बिहार में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन बीजेपी मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सीएम क दावेदार कहने से बच रही है। केंद्र के कई नेता लगातार पटना का दौरा कर रहे हैं लेकिन बिहार का अगला मुख्यमंत्री एनडीए की तरफ से कौन होगा इसका निर्णय नहीं हो रहा है। बीजेपी इस मसले पर मौन है।
बीजेपी बस यही कहती है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव होंगे। उन्हीं की अगुवाई में एनडीए चुनाव लड़ेगा। लेकिन बीजेपी के नेताओं के सामने यह सवाल उठता है कि सीएम कौन होगा तो बीजेपी के नेता कन्नी काट लेते हैं। मौन धारण कर लेते हैं। बीजेपी के इस खेल को नीतीश कुमार समझ रहे हैं।
वे यह भी जान रहे हैं कि बीजेपी किसी बड़े दांव के फेर में है। और बीजेपी का बड़ा दांव यही है कि नीतीश कुमार के वोट बैंक का सहरा लेकर नीतीश कुमार को साइड लाइन कर दिया जाये। महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी ने जो भी किया है वह सब नीतीश कुमार को याद है। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नाम चुनाव लड़ा गया और जब बीजेपी की बड़ी जीत हुई तब एकनाथ शिंदे को सीएम नहीं बनाया गया। फडणवीस मुख्यमंत्री बने और शिंदे को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया। नीतीश कुमार बीजेपी के इस खेल को जान रहे हैं और उन्हें यह भी पता है कि जैसे ही बीजेपी को चुनाव परिणाम में बढ़त मिलेगी, बीजेपी का रंग बदल जाएगा और फिर वह कुछ भी निर्णय करने को तैयार हो जाएगी।
जदयू के कई नेता बीजेपी के हालिया खेल से खफा हैं। जदयू के लोग भी मानते हैं कि महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में जीत के बाद बीजेपी का हौसला बढ़ा है और अब उसकी नजर बिहार पर है। जदयू के एक वरिष्ठ नेता यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि ”नीतीश कुमार भले ही जदयू के सर्वे सर्वा हैं और उन्हीं के नाम पर पार्टी चल रही है लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह से जदयू के कई नेताओं के साथ बीजेपी का प्रेमालाप बढ़ा है उसे यह लगने लगा है कि जदयू को वक्त पड़ने पर कमजोर किया जा सकता है, तोड़ा जा सकता है।
महाराष्ट्र में बीजेपी यह सब कर चुकी है और नीतीश कुमार बीजेपी के इस खेल को जानते हैं। लेकिन नीतीश कुमार अकेले अब कुछ भी नहीं कर सकते। बढ़ती उम्र और बदलती राजनीति से वे अवगत हो गए हैं, लेकिन बड़ी बात तो यह है कि नीतीश कुमार भी कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। नीतीश कुमार के खेल को बीजेपी के बड़े नेता भी जान रहे हैं। चुनाव में नीतीश कुमार कुछ बेहतर नहीं कर पाते हैं तो तय मानिये बीजेपी बड़ा खेल कर सकती है और फिर बिहार से समाजवादी धारा की सरकार जा सकती है।”
जाहिर है बिहार एनडीए में भी सब कुछ ठीक नहीं है। चुनाव आते-आते बिहार एनडीए की तस्वीर भी बदल सकती है और बीजेपी का मिजाज भी बदल सकता है। अगर प्रशांत किशोर की राजनीति ने बिहार चुनाव को प्रभावित कर दिया तो तय माना जा रहा है कि बीजेपी किसी भी सूरत में बिहार में अपना मुख्यमंत्री बनाने से नहीं चूकेगी। लेकिन क्या नीतीश कुमार ऐसा होने देंगे यह बड़ा सवाल है।
एनडीए गठबंधन से लेकर इंडिया गठबंधन की पार्टियों के भीतर जिस तरह के दांव पेंच चल रहे हैं उससे लग रहा है कि भाजपा इस बार के चुनाव को अवसर मान रही है और और वह इसे गंवाना नहीं चाहती है। उसको लग रहा है कि नीतीश कुमार का सूरज अस्त हो रहा है और आखिरी बार उनके सहारे चुनाव जीत कर बिहार में अपनी सरकार यानी अपना मुख्यमंत्री बना लिया जाए। तभी भाजपा के नेता नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का दावेदार कहने से बच रहे हैं। वे यह कह रहे हैं कि चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़ा जाएगा लेकिन साथ ही यह भी कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री का चयन चुनाव नतीजों के बाद होगा।
भाजपा की इस राजनीति की काट में जनता दल यू की ओर से नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को आगे करने की तैयारी हो रही है। वे बार-बार मीडिया के सामने आ रहे हैं। हालांकि वे कह रहे हैं कि एनडीए के नेता उनके पिताजी ही हैं लेकिन जदयू में नीतीश कुमार के नाम पर सत्ता का सुख भोग रहे चार नेताओं और एक रिटायर अधिकारी को लग रहा है कि अगर नीतीश के हाथ से सत्ता निकल कर भाजपा के हाथ में गई तो वे सभी लोग भी पैदल होंगे। तभी वे किसी न किसी बहाने कमान जदयू के हाथ में रखना चाहते हैं। जदयू में वे ऐसे नेता की तलाश कर रहे हैं, जिसको वे हैंडल कर सकें।
अभी हाल में ही प्रधानमंत्री मोदी बिहार के भागलपुर गए थे। खूब मजमा भी लगा और वे बहुत कुछ बोलकर आ भी गए। लालू यादव पर उन्होंने खूब तंज भी कसा और बड़ी बात यह कि बिहार से ही मोदी ने किसान निधि का पैसा सबको दिया भी। बिहार के लोग गदगद हो गए। एक-एक घर से कई सदस्य इस योजना का लाभ ले रहे हैं और ऊपर से पांच सेर अनाज भी। मोदी ने कई योजनाओं का जिक्र भी किया। बिहार को बहुत कुछ देने की बात भी हुई लेकिन नीतीश कुमार ही बिहार के अगले सीएम होंगे इसके बारे में उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। मजे की बात तो यह थी कि इस बार पीएम के साथ सीएम भी थे और दोनों नेताओं में खूब चर्चा भी चलती रही।
बिहार में इस बार बीजेपी कोई बड़ा खेला करने की तैयारी में है। यह बात और है कि हालिया अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूएसएड की 181 करोड़ की राशि पीएम मोदी को देने की बात कहकर देश की राजनीति को गरमा तो दिया है और मोदी के इकबाल को कमजोर भी कर दिया है। ट्रम्प ने साफ़ किया है कि भारत में वोटर टर्न आउट बढ़ाने के लिए यह रकम अपने दोस्त मोदी को दिया था। विपक्ष अब इस मसले पर सरकार से श्वेत पत्र की मांग कर रहा है ताकि यह पता चले की सच क्या है?
अगर यह बात सच है तो देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए बड़ा ख़तरा हो सकता है क्योंकि इससे यह बात साफ़ होगी कि कोई विदेशी ताकत कैसे भारत की चुनाव प्रणाली को प्रभावित कर रहा है। बीजेपी अभी इस मसले पर मौन है लेकिन जदयू के लोग इस मामले को पकड़ कर बैठे हुए हैं। बिहार की जनता भी अब पूछ रही है कि ट्रम्प ने जो कहा है उसका जवाब बीजेपी क्यों नहीं दे रही है और मोदी सरकार इस पर चुप क्यों है? जाहिर है वक्त आने पर जदयू इसे मुद्दा बनाकर अपना दांव खेल सकती है।
इधर भाजपा यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि प्रधानमंत्री मोदी बिहार के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं। बजट में सिर्फ बिहार, बिहार होने का जो हल्ला मचा वह भाजपा की इसी रणनीति के तहत मचाया गया। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में आकर जिस तरह से बड़ी परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया है और अपने भाषण में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का कोई जिक्र नहीं किया, वह भी इस बात का संकेत है कि भाजपा मोदी के चेहरे और उनके नाम को आगे कर रही है।
पिछले दिनों बजट में बिहार के लिए हुई घोषणाओं को लेकर बिहार के एनडीए सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी का संसद में स्वागत किया। उसमें जनता दल यू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह और लोजपा के चिराग पासवान आगे थे। इससे यह भी दिखाया गया कि गठबंधन के नेता प्रधानमंत्री मोदी हैं।
हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र और दिल्ली तक में भाजपा की जीत मोदी के चेहरे पर हुई है। लेकिन झारखंड में वह दांव नहीं चला और उससे पहले पश्चिम बंगाल में भी नहीं चला था। इसलिए बिहार में यह दांव चल जाएगा इसमें संदेह है। बिहार में भाजपा को अपना चेहरा आगे करना होगा। उसने पिछले कुछ समय से उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को प्रोजेक्ट किया है। उनसे नीतीश का लव कुश वोट यानी कुर्मी और कोइरी का वोट भी एनडीए के साथ बना रहेगा और अन्य पिछड़ी जातियां व सवर्ण भी जुड़ेंगे। लेकिन अगर भाजपा बिना चेहरे के चुनाव में गई और यह कहा गया कि मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा तो इसका सीधा फायदा राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव को होगा।
उधर एनडीए की अपनी कहानी है जबकि बिहार इंडिया में भी बहुत कुछ होता दिख रहा है। इस बार के चुनाव में राजद और कांग्रेस के साथ ही वाम दल भी किसी भी सूरत में बीजेपी को कमजोर करने को तैयार हैं। महागठबंधन से जुड़े दलों को पता है कि अगर बीजेपी सत्ता में आ गई तो बिहार भी बाकी राज्यों की तरह ही बीजेपी के चंगुल में फंस जाएगा और फिर बेरोजगारी और गरीबी का दंश झेल रहा बिहार समाज बीजेपी के जाल में फंसता चला जाएगा।
कांग्रेस की तैयारी कुछ ज्यादा ही है। भले ही उसे अलग ही क्यों न चुनाव लड़ना पड़े लेकिन बिहार में वह किसी भी सूरत में बीजेपी की सत्ता नहीं चाहती। कांग्रेस को जदयू और खासकर नीतीश कुमार से कोई परहेज नहीं है लेकिन बीजेपी सत्ता में रहे और उसका मुख्यमंत्री रहे यह भला कांग्रेस को कैसे मंजूर होगा? यही वजह है कि बिहार में अभी बहुत कुछ होना है। शायद नीतीश कुमार कोई बड़ा निर्णय ही ले लें और ऐसा हुआ तो बीजेपी के सपने ध्वस्त हो जायेंगे।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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