फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799) इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तनों में से एक थी, जिसने शासन की संरचना को बदल दिया और आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों की नींव रखी। इसी क्रांति के प्रमुख नेताओं में से एक थे- मैक्सिमिलियन रोब्सपिएर थे, जो “रेन ऑफ टेरर” यानी “आतंक का शासन” के लिए कुख्यात हो गए। उनके नेतृत्व में वही जैकबिन क्लब एक उग्रपंथी समूह बन गया, जिसने कभी स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित गणराज्य स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन अंततः हिंसा और तानाशाही में बदल गया।
आज भी रोबसपिएर और जैकबिन जहां क्रांति की शक्ति, जन आंदोलनों और राजनीतिक अतिवाद के खतरों के प्रतीक बने हुए हैं। उनके विचार लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और क्रांति की प्रेरणा देते हैं, जबकि उनका पतन यह दिखाता है कि बिना नियंत्रण वाली शक्ति कैसे घातक हो सकती है। हालांकि, उनकी क्रूर नीतियां- जनसंहार, राजनीतिक हत्याएं और निरंकुश शासन-आधुनिक लोकतांत्रिक दुनिया में पूरी तरह निरर्थक लगती हैं।
मगर, आधुनिक दुनिया में रोबसपिएर और जैकबिन की प्रासंगिकता कई अहम कारणों से बनी हुई है।
फ्रांसीसी क्रांति ने आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की नींव रखी, और रोबसपिएर ने जनसत्ता (Popular Sovereignty) को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सर्वसाधारण मताधिकार, सरकार की जवाबदेही और राजशाही के विरोध के उनके विचार आज भी लोकतंत्र की मूलभूत नींव हैं।
आज, कई देशों में राजनीतिक कार्यकर्ता और क्रांतिकारी जैकबिनों के संघर्ष से प्रेरणा लेते हैं। अरब स्प्रिंग, ईरान और म्यांमार के विरोध प्रदर्शन जैसी घटनाएं दिखाती हैं कि कैसे लोग तानाशाही के खिलाफ लड़ाई में ऐतिहासिक क्रांतियों से प्रेरणा लेते हैं।
रोबसपिएर का प्रतिरोध का जज्बा आज भी उन समाजों में गूंजता है, जो लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
रोबसपिएर ने आर्थिक न्याय की वकालत की और कीमतों पर नियंत्रण, कल्याणकारी नीतियों और भूमि पुनर्वितरण की पैरवी की। आज की दुनिया में समाजवाद, धन पुनर्वितरण और आर्थिक समानता के लिए चल रहे आंदोलनों में उनके विचार झलकते हैं।
उदाहरण के लिए, अमेरिका में बर्नी सैंडर्स की प्रगतिशील नीतियां जैकबिन विचारों के समान आर्थिक असमानता के मुद्दों पर जोर देती हैं।
स्कैंडेनेविया और चीन की सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा और राज्य-नियंत्रित आर्थिक नीतियां रोबसपिएर के इस विश्वास को दर्शाती हैं कि सरकार को नागरिकों के कल्याण की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, जैसे कि भारत में जन लोकपाल आंदोलन, जैकबिनों की तरह पुरानी व्यवस्थाओं के खिलाफ संघर्ष करते हैं।
रोबसपिएर के राष्ट्रवाद की झलक आज के कई लोकलुभावन (populist) नेताओं की नीतियों में देखी जा सकती है।
डोनाल्ड ट्रंप, नरेंद्र मोदी, जायर बोल्सोनारो और व्लादिमीर पुतिन जैसे नेता राष्ट्रवाद को हथियार बनाकर जनता को एकजुट करने की कोशिश करते हैं।
जैकबिनों की तरह, आज भी कई सत्तावादी सरकारें “राज्य के दुश्मन” कहकर अपने विरोधियों को निशाना बनाती हैं।
जन क्रांति बनाम अभिजात वर्ग (Elites vs. People) की अवधारणा आज वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों लोकलुभावन आंदोलनों में देखी जाती है।
दूसरी तरफ़ राजनीतिक शुद्धिकरण (Political Purges) के दाग और धब्बे भी इतिहास के तथ्यों में नज़र आते हैं।रोबसपिएर के शासनकाल में “रेन ऑफ टेरर” (1793-1794) के दौरान हजारों लोगों को देशद्रोही बताकर मौत के घाट उतार दिया गया था।
उत्तर कोरिया में राजनीतिक विरोधियों का सफाया रोबसपिएर की नीतियों से मिलता-जुलता है। स्टालिन के सोवियत संघ में भी यही हुआ, जहां क्रांतिकारी आदर्श तानाशाही में बदल गए।
चीन की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान माओ ज़ेडॉन्ग ने भी इसी तरह बड़े पैमाने पर राजनीतिक हत्याएं कराईं। यह दिखाता है कि जब कोई नेता आदर्शवाद की अतिशयता में चला जाता है, तो क्रांति तानाशाही में बदल सकती है।
आधुनिक दुनिया में रोबसपिएर और जैकबिनों की भूमिका के स्याह पक्ष की यह निरर्थकता किसी तर्क का मोहताज नहीं।
“आतंक के ज़रिए स्वतंत्रता” का विरोधाभास कथित आदर्शवादी राजनीति का अजीब सच है। रोबसपिएर स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की बात करते थे, लेकिन उनकी नीतियां इन आदर्शों के विपरीत थीं। हजारों लोगों की हत्या कर वे लोकतंत्र की जगह तानाशाही स्थापित कर बैठे।
आधुनिक लोकतंत्र मानवाधिकारों और कानून के शासन को महत्व देता है, जहां न्याय प्रणाली निष्पक्ष होनी चाहिए, न कि हिंसक। आज के समय में, गिलोटिन और जनसंहार की कल्पना भी असंभव है।
संयुक्त राष्ट्र अगर रोबसपिएर जैसी नीतियां अपनाए, तो यह पूरी तरह अस्वीकार्य होगा। रोबसपिएर की कट्टर विचारधारा ने उनके पतन को सुनिश्चित किया। वे क्रांति को पूर्ण शुद्धता के साथ चलाना चाहते थे, जिससे उनके सहयोगी ही उनके खिलाफ हो गए।
आज, वाम और दक्षिणपंथी उग्रवादी गुट अक्सर आपसी मतभेदों के कारण बिखर जाते हैं। “कैंसिल कल्चर” और वैचारिक कठोरता भी इसी प्रवृत्ति को दर्शाती है, जहां असहमति को बर्दाश्त नहीं किया जाता।
दरअसल रोबसपिएर नैतिक रूप से शुद्ध गणराज्य बनाना चाहते थे, जहां जनता नैतिकता के कठोर नियमों का पालन करे। आधुनिक लोकतंत्र में वैचारिक विविधता और बहस को प्राथमिकता दी जाती है, न कि किसी एक विचारधारा को जबरन थोपने को।
धार्मिक कट्टरपंथी और तानाशाही सरकारें नैतिकता लागू करने की कोशिश करती हैं, लेकिन अंततः असफल हो जाती हैं।
जैकबिनों का शासन जन आंदोलनों, प्रचार और आतंक पर आधारित था, जो आज अप्रासंगिक हो गया है। आधुनिक निगरानी तंत्र (AI और डेटा एनालिटिक्स) जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए हिंसा की जगह ले चुका है।
ब्लैक लाइव्स मैटर, एक्सटिंशन रिबेलियन और हांगकांग आंदोलन जैसे डिजिटल अभियान अब क्रांति के नये तरीके बन गए हैं।
अन्ततः
रोबसपिएर और जैकबिन क्लब- दोनों ही इतिहास के विरोधाभासी पात्र हैं—वे थे तो लोकतंत्र के समर्थक, लेकिन तानाशाही में बदल गए। उनकी प्रासंगिकता राजनीतिक सक्रियता, सामाजिक न्याय और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई में दिखती है, जबकि उनकी निरर्थकता राजनीतिक हत्याओं, विचारधारा के अतिरेक और आतंक के शासन में दिखाई देती है।
उनकी कहानी एक चेतावनी है: जब क्रांति अतिरेकी बन जाती है, तो वह उसी स्वतंत्रता को नष्ट कर देती है, जिसके लिए वह शुरू की गई थी। अपने यहां समय समय पर होने वाले आंदोलनों पर भी रोबसपिएर और जैकबिन क्लब की ऐतिहासिक भूमिका के चश्मों से निगरानी रखी जानी चाहिए, ताकि हम कम से कम नुक़सान के साथ राष्ट्र और दुनिया को बचाए रख सकें।
(उपेंद्र चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)