Sunday, April 28, 2024

बीआरआई को चीन ने दिए नए पंख, पश्चिमी देशों की बढ़ी चुनौती

चीन ने अब बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना के अगले ‘स्वर्णिम दशक’ की शुरुआत का दावा किया है। बीजिंग में 17-18 अक्टूबर को हुए तीसरे बीआरआई फोरम के मौके पर चीन ने भरोसा जताया कि नए ‘स्वर्णिम दशक’ में बीआरआई संभावनाओं से भरी एक नई यात्रा शुरू करेगा। तीसरे फोरम का आयोजन बीआरआई के एक दशक पूरा करने के अवसर किया गया था।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उद्घाटन समारोह में कहा- “पहले दशक में बेल्ट एंड रोड सहयोग मजबूत और फलदायी रहा है। अब यह गति एवं जीवंतता से भरपूर है। अब हमें पूरे उत्साह एवं सकारात्मक भावना के साथ एक अन्य स्वर्णिम दशक की और यात्रा शुरू करनी है।”

शी ने एलान किया कि अगले दशक में ‘उच्च गुणवत्ता’ के साथ बीआरआई सहयोग को बढ़ाने के लिए चीन आठ कदम उठाएगा। इन घोषणाओं में से जिस बात ने सबसे ज्यादा दुनिया का ध्यान खींचा है, वह विकासशील देशों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के संचालन की पहल (AI governance initiative for global south) है।

तीसरे फोरम में 140 से अधिक देशों और 30 से अधिक अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें कई देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी शामिल थे। उनके बीच ध्यान का केंद्र रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन बने रहे। शी और पुतिन की इस मौके पर द्विपक्षीय वार्ता भी हुई।

तीन घंटों तक चली इस बातचीत के दौरान शी ने कहा कि दुनिया में न्याय और औचित्य की रक्षा के मकसद से चीन रूस के साथ सहयोग बढ़ाने को इच्छुक है, ताकि वह वैश्विक विकास में योगदान कर सके। शी की निगाह में बीआरआई ऐसे ही विकास की एक पहल है। उन्होंने कहा कि बीआरआई की शुरुआत भले चीन ने की हो, लेकिन अब यह पूरी दुनिया की अपनी परियोजना है।

यह निर्विवाद है कि बीआरआई ने गुजरे दस साल में दुनिया की विकास का एक नया नजरिया पेश किया है। इससे एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के देशों के अलावा यूरोप के भी कुछ हिस्सों में भी चीन का प्रभाव बढ़ा है। इसके आधार पर उसने विश्व व्यवस्था को नया स्वरूप देने की अपनी एक पूरी अवधारणा ही पेश कर दी है। इस अवधारणा के प्रति एक तरफ विकासशील देशों में आकर्षण बढ़ता जा रहा है, वहीं गुजरे लगभग 400 वर्षों से दुनिया पर प्रभुत्व रखने वाले पश्चिमी देशों को चीन का प्रभाव रोकने में अपनी ताकत झोंकनी पड़ी है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सबसे पहले 2013 के सितंबर में कजाखिस्तान की राजधानी अस्थाना में प्राचीन सिल्क रोड की तर्ज पर जमीनी और समुद्री मार्ग से दुनिया को जोड़ने की अपनी योजना का जिक्र किया था। तब उसे वन बेल्ट, वन रोड परियोजना कहा गया था। बाद में उसे बीआरआई नाम दिया गया।

पिछले दस साल में इस परियोजना में कनेक्टिविटी के नए आयाम जुड़ते चले गए हैं। मसलन, अब डिजिटल सिल्क रोड, ग्रीन सिल्क रोड, हेल्थ सिल्क रोड आदि भी इस परियोजना का हिस्सा हैं। इनके तहत विभिन्न देशों में ग्रीन एनर्जी परियोजना, बिजली परियोजना, कई तरह के उद्योग, खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर और यहां तक कि संसद भवन का निर्माण भी किया गया है।

शी जिनपिंग का दावा है कि बीआरआई ‘मनुष्य के साझा भविष्य’ के निर्माण की ऐसी परियोजना है, जिसमें भागीदार सभी देशों का फायदा है। (वे इसे Community of shared future और Win-win cooperation की योजना कहते हैं।) इस सोच के तहत ही चीन ने हाल के वर्षों में ग्लोबल सिक्युरिटी इनिशिएटिव, ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव, और ग्लोबल सिविलाइजेशन इनिशिएटिव का खाका पेश किया है।

इस बीच बीआरआई लगातार पश्चिमी देशों की आलोचना का केंद्र बना हुआ है। दरअसल, इस परियोजना के बारे में पश्चिम की प्रतिक्रिया के तीन दौर रहे हैं। आरंभ में इन देशों ने इसे शी जिनपिंग की खामख्याली मान कर इसकी उपेक्षा की थी। यानी उन्हें इसका भान नहीं था कि सचमुच विभिन्न देशों की भागीदारी से इतने बड़े पैमाने पर किसी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जा सकेगा।

लेकिन 2017-18 तक जब इस परियोजना के तहत ठोस निर्माण होते नजर आने लगे, तो पश्चिमी देशों ने इसकी खामियों पर ध्यान केंद्रित कर इसके खिलाफ मुहिम छेड़ी। मुख्य रूप से इस सिलसिले में ये तीन कहानियां दुनिया के सामने रखी गईं-

  • यह परियोजना गरीब और विकासशील देशों को कर्ज के जाल में फंसा रही है।
  • इस परियोजना में पारदर्शिता की कमी है। इसके लिए जो समझौते अलग-अलग देशों के साथ किए जाते हैं, उनकी शर्तें परदे के पीछे रखी जाती हैं।
  • इसके तहत पर्यावरण का बिना ख्याल किए ऐसे निर्माण किए जा रहे हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन हो रहा है और जिससे जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के वैश्विक प्रयास कमजोर हो रहे हैं।

लेकिन जब इन आलोचनाओं से भी ग्लोबल साउथ में (यानी गरीब और विकासशील देशों के बीच) इस परियोजना का आकर्षण नहीं घटा, तो पश्चिम ने “बेहतर विकल्प” उपलब्ध करवा कर इस परियोजना का मुकाबला करने की रणनीति अपनाई। खासकर जो बाइडेन के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद से इस रणनीति का खूब शोर रहा है। इसके तहत पहले जून 2021 में बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड प्रोजेक्ट की घोषणा की गई। साल भर बाद उसका नाम बदल कर ग्लोबल पार्टनरशिप ऑफ इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट कर दिया गया।

उधर एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए बाइडेन ने इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क की घोषणा की हुई है। इस बीच हाल में नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिकी पहल पर इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर के निर्माण की घोषणा की गई। यह दीगर बात है कि ये सारी परियोजनाएं अभी अवधारणा के स्तर पर ही हैं- यानी अभी इनके जमीन पर उतरने की शुरुआत नहीं हुई है।

बहरहाल, तीसरे बीआरआई फोरम के दौरान चीन ने जिन आठ नए कदमों का एलान किया, उनमें कुछ का सीधा संबंध बीआरआई की आलोचनाओं का जवाब देने से है। यानी अब ऐसे उपाय लागू करने की घोषणा की गई है, जिनसे कर्ज के जाल, पारदर्शिता की कमी और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले निर्माण जैसी आलोचनाओं की गुंजाइश घट जाएगी। तो सबसे पहले एक नजर नए घोषित उन आठ कदमों पर डालते हैं। ये है –

  • बहुआयामी बेल्ट एंड रोड कनेक्टिविटी (संपर्क) नेटवर्क का निर्माण।
  • मुक्त विश्व अर्थव्यवस्था की दिशा में कदम।
  • उच्च गुणवत्ता वाले बेल्ट एंड रोड निर्माण के लिए व्यावहारिक सहयोग।
  • हरित विकास (ग्रीन डेवलपमेंट) को प्रोत्साहन।
  • उन्नत वैज्ञानिक एवं तकनीकी आविष्कार।
  • जनता के स्तर पर आदान-प्रदान की दिशा में कार्य।
  • विश्वसनीय बेल्ट एंड रोड सहयोग।
  • अंतरराष्ट्रीय बेल्ट एंड रोड सहयोग के लिए संस्थाओं का निर्माण।

कुछ बिंदुओं के नाम से स्पष्ट है कि उनका मकसद बीआरआई की पश्चिमी देशों की तरफ से होने वाली आलोचनाओं को निष्प्रभावी करने का सिस्टम तैयार करना है। उनमें अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के निर्माण से लेकर बेल्ट एंड रोड सहयोग के विश्वसनीय (integrity based) सहयोग और ग्रीन डेवलपमेंट शामिल हैं।

चीन की योजना अब बेल्ट एंड रोड निर्माण के लिए धन के विभिन्न स्रोतों का इस्तेमाल करने की है। इसके लिए ऐसे तरीके अपनाने का इरादा जताया गया है, जिससे सहभागी देशों के प्राइवेट सेक्टर की इस निर्माण में भूमिका बनाई जा सके। साथ ही विभिन्न देशों को उनके पास मौजूद वित्त का निवेश इस निर्माण कार्य करने में करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

मसलन, उन्हें इस पर राजी करने की कोशिश होगी कि वे अपने धन का शेयर, बॉन्ड एवं ऋण बाजार में निवेश करने के बजाय वह पैसा इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट के कार्यों में लगाएं। इसके लिए जरूरी माध्यम तैयार किए जाएंगे। चीन को आशा है कि इससे यह शिकायत दूर हो जाएगी कि बीआरआई विकासशील देशों को कर्ज जाल में फंसाने की परियोजना है।

integrity based संस्थाओं के निर्माण का मकसद इन परियोजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करना और ग्रीन डेवलपमेंट का मकसद विशाल पैमाने के निर्माण कार्यों में कार्बन उत्सर्जन को सीमित रखना बताया गया है।  

ऐसे संकेत मिले कि चीन ने बीआरआई के नए दशक की योजना अपने को पश्चिम से बेहतर दिखाने के नैरेटिव के साथ तैयार की है। चीनी विशेषज्ञों ने इस मौके पर कहा कि पश्चिम का नजरिया बांटो और राज करो का रहा है, जबकि चीन एकजुट होओ और समृद्धि साझा करो (unite and prosper) के नजरिए को आगे बढ़ा रहा है। इसी सिलसिले में बीआरआई के हिस्से के रूप में चीन ने मुक्त विश्व अर्थव्यवस्था की वकालत की है।

घोषणा हुई कि चीन मुक्त अर्थव्यवस्था को अपना समर्थन देगा। उसका लक्ष्य बीआरआई में शामिल देशों के साथ वस्तुओं के व्यापार को 2024-28 की अवधि में 32 ट्रिलियन डॉलर और सेवाओं के व्यापार को पांच ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का है। इसी सिलसिले में चीन की मुद्रा युवान के अंतरराष्ट्रीय उपयोग को बढ़ाने की चर्चा की गई। यह भी जोड़ा गया कि बड़े निर्माण कार्यों के साथ-साथ आजीविका उपलब्ध कराने के छोटे लेकिन स्मार्ट कार्यक्रमों को भी अब बीआरआई का हिस्सा बनाया जाएगा।

जाहिरा तौर पर ये तमाम बातें अभी विचार के स्तर पर हैं। इसलिए जब तक ये जमीन पर नहीं उतर जातीं, इन्हें सिर्फ चीन के दावे या प्रस्ताव के रूप में देखा जाएगा। मगर, फिलहाल यह संकेत जरूर गया है कि चीन ने ग्लोबल साउथ के सामने एक बड़ा सपना पेश किया है।

पिछले दशक में उसकी कई योजनाएं मुश्किलों में फंसी और अपने घोषित उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकीं। इसके मद्देनजर चीन को बार-बार उन योजनाओं के ढांचे और अमल के तरीकों में परिवर्तन करने पड़े। चीनी विशेषज्ञों का दावा है कि उन अनुभवों से सीखते हुए अब चीन ने अधिक व्यवहारिक लक्ष्य तय किए हैं।

बहरहाल, इनमें जिस लक्ष्य ने सर्वाधिक ध्यान खींचा है, वह Global Artificial Intelligence (AI) Governance Initiative है। चीन ने कहा है कि एआई के विकास, उसकी सुरक्षा, नव-विकलित हो रहीं एआई संबंधित तकनीकों और सेवाओं आदि के संचालन का वह एक खुला, समावेशी, और न्यायोचित तरीका पेश करेगा। इस रूप में यह अमेरिकी/पश्चिमी तरीकों से अलग होगा, जो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए प्रतिबंध लगाने और उभरते देशों की घेराबंदी करने की सोच के साथ चल रहे हैं।

एआई संबंधित पहल को इसलिए अहम समझा गया है, क्योंकि इस नई तकनीक को चौथी औद्योगिक क्रांति का वाहक समझा जा रहा है। इस तकनीक में अमेरिका और चीन अग्रणी देश हैं, हालांकि कुछ अनुमानों के मुताबिक चीन ने इसमें बढ़त बना ली है। एक और अंतर यह बताया जाता है कि जहां अमेरिका में एआई को कंज्यूमर यूटीलिटी के रूप में अपनाया जा रहा है, वहीं चीन में इसे प्रमुख रूप से उत्पादन में सहयोगी तकनीक के रूप में अपनाया गया है। इसलिए ऐसी धारणा बनी है कि अगली यानी चौथी औद्योगिक क्रांति में चीन अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

(संदर्भ के लिए पहली औद्योगिक क्रांति का काल सन् 1750 के बाद माना जाता है, जब वाष्प की ताकत का इस्तेमाल उत्पादन यंत्रों में करने की शुरुआत हुई। इस दौर में कोयला ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बना था। इस क्रांति में अग्रणी भूमिका ब्रिटेन ने निभाई। दूसरी औद्योगिक क्रांति का काल मोटे तौर पर 1870 से प्रथम विश्व युद्ध (1914) तक समझा जाता है। इस दौर में मशीनीकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स, और संचार के सिनेमा और रेडियो जैसे नए माध्यमों आदि ने उत्पादन और रहन-सहन का तरीका बदल दिया। इस दौर में ऊर्जा स्रोत के रूप में कोयले के साथ-साथ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस का उपयोग शुरू हुआ। इस दौर में ब्रिटेन के साथ-साथ दूसरे यूरोपीय देश और अमेरिका भी अग्रणी भूमिका में रहे।

तीसरी औद्योगिक क्रांति का काल 1950 के बाद समझा जाता है, जब कंप्यूटर, चिप संचालित उपकरण और इंटरनेट उत्पादन के तौर-तरीकों के साथ-साथ आम रहन-सहन में व्यापक परिवर्तन का माध्यम बने। इस दौर में ऊर्जा स्रोतों में परमाणु ऊर्जा भी जुड़ गई। निर्विवाद रूप से अमेरिका ने इस क्रांति का नेतृत्व किया। अब समझा जाता है कि चौथी औद्योगिक क्रांति एआई आधारित होगी, जिसमें मशीन अपनी बुद्धि से और आपसी सहयोग एवं संवाद से उत्पादन संबंधी कार्य करेंगे। इस दौर में एनर्जी का प्रमुख स्रोत अक्षय ऊर्जा होगी।)

जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया है, पश्चिमी देशों ने पिछले तीन-चार साल में ग्लोबल साउथ को चीन की बीआरआई परियोजना का विकल्प उपलब्ध कराने की कई पहल की है। मगर फंडिंग के स्रोत और निर्माण संबंधी उत्पादन क्षमता में कमजोरी के कारण वे ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाए हैं। अब जबकि तीसरे बीआरआई फोरम में घोषित आठ नए कदमों के साथ चीन ने अपनी परियोजना को अधिक शक्तिशाली बनाने का इरादा जताया है, तो यह देखने की बात होगी कि उसके प्रतिद्वंद्वी देश उसका जवाब देते हैं।

वैसे दुनिया में यह आम समझ है कि अगर पश्चिमी देश इस होड़ में सचमुच उतरें और विकासशील देशों को इन्फ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा एवं उत्पादन में सहायता के अपने विकल्प उपलब्ध कराएं, तो यह दुनिया के लिए बड़ी अच्छी बात होगी। इस तरह की सकारात्मक होड़ से न सिर्फ गरीब और पिछड़े देशों को भी तकनीकी क्षेत्र में हासिल हुईं इंसानी उपलब्धियों का लाभ मिलेगा, बल्कि उससे खुद धनी देशों को बेहतर उपभोक्ता बाजार प्राप्त होंगे। और तब पश्चिमी देश यह ठोस ढंग से दिखा भी पाएंगे कि किस तरह बीआरआई की उनकी आलोचना में दम है।

अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा था कि वे दुनिया को विकास के लोकतांत्रिक विकल्प उपलब्ध कराएंगे, ताकि विकासशील देशों में चीन के कथित तानाशाही विकल्प के प्रति बना आकर्षण टूट सके। दुनिया को इस बात का इंतजार है कि अमेरिका और उसके साथी देश अपने इस एलान को अमली जामा पहनाएं। मगर, इस बीच चीन ने अपने प्रोजेक्ट में कुछ नए पंख जोड़ दिए हैं।

(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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