एक ऐसे समय जब विकार का बोलबाला है…विकार आस्था, धर्म और राष्ट्रवाद का चोला ओढ़ विचार पर तांडव कर रहा है। संविधान सम्मत न्याय, अधिकार, समता की आवाज़ देशद्रोह है। लोकतंत्र की आत्मा प्रतिरोध देशद्रोह है। जब समाज एक ‘फ्रोजन स्टेट’ में है। महामारी काल में देश श्मशान और कब्रिस्तान बना हुआ है। बेरोज़गारी, भूख और मौत हर तरफ़ से हर पल आपके पास मंडरा रही हो ऐसे विध्वंस काल में थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के सृजनकारों ने अपने नाटकों से विचार की ज्योति जला मानवीय विवेक को आलोकित किया है।
रंगभूमि पूर्णतया बंद होने के बावजूद थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के सृजनकारों ने ‘विध्वंस’ के सामने घुटने नहीं टेके अपितु अपनी कलात्मक साधना से विध्वंस का सामना किया। महामारी के व्यक्तिगत आक्रमण का मुकाबला किया और भय को अपने कलात्मक आलोक से परास्त किया। चारदीवारी में महीनों बंद रहते हुए अपने अभिनय,रंग अवधारणा, कलात्मक तरंगों को साधते हुए समाज के प्रति अपने रंगकर्म दायित्व को प्रखरता से निभाया। इस दौरान दो नए नाटक तैयार किये ‘लोक-शास्त्र सावित्री’ और ‘सम्राट अशोक’ को दर्शकों के सामने प्रस्तुत कर समता,मानवता और संविधान के परचम को बुलंद किया।
3 जनवरी,2021 को सावित्रीबाई फुले की जयंती पर मुम्बई के उपनगर बदलापुर में नाटक ‘लोक-शास्त्र सावित्री’ का प्रथम मंचन कर समता के यलगार का बिगुल बजा दिया। नववर्ष के उजाले में प्रथम मंचन को दर्शकों ने हाथों हाथ लिया और नाटक वायरल हो गया। दर्शक शोज की मांग करने लगे। कलाकार इस प्रस्तुति की ख़ुशी को जब तक जज़्ब कर पाते उससे पहले ही महामारी ने मुख्य कलाकार पर हमला बोल दिया। सारे कलाकार सकते में थे पर ‘चुनौती’ का डटकर मुकाबला करने को तैयार थे। कलाकारों ने एक सशक्त समूह का परिचय दिया।
मुख्य कलाकार को सकारात्मक तरंगों से सराबोर कर ‘महामारी’ से लड़ने की इच्छा शक्ति और हौसला दिया और स्वयं नाटक के अगले शो को प्रस्तुत किया। मुख्य कलाकार के स्वस्थ होते ही नाटक ‘लोक-शास्त्र सावित्री’ का मंचन पनवेल के फड़के सभागृह में हुआ। हाउसफुल का तख्ता बॉक्स ऑफिस पर लगा यह नाटक मराठी रंगभूमि का वैचारिक परचम बन गया। वैचारिक परचम लिए यह नाटक विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च,2021 को ठाणे के गठकरी रंगायतन में हुआ हाउसफुल का बोर्ड लिए….. पर सरकार ने फिर देश बंदी की घोषणा कर रंगगृहों पर ताला लगा दिया।
थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने निराशा को निरी + आशा में बदल दिया। चारदीवारी में कैद होने के बावजूद उन्होंने दीवारों को अपनी कलात्मक तरंगों से तरंगित कर धनंजय कुमार लिखित नाटक ‘सम्राट अशोक’ को साध लिया। शारीरिक संकट के समय अपने शरीर पर काम करते हुए अपने शरीर को सम्राट अशोक की भूमिका के योग्य बनाया और रंगगृह बंद होने के बावजूद सरकारी नियमों का पालन करते हुए पनवेल के निकट तारा गाँव के यूसुफ मेहरअली सेंटर में थिएटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन के सूत्रपात दिवस 12 अगस्त को सुबह 11 बजे 50 दर्शकों के समक्ष नाटक ‘सम्राट अशोक’ का प्रथम मंचन कर भारत के गाँव में संविधान संरक्षण का बिगुल फूंक दिया। थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने अपनी अद्भुत अभिनय और कलात्मक क्षमता को समय समय पर रिहर्सल और अन्य अनुभवों को सोशल मीडिया के ज़रिये समाज के साथ साझा किया। नाटक की रिहर्सल को लगातार सोशल मीडिया पर साझा करना थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों की एक अनूठी रंग पहल रही। नाटक की तैयारी के हर पहलू से सोशल मीडिया के दर्शक रूबरू हुए।
रंगभूमि पर वैचारिक नाटक नहीं चलते की भ्रमित अवधारणा को धराशायी करते हुए रंगगृह खुलते ही थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने अपने दोनों नाटकों को रंगभूमि पर उतार कर पुन: बॉक्स ऑफिस पर हाउस फुल का तख्ता लगा वैचारिक नाटकों का परचम रंगभूमि पर फ़हरा दिया।
रंगभूमि के वैचारिक नाटकों की धरोहर का परचम फ़हराने वाले कलाकार हैं अश्विनी नांदेडकर, सायली पावसकर,कोमल खामकर, सुरेखा साळुंखे, तुषार म्हस्के, स्वाती वाघ, संध्या बाविसकर,नृपाली जोशी, रूपवर्धिनी सस्ते, मोरेश्वर माने और मंजुल भारद्वाज !
वैचारिक नाटकों के हाउस फुल का राज़ है ‘दर्शक’ संवाद। जी हाँ भूमंडलीकरण के खरीदने – बेचने वाले झूठे विज्ञापनों के दौर में थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने ‘दर्शक’ संवाद कर दर्शकों को रंग नुमाइश और रंगकर्म के भेद को दर्शकों के समक्ष उजागर कर समाज की ‘फ्रोजन स्टेट’ को तोड़ने के लिए दर्शकों के सरोकारों को अपने नाटकों का आधार बनाया। दर्शकों के अपना रचनात्मक प्रतिसाद दिया और चुनौतीपूर्ण समय में ‘वस्तु या ग्राहक’ के रूप को त्याग देश का नागरिक होने की भूमिका को निभाया।इसका ताज़ा उदाहरण रहा नाशिक में 1 दिसम्बर को हुई नाटक ‘लोक-शास्त्र सावित्री’ की प्रस्तुति। सरकार आयोजित साहित्य सम्मेलन और विपक्ष आयोजित विद्रोही साहित्य सम्मेलन में बंटे नाशिक को नाटक ‘लोक-शास्त्र सावित्री’ ने एक सूत्र में बाँध दिया। कलाकारों की इस कलात्मक पहल को झमाझम बारिश के बावजूद नाशिक वासियों ने शो को हाउस फुल प्रतिसाद देकर वैचारिक नाटकों की कामयाबी का इतिहास रच दिया।
(मंजुल भारद्वाज थियेटर आफ रेलेवंस के निदेशक हैं।)
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