यूपी के मुख्यमंत्रियों के दो काल हैं। पहला- ब्राह्मण काल, 1946 से 1989, यानी 39 साल। इसमें कुल 6 ब्राह्मण CM बने और 20 साल तक UP को चलाया। दूसरा- ब्राह्मण शून्य काल, 1989-2021, यानी 31 साल। इसमें एक भी ब्राह्मण सीएम नहीं बना। वर्ष 1946 से 1989, कुल 6 ब्राह्मण सीएम, सब कांग्रेस से। लेकिन पिछले 32 साल से- ब्राह्मण शून्य काल चल रहा है और एक भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना।
दरअसल आजादी के बाद विधानसभा का जब गठन हुआ और चुनी हुई सरकार बनने लगी तो उत्तर प्रदेश में अब तक 6 ब्राह्मण 20 साल तक मुख्यमंत्री रहे। पांच ठाकुर 12 साल तक मुख्यमंत्री रहे। 3 यादव 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे। तीन बनिया 6 साल तक मुख्यमंत्री रहे। एक दलित 7 साल तक मुख्यमंत्री रहीं। एक कायस्थ 6 साल तक मुख्यमंत्री रहे। एक जाट डेढ़ साल तक मुख्यमंत्री रहे और एक लोधी 3 साल तक मुख्यमंत्री रहे।
कांग्रेस पार्टी ने 6 ब्राह्मण, तीन ठाकुर और एक बनिया मुख्यमंत्री बनाया जबकि भाजपा ने दो ठाकुर, एक बनिया और एक लोधी राजपूत को मुख्यमंत्री बनाया। इसी तरह जनता पार्टी ने एक यादव एक बनिया, समाजवादी पार्टी ने दो यादव बसपा ने एक दलित भारतीय क्रांति दल ने एक जाट और जनता दल ने एक यादव मुख्यमंत्री बनाया।
यूपी में अब तक छह ब्राह्मण सीएम 10 बार गद्दी पर बैठे, गोविंद वल्लभ पंत दो बार गद्दी पर बैठे, सुचेता कृपलानी एक बार मुख्यमंत्री रहीं। कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा एक-एक बार मुख्यमंत्री रहे जबकि नारायण दत्त तिवारी तीन बार मुख्यमंत्री बने और श्रीपत मिश्रा एक बार मुख्यमंत्री बने।
यूपी में चुनाव को लेकर जैसे-जैसे माहौल गरम हो रहा था, ब्राह्मण कार्ड की गूंज ज्यादा सुनाई दे रही थी। ब्राह्मण वोट लुभाने के लिए मायावती से लेकर अखिलेश यादव और प्रियंका से लेकर योगी तत्पर रहे। लेकिन अचानक ओबीसी मंत्री योगी सरकार से इस्तीफ़ा देने लगे, विधायक भागने लगे, रातों रात हिन्दू बनाम मुस्लिम से बदलकर चुनाव अगड़ा बनाम पिछड़ा में बदल गया और भाजपा को प्रत्याशियों की पहली लिस्ट में ओबीसी और दलितों को ज्यादा टिकट देने पड़े। आखिर बीजेपी का ऐसा कदम पड़ गया, जिससे पहले से ही नाराज चल रहा ब्राह्मण वोटर चुनाव में सिरदर्द भी बन सकता है। ब्राह्मणों को रिझाने के लिए समाजवादी पार्टी ने लखनऊ में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के करीब परशुराम की भव्य प्रतिमा बनवाई है। साथ ही कई ब्राह्मण चेहरों को अपनी पार्टी में अखिलेश यादव ने जगह भी दी है।
यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों की ताकत सिर्फ 8 से 10 फीसदी वोट तक सिमटी हुई है, लेकिन ब्राह्मण समाज का प्रभाव इससे कहीं ज्यादा है और आंकड़े इसकी गवाही भी देते हैं। यूपी के करीब 60 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण निर्णायक भूमिका में हैं तो वहीं दर्जन भर जिले में इसकी आबादी 20 फीसदी से भी ज्यादा है।
पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2017 में यूपी के 312 बीजेपी विधायकों में से 58 ब्राह्मण उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। योगी सरकार में जिन 56 चेहरों को मंत्री पद दिया गया था उनमें श्रीकांत शर्मा, ब्रजेश पाठक, दिनेश शर्मा और जितिन प्रसाद समेत 9 ब्राह्मण मंत्री बनाए गए। इसके बावजूद बीजेपी से ब्राह्मण खफा हो गए हैं। योगी सरकार पर लगातार ठाकुरवाद के आरोप लगे और कई मौके पर ब्राह्मणों की नाराजगी देखने को मिली जिसके बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली। प्रदेश के ब्राह्मण नेताओं और मंत्रियों के साथ मंथन किया। जेपी नड्डा ने फीडबैक लिया और एक कमेटी बनाकर ब्राह्मणों को बीजेपी के पाले में फिर से करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। लेकिन दलबदल के बाद सारी रणनीति फेल हो गयी है।
मायावती को 2007 का करिश्मा दुहराने का भरोसा है ,जब बीएसपी ने नारा दिया था -‘ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’, हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु महेश है। 15 साल पुराना ये नारा सबको याद है जिसने मायावती को यूपी की कुर्सी पर बैठा दिया था।
यूपी की सियासत के इसी तिलिस्म को तोड़ने के लिए कांग्रेस भी हाथ पैर मार रही है। हालांकि कांग्रेस के राज में ज्यादातर मुख्यमंत्री ब्राह्मण समुदाय के बने लेकिन बीजेपी के उदय के साथ ही ब्राह्मण समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग हुआ, जिसके बाद कांग्रेस को यूपी में कभी सत्ता नहीं मिली। लेकिन अब कांग्रेस भी यूपी विधानसभा में इस कार्ड को जमकर खेल रही है।
वर्ष 2007 में बसपा ने 63 ब्राह्मण उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था और इनमें 41 ने जीत हासिल की थी। मायावती की सरकार बनी थी। 2012 में भाजपा ने सबसे ज्यादा 62 ब्राह्मण उम्मीदवारों को उतारा था, जबकि बसपा ने 58, सपा ने 38 और कांग्रेस ने 52 ब्राह्मण प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था। तब ब्राह्मण वोटों का बंटवारा हो गया और समाजवादी पार्टी ने यादव-मुस्लिम का गठजोड़ बनाते हुए सत्ता हासिल कर ली। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 312 विधायकों में से 58 ब्राह्मण चुने गए थे। इस वक्त प्रदेश में नौ ब्राह्मण मंत्री हैं। प्रो. दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया। इसके अलावा श्रीकांत शर्मा, ब्रजेश पाठक, जितिन प्रसाद, सतीश चंद्र द्विवेदी, डॉ. नीलकंठ तिवारी, रामनरेश अग्निहोत्री, अनिल शर्मा, आनंद स्वरूप शुक्ला समेत नौ ब्राह्मण मंत्री बनाए गए।
यूपी का ब्राह्मण शून्य काल वर्ष 1989 के बाद शुरू हुआ और पिछले 32 साल से एक भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना। 1989 के बाद अब तक कुल 7 सीएम बने, 4 भाजपा, 2 सपा और 1 बसपा से।
साल 1980, मंडल कमीशन ने तब के गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को एक रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने पिछड़े वर्ग की 3743 जातियों की पहचान की। उन्हें 27% आरक्षण देने को कहा। खूब बवाल हुआ।
13 अगस्त 1990 को वो दिन आ ही गया, जिसने ब्राह्मणों को 32 साल से CM की कुर्सी से दूर रखा हुआ है। हुआ ये था कि वीपी सिंह पीएम की कुर्सी पर थे। उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं। तब से अब तक सिर्फ ठाकुर, यादव या अनुसूचित जाति के ही सीएम बने हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 1989 के बाद से अब तक प्रदेश में चार बार सरकार बनाई है। इसमें उसने दो ठाकुर और 1 बनिया और 1 लोधी राजपूत को मौका दिया। सपा ने दोनों यादव और बसपा ने इकलौती अनुसूचित जाति से सीएम चुना।
फिलहाल यूपी की राजनीति में कोई बड़ा ब्राह्मण चेहरा नहीं है, जो सीएम की दौड़ में दिखाई दे रहा हो। कुछ दिन पहले ही ब्राह्मण वोटरों को लुभाने के लिए भाजपा ने कमेटी बनाई थी, लेकिन उसमें कोई सीएम बनने वाला चेहरा नहीं है।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)
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