Friday, March 29, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट : बनारस में सीवर से नहाई गंगा में अब रेत के टीलों ने डाला डेरा

वाराणसी। उत्तर प्रदेश के बनारस में घाट किनारे गंगा की दुर्गति किसी से छिपी नहीं है। दो दर्जन से अधिक छोटे-बड़े नाले रोजाना सवा सौ से अधिक सीवर गंगा में फेंट रहे हैं। इसमें अनवरत सीवर ढोने वाली अस्सी नदी और बदहाल वरुणा भी शामिल है। डैम प्रोजेक्ट में कैद करने और पानी की कमी से चलते गंगा में रविदास घाट, सामने घाट व  रामनगर के पास डरावने स्वरूप में रेत के टीलों ने डेरा डाल दिया है। आचरण के मुताबिक सरकारी तंत्र और विभाग गंगा को साफ करने में जुटे हुए हैं। दर्जनों प्लान और प्रोजेक्ट चल रहे हैं। चलो एक मिसाल लेते हैं- 18 अप्रैल 2022 को लखनऊ में गंगा यात्रा कार्यक्रम में सीएम योगी आदित्यनाथ दावा करते हुए कहते हैं कि ‘ काशी में गंगा निर्मल दिखती है। आज गंगाजल आचमन और पूजा करने योग्य हो गया है। यहां डॉल्फिन भी दिखाई देती है। राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की योजना को ध्यान में रखते हुए नदियों में कचरे के प्रवाह को रोकने का कार्य किया। जिसमें से अब तक 46 में से 25 का काम पूरा हो चुका है, 19 में काम चल रहा है और दो कार्य प्रगति पर है।’ आइये अब बनारस में गंगा की रियल्टी चेक करते हैं।   

ग्राउंड पर इसी बीच जून 2022 को गंगा पर एक और संकट मंडराने लगा है, गंगा नदी में जो रेत के टीले मई महीने के लास्ट में उभरते थे, वे मिड अप्रैल से ही गंगा की बदनसीबी पर हंस रहे हैं। शहर से निकलने वाले सैकड़ों एमएलडी सीवर में महज 344 एमएलडी सीवर ही शोधित किया जाता है। यह शोधित सीवर जल और शेष सवा सौ एमएलडी से अधिक सीवर आज भी डायरेक्ट गंगा नदी में जा रहा है। सभी जानते हैं कि सीवर का पानी जीवन नहीं जहर है। जून महीने में गंगा बेहताशा सूख रही है। उभरते रेत के टीलों के बीच गंगा को आगे बढ़ाने में गिरता सीवर मददगार साबित हो रहा है। कहना गलत न होगा कि अब गंगा की बीमारी ही उसकी दवा बन गई है। 

रविदास पार्क के समीप अस्सी नाला सीधे गंगा में गिरता है

नगवां-रमना में अस्सी नाले के पुल के समीप किनारे अस्थाई वेल्डिंग की दुकान चलाने वाले अमरनाथ दहकती दुपहरी में एक ओर से फट रही तिरपाल के नीचे पटिये पर बैठे कुछ सोच रहे थे। पूछने पर अमरनाथ बताते हैं, ‘मुझे यहां दुकान लगाते चार दशक से अधिक हो गए। जिस अस्सी नदी में कभी साफ पानी बहता था, उसमें आज आधे शहर की गंदगी बहती है। नदी के भौतिक स्वरूप और इको सिस्टम का इस कदर दोहन किया गया है कि अस्सी नदी को शहर में ‘अस्सी नाले’ के रूप में जाना जाता है। अब तो हालत और बुरी हो गई है। अस्सी नदी में बहते बदबूदार सीवर और इसमें नहाते सुअर स्मार्ट सिटी की उस बदनसीबी की दास्तां कहते हैं जिससे अमूमन सभी अनजान हैं। सच यह है कि बदलते बनारस में दबंगों, भू- माफियाओं और पैसे के जोर से अस्सी नदी के दोनों तरफ के नदी बैंक को लूट लिया गया है, यह किसी को नहीं दिखता है।’

अमरनाथ आगे कहते हैं, ‘आज से सात साल पहले यहीं नगवां में अस्सी नदी के किनारे मेरी वेल्डिंग की दुकान थी। मेरे ठीक बगल में गोरखपुर के लालबहादुर की चाय-पान की दुकान थी। मोदी के आने के बाद नगर निगम वाले आए और उसकी लकड़ी की गुमटी पर बुलडोजर चला दिया और क्षतिग्रस्त गुमटी को 12 में 15 फीट गहरे अस्सी नाले में धक्का मारकर गिरा दिया गया। बुलडोजर से कार्रवाई की गुंडई के बाद से मैं भी डर गया था, तब से लेकर आज तक करीब आठ साल का वक्त हो गया होगा। मैं रोज आता हूं, तो तिरपाल लगाता हूं और वेल्डिंग के उपकरण जमाकर दुकान खोलता हूं। दिल्ली-मुंम्बई जैसे कई शहरों में सरकार रेहड़ी – पटरी वालों को दुकान, सरकारी मदद और रियायतें देती है, लेकिन मुझे 40 साल से अधिक हो गया, कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। गुमटी तोड़े जाने के बाद एक – दो साल बाद लालबहादुर की मौत हो गई थी।

अस्सी नाले के पास वेल्डिंग की दुकान चलाने वाले वेल्डर अमरनाथ

गंगा, सीवर और रेत के टीले यानी खतरे का अलार्म 

काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव ‘जनचौक’ को बताते हैं कि ‘वर्ष 1986 से गंगा के निर्मलीकरण लिए सरकारें काम कर रही हैं। इतनी योजनाएं चलीं और जाने कितना धनराशि आवंटित हो चुका है। इसके बाद भी गंगा की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। गंगा में सीवर फेंटने वाले कई नाले अभी भी गिर रहे हैं। इनकी टैपिंग और डायवर्ट करने का काम बेहद सुस्त रफ़्तार से चल रहा है। कई घाट आज भी गंदे हैं, माला फूल फेंका जा रहा है। डैम में गंगा को रोकने की वजह से यह अपनी सफाई की क्षमता खोती जा रही है। गंगा में राजघाट से अस्सी तक कई सीवर वाले नाले गंगा में गिर रहे हैं। रेत के टीले पिछले साल भी निकले थे। इस बार टीलों की संख्या बढ़ती जा रही है। गंगा की दशा और दिशा में कुछ अनावश्यक बदलाव भी दिख रहे हैं। गंगा नदी विशेषज्ञों को इस पर काम करने की आवश्यकता है। समय-समय पर गंगा से सिल्ट निकालने का भी काम किया जाना चाहिए। डॉ राममनोहर लोहिया ने भी गंगा से सिल्ट निकलने की वकालत की थी। आप देखेंगे की नदी के प्रवाह में रूकावट आने वाले स्थानों से गंगा के सिल्ट नहीं निकाला जा रहा है। इससे गंगा छिछली और टीलेदार होती जा रही है। इसकी वजह से बनारस-कलकत्ता जलमार्ग में मालवाहक जहाज भी नहीं चल पा रहे हैं। इन सभी कारणों पर सरकार, नदी वैज्ञानिक और  प्रोजेक्ट अफसर विचार करें।’ 

बनारस के विभिन्न इलाकों से होकर गुजरता अस्सी नाला

देश को अपने मोदी जी की पूरी बात याद है? 

साल 2014 में नरेंद्र मोदी पहली मर्तबा बनारस आए थे तब उन्होंने बनारसियों को संबोधित करते हुए कहा था, “पहले मुझे लगा था कि मैं यहां आया, या फिर मुझे पार्टी ने यहां भेजा है, लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं गंगा की गोद में लौटा हूं। न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है। मुझे तो गंगा ने यहां बुलाया है। यहां आकर मैं वैसी ही अनुभूति कर रहा हूं, जैसे एक बालक अपनी मां की गोद में करता है। मैं वडनगर में जन्मा हूं। वहां भी शिव का बड़ा तीर्थस्थल है। बुद्ध और शिव की धरती की सेवा करने का मुझे सौभाग्य मिला है। यहीं बुद्ध ने संदेश दिया था। गंगा को साबरमती से बेहतर बनाएंगे।” मोदी के पीएम बनने के बाद देशभर के हिंदुओं में आस जगी थी कि अब गंगा के भी अच्छे दिन आएंगे। लेकिन साढ़े सात साल बाद भी काशी में कुछ जगहों को छोड़ गंगा का जल आचमन तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर नमामि गंगे योजना शुरू की गई है। इस मद में बनारस में करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं। लाख कवायद के बावजूद बनारस में गंगा बदहाल है।

रमना एसटीपी के पास अस्सी नाले का दृश्य

गंगा की लाइफ पर कुंडली मार बैठे हैं डैम प्रोजेक्ट 

अस्सी बचाओ संघर्ष समिति के कोऑर्डिनेटर गणेश शंकर चतुर्वेदी ने बताया कि ‘अस्सी और वरूणा नदी अब सिर्फ शहर का सीवर ढो रही हैं। एक समय था जब दोनों ऐतिहासिक नदियां बनारस के लिए सेफ्टी वाल्व की तरह कार्य कर करती थीं। बहरहाल, 30 से अधिक छोटे-बड़े नाले डायरेक्ट गंगा में गिरते हैं। सीवर तो गंगा में मिलने से गंगा के इकोसिस्टम को नुकसान तो है, लेकिन लगभग 150  एमएलडी से अधिक सीवर के गंगा में जाने गंगा के फ्लो भी सुचारू है। यदि गंगा में गिरने वाले सभी सीवर को तत्काल रोक दिया जाए तो इसका असर गंगा के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। लिहाजा, मैदान के ऊपर गंगा पर बने बांधों से पानी छोड़ा जाए, इससे कि गंगा की अविरलता बनी रहे। फिलहाल, शहर का सीवर गंगा में जाने से धारा को आगे तो बढ़ता है, लेकिन गंगा जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। सीवर का मैक्सिमम पानी गंगा की धारा में समाहित होकर आगे फ्लो कर जाता है। लेकिन, शेष सीवर और उसकी गंदगी घाट किनारे जमा हो जा रही है। इससे गंगा और घाट घूमने आए सैलानी उठते बदबू के बवंडर से ऐसे स्थानों पर आने से कतराने लगे हैं।’

दशाश्वमेघ घाट के पास फूल माला और कचरे का दृश्य

हकीकत जानकर आंखें फटी रह जाएगी 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार रामनगर से राजघाट तक गंगा जल की गुणवत्ता में लगातार सुधार हो रहा है लेकिन, हकीकत डराने वाली है। तुलसी घाट स्थित संकट मोचन फाउंडेशन के अध्यक्ष विशंभर नाथ मिश्र बताते हैं, ‘पीने योग्य पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया 50 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर- सर्वाधिक संभावित संख्या)/100 मिली और एक लीटर पानी में बीओडी की मात्रा 3 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए।’ गंगाजल की जमीनी हकीकत को बयां करते हुए प्रो. विश्वभरनाथ ने हाल ही में ट्विटर पर एक वीडियो शेयर कर लिखा है, ‘नगवां और रविदास घाट पर गंगा का पानी गंदगी से भी बदतर हो गया है। पानी में घुलनशील ऑक्सीजन घट रही है। 100 मिली जल में 24,000,000 फीकल कॉलीफार्म काउंट आ रही है, जबकि नहाने-धोने के लिए 500 फीकल कॉलीफार्म काउंट का मानक निर्धारित है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बनारस में गंगा जल और नदी के इको सिस्टम की क्या हालत है?’ 

मझधार में उग आए रेत के टीले 

लापरवाही और अनदेखी के कारण वक्त से पहले गंगा सूखने लगी है और इसके कारण गंगा में रेत के टीले उभर आए हैं। रविदास घाट के सामने, घाट और वाराणसी पोर्ट के समीप बीच गंगा में रेत के टीले दिखने लगे हैं। उभरे रेत के टीलों ने वैज्ञानिकों की चिंता भी बढ़ा दी है। बीएचयू के साइंटिस्ट और रिवर एक्सपर्ट प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं, ‘हाल के दशक में गंगा तंत्र बिगड़ता और इसके जल के क्वालिटी का स्तर गिरता ही जा रहा है। तमाम प्रयासों के बाद भी जो सुधार होने चाहिए थे, वह नहीं हो पाए हैं। गंगा बेसिन के अबाध प्रवाह के लिए पानी छोड़ा जाए। गंगा जल के इस्तेमाल के लिए जल्द ही पॉलिसी बनाई जाए। एसटीपी प्लांट को पूरी क्षमता के साथ चलाया जाए वरना गंगा के इको सिस्टम को तबाही से नहीं बचाया जा सकेगा।’

रामनगर किले के पास गंगा नदी में उभरा बालू का टीला

गंगा किनारे के 44 गांव 

गंगा किनारे रहने वाले पांडेयघाट (कोरियन घाट) पर नाव का संचालन करने वाले नाव मालिक राकेश साहनी बताते हैं कि ‘गंगा में सीवर आज भी गिरता है। सीवर की गंदगी गंगा के लिए अभिशाप बन गई है, मुझे नहीं लगता कि गंगा कभी इससे मुक्त हो पाएगी। शहर के अस्सी, सामनेघाट, ललिता घाट, मणिकर्णिका घाट पर दो पहला विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर गेट और दूसरा ललिता घाट, गोलाघाट, राजघाट, खिड़किया घाट, मानसरोवर घाट, दशाश्वमेध घाट समेत घाट इलाके में ही और भी छोटे नाले हैं, जिनको पाइप के सहारे गंगा में मिलाया गया है, जो दिन-रात गंगा की धारा में गंदगी फेंटते रहते हैं। अब तो जहां तहां गंगा में रेत के टीले भी उभर आए हैं।’ वाराणसी की सीमा में कुल 44 गांव गंगा नदी से पांच किमी के दायरे में बसे हैं। इन गांवों से निकलने वाली ठोस और सीवेज यानी गंदा पानी को गंगा नदी में जाने से रोकने के लिए सालिड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट योजना बनाई गई लेकिन कोरोना के समय से यह योजना अधर में अटक गई। इससे इन गांवों की गन्दगी को गंगा में जाने से रोका नहीं जा सका है। 44 गांवों के सीवेज और गन्दगी को गंगा में जाने से रोकने के लिए बनी सॉलिड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट स्कीम फाइलों में ही रुक गई है। यह कब खुलेगी, किसी को पता नहीं? 

बनारस में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट

सीवर पंप नगवां – 50 एमएलडी

रमना एसटीपी – 50 एमएलडी

रामनगर एसटीपी -10 एमएलडी

भगवानपुर एसटीपी – 9.8 एमएलडी

बीएलडब्लू एसटीपी – 12 एमएलडी

गोईठहांएसटीपी -120 एमएलडी

दीनापुर एसटीपी – 140 एमएलडी

बनारस में रमना, रामनगर, भगवानपुर और बीएलडब्ल्यू चारों एसटीपी को छोड़ दें तो बाकी एसटीपी अपने क्षमता से कम सीवेज का ट्रीटमेंट कर रहे हैं। शहर से दूर बने एसटीपी दीनापुर और गोईठहां की हालत और भी खराब है। पहले तो ये पूरी क्षमता से सीवेज को नहीं ट्रीटमेंट करते हैं। तिस पर तकनीकी गड़बडिय़ों की वजह से हफ्तों बंद भी रहते हैं। कुलजमा, गंगा को बचने के लिए लगाए गए एसटीपी महज 40 से 60 फीसदी क्षमता से ही काम कर रहे हैं। इससे अब भी 150 एमएलडी से अधिक सीवेज सीधे गंगाजल में मिल रहा है। जलकल के जीएम रघुवेन्द्र कुमार का दावा है कि उनके विभाग द्वारा गंगा को कई नुकसान नहीं है। वे बताते हैं कि ‘180 एमएलडी पानी ग्राउंड से निकालता है। शेष जल गंगा से लिया जाता है। गंगा नदी के फ्लो के सापेक्ष हमारे विभाग द्वारा उपयोग किए जाने वाले जल से गंगा को अधिक नुकसान नहीं पहुंचता है।’

(बनारस के पत्रकार पीके मौर्य की रिपोर्ट।)

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