमन राइट्स, ग्लोबल इंडियन प्रोग्रेसिव एलायंस, यंग इंडिया, वायस अगेंस्ट फासिज़्म सहित कुछ अन्य संस्थाएं थीं। इसमें लगभग एक सौ प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
ग्लोबल इंडियन प्रोग्रेसिव एलायंस के मनीष मदान ने कहा कि,
” एक प्रगतिशील भारतीय होने के नाते, हम यह दृढ़ता पूर्वक विश्वास करते हैं कि, हमारे संविधान ने हमें अपनी बात कहने और खुद को अभिव्यक्त करने का स्पष्ट अधिकार दिया है। हमें यह कहना है कि हम इस बात से निराश हैं कि वकील एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण के द्वारा किये गए दो ट्वीट के कारण उनके खिलाफ न्यायालय ने आपराधिक अवमानना का एक मामला, स्वतः संज्ञान लेकर शुरू किया है। ”
स्टूडेंट्स अगेंस्ट हिंदुत्व आइडियालॉजी, जो फासिस्ट संघी संघटन के विरुद्ध है, के प्रतिनिधि, विशाल ने कहा कि,
” ऐसे निर्णय ( प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना ) का परिणाम दूरगामी होगा। मैं इसे साफ कह दूं, यह एक प्रकार का बुरा संकेत है। यह एक ऐसा बुरा संकेत है जो भारत के जागरूक छात्रों और एक्टिविस्ट को सदैव डराने और प्रताड़ित करने के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करेगा। हम, भारत के छात्रों, संयोजकों, और वकीलों, जो शांतिपूर्ण प्रतिरोध के द्वारा अपने अधिकारों के लिये, लोकतांत्रिक और समृद्ध भारत के विरोधी तत्वो से लड़ रहे हैं, के साथ मजबूती से खड़े हैं। ”
उपरोक्त संगठनों के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त, इस सेमिनार में, भारत मे शांति स्थापना के लिए, 175 दिन से क्रमिक अनशन का कार्यकाल चलाने वाले सुनीति संघवी भी थीं । उन्होंने कहा,
” 25 फरवरी को, भारत में हुए उत्तर पूर्वी दिल्ली के कुछ इलाक़ों में, साम्प्रदायिक दंगों ने मुझे बेहद विचलित कर दिया। शांति स्थापित हो और लोगों मे सद्बुद्धि आये, इस हेतु मैंने तब से क्रमिक अनशन का एक कार्यक्रम शुरू किया है जो 175 दिन से चल रहा है। अब 28 अनशनकारी रोज बैठ रहे हैं।
सुनीति सिंघवी ने प्रशांत भूषण के पक्ष में, उनके संघर्ष के पक्ष में जनमानस बनाने के उद्देश्य से, एकता प्रदर्शित करने के लिये 22 अगस्त को एक दिन का विशेष उपवास कार्यक्रम करने का आह्वान किया है।
( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं। इसमें कुछ इनपुट द क्विंट से लिए गए हैं। )
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