Saturday, April 27, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

‘INDIA’ की चुनौती से बदहवास मोदी ने NDA के सामने घुटना टेका

नई दिल्ली। पटना में विपक्षी दलों की बैठक को भाजपा और भाजपा समर्थक मीडिया गंभीरता से लेने को तैयार नहीं थी। भाजपा विपक्षी एकता को असफल प्रयास मानकर खिल्ली उड़ा रही थी। लेकिन बेंगलुरु की बैठक के पहले ही न सिर्फ भाजपा में बौखलाहट देखी गई बल्कि पीएम मोदी भी बदहवास हो गए। इसी बदहवासी की अवस्था में मोदी ने साढ़े चार साल बाद एनडीए की बैठक बुलाई और घटक दलों से विगत 9 साल हुई गलती को भूलकर आगे बढ़ने की अपील की।

आखिर बेंगलुरु में ऐसा क्या हुआ कि मोदी-शाह और संघ-भाजपा बदहवासी की हालत में पहुंच गए। दरअसल, दिल्ली से 2200 किमी दूर बेंगलुरु में विपक्षी दलों ने संघ-भाजपा की वर्तमान सरकार से लड़ाई को वैचारिक बताया। राहुल गांधी ने कहा कि हमारी लड़ाई सरकार बनाने की नहीं बल्कि भारत को बचाने की आइडिया ऑफ इंडिया को बचाने की लड़ाई है। 

18 जुलाई को देश बेंगलुरु में कांग्रेस के साथ करीब 26 दलों ने भाग लिया। विपक्षी दलों ने इस गठबंधन का नाम INDIA यानि इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस दिया। दूसरी तरफ नई दिल्ली में अशोका होटल में एनडीए की बैठक हुई। इस गठबंधन में 38 दल शामिल हुए। 

कांग्रेस के नेतृत्व वाली INDIA की बैठक पूर्व निर्धारित थी। इसके पहले 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की एक बैठक हो चुकी थी। विपक्ष लंबे समय से एक गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहा था। जो 2024 लोकसभा में संयुक्त रूप से लड़ने के साथ जनता के सवालों पर संयुक्त रूप से संघर्ष भी करे। इस संयुक्त लड़ाई में रोजगार, महंगाई, संविधान की रक्षा, देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखना, संघीय ढांचे को बरकरार रखने की लड़ाई और देश के लोकतांत्रिक चरित्र को बचाए रखने की लड़ाई शामिल है।

लेकिन एनडीए की बैठक पूर्व नियोजित नहीं थी, बल्कि विपक्षी दलों की बैठक के दबाव में यह बैठक बुलाई गई। एक तरह से यह विपक्षी दलों को जबाव था कि मेरे साथ भी कई दल हैं। एनडीए की यह बैठक लगभग साढ़े चार साल बाद आयोजित हुई। इससे पहले 22 मई, 2019 को लोकसभा चुनाव परिणाम आने के एक दिन पहले अशोका होटल में एनडीए की बैठक हुई थी। तब बैठक में 36 दल शामिल हुए थे। उस समय नीतीश कुमार, प्रकाश सिंह बादल और उद्धव ठाकरे की पार्टियां भी एनडीए में थीं। लेकिन अब उद्धव ठाकरे और नीतीश कुमार विपक्षी खेमे में हैं तो अकाली दल एनडीए से दूर है। 

2019 में एनडीए की बैठक में  “2022 तक, जब भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने पर स्वतंत्रता सेनानियों की परिकल्पना के अनुसार एक मजबूत भारत बनाने की कसम खाई गई थी।” लेकिन विगत चार सालों में मोदी सरकार ने मजबूत भारत बनाने की जगह मजबूर भारत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

2019 में एनडीए बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए सहयोगियों की तारीफ करते हुए कहा था कि “एनडीए ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह अब एक मजबूत स्तंभ बन गया है। गठबंधन अब पहले से अधिक मजबूत है।”

लेकिन इस बार भी भाजपा और केंद्र सरकार की बैठकों की तरह एनडीए की बैठक भी मोदी केंद्रित रही। कैमरे का फोकस मोदी की तरफ था तो योजनाएं और संकल्प भी मोदी के मुख से ही निकल रहे थे, बाकि दल श्रोता और दर्शक की मुद्रा में रहे। दूसरी तरफ इंडिया की बैठक में सारे दलों के प्रमुखों को बराबर तरजीह दी गई। सबने देश की वर्तमान समस्याओं, विचार और रणनीति पर चर्चा की और अंत में प्रेस कांफ्रेंस में भी सब शामिल रहे।

चुनावी वर्ष में इंडिया ने मोदी के समक्ष गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बेंगलुरु में प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले 9 सालों में मोदी सरकार ने हर सेक्टर को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

बात सही है पिछले 9 सालों में मोदी सरकार ने जनता के मुद्दों को हल करने की बजाए उसे राजनीतिक मुद्दा बनाने का खेल किया। और इन 9 सालों में पीएम मोदी ने क्षेत्रीय दलों को कमजोर करने और अविश्वनीय बनाने के लिए हर दांव आजमाएं। ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार और मोदी ने सिर्फ विपक्षी दलों को कमजोर करने की साजिश रची। बल्कि उन्होंने एनडीए में शामिल दलों को भी तोड़ने और बर्बाद करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। महाराष्ट्र में शिवसेना औऱ पंजाब में अकाली दल भाजपा के शुरू दिनों के न सिर्फ सहयोगी रहे बल्कि सम-विचारी भी हैं। लेकिन मोदी ने शिवसेना और अकाली दल में विभाजन कराकर एक गुट को अपने साथ कर लिया। यही हाल लोक जनशक्ति पार्टी का भी किया। चाचा-भतीजे को लड़ाकर लोजपा में विभाजन कराया, पहले चाचा पशुपतिनाथ पारस और अब चिराग पासवान को अपने साथ आने को विवश किया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ भी वही सलूक। पार्टी को तोड़कर भतीजे अजित पवार को एनडीए में शामिल किया। 

दरअसल, नरेंद्र मोदी के सत्ता में पहुंचने का बहुत बड़ा श्रेय एनडीए की राजनीति को  जाता है। और एनडीए को बनाने और मजबूत करने में अटल बिहारी वाजपेयी के वर्षों की मेहनत को जाता है। लेकिन 2014 में मोदी-शाह की जोड़ी ने सहयोगी दलों को कमजोर करने और तोड़ने की रणनीति बनाई। जिसमें वह काफी हद तक सफल रहे। लेकिन उनकी इस रणनीति ने क्षेत्रीय दलो को उनसे दूर कर दिया। यहां तक कि भारत की एकमात्र अन्य प्रमुख हिंदुत्व पार्टी शिव सेना ने भी भाजपा को छोड़ दिया है। मोदी-शाह की भाजपा सहयोगी दलों का समर्थन नहीं बल्कि उनको तोड़कर राजनीतिक रूप से कमजोर करने मे लगी रही। और उनके राजनीतिक जमीन पर खुद को स्थापित करने में लगी रही। जबकि विपक्षी दलों को भ्रष्टाचार के मामले में फंसाकर उन्हें अपने गठबंधन में शामिल करते रहे। 

एक समय तक तो मोदी-शाह की यह रणनीति कामयाब रही लेकिन अब जब 9 सालों बाद मोदी सरकार की उपलब्धियों को लोग ढूंढ रहे हैं तो उनके सामने ठोस कुछ दिख नहीं रहा है। भाजपा भी अब हिंदुत्व की सीमा को समझ रही है। ऐसे में वह एक बार फिर क्षेत्रीय दलों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाह रही है। सच तो यह है कि INDIA की चुनौती से बदहवास मोदी को पहली बार NDA के सामने घुटना टेकना पड़ा है।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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Abhilash
Abhilash
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9 months ago

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