Sunday, April 28, 2024

इजराइल का फिलिस्तीन से जाना तय है!

फिलिस्तीनी स्वतंत्रता आंदोलन के मुख्य प्रतिरोध समूह, हमास के मौजूदा हमले ने दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इस चौतरफा हमले की तुलना 9/11, या द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान, जापान द्वारा अमेरिका पर किये ‘पर्ल हार्बर अटैक’, या किसी ऐसी चीज़ से की जा रही है, जो दुनिया ने पहले कभी नहीं देखी।

ऐसी उपमाएं और तुलनाएं ग़लत हैं। दरअसल हमास का हमला ‘टेट ऑफेंसिफ’ की याद दिलाता है। ‘टेट ऑफेंसिफ’, 1968 में उत्तरी वियतनामी कम्युनिस्टों द्वारा अपनी भूमि पर अमेरिकी आक्रमण के विरुद्ध शुरू किया एक विस्तृत सैन्य अभियान था।

टेट ऑफेंसिफ, और 7 अक्टूबर 2023 को इजराइल के खिलाफ हमास की घातक पहल के बीच तुलना करने से पहले, इजराइल-फिलिस्तीनी संघर्ष का एक संक्षिप्त अवलोकन महत्वपूर्ण है।

2007 से लेकर 2021 तक की पिछली सभी लड़ाइयों में इजराइल का पलड़ा भारी रहा है। 2014 में, इजरायली सैनिकों ने गाजा पट्टी में प्रवेश किया, जिसमें 2025 फिलिस्तीनियों (1,483 नागरिकों, मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों सहित) की मौत हो गई। इजरायली पक्ष से केवल 71 (66 सैनिकों सहित) लोग मारे गए। संख्या में असमानता बहुत बड़ी थी।  2018 ‘भूमि दिवस’ विरोध प्रदर्शन के दौरान, इजरायली बलों ने 168 फिलिस्तीनियों को मार डाला। इजरायली हताहत शून्य थे।

मई 2021 में, इजरायली हवाई हमलों ने गाजा में 94 इमारतों को नष्ट कर दिया, जिसमें 461 आवास और वाणिज्यिक इकाइयां शामिल थीं। अल-जला हाई राइज, एसोसिएटेड प्रेस के आवास कार्यालय, अल जज़ीरा मीडिया नेटवर्क, अन्य समाचार आउटलेट और 60 कॉन्डोमिनियम भी इजराइल ने नष्ट किये। 66 बच्चों सहित कम से कम 256 फ़िलिस्तीनी मारे गए। 1,900 से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हुए, 72,000 विस्थापित हुए।

इजरायली पक्ष में, दो बच्चों सहित 13 लोग मारे गए। 200 इजराइली घायल हुए।

प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद फिलिस्तीन संघर्ष शुरू हुआ। विजयी यूरोपीय शक्तियों, ब्रिटेन और फ्रांस ने, तुर्की ऑटोमन साम्राज्य को भंग कर दिया। इराक, सीरिया और अन्य अरब क्षेत्रों को दोनों के बीच बांट दिया गया।

बाल्फोर घोषणा ने फ़िलिस्तीन के वर्तमान क्षेत्र (पूर्व में तुर्की शासन के अधीन) में एक ‘यहूदी होमलैंड’ बनाने के ब्रिटिश-फ़्रांसीसी इरादे की घोषणा की। इस कदम का फ़िलिस्तीन की बहुसंख्यक अरब आबादी ने विरोध किया। 1920 और 1948 के बीच ब्रिटिश शासनादेश के विरुद्ध कई अरब विद्रोह हुए।

1930 के दशक में, हिटलर द्वारा जर्मनी में यहूदियों के क्रूर दमन के बाद, फिलिस्तीन की ओर, यहूदियों का पलायन शुरू हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध और उसके फौरन बाद, इस पलायन ने और तेजी पकड़ी।

1940 के दशक में एक ‘यहूदी विद्रोह’ भी हुआ। जल्द ही, पूरे यूरोप से आये यहूदियों ने ब्रिटिश सहायता से फ़िलिस्तीनी भूमि पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया।

इजराइल राज्य 1948 में अस्तित्व में आया। संयुक्त राष्ट्र (UN) ने इजराइल और फिलिस्तीन के बीच मूल फिलिस्तीनी मातृभूमि के विभाजन का रुख अपनाया।

1948 तक, 20,000 से अधिक लोग, जिनमें से 80% अरब फ़िलिस्तीनी थे, मारे गए या घायल हुए। वेस्ट बैंक, गाजा और यरूशलेम में भूमि के कुछ टुकड़ों को छोड़कर, फ़िलिस्तीनियों ने ब्रिटिश सेना और यहूदी मिलिशिया के क्रूर बल के दम पर, अपना अधिकांश क्षेत्र खो दिया। फ़िलिस्तीनी इस चरण को अपने लोगों का पहला नरसंहार या नकबा कहते हैं।

दूसरा फिलिस्तीनी नरसंहार 1948 और 2021 के बीच घटनाओं की एक श्रृंखला में हुआ। फिलिस्तीन के सवाल पर, चार अरब-इजराइल युद्ध लड़े गए। इजराइल ने तीन जीते। लेकिन चौथे, 1973 के योम किप्पुर युद्ध ने इजराइल को लगभग घुटनों पर ला दिया। इजराइल ने अरब जगत के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू की। अमेरिका ने मध्यस्थता की।

1990 के दशक के शांति समझौतौं ने फिलिस्तीनियों को वेस्ट बैंक और गाजा में सीमित स्वायत्तता दी। फिलिस्तीनी आंदोलन के भीतर भी उथल-पुथल हुई। वेस्ट बैंक में स्वर्गीय यासिर अराफात के फतह गुट के नेतृत्व वाली फिलिस्तीनी प्राधिकरण (Palestinian Authority) सत्ता में आई। हमास, एक नया संगठन, जो मुख्य रूप से ईरान द्वारा समर्थित था, ने गाजा में चुनाव जीता। इज़रायली अवरोधवादी रणनीति ने हमास को 2007 में गाजा पर कब्ज़ा करने के लिए मजबूर किया।

1948-2021 की अवधि में 60,000 से अधिक लोग हताहत हुए। पुनः 80% मौतें फिलिस्तीनी अरब लोगों की हुईं।

इस संदर्भ में, 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजराइल पर किया गया हमला अद्वितीय है। यह योम किप्पुर युद्ध की 50वीं वर्षगांठ से एक दिन बाद हुआ। इजराइल द्वारा फिलिस्तीनियों को बेहिसाब संख्या में मारने के बजाय इस बार 7-11 अक्टूबर 2023 तक 1000 से ज्यादा इजराइलियों की जान जा चुकी है। गाजा पर इजरायली बमबारी में 700 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए।

पहली बार हमास ने सैनिकों और अधिकारियों समेत सैकड़ों इजराइलियों का अपहरण कर लिया। अपहरण फ़िलिस्तीन-अरब संघर्ष की एक विशेषता रही है। लेकिन यहां भी इजराइल का पलड़ा भारी था।

हाल की घटनाओं की तुलना वियतनाम के अमेरिका के खिलाफ, टेट ऑफेंसिफ से कैसे की जा सकती है?

कम्युनिस्ट उत्तरी वियतनाम और अमेरिका के बीच दशकों तक लड़े गए वियतनाम युद्ध के दौरान, उत्तरी वियतनाम ने 1975 में जीत हासिल की। ​​वियतनाम की सफलता की कहानी 1968 में टेट ऑफेंसिफ से शुरू हुई।

टेट ऑफेंसिफ वियतनामी नव वर्ष 1968 के दिन शुरू हुआ। इसमें अमेरिकी सेना और अमेरिका द्वारा समर्थित दक्षिण वियतनामी सरकार के खिलाफ उत्तरी वियतनामी और दक्षिण वियतनामी कम्युनिस्ट ताकतों (वियतकांग) द्वारा समन्वित हमलों की श्रृंखला शामिल थी। जनवरी से सितंबर 1968, कई महीनों तक चली लड़ाइयों में, कम्युनिस्ट सेनाएं अमेरिकी गढ़, दक्षिण वियतनाम की राजधानी हनोई, तक घुस गईं।

टेट ऑफेंसिफ असफल रहा। अमेरिका और दक्षिण वियतनामी कम्युनिस्ट विरोधी सेनाओं ने अपने कब्जे वाले लगभग सभी क्षेत्रों से कम्युनिस्टों को बाहर कर दिया। पर राजनीतिक रूप से, और धारणा के स्तर पर, एक अलग परिदृश्य सामने आया: अमेरिका की अजेयता नष्ट हो गई। यह तथ्य पूरी तरह से स्पष्ट हो गया कि उत्तर वियतनामी कम्युनिस्ट, एक किसान सेना द्वारा, अपनी पसंद के समय पर, शक्तिशाली अमेरिका को पंगु बना सकते हैं। अमेरिका में जनता की राय बदलने लगी। युद्ध-विरोधी प्रदर्शन आम हो गये। अमेरिकी शासक वर्ग को एहसास हुआ कि वह अब एक अलोकप्रिय युद्ध नहीं झेल सकता।

वर्तमान की बात करें तो कुछ दिन पहले तक इजराइल की सैन्य क्षमताएं अभेद्य मानी जाती थीं। इजराइली रक्षा बल (आईडीएफ) को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। इजराइल के पास आयरन डोम था, जो अमेरिका द्वारा प्रदान की गई एक रक्षात्मक तकनीक थी, जो हवा से किसी भी प्रकार के रॉकेट हमले को रोकने में सक्षम थी। इजरायली गुप्त सेवा मोसाद को सीआईए के बाद सर्वश्रेष्ठ जासूसी एजेंसी होने की प्रतिष्ठा प्राप्त थी।

मोसाद ने ईरान से लेकर लैटिन अमेरिका तक, दुनिया में कहीं भी, इज़राइल के विरोधियों को मार गिराया। इजराइल के पास दुनिया की सबसे अच्छी निगरानी प्रणाली थी। गाजा या वेस्ट बैंक में फ़िलिस्तीनियों की हर गतिविधि पर नज़र रखी जाती रही है। इजराइल का गाजा की जीवन रेखा- भोजन, बिजली, पानी और ईंधन की आपूर्ति- पर कब्ज़ा है। इजराइल ने गाजा के नागरिकों को कितना और कैसे रोजगार मिलेगा, यह भी नियंत्रित कर रखा है। इजराइल की मुस्लिम-अरब पवित्र स्थान यरूशलेम पर मजबूत पकड़ है।

सोवियत संघ के पतन के बाद, अगर दुनिया में कोई अधिनायकवादी राज्य है जो एक उपनिवेश चलाता है, तो वह इजराइल है। साथ ही, आंतरिक राजनीति में, इजराइल लोकतंत्र पर कमज़ोर रूप में ही सही, कायम रहा। यह दुनिया का एकमात्र लोकतांत्रिक देश है, जिसने 21वीं सदी में किसी भूमि और उसकी जनता को साम्राज्यवादी गुलाम बना रखा है।

7 अक्टूबर 2023 को सब कुछ बदल गया जब हमास ने अपना टेट ऑफेंसिफ लांच किया।

अब इजराइल ‘भयानक बदला’ लेने का दंभ भर रहा है। इसके तानाशाह नेता नेतन्याहू ‘संपूर्ण युद्ध’ का आह्वान कर रहे हैं। गाजा को नष्ट करने जैसे बयान दिये जा रहे हैं। इज़रायली अधिकारी कह रहे हैं कि वे गाजा को पानी, बिजली, ईंधन और गैस की आपूर्ति रोक देंगे। आईडीएफ गाजा में प्रत्येक हमास कार्यकर्ता को मारने की बात करता है, क्योंकि ‘उनके पास छिपने के लिए कोई जगह नहीं है’। इस बीच, दुनिया की लैपडॉग मीडिया ने हमास को ‘आतंकवादी’ करार दिया। कोई भी इस सरल प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहा है: ‘आतंकवादी’ जमीन, समुद्र और वायु मार्ग से इतना परिष्कृत अभियान चलाने में कैसे सक्षम हुए?

टेट ऑफेंसिफ के बाद, अमेरिकियों ने भी वियतनामी कम्युनिस्टों को ख़त्म करने की बात कही थी। 100,000 से अधिक वियतनामी कम्युनिस्ट मारे गए। फिर भी, कम्युनिस्ट अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल रहे। टेट के बाद मात्र सात वर्ष में ही अमेरिका को वियतनाम छोड़ना पड़ा।

हमास के कई लड़ाके मारे जा सकते हैं। हजारों फिलिस्तीनियों की इजराइली बमबारी में मरने की आशंका है। लेकिन, भले ही अंतर्राष्ट्रीय स्थिति 1970 के दशक की स्थिति से बेहद भिन्न हो- हमास ने अपना उद्देश्य हासिल कर लिया है। ‘इज़राइल अजेय है’- यह मिथ (myth) और perception हमेशा के लिये टूट गया है।

इजराइल की अंदरूनी फूट खुलकर सामने आ गई है। फ़िलिस्तीन मुद्दे पर नेतन्याहू के ‘मारो या मरो’ दृष्टिकोण के ख़िलाफ़ इजरायली जनमत गोलबंद हो रहा है।

एक राजनीतिक मसला, राजनीति से ही हल होगा: इजराइल को फिलिस्तीन छोड़ना ही पड़ेगा। दक्षिण अफ्रीका में apartheid या रंगबेधी राजसत्ता को सरेंडर करना ही पड़ा था। अमेरिका और भारत का दक्षिणपंथ जितना भी चिल्ला ले। फिलिस्तीन समस्या का कोई दूसरा हल, या कोई बीच का रास्ता, संभव ही नहीं है।

(अमरेश मिश्र इतिहासकार और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। इन्होंने तीन संस्करणों में तक़रीबन 2000 पृष्ठों की 1857 पर किताब लिखी है।)

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