अमेरिकी प्रभुत्व का मुकम्मल विरोध और सशक्त जन आंदोलन मौके की जरूरत

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21वीं सदी के मौजूदा दौर में वैश्वीकरण का जो स्वरूप दुनिया के सामने है, वह पूरी तरह से अमेरिकी प्रभुत्व और पूंजीवादी शक्तियों के इर्द-गिर्द घूमता है। यह वैश्वीकरण, जिसे “कॉरपोरेट ग्लोबलाइजेशन” कहा जाता है, न केवल आर्थिक असमानता को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय स्थिरता, और मानवाधिकारों की अनदेखी भी कर रहा है।

समीर अमीन और जेम्स पेट्रास जैसे विचारकों ने लंबे समय से इस पूंजीवादी वैश्वीकरण के खिलाफ आवाज उठाई है और एक वैकल्पिक वैश्वीकरण की मांग की है। इस लेख में हम इस विचारधारा की गहराई में उतरते हुए वैश्वीकरण के वर्तमान स्वरूप का विरोध और एक सशक्त जन आंदोलन की आवश्यकता पर विचार करेंगे।

अमेरिकी प्रभुत्व और पूंजीवादी वैश्वीकरण

अमेरिकी प्रभुत्व वाला वैश्वीकरण मुख्य रूप से नवउदारवादी नीतियों पर आधारित है, जिनका उद्देश्य दुनिया के बाजारों को खोलना, व्यापार उदारीकरण को बढ़ावा देना, और बहुराष्ट्रीय निगमों को अधिकाधिक शक्ति प्रदान करना है।

इन नीतियों का परिणाम यह हुआ है कि आर्थिक लाभ का अधिकांश हिस्सा धनी देशों और उनके बड़े निगमों के पास केंद्रित हो गया है, जबकि गरीब और विकासशील देशों के संसाधनों का शोषण जारी है। 

समीर अमीन ने अपनी लेखनी में बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि अमेरिकी प्रभुत्व के तहत वैश्वीकरण से दक्षिणी देशों का विकास अवरुद्ध हो रहा है। उनके अनुसार, यह वैश्वीकरण पश्चिमी देशों और विशेषकर अमेरिका के आर्थिक लाभों को सुनिश्चित करने का एक उपकरण बन चुका है, जिसके माध्यम से वह बाकी दुनिया को अपने आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व के तहत लाने का प्रयास कर रहा है।

समीर अमीन और “डिसकनेक्शन थ्योरी”

समीर अमीन ने अपने “डिसकनेक्शन थ्योरी” में सुझाव दिया कि विकासशील देशों को अमेरिकी प्रभुत्व वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था से खुद को आंशिक रूप से अलग कर लेना चाहिए।

उनका मानना था कि जब तक गरीब देश अमेरिकी नवउदारवादी वैश्वीकरण से खुद को अलग नहीं करेंगे, तब तक वे अपनी आर्थिक नीतियों को स्वतंत्र रूप से संचालित नहीं कर पाएंगे और न ही अपनी जनता के हित में काम कर पाएंगे।

अमीन की सोच का मूल यह था कि वैश्वीकरण को किसी एक ध्रुवीय सत्ता के तहत नहीं चलाया जाना चाहिए, बल्कि इसे बहुध्रुवीय, सामाजिक रूप से न्यायसंगत और पर्यावरणीय रूप से स्थायी बनाना चाहिए।

यह विचार आज के दौर में और भी प्रासंगिक हो गया है, जब अमेरिकी प्रभुत्व में चलने वाला वैश्वीकरण पर्यावरण विनाश, श्रम शोषण और समाजिक असमानता को बढ़ा रहा है।

जेम्स पेट्रास और पूंजीवाद के खिलाफ जन संघर्ष

जेम्स पेट्रास, एक और महत्वपूर्ण आलोचक, ने अमेरिकी साम्राज्यवाद और वैश्विक पूंजीवाद के खिलाफ हमेशा संघर्ष का आह्वान किया है। पेट्रास का मानना है कि वैश्वीकरण की वर्तमान स्थिति केवल बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अमेरिकी साम्राज्यवादी नीतियों को मजबूत कर रही है, जबकि आम जनता और श्रमिक वर्ग के हितों को कुचल रही है।

उन्होंने वैश्वीकरण की आलोचना करते हुए कहा है कि यह न केवल आर्थिक असमानता को जन्म दे रहा है, बल्कि इसे राजनीतिक दबाव के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

पेट्रास ने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया भर की जनता को जागरूक होकर अपने देशों की पूंजीवादी सरकारों और अमेरिकी प्रभुत्व के खिलाफ खड़ा होना होगा। उनके अनुसार, एक सशक्त जन आंदोलन ही वह मार्ग हो सकता है, जिससे आम लोग अपने संसाधनों और अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।

उन्होंने वैश्वीकरण को अमेरिकी साम्राज्यवाद के उपकरण के रूप में देखा, जिसका उद्देश्य पूरी दुनिया के आर्थिक और राजनीतिक ढांचे पर नियंत्रण करना है।

अल्टरनेटिव ग्लोबलाइजेशन की मांग

वैश्वीकरण के मौजूदा मॉडल का विरोध करने का यह सही समय है, क्योंकि आज की दुनिया में आर्थिक असमानता और पर्यावरणीय संकट ने गंभीर रूप धारण कर लिया है।

अमीन और पेट्रास जैसे विचारकों की सोच से प्रेरणा लेते हुए, हमें एक वैकल्पिक वैश्वीकरण की मांग करनी होगी जो कि निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित हो-

1. सामाजिक न्याय: हर व्यक्ति को समान अवसर और संसाधनों तक पहुंच होनी चाहिए। एक ऐसा वैश्वीकरण जिसकी जड़ें श्रम और सामाजिक सुरक्षा में हो, न कि सिर्फ कॉर्पोरेट लाभ में।

2. पर्यावरणीय स्थिरता: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आर्थिक गतिविधियां पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं। सतत विकास की अवधारणा को वैश्वीकरण का आधार बनाया जाना चाहिए।

3. बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था: वैश्वीकरण को किसी एक देश या सत्ता के प्रभुत्व में नहीं होना चाहिए, बल्कि यह विभिन्न देशों और संस्कृतियों के सहयोग पर आधारित होना चाहिए। किसी भी एक देश का प्रभुत्व अन्य देशों की संप्रभुता के खिलाफ होता है।

4. स्थानीय अर्थव्यवस्था का सशक्तिकरण: छोटे और स्थानीय उद्यमों का समर्थन किया जाना चाहिए ताकि वैश्वीकरण का लाभ सभी तक पहुंचे, न कि केवल बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक। 

5. राजनीतिक जागरूकता: आम जनता को अपनी राजनीतिक चेतना को मजबूत करना होगा और पूंजीवादी सरकारों से दूरी बनानी होगी जो कि अमेरिकी प्रभुत्व और कॉरपोरेट वैश्वीकरण को बढ़ावा देती हैं।

जन आंदोलनों की भूमिका

आज के समय में, जब अमेरिकी वर्चस्व वाला वैश्वीकरण अपने चरम पर है, दुनिया भर के जन आंदोलनों को एकजुट होकर इसका विरोध करना होगा। पेट्रास और अमीन दोनों ही मानते थे कि बदलाव तभी संभव है, जब आम जनता एक सशक्त आंदोलन के जरिये अपनी आवाज बुलंद करे।

यह आंदोलन केवल आर्थिक मुद्दों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक न्याय की भी मांग करनी चाहिए।

निष्कर्ष

समीर अमीन और जेम्स पेट्रास के विचारों के आलोक में, अब समय आ गया है कि दुनिया भर की जनता अमेरिकी प्रभुत्व वाले वैश्वीकरण का विरोध करे और एक न्यायसंगत, सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से स्थायी वैकल्पिक वैश्वीकरण की मांग करे।

हमें पूंजीवादी सरकारों के शव से अपना कंधा खींचकर एक नए प्रकार के वैश्वीकरण की ओर बढ़ना होगा, जो सभी के लिए समान अवसर और सम्मान की गारंटी देता हो।

(एक्टिविस्ट और लेखक ठाकुर प्रसाद का लेख।)

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