Tuesday, March 19, 2024

‘कोरस’ की नाट्य प्रस्तुति: ‘नीच’ में दिखा समानता के लिए स्त्री का संघर्ष

पटना। कोरोना महामारी के दौर में जहां सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियां लगभग ठप हैं, वैसे में ‘कोरस’ ने सामाजिक उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के ख़िलाफ़ पटना के छज्जू बाग स्थित 13 नं. विधायक आवास के प्रांगण में कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए रज़िया सज़्जाद ज़हीर द्वारा लिखित नाटक ‘नीच’ की प्रस्तुति की। पटना यूनिवर्सिटी की दिवंगत प्रोफेसर और सुपरिचित राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता डेजी नारायण की स्मृति को समर्पित कार्यक्रम की शुरुआत उनकी याद में दो मिनट के मौन के साथ शुरू हुई ।

समता राय द्वारा निर्देशित नाटक ‘नीच’, समाज में व्याप्त विषमता जिसका सीधा असर स्त्री उत्पीड़न के विभिन्न रूपों में पड़ता है, उसके ख़िलाफ़ संवाद है। इसे संप्रेषित करने में शामली की भूमिका में अंकिता, सुल्ताना की भूमिका में कविता, जुम्मन के किरदार में अविनाश और रामअवतार के रूप में रवि के अलावा सूत्रधार के रूप में मात्सी, मासूम जावेद और सोनी ने प्रभावशाली अभिनय किया। संगीत रिया का था जबकि अवनी ने व्यवस्था संभाली ।

नाटक में दिखाया गया है कि शामली, जो एक विधुर मेजर के यहां कामकाज कर न सिर्फ़ अपना जीवन यापन करती है बल्कि मेजर के बच्चों की देखभाल भी करती है। वहीं उसकी भेंट पड़ोस में रहने वाली बेग़म सुल्ताना से होती है जो धीरे-धीरे प्रगाढ़ होती जाती है । इसी दौरान सुल्ताना को खानसामा जुम्मन बताता है कि शामली नीच जाति की है और अपने पति को छोड़कर रामअवतार के साथ घर बसाने के चक्कर में है। सुल्ताना हालांकि जुम्मन की बातों पर ध्यान नहीं देती है लेकिन उसके दिमाग में यह संदेह बैठ जाता है कि नीच जाति की शामली कुछ भी ऐसा कर सकती है जो सामाजिक रूप से अमान्य और अनुचित है।

वहीं जब रामअवतार शामली के सामने शादी का प्रस्ताव यह कहते हुए रखता है कि ब्याह के बाद शामली का खाना-खर्चा वह उठाएगा, लिहाजा शामली मेजर के यहां काम करना छोड़ दे। जिस पर शामली आपत्ति जताते हुए कहती है कि – ‘तू चौकीदारी क्यों नहीं छोड़ देता ?’ इधर सुल्ताना इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए मेजर के पास जाने की तैयारी कर रही होती है तो उसे पता चलता है कि शामली मोहल्ले को छोड़कर कहीं और जा रही है। इसी उधेड़बुन में अचानक शामली सुल्ताना से कहीं और टकरा जाती है तो सुल्ताना उससे ऐसा सब करने की वजह पूछती है तो जवाब में शामली दो टूक कहती है कि – ‘खिलाने को तो ऐसे दस लोगों को मैं अकेले खिला सकती हूं।’ स्त्री के स्वतंत्र वजूद की इसी स्थापना के साथ नाटक समाप्त होता है।

इस अवसर पर मुख्य रूप से पटना यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. भारती एस कुमार, प्रो. संतोष कुमार, प्रगतिशील लेखक संघ के सुमंत शरण, सामाजिक कार्यकर्ता गालिब खान, पर्यावरण कार्यकर्ता रणजीव के अलावा दिव्या गौतम, अफ़्शां ज़बीं, शोभा सिंह, दिव्यम, शाश्वत, नीरज आदि मौजूद थे। कार्यक्रम की शुरुआत ‘कोरस’ ने देवेंद्र आर्य लिखित गीत ‘बंद हैं तो और भी खोजेंगे हम’ से की।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन और मुम्बई

बीसवीं सदी में हमारे देश में प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन का आग़ाज़ हुआ। इस आंदोलन...

Related Articles

प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन और मुम्बई

बीसवीं सदी में हमारे देश में प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन का आग़ाज़ हुआ। इस आंदोलन...