Sunday, June 11, 2023

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जयंती पर विशेष: पूंजीवाद के जयघोष के दौर में कार्ल मार्क्स की याद         

पूंजीवाद की जय और साम्यवाद की पराजय के उद्घोष के इस दौर में वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजविज्ञानी और पत्रकार कार्ल मार्क्स {1818 में जिनका जर्मनी में आज के ही दिन जन्म हुआ} की यादें एक बडी...

चीन की ‘सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति’: ‘क्रांति भीतर क्रांति’

मई 1966 को शुरू हुई चीन की ‘महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति’ को 57 वर्ष पूरे हो रहे हैं। लेकिन अभी भी इतिहास के पन्नों में इसे वह जगह हासिल नहीं है जिसकी यह हकदार है। सच तो यह है...

 ‘हिमालय दलित है’ कविता के परंपरागत प्रतिमानों को ध्वस्त करता संग्रह

‘हिमालय दलित है’ मोहन मुक्त का पहला कविता संग्रह है। संग्रह की कविताएं धधकते लावे की तरह हैं। यहां तक कि कवि की प्रेम कविताओं से भी एक आंच निकलती है। ऐसे लगता है कि कवि किसी ज्वालामुखी के...

धर्म की अफीम चटाकर, ओबीसी लोकतांत्रिक क्रांति को आरएसएस ने कैसे रोका

डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व में दलित लोकतांत्रिक क्रांति के बाद यदि भारत में ब्राह्मणवाद की कब्र खोदने वाली कोई लोकतांत्रिक क्रांति हो सकती थी, तो वह थी- ओबीसी क्रांति (शूद्र क्रांति)। यदि दलित लोकतांत्रिक क्रांति के बाद ओबीसी लोकतांत्रिक...

स्पार्टकस जिसे छुपाने की यूरोप ने हरसंभव कोशिश की

हावर्ड फास्ट के कालजयी उपन्यास स्पार्टकस का हिंदी अनुवाद अमृत राय ने आदिविद्रोही शीर्षक से किया है। मैं इसे अनुवाद का मानक मानता हूं। अच्छा अनुवाद वह है जो मौलिक सा ही मौलिक लगे। यह दास प्रथा पर आधारित...

अक्टूबर क्रांति ने मोड़ दी थी दुनिया के इतिहास की धारा

अलेक्जेंडर रोबिनविच रूसी क्रांति और गृह युद्ध के जाने-माने इतिहासकार रहे हैं। उनके और रेक्स ए. वेड जैसे विशेषज्ञों की बातों से यह पता चलता है कि रूसी क्रांति को लेकर जो बहुत सी बातें मीडिया में चल रही...

गोवर्धन पूजा: निरंकुश सत्ता-व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह का पर्व

गोवर्धन पूजा यानी उत्तर भारत में पशुपालकों का बड़ा पर्व। यह पर्व भारतीय संस्कृति में स्थापित मान्यताओं के प्रति उस पहले विद्रोह का प्रतीक भी है, जो द्वापर युग में देवराज इंद्र की निरंकुश सत्ता-व्यवस्था के खिलाफ कृष्ण के...

1857 की क्रांति, उर्दू पत्रकारिता और भारतीय पत्रकारिता का पहला शहीद

सबसे पहले तो इस किताब के शीर्षक में ‘क्रांति’ शब्द पर ध्यान जाता है। अपने देश में सन् 1857 के ब्रिटिश हुकूमत-विरोधी जन-विद्रोह को तरह-तरह की संज्ञाओं और विशेषणों से नवाजा जाता है। तब भारत में ब्रिटिश कंपनी-ईस्ट इंडिया...

…हां भगत सिंह ये तुमसे सीखने का वक्त ही तो है

पाखण्ड का हमारे जीवन में कोई स्थान नहीं है। हमने अपने देश की परिस्थिति और इतिहास का गहरा अध्ययन किया है। यहां की जन आंकाक्षाओं को हम खूब समझते हैं।’ -भगतसिंह भगतसिंह को अपने समय ने गढ़ा था। मुल्क में...

जन्मदिन पर विशेष: अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गए थे फिदेल

फिदेल ऐलेजैंड्रो कास्त्रो रूज़ (जन्म: 13 अगस्त 1926) एक अमीर परिवार में पैदा हुए और कानून की डिग्री प्राप्त की। हवाना विश्वविद्यालय में अध्ययन करते हुए उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की और क्यूबा की राजनीति में एक...

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योगेंद्र यादव के अनुरोध पर एनसीईआरटी ने पाठ्य पुस्तकों से उनका नाम हटाया

नई दिल्ली। एनसीईआरटी ने योगेन्द्र यादव के अनुरोध को स्वीकरते हुए राजनीति विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों से उनका नाम...