राष्ट्रपति के गृहनगर की ट्रेन यात्रा के बहाने भाजपा का दलित कार्ड

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राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले दलित वोटों को साधने के लिए भारतीय जनता पार्टी अब अंबेडकर के नाम पर स्मारक स्थल बना रही है और राजधानी लखनऊ में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 29 जून को अंबेडकर स्मारक का शिलान्यास कर रहे हैं ।भारत रत्न बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के नाम पर बनने वाला ये नया स्मारक दलितों को साधने की कोशिश के लिए महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। शुक्रवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दी। अंबेडकर सांस्कृतिक सेंटर में बाबा साहब की 25 फुट की मूर्ति स्थापित की जाएगी।45 करोड़ की लागत से बनने वाले इस स्मारक में 750 लोगों की क्षमता का प्रेक्षागृह, लाइब्रेरी और म्यूज़ियम भी बनाया जाएगा।

यूपी में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे के साथ साथ जातिगत समीकरण साधने की पुरज़ोर कोशिश में लगी है। राम मंदिर और बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर को जनता के सामने करके बीजेपी अपने हिंदुत्व के एजेंडे को साधने की कोशिश में है।बाबा साहब के स्मारक, सुहेलदेव पर सरकार के आयोजनों और निषादराज के नाम पर श्रृंगवेरपुर में बन रहे स्मारक को आगे करके दलित और पिछड़ों को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने की रणनीति भी बीजेपी की है।अब यह चुनाव में पता चलेगा कि कुशासन भारी पड़ता है या हिंदुत्व के मुद्दे के साथ-साथ जातिगत समीकरण साधने की पुरज़ोर कोशिश।

योगी आदित्यनाथ कैबिनेट ने लखनऊ में ऐशबाग ईदगाह के सामने खाली पड़ी मौजा भदेवा की 5493.52 वर्ग मीटर नजूल भूमि को डा. आंबेडकर सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना के लिए संस्कृति विभाग के पक्ष में कुछ शर्तों व प्रतिबंधों के तहत नि:शुल्क आवंटित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। यह भूमि सरकार के स्वामित्व में है। सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना पर 45.04 करोड़ रुपये खर्च होंगे।संस्कृति विभाग ने डॉ. आंबेडकर सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना के लिए लखनऊ में दो से तीन एकड़ भूमि उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था।

इस केंद्र को भाजपा का मायावती की तर्ज पर दलितों को लुभाने का एक कदम माना जा रहा है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने कार्यकाल में आम्बेडकर पार्क जैसे कई भव्य स्मारक लखनऊ से लेकर नोएडा तक बनवाए जो आज भी दलितों के सबसे बड़े स्मारक और प्रतीक चिह्न के तौर पर जाने जाते हैं। मायावती की ओर से स्मारक निर्माण की आलोचक रही बीजेपी भी दलित वोट बैंक में सेंधमारी के लिए अब कुछ उसी राह पर चलती नजर आ रही है। बीजेपी दलितों को लुभाने में जुटी है।अब इसी कोशिश में सरकार ने आम्बेडकर कार्ड भी खेल दिया है।

राष्ट्रपति ने ट्रेन यात्रा पर स्वत: सफाई भी दी है और कोशिश की है की उनकी यात्रा को राजनीति से या किसी विवाद से न जोड़ा जाय। कानपुर पहुंचकर उन्होंने कहा कि पहले झींझक आने का कोई प्रोग्राम नहीं था। सिर्फ परौंख जाना था। वो दिल्ली से हेलीकॉप्टर से सीधे कानपुर और वहां से हेलीकॉप्टर से परौख जाना चाहते थे। इसी बीच रेलमंत्री मिले और कहा कि जानकारी हुई है कि कानपुर से नजदीक स्टेशन झींझक और रूरा है। रेलमंत्री ने कहा कि वो चाहते हैं कि हम इसी रूट से कानपुर जाएं और इन दोनों स्टेशनों पर रुक कर अपने लोगों से मिलें। इस दौरान रास्ते भर रेलवे के विकास कार्य भी देख सकें। तब यहां आना तय हुआ।महामहिम ने यह सफाई भी दी कि जबसे वे राष्ट्रपति बने हैं तबसे वे किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं और सभी विपक्षी दल उन्हें बहुत सम्मान देते हैं।

15 साल में ये पहली बार है जब राष्ट्रपति ट्रेन से सफर कर रहे हैं। इससे पहले 2006 में राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने दिल्ली से देहरादून तक ट्रेन से सफर किया था। डॉ. कलाम देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी की पासिंग आउट परेड में शामिल होने पहुंचे थे। अब मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने पैतृक निवास के लिए निकले हैं। प्रणब मुखर्जी भी राष्ट्रपति पद पर थे और प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा में पश्चिम बंगाल में स्थित अपने गाँव जाते थे पर कभी भी उन्होंने ट्रेन से यात्रा नहीं की। हाँ रामजन्म भूमि आन्दोलन के दौरान तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी प्रमोद महाजन के साथ जरूर कालका मेल से दिल्ली से कलकत्ता गये थे और ट्रेन के हर ठहराव पर रेलवे प्लेटफार्म पर जमा भाजपाइयों को सम्बोधित करते हुए यह हुंकार भर रहे थे ‘इस बार अयोध्या में वास्तविक कार सेवा होगी’ फिर अयोध्या में दिसम्बर 1992 में इस हुंकार पर क्या हुआ था यह पूरे देश ने देखा था।

लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी सरकार ने महामहिम की ट्रेन यात्रा के लिए साईत सुदिन ठीक से नहीं बंचवाया था। शुक्रवार को राष्ट्रपति के शाही ट्रेन गुजरते वक्त रोके गए ट्रैफिक में फंस कर महिला उद्यमी वंदना मिश्रा की मौत हो गई ।राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए तैनात अर्द्धसैनिक बल के काफिले में शामिल एक वाहन की चपेट में आकर बच्ची बुरी तरह से घायल हो गई। उपचार के दौरान शाम को उसने हैलट में दम तोड़ दिया। काफिला गुरुवार को रूरा की ओर जा रहा था। अकबरपुर कोतवाली क्षेत्र के नरिहा गांव के पास गुरुवार दोपहर अचानक नगीनापुर घाटमपुर के राजेश पाल की तीन वर्षीय बच्ची कनिष्का सड़क पार करने लगी। सीआरपीएफ के एक वाहन की चपेट में आकर बच्ची गंभीर रुप से घायल हो गई।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सोमवार को कानपुर से लखनऊ की ट्रेन यात्रा के दौरान बड़ा हादसा टल गया। राष्ट्रपति की ट्रेन गुजरने से ठीक पहले उन्नाव में रेलवे क्रॉसिंग पर एक ट्रक फंस गया। ये देखते ही स्थानीय पुलिस कर्मियों के हाथ-पांव फूल गए। आनन-फानन में पुलिस कर्मियों ने ट्रक को धक्का देना शुरू किया। करीब 20 मिनट की मशक्कत के बाद ट्रक को लाइन से हटाया जा सका। इसके ठीक 45 मिनट बाद इसी ट्रैक से राष्ट्रपति की स्पेशल ट्रेन गुजरी।अगर पुलिस क्रेन को बुलाने में समय लगा देती तो बड़ा हादसा हो सकता था।

राजभवन में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के सम्मान में हाई-टी और डिनर रखा गया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी सहित इलाहाबाद हाईकोर्ट के अन्य वरिष्ठ जस्टिस भी मौजूद रहे।

यह तो सुस्पष्ट है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा बिना किसी मतलब के कोई काम नहीं करती। चार साल पहले यानि 2017 में मोदी सरकार ने दलित चेहरे राम नाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर दलित वोटों पर निशाना साधा था और विपक्ष को भी विरोध न कर पाने की स्थिति में ला खड़ा कर दिया था। इसे 2019 के लोकसभा चुनाव में 15 फीसद दलित वोट साधने के लिए भाजपा के दलित कार्ड के रूप में देखा गया था। इस बार यूपी के आने वाले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा महामहिम राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को उनके गृहनगर कानपुर की ट्रेन से यात्रा कराकर और विधान सभा के ठीक सामने स्थित लोकभवन सभागार में उनके हाथों बाबा साहब आंबेडकर सांस्कृतिक सेंटर का शिलान्यास कराकर दलित कार्ड खेल दिया है।

बहन मायावती के राजनीतिक पराभव के बाद माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में दलितों का कोई सर्वमान्य नेता नहीं है, जिसके पीछे दलित मतदाता का बहुसंख्य रूप से एकजुट हो। इसी तरह बाबू जगजीवन राम के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कोई दलित नेता नहीं है, जिसकी पकड़ पूरे देश के दलित समुदाय पर हो। जो लोग हैं भी उनकी राष्ट्रीय पहचान नहीं है और उनकी पकड़ भी छोटे छोटे पॉकेट्स में है।ऐसे में महामहिम राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की उनके गृहनगर के ट्रेन यात्रा और लखनऊ में आंबेडकर सांस्कृतिक केंद्र का उनके हाथों शिलान्यास करने के नाम पर यूपी में उतारकर दलित कार्ड खेल दिया गया है।अब तो विधानसभा चुनाव में ही पता चलेगा कि यह कार्ड कितना कारगर रहा। 

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)    

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