गुजरात:भरवाड़ हत्या को सांप्रदायिक रूप देकर ग्रामीण इलाकों में बीजेपी करना चाहती है विस्तार

अहमदाबाद। धंधुका, अहमदाबाद जिले की एक तहसील है, जिसका एक हिस्सा सौराष्ट्र प्रांत में लगता है। ग्यारहवीं और बारहवीं सदी के मध्य में राजा धाना मेर ने धानापुर की स्थापना की थी। धंधुका की दूरी अहमदाबाद शहर से 105 किलोमीटर है जबकि भावनगर से 95 किलोमीटर है। कपास और गेहूं की खेती और लघु उद्योग के लिए मशहूर धंधुका एक हत्या के बाद चर्चा में बना हुआ है। लोकल मीडिया, प्रशासन और मंत्री मिलकर सांप्रदायिक वातावरण बना रहे हैं जिस कारण अहमदाबाद से सौराष्ट्र तक तनाव बना हुआ है।

किशन शिवभाई भरवाड़ हत्याकांड

6 जनवरी, 2022 को दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़ा 27 वर्षीय किशन शिव भाई सोशल मीडिया पर इस्लाम विरोधी और मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आस्था आहत करने वाली पोस्ट डालता है। जिससे धंधुका कस्बे में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच तनाव पैदा हो जाता है। इस पोस्ट के चलते भरवाड़ के खिलाफ लोकल पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज होता है और पुलिस उसे 9 जनवरी को गिरफ्तार कर लेती है। उसी दिन उसे ज़मानत भी मिल जाती है। किशन भरवाड़ अपनी पोस्ट के लिए समुदाय विशेष से माफी भी मांग लेता है। पुलिस की मध्यस्थता के बाद समाधान भी हो जाता है। और किशन अपनी पोस्ट को डिलीट कर देता है। भरवाड़ समाज पशु पालन करने वाला समाज है जो गुजरात में पिछड़े वर्ग में आता है। सोने और चांदी पहनने का शौक रखने वाला किशन सूद पर पैसे घुमाने का भी काम करता है। किशन चुड़ा तहसील के चचाड़ गांव का रहने वाला था। इस बीच, 25 जनवरी को धंधुका कस्बे में दो अनजान व्यक्ति किशन की हत्या कर देते हैं।

हत्या के बाद हिन्दू संगठनों द्वारा धंधुका बंद का ऐलान

27 जनवरी को विश्व हिंदू परिषद, अंतरराष्ट्रीय विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल द्वारा हत्या के विरोध में बंद का ऐलान किया जाता है। इन संगठनों द्वारा यह दावा किया जाता है कि हत्या के पीछे मुस्लिम हैं और भरवाड़ की हत्या आपत्तिजनक पोस्ट के चलते की गई है। पुलिस के द्वारा हत्या के पीछे पहले किसी उत्तर प्रदेश के व्यक्ति के होने की बात कही जाती है। लेकिन हत्या के अगले ही दिन धंधुका पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर सीबी चौहान का तबादला कर सानंद पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर आरजी खांट को उनके स्थान पर लाया जाता है।

सभी मुस्लिम पुलिस कर्मचारियों का तबादला

26 जनवरी को ही चार मुस्लिम कांस्टेबलों को धंधुका पुलिस स्टेशन से हटा दिया जाता है। धंधुका पुलिस स्टेशन में कार्यरत सभी मुस्लिम पुलिस कर्मचारियों को धंधुका पुलिस स्टेशन से अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में तबादला कर दिया जाता है।

1- मुश्ताक मोहम्मद पठान को नल सरोवर पुलिस स्टेशन

2- नवरेजा उमर भाई को मांडल पुलिस स्टेशन

3- जुल्फिया बेन रफीक भाई को विठलापुर पुलिस स्टेशन और

4- खुशबू गफूर भाई को हांसलपुर पुलिस स्टेशन ट्रांसफर कर दिया जाता है।

केवल मुस्लिमों के ट्रांसफर पर अहमदाबाद एसपी वीरेंद्र यादव ने जनचौक को बताया कि “यह एक प्रशासनिक निर्णय है।” यादव ने आगे बताया कि धंधुका से पकड़े गए दोनों आरोपियों का कोई भी आपराधिक इतिहास नहीं है। यह पहला अपराध है। जांच एटीएस कर रही है। इसलिए और अधिक जानकारी एटीएस के ही अधिकारी देंगे। और गृह मंत्री हर्ष संघवी से भी बात करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया।।

सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार।

हत्याकांड में गिरफ्तारियां

28 जनवरी को पुलिस हत्या के आरोप में शब्बीर चोपड़ा उर्फ साबा दादा (उम्र 25, मलवत वाड़ा, धंधुका) और इम्तियाज़ पठान उर्फ इमतू (उम्र 27, कोठीफड़ी, धंधुका) के अलावा अहमदाबाद के जमालपुर की एक मस्जिद के इमाम मौलाना मुहम्मद अयूब जावर वाला को गिरफ्तार कर लिया गया था।

गृह राज्य मंत्री के दौरे से बढ़ा तनाव

राज्य के गृह राज्यमंत्री हर्ष संघवी ने 28 फ़रवरी को बगोदरा में पुलिस अधिकारियों के साथ एक बैठक की। इस मीटिंग के बाद पुलिस की उस थियरी को विराम लग जाता है जिसमें कहा जाता है कि हत्याकांड के पीछे उत्तर प्रदेश के किसी अपराधी का हाथ है। मीटिंग के बाद हर्ष संघवी चाचाड़ गांव जाकर किशन भरवाड़ के परिवार से मिलते हैं और उन्हें सांत्वना देते हैं। यहां गृह राज्यमंत्री द्वारा जानकारी दी जाती है कि अहमदाबाद के एक मौलवी सहित तीन आरोपियों को अहमदाबाद पुलिस द्वारा पकड़ा गया है।

सोशळ मीडिया पर दुष्प्रचार की एक और तस्वीर।

संघवी ने कहा कि “सरकार द्वारा इस केस का निरीक्षण किया जा रहा है। किशन को न्याय दिलाने के लिए पुलिस सक्रिय है। मृतक की 20 दिवसीय बेटी को न्याय दिया जाएगा। इस घटना के साथ जुड़े किसी को भी नहीं छोड़ा जाएगा।” इस दौरे में हर्ष संघवी के साथ कैबिनेट मंत्री किरीट सिंह राणा, राज्य सभा सदस्य शंभू प्रसाद टूंडिया, जगदीश मकवाना, भारत पंड्या सहित बीजेपी के कई नेता उपस्थित थे।

दलित हत्या पर कोई भी बीजेपी नेता दलित के घर क्यों नहीं गया

25 जनवरी को अहमदाबाद के रामोल में बीआरटीएस में नौकरी करने वाले जतिन परमार सहित तीन अन्य कर्मचारियों पर कुछ लोग चाकुओं से हमला कर देते हैं। हमले में घायल जतिन परमार की 29 जनवरी को अस्पताल में मृत्यु हो जाती है। परमार के घर न तो गृह राज्य मंत्री न ही बीजेपी का कोई नेता जाता है।

संभवतः अन्य कारण से भी हुई हो हत्या

किशन भरवाड़ ने 6 जनवरी को जो आपत्तिजनक पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली थी। उस पोस्ट के लिए भरवाड़ ने माफी मांग ली थी। और धंधुका के मुस्लिमों से समाधान भी हुआ था। संभवतः किशन भरवाड़ की हत्या किसी और कारण से की गई हो। भरवाड़ ब्याज पर पैसे देता था इस प्रकार का काम कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता। गैर कानूनी तरीके से दिया गया लोन का पैसा वसूलना आसान काम नहीं है। इस बात से उसके रिश्तेदार भी इंकार नहीं करते। किशन के ससुर जयसंग भाई भरवाड़ भी समझौते की पुष्टि करते हुए कहते हैं कि ” पोस्ट के बाद मैंने किशन को कुछ समय के लिए बड़ौदा आ जाने के लिए कहा था। लेकिन उसने बताया इस मामले में समझौता हो चुका है। चिंता की कोई बात नहीं है”। जयसंग भाई बड़ौदा में रहते हैं। लेकिन जब तक हिन्दू-मुस्लिम एंगल से हत्या को नहीं देखा जाएगा। तब तक भाजपा जो ग्रामीण क्षेत्रों में कमज़ोर है। राजनैतिक लाभ नहीं उठा पाएगी।

गिरफ्तार किए गए युवक।

धंधुका प्रकरण को सांप्रदायिक रंग देना बीजेपी की मजबूरी है

धंधुका से सौराष्ट्र प्रांत का बॉर्डर शुरू होता है। सौराष्ट्र में कुल 48 विधानसभा हैं। 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी से ज़बर्दस्त बढ़त ली थी। 48 सीटों में से 28 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं। धंधुका विधान सभा से कांग्रेस के टिकट पर राजेश गोहिल विधायक बने थे। धंधुका से लगी हुई विधानसभा धोलका छोड़ अन्य सीटें कांग्रेस के खाते में आई थीं। धोलका से शिक्षा मंत्री रहे भूपेंद्र चूडासमा मात्र 327 वोटों से जीते थे। 2017 वीरमगाम से कांग्रेस के लाखा भरवाड़, धांगेद्रा से उनके भाई और कांग्रेस के प्रत्याशी पुरषोत्तम विधायक बने थे। ग्रामीण क्षेत्रों में धार्मिक ध्रुवीकरण होने से बीजेपी को फायदा मिल सकता है। और वह 2022 के चुनावों में इसको भुना सकती है। इस लिहाज से किशन भरवाड़ हत्याकांड उसके लिए एक अच्छा मुद्दा साबित हो सकता है।

मीडिया और प्रशासन की मिलीभगत से मुस्लिम संगठनों को बदनाम करने का षड्यंत्र

आतंकवाद के मामलों को दस साल पहले अहले हदीस और शाफई फिर्के से जोड़कर देखा जाता था। उसके बाद देवबंदी विचारधारा को आतंकवाद से जोड़ा जाने लगा। सुन्नी और बरेली विचारधारा को लिबरल माना जाता था। किशन भरवाड़ हत्याकांड के बाद एजेंसियां दावते इस्लामी जैसे सुन्नी संगठन को आतंकवाद से जोड़ पाकिस्तानी एंगल निकालने का प्रयास कर रही हैं। इस एंगल को ऊंझा स्थित मीरा दातार दरगाह के गादीपति खालिद नकवी अल हुसैनी के लगाए गए आरोपों से बल मिल रहा है।

हुसैनी ने दावते इस्लामी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि दावते इस्लामी गुजरात से जकात और सदके के नाम पर चंदा इकट्ठा कर मुंबई से दुबई होते हुए उसे पाकिस्तान पहुंचाता है। जनचौक ने जब हुसैनी से पूछा कि इतने गंभीर आरोप का आधार क्या है? तो हुसैनी का कहना था कि “मेरे पास जो भी सबूत हैं वह मैं केवल पुलिस को दूंगा”। हुसैनी से जब पूछा गया कि कहीं आप किसी एजेंसी या सरकार के एजेंट के तौर पर तो काम नहीं कर रहे हैं। तो हुसैनी का कहना है था कि “मेरे पीछे न तो एजेंसी है न ही सरकार।”

मौलाना अयूब जावरा वाला।

लोकल गुजराती मीडिया ने दावत ए इस्लामी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दावत ए इस्लामी के डोनेशन बॉक्स पर सवाल उठाते हुए एक तरफा खबरें चला रहा है। दावते इस्लामी संगठन को किशन भरवाड़ हत्याकांड से भी जोड़ा जा रहा है। जबकि दुकानों पर डोनेशन बॉक्स रखने का चलन हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्म के संगठनों में है। इसी प्रकार से प्रिंट मीडिया भी दो समुदायों में तनाव पैदा करने वाली खबरें चला रहा है। पुलिस ने कई जगहों पर तनाव रोकने में सराहनीय काम किया है। लेकिन गुजराती मीडिया की भूमिका बिल्कुल उलटी है।

धंधुका बंद के बाद राज्य के छोटे कस्बों को हिन्दू संगठनों द्वारा एक के बाद एक कस्बे में बंद का कॉल दिया जा रहा है। धंधुका के बाद धांगेद्रा, राणपुर, छोटा उदयपुर में हिन्दू संगठनों द्वारा बंद का काल दिया गया। राजकोट में कलेक्टर को आवेदन देने के बाद भीड़ गैलेक्सी से दुकानें बंद कराते हुए भीड़ सदर बाज़ार की ओर बढ़ रही थी। लेकिन पुलिस स्टाफ की सूझ-बूझ से हिंसा होने से बच गई।

किशन हत्याकांड में अब तक पांच गिरफ्तारी हो चुकी है। सभी पर गुजरात कंट्रोल ऑफ टेररिज़्म एंड ऑर्गनाइज्ड क्राइम और UAPA की धाराएं भी लगाई गई हैं। ये धाराएं ATS को जांच देने के बाद बढ़ाई गई हैं। मौलाना कमर गनी को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया है। अन्य गुजरात के हैं। मौलाना गनी को त्रिपुरा दंगे के मामले में भी पुलिस ने UAPA के तहत गिरफ्तार किया था।

उस समय मौलाना गनी के वकील रहे महमूद प्राचा ने जनचौक को बताया कि मौलाना को त्रिपुरा मामले में फंसाया गया था। इसीलिए कोर्ट ने 17 दिनों में ही ज़मानत दे दी थी। वरना UAPA में इतनी जल्दी ज़मानत नहीं मिलती है। हम लोग ऐसे लोगों का ही केस लेते हैं जिन्हें फंसाया जाता है। हमें लगता है कि आरोपी को फंसाया नहीं गया है तो हम बीच में ही केस छोड़ देते हैं। अभी मौलाना का केस अहमदाबाद के लोकल वकील केस देख रहे हैं। अभी मौलाना का राजनैतिक खेल और मीडिया ट्रॉयल हो रहा है। ज़रूरत पड़ने पर आगे केस की सच्चाई बाहर लाने के लिए काम करूंगा।”

(अहमदाबाद से जनचौक संवाददाता कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट।)

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