Saturday, April 27, 2024

कमलनाथ न घर के रहे, न घाट के!

यह बात और है कि मौजूदा मोदी सरकार के इस अमृतकाल में हर चीज संभव है। चाहे वह किसी भ्रष्ट नेता को बीजेपी में शामिल करने का मामले हो या फिर किसी परिवारवादी नेता को ही आगे बढ़ाने का। किसी पार्टी को तोड़ने का अभियान हो या ऑपरेशन लोटस के जरिए किसी भी पार्टी को खंड-खंड करने का खेल। किसी को भी देश की जांच एजेंसियों के जरिए तोड़ने से लेकर जेल भेजने की गारंटी की जा सकती है।

ऐसे में कमलनाथ के प्रस्ताव को बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नकार देने की बात बहुत कुछ कहता है। जो खबर मिल रही है उसके मुताबिक बीजेपी और पीएम मोदी ने कमलनाथ को बीजेपी में लाने से इंकार कर दिया है। बीजेपी के इस फैसले के बाद कमलनाथ अब क्या कुछ करेंगे इसे देखने की बात होगी। लेकिन जानकर तो यह भी कह रहे हैं कि अब कमलनाथ न घर के रहे, न घाट के।इनका इकबाल अब खत्म हो गया। उन्होंने कांग्रेस का विश्वास खो दिया और बीजेपी ने उनको नकार दिया।

कमलनाथ कांग्रेस के स्तंभ रहे हैं। इंदिरा गांधी ने उन्हें अपना तीसरा बेटा तक कहा था। इंदिरा का कमलनाथ पर खूब एतबार था। कमलनाथ भी पक्के कांग्रेसी थे। करीब 50 साल तक उन्होंने कांग्रेस की राजनीति की। उन्होंने कांग्रेस को भी दिया हो लेकिन कांग्रेस ने तो उन्हें बहुत कुछ दिया। कई बार सांसद बने। विधायक बने। मंत्री बने। मुख्यमंत्री बने। संगठन में रहे। प्रदेश के अध्यक्ष रहे। लेकिन सच यह भी है कि सब कुछ रहते हुए भी उन्होंने कांग्रेस को कमजोर ही किया। एक झटका सिंधिया ने दिया लेकिन उस झटके को वे रोक नही पाए। कांग्रेस को लगा था कि इस बार के चुनाव में पार्टी की जीत होगी लेकिन वह भी संभव नहीं हुआ। पार्टी बुरी तरह से हार गई।

कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर पार्टी को कमजोर किया और बीजेपी की सरकार बनाने में बीजेपी को मदद की।फिर भी पार्टी ने उन्हें कुछ भी नहीं कहा। राहुल गांधी कहते थे कि कांग्रेस भले ही राजस्थान में हार सकती है लेकिन एमपी में उसकी जीत होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सच तो यह भी है कि कमलनाथ ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी अंधेरे में रखा।

पार्टी की हार हुई। पार्टी ने स्वीकार किया। कायदे से इस हार की जिम्मेदारी लेते हुए कमलनाथ को खुद ही पार्टी के नेतृत्व को इस्तीफा दे देना चाहिए था।लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। अंत में पार्टी को उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाना पड़ा। कमलनाथ को उम्मीद थी कि उन्हें फिर से राज्य सभा में भेजा जाएगा लेकिन पार्टी ने यह जरूरी नहीं समझा। कमलनाथ नाराज हो गए।बिफर गए। उन्होंने अपने बेटे की राजनीति को स्थापित करने की तैयारी की।

बीजेपी-संघ के साथ दोस्ती बढ़ाई। बीजेपी में जाने की तैयारी की। एक पखवाड़े से उन्होंने जो माहौल खड़ा किया है उससे उन्होंने खुद को और पार्टी के इकबाल को खराब किया है। कांग्रेस मान रही है कि इस लोकसभा चुनाव में भले ही उसे कोई बड़ा लाभ न मिले लेकिन अब कांग्रेस को इस बात की जानकारी मिल गई है कि बूढ़े और थके नेताओं को अगर पार्टी से जाना है तो उन्हें कौन रोक सकता है। अगर सब कुछ पाकर भी कमलनाथ पार्टी छोड़ सकते हैं तो पार्टी को उनके लिए सोचने की क्या जरूरत है।

कमलनाथ ने कांग्रेस में रहकर जितनी इज्जत और शोहरत पाई थी अब सब कुछ गवां बैठे हैं। उनका इकबाल खत्म हो गया है। अब पार्टी का एक मामूली कार्यकर्ता भी इनको अच्छी निगाह से नहीं देख पाएगा। पुत्र मोह में कमलनाथ जो कर गए वह अब उनकी राजनीति के लिए अंतिम खेल ही माना जा सकता है।

कमलनाथ के लोग ही कह रहे हैं कि उन्होंने बीजेपी में जाने के लिए बहुत कुछ किया है। लेकिन सच यही है अब बीजेपी ने ही उन्हें नकार दिया है। बीजेपी ने पहले उन्हें आगे बढ़ाया और अब उन्हें मझधार में छोड़ दिया। कैलाश विजयवर्गीय ने साफ तौर पर उनकी मुखालफत की। उन्होंने साफ कहा कि थके हारे लोगों को बीजेपी में लाने से कोई लाभ नहीं है। एमपी बीजेपी इसे कतई स्वीकार नहीं करेगी। विजयवर्गीय ने तो यह तक कहा कि अगर कमलनाथ बीजेपी में आते हैं तो इससे प्रदेश बीजेपी में भी विरोध शुरू होगा और पार्टी कमजोर होगी। लोकसभा चुनाव पर इसका असर पड़ेगा।यहीं से कमलनाथ का खेल खराब हो गया। 

कमलनाथ क्या करेंगे यह तो कोई नहीं जानता लेकिन अब कमलनाथ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मिलने और बात करने के लिए भी सहारे लेते फिर रहे हैं।खबर के मुताबिक कई अन्य माध्यमों से उन्होंने पार्टी के बड़े नेताओं से बातचीत की है लेकिन अब उनके खेल से पार्टी काफी आहत हो गई है। 

अब कांग्रेस प्रदेश के नेताओं को एक करने और संगठन को मजबूत करने को तैयार है।

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके बेटे सांसद नकुलनाथ के भाजपा में शामिल होने की अटकलों के बीच कांग्रेस एकजुटता दिखाने का प्रयास कर रही है। प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को बैठक बुलाई है। सभी विधायक और वरिष्ठ नेता इस बैठक में मौजूद रहेंगे। 

विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कांग्रेस को यह भी एहसास है कि गांधी परिवार से रिश्तों के बावजूद दिग्गज कमलनाथ के जाने से डैमेज होगा। इसलिए एमपी के एक वरिष्ठ नेता ने मोर्चा संभाला और कमलनाथ की कांग्रेस आलाकमान से चर्चा करवाई। कांग्रेस हाई कमान और कमलनाथ के बीच रविवार को बातचीत हुई। आलाकमान ने कमलनाथ को साफ संदेश दिया है कि पिता कांग्रेस में और बेटा भाजपा में ये सब नहीं चलेगा।

नाथ से यह भी कहा गया है कि आपने पार्टी और देश के लिए बहुत कुछ किया है। पार्टी ने हमेशा सम्मान किया है, आगे भी करती रहेगी। इसी के बाद कथित दल-बदल पर पेंच फंस गया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी भी बोले कि कमलनाथ जी ने कहा है, जो बातें आ रही हैं, सब भ्रम हैं। लोकतंत्र में हार-जीत लगी रहती है। हर परिस्थिति में कांग्रेस के विचार के साथ जीवन जिया है और अंतिम सांस तक जीएंगे।

इस बीच एमपी कांग्रेस में टूट की खबरों को लेकर प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह को जिम्मेदारी दी गई है। जितेंद्र सिंह कल मंगलवार को राजधानी भोपाल जाएंगे, जहां वे विधायकों के साथ वन टू वन चर्चा करेंगे। 

सूत्रों की मानें तो कमलनाथ की बजाय उनके बेटे नकुलनाथ और बहू प्रिया नाथ भाजपा जॉइन करेंगे। हालांकि, ये अब तक साफ नहीं हो पाया है कि वे भाजपा में कब शामिल होंगे। वहीं, कमलनाथ भाजपा में शामिल होने की बजाय राजनीति से संन्यास या चुनावी राजनीति से दूर रहने की घोषणा कर सकते हैं। उधर, 21 फरवरी को मुख्यमंत्री मोहन यादव का छिंदवाड़ा में दौरा प्रस्तावित है। सियासी जानकारों का कहना है कि इस दौरे पर कमलनाथ के कई समर्थक भाजपा की सदस्यता ले सकते हैं। लेकिन सच क्या है यह कौन जानता है? कांग्रेस ने अब कमलनाथ को फ्री कर दिया है। वे कहीं भी जा सकते हैं और अगर नहीं जाते हैं तो उन्हें खुद तय करना है कि उनके साथ पार्टी अब क्या करे।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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