Friday, March 29, 2024

जन्मदिन पर विशेष: करिश्माई और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे कमलेश्वर

कमलेश्वर एक बहुआयामी प्रतिभा से संपन्न साहित्यकार थे। कमलेश्वर ने उपन्यास, कहानी, नाटक, संस्मरण, पटकथा विधाओं में लेखन किया। वे हिन्दी के बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कमलेश्वर का नाम नई कहानी आंदोलन से जुड़े अगुआ कथाकारों में आता है। उनकी पहली कहानी 1948 में प्रकाशित हो चुकी थी परंतु ‘राजा निरबंसिया’ (1957) से वे रातों-रात एक बड़े कथाकार बन गए। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं। उनकी कहानियों में ‘मांस का दरिया,’ ‘नीली झील’, ‘तलाश’, ‘बयान’, ‘नागमणि’, ‘अपना एकांत’, ‘आसक्ति’, ‘ज़िंदा मुर्दे’, ‘जॉर्ज पंचम की नाक’, ‘मुर्दों की दुनिया’, ‘क़सबे का आदमी’ एवं ‘स्मारक’ आदि उल्लेखनीय हैं। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी ज़िले में छह जनवरी, 1932 को जन्मे इस साहित्यकार ने हिंदी साहित्य में नई कहानी को नई दिशा दी। कमलेश्वर के कहानी-संग्रहों में ज़िंदा मुर्दे व वही बात, आगामी अतीत, डाक बंगला, काली आँधी। उनके चर्चित उपन्यासों में कितने पाकिस्तान,  डाक बँगला, समुद्र में खोया हुआ आदमी, एक और चंद्रकांता प्रमुख हैं। उन्होंने आत्मकथा, यात्रा-वृत्तांत और संस्मरण भी लिखे हैं।

कमलेश्वर की प्रमुख रचनाएँ हैं – राजा निरबंसिया, खोई हुई दिशाएँ, सोलह छतों वाला घर इत्यादि। नई कहानी की वृहदत्रयी में कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव और मोहन राकेश ये तीनों नई कहानी के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे।

उन्होंने दर्जन भर उपन्यास भी लिखे हैं। इनमें ‘एक सड़क सत्तावन गलियाँ’, ‘डाक बंगला’, ‘तीसरा आदमी’, ‘समुद्र में खोया आदमी’ और ‘काली आँधी’ प्रमुख हैं। ‘काली आँधी’ पर गुलज़ार द्वारा निर्मित’ आँधी’ नाम से बनी फ़िल्म ने अनेक पुरस्कार जीते। उनके अन्य उपन्यास हैं -‘लौटे हुए मुसाफ़िर’, ‘वही बात’, ‘आगामी अतीत’, ‘सुबह-दोपहर शाम’, ‘रेगिस्तान’, ‘एक और चंद्रकांता’ तथा ‘कितने पाकिस्तान’ हैं। ‘कितने पाकिस्तान’ ऐतिहासिक उथल-पुथल की विचारोत्तेजक महा गाथा है। उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया। हिन्दी में यह प्रथम उपन्यास है, जिसके अब तक पाँच वर्षों में, 2002 से 2008 तक ग्यारह संस्करण हो चुके हैं। पहला संस्करण छ: महीने के अंदर समाप्त हो गया था। दूसरा संस्करण पाँच महीने में, तीसरा संस्करण चार महीने में। इस तरह प्रति कुछ महीनों में इसके संस्करण होते रहे और समाप्त होते रहे।

कमलेश्वर ने नाटक भी लिखे। ‘अधूरी आवाज़’, ‘रेत पर लिखे नाम’ , ‘हिंदोस्ताँ हमारा’ के अतिरिक्त बाल नाटकों के चार संग्रह भी उन्होंने लिखे हैं।

वहीं विहान’ जैसी पत्रिका का 1954 में संपादन आरंभ कर कमलेश्वर ने कई पत्रिकाओं का सफल संपादन किया जिनमें ‘नई कहानियाँ'(1963-66), ‘सारिका’ (1967-78), ‘कथायात्रा’ (1978-79), ‘गंगा’ (1984-88) आदि प्रमुख हैं। इनके द्वारा संपादित अन्य पत्रिकाएँ हैं- ‘इंगित’ (1961-63) ‘श्रीवर्षा’ (1979-80)। हिंदी दैनिक ‘दैनिक जागरण'(1990-92) के भी वे संपादक रहे। ‘दैनिक भास्कर’ से 1997 से वे लगातार जुड़े रहे। इस बीच जैन टीवी के समाचार प्रभाग का कार्य भार संभाला। फ़िल्म और टेलीविजन के लिए लेखन के क्षेत्र में भी कमलेश्वर को काफ़ी सफलता मिली। कमलेश्वर भारतीय दूरदर्शन के पहले स्क्रिप्ट लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने टेलीविजन के लिए कई सफल धारावाहिक लिखे हैं जिनमें ‘चंद्रकांता’, ‘युग’, ‘बेताल पचीसी’, ‘आकाश गंगा’, ‘रेत पर लिखे नाम’ आदि प्रमुख हैं। भारतीय कथाओं पर आधारित पहला साहित्यिक सीरियल ‘दर्पण’ भी उन्होंने ही लिखा। दूरदर्शन पर साहित्यिक कार्यक्रम ‘पत्रिका’ की शुरुआत इन्हीं के द्वारा हुई तथा पहली टेलीफ़िल्म ‘पंद्रह अगस्त’ के निर्माण का श्रेय भी इन्हीं को जाता है।

सन 1980-82 तक कमलेश्वर दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक भी रहे। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन में कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। कमलेश्वर ने अनेक हिंदी फिल्मों की पट-कथाएँ भी लिखी हैं। उन्होंने सारा आकाश, अमानुष, आंधी, सौतन की बेटी, लैला, व मौसम जैसी फ़िल्मों की पट-कथा के अतिरिक्त ‘मि. नटवरलाल’, ‘द बर्निंग ट्रेन’, ‘राम बलराम’ जैसी फ़िल्मों सहित 99 हिंदी फ़िल्मों के लिए लेखन किया है।

कमलेश्वर को उनकी रचनाधर्मिता के फलस्वरूप पर्याप्त सम्मान एवं पुरस्कार मिले। 2005 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ अलंकरण से विभूषित किया गया। उनकी पुस्तक ‘कितने पाकिस्तान’ पर साहित्य अकादमी ने उन्हें पुरस्कृत किया। कमलेश्वर ने अपनी 75 साल के जीवन में 12 उपन्यास 17 कहानी संग्रह और करीब एक सौ फिल्मों की पटकथाएं लिखीं। 27 जनवरी 2007 को सूरजकुंड, फरीदाबाद में उनका निधन हो गया। उन्हें याद करते हुए हिंदी साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव ने कहा था, ” कमलेश्वर का जाना मेरे लिए हवा-पानी छिन जाने जैसा है। साहित्य जगत में कमलेश्वर जैसे बहुमुखी और करिश्माई व्यक्तित्व के लोग कम ही हुए हैं।” अदीबों की अदालत की बात करता उनका उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म ‘आंधी’ हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है।

(शैलेंद्र चौहान साहित्यकार हैं और आजकल जयपुर में रहते हैं।)

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