मध्य प्रदेश के मालवा इलाके में शुक्रवार को मालवा महिला कबीर यात्रा ‘धरती की बानी-हेलियों की ज़ुबानी’ की शुरुआत हुई। ये यात्रा लुनियाखेड़ी स्थित सद्गुरु कबीर स्मारक सेवा संस्थान से शुरू हुई। एकलव्य संस्था के 40 साल और होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम (होविशिका) के 50 साल पूरे होने के मौक़े पर ये आयोजन किया गया है।
संस्था ने साल भर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की शृंखला में पिछले साल नवंबर व दिसंबर में होविशिका व्याख्यान के साथ होशंगाबाद शिक्षा सरिता और विज्ञान प्रसारक अरविंद गुप्ता के व्याख्यान का आयोजन किया था।
महिला कबीर यात्रा में शामिल होने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग आए हैं। इनमें सामाजिक कार्यकर्ता, फ़िल्मकार, लेखक, नाटक कर्मी, कलाकार, कवि आदि शामिल हैं। यात्रा में पहले दिन शाम को सेवा संस्थान में महिला कबीर गायकों ने अपनी प्रस्तुतियां दीं। इससे पहले संस्थान के ही प्रांगण में सत्संग का आयोजन किया गया।
आयोजन की शुरुआत करते हुए जाने-माने कबीर गायक प्रह्लाद टिप्पाणिया ने कहा कि कबीर की बानी को अगर समाज सुने तो तमाम तरह के विभाजन, नफ़रत और द्वेष समाज में पनपने ना पाएंगे। कबीर की बानी को जन-जन तक ले जाने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि आज अगर कबीर का विचार हमारे बीच मौजूद हैं तो इसका सबसे बड़ा श्रेय जाता है इस अंचल के दलित समुदाय को जिसने कबीर के संदेश को फैलाया है।
इसके बाद आयोजित गायन कार्यक्रम में पूजा सरोलिया, अर्चना मालवीय, सिमरन निमड़िया, प्रिया निमड़िया, नीतू झारिया, स्नेहा गेहलोद, संजीवनी कांत, शीतल साठे, अनुभूति और विभोर बैंड की प्रस्तुतियां हुईं। गायकों ने कबीर के अलावा खुसरो जैसे संतों-कवियों की रचनाओं की प्रस्तुति की। दिल्ली के विभोर बैंड ने महिला सशक्तिकरण और महाराष्ट्र की शीतल साठे ने लोक व जन गीत पेश किए।
3 मार्च को यात्रा टोंकखुर्द पहुंची जहां सुबह ग्यारह बजे से सत्संग और शाम को गायन होगा। यात्रा 4 मार्च को सोनकच्छ होते हुए 5 मार्च को इंदौर में समाप्त होगी। समाज-देश-काल और उसकी विसंगतियों पर गहरी समीक्षाई दृष्टि डालने वाले कबीर का न सिर्फ़ साहित्य में बल्कि लोक में एक अलग मक़ाम है। उनके दोहों में भक्ति के अलावा जाति-धर्म के बनावटी विभाजनों पर तीखा व्यंग्य भी है।
मध्य प्रदेश के मालवा इलाके में कबीर की बानी वहां के लोक गायकों की जबान में न सिर्फ जिन्दा है बल्कि नई ऊर्जा से आगे की दिशा भी खोज रही है। वहां कबीर गायकों की मंडलियां गांव-कस्बों में घूम-घूम कर कबीर की बानी को लोगों तक पहुंचाती हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही इस परिपाटी में आमतौर पर पुरुष गायक ही मुख्य भूमिका में रहे हैं। महिला कलाकारों को जगह मुश्किल से मिलती है और वह भी हाशिए पर।
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से लेकर गायन सभाओं तक में ये महिला कलाकार तमाम संघर्षों से जूझते हुए अपनी कला की जगह बनाने की जद्दोजहद कर रही हैं। ऐसे में इस बात की ज़रूरत बार-बार महसूस की जाती रही है कि महिला गायकों को अपनी कला की प्रस्तुति का एक मुकम्मल मंच मिले। इसी को ध्यान में रखकर एकलव्य ने इस यात्रा का विचार रखा।
गौरतलब है कि मालवा इलाक़े में कबीर गायकों के साथ एकलव्य का जुड़ाव 1990 के दशक से ही रहा है। ‘कबीर भजन एवं विचार मंच’ (1991-1998), ‘कबीर इन स्कूल्स’ (2008-2009) और इसके बाद 2011 ‘मालवा में कबीर की वाचिक परम्पराओं के सुदृढ़ीकरण’ जैसे प्रयासों के ज़रिए एकलव्य ने कबीर गायन की लोक परम्परा में विस्तार और नवाचार की कोशिशें लगातार की हैं।
इसके बाद सृष्टि स्कूल ऑफ डिज़ाइन की कबीर परियोजना से जुड़कर एकलव्य ने कबीर गायन में महिला कलाकारों की भागीदारी को बढ़ाने के प्रयास किए। इसमें स्कूलों में कबीर के साहित्य के माध्यम से जाति व जेंडर पर आलोचनात्मक नज़रिए की बुनियाद रखने की कोशिशें भी शामिल रहीं। इसी क्रम में एक ज़रूरी नवाचार करते हुए पहली बार महिला कबीर गायकों की यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। यात्रा के दौरान रोज़ शाम को महिला कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देंगी।
(विज्ञप्ति पर आधारित)