हाल के वर्षों में आईटी और स्टार्टअप के क्षेत्र में ही सबसे अधिक युवाओं को रोजगार प्राप्त हुआ है, और लगभग सभी महानगरों में शहरी युवाओं की जुबान पर यदि कोई एक नाम सबसे प्रमुखता से आता है तो वह है बेंगलुरु। कर्नाटक राज्य में इस समय विधानसभा चुनावों के चलते चुनावी खुमार पूरे शबाब पर है। समूचे देश भर के नए शिक्षित युवाओं के लिए भविष्य के सपनों को साकार करने वाले इस शहर और राज्य की क्या दशा-दिशा है, इसको लेकर भारतीय आम मध्य वर्ग में भी लगातार कौतुहल बना हुआ है।
दक्षिण भारत के इस राज्य को दक्षिण का प्रवेश द्वार भी माना जाता है। हाल के दिनों में देश ही नहीं विश्व की नामचीन कॉर्पोरेट हस्तियों ने भारत में इसे अपना पसंदीदा निवेश स्थान चुना है। लेकिन नीति आयोग की रिपोर्ट एवं अन्य संकेत बताते हैं कि सब कुछ अच्छा नहीं है। राज्य कई मानकों पर पिछड़े राज्यों की सूची में शामिल है। यही नहीं कई मानकों में इसका स्तर पहले की तुलना में गिरा है।
2015-16 की तुलना में आज यहां पर हालात बदतर हुए हैं। इसकी आर्थिक प्रगति, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता से संबंधित क्षेत्रों में परिलक्षित नहीं हो पा रही है। इतना ही नहीं, राज्य की जो बेहतर आर्थिक प्रगति दिखती भी है, वह इसके पर्यावरण से संबंधित मानकों की कीमत पर हासिल की गई है। यह अपने आप में इस विकास की असली हकीकत बयां करती है, जो इसे आने वाले वर्षों में चुकानी होगी।
नीति आयोग द्वारा जारी ‘द नेशनल मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स’ की रिपोर्ट में कर्नाटक राज्य में वर्ष 2005-6, 2015-16 और 2019-21 की स्थिति को दर्शाया गया है। उदाहरण के लिए बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट को यदि देखें तो 2005-6 में जहां कुल 28 राज्यों में से कर्नाटक का स्थान 16वें पायदान पर था, 2015-16 में इसमें गिरावट देखी गई और यह 28 राज्यों में 21वें स्थान पर लुढ़क गया था। 2019-21 में इसमें सुधार के बजाय गिरावट का क्रम बना हुआ था, और 30 राज्यों में कर्नाटक लुढ़ककर 24वें स्थान पर पहुंच गया है।
महिलाओं में 18 वर्ष से पहले विवाह के प्रतिशत में मामूली सुधार देखने को मिलता है। 20-24 आयु वर्ष की महिलाओं में 2015-16 में यह 21.4% के साथ 30 राज्यों में 18 वें स्थान पर था, उसमें मामूली सुधार के साथ 2019-20 में यह 21.3% हो गया है, हालांकि अन्य राज्यों में बढ़ती जागरूकता के करण राज्य रैंकिंग में एक स्थान लुढ़ककर यह 19 वें स्थान पर पहुंच गया है।
इसी तरह स्वास्थ्य बीमा योजना के मामले में 2005-6 में कुल 28 राज्यों में कर्नाटक का स्थान जहां 5वें स्थान पर था, 2019-20 में इसमें भारी गिरावट के साथ 30 में 20वें स्थान पर खिसक गया है। शिशु मृत्यु दर में राज्य की रैंकिंग बेहद चौंकाने वाली है। 2015-16 में 8वें स्थान से 2019-21 में राज्य 13वें स्थान पर लुढ़क चुका है। वास्तव में देखें तो लगभग अधिकांश सामाजिक सूचकांकों में राज्य की रैंकिंग 2015-16 की तुलना में बदतर ही हुई है।
वहीं दूसरी तरफ पिछले दो दशकों से कर्नाटक की आर्थिक प्रगति कागजों पर इसे देश का सबसे चमकदार राज्य बना देती है। 1993-94 में कुल 27 राज्यों में राज्य को 14वीं रैंकिंग हासिल थी, जोकि 2020-21 में गोवा, सिक्किम और दिल्ली के बाद चौथे पायदान पर हो गई। इस लिहाज से कहें तो बड़े राज्यों में कर्नाटक पहले ही प्रथम स्थान पर काबिज हो चुका है। लेकिन इस आर्थिक उछाल से वास्तव में राज्य की संपूर्ण आबादी को समान लाभ नहीं पहुंचा है, बल्कि यह वृद्धि कुछ शहरी क्षेत्रों के हिस्से में ही आई है।
वास्तव में देखें तो दक्षिण भारत में गरीबी सूचकांक में कर्नाटक सबसे निचले क्रम पर है। राज्य में आर्थिक विकास बेहद असमान है और राज्य का उत्तरी हिस्सा सबसे अधिक प्रभावित है। विकास का यह लाभ राज्य के सभी हिस्सों के नसीब में नहीं आया है। 2021 के एक सर्वेक्षण में कुछ चौंकाने वाले नतीजे सामने आये थे, जिसमें बताया गया था कि पोषण के मामले में दक्षिण के राज्यों में कर्नाटक सबसे फिसड्डी बना हुआ है।
करीब 34 प्रतिशत आबादी के पास समुचित आहार उपलब्ध नहीं था। इस सर्वेक्षण से खुलासा हुआ था कि मातृत्व स्वास्थ्य सेवा में कर्नाटक की 12.36%, पोषणाहार के मामले में 33.56%, रसोई गैस 22%, प्राथमिक शिक्षा के मामले में 8.7% आबादी आज भी अभावग्रस्तता के बीच में जीवन गुजार रही है। इन सभी क्षेत्रों में दक्षिण के अन्य राज्य केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।
पर्यावरण से जुड़े मानकों में खतरनाक कचरे के उत्पादन के मामले में भी कर्नाटक की स्थिति खराब है। सबसे कम कचरा उत्पादन करने वाले 28 राज्यों की रैंकिंग में कर्नाटक 19वें स्थान पर काबिज है। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति जीवाश्म ईंधन खपत के मामले में भी राज्य 24वें स्थान (23 राज्य इससे बेहतर हैं) पर है। अपशिष्ट जल प्रबंधन में मात्र 87% उद्योग ही आते हैं और 30 राज्यों में राज्य 23वें स्थान पर है।
शिक्षा के मानकों में भी स्थिति कुछ ख़ास अच्छी नहीं है। 2018-19 में उच्च माध्यमिक एवं कालेज स्तर की शिक्षा के क्षेत्र में 30 राज्यों में इसे 15वां स्थान हासिल हो सका था। ‘स्कूल ड्रॉप-आउट रेट’ भी काफी उच्च स्तर पर बना हुआ है, और उच्च माध्यमिक स्तर पर ‘ड्रॉप-आउट’ के मामले में राज्य 22वें स्थान पर है।
राज्य के ‘मानव विकास सूचकांक’ की स्थिति में सुधार में बड़ी बाधा सामाजिक-आर्थिक मानकों में ठहराव जिम्मेदार है। 2019 की ‘एचडीआई इंडेक्स’ में राज्य को 30 राज्यों में 14वां मुकाम हासिल हो सका, हालांकि 1990 की तुलना में इसने 6 राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस आर्थिक विकास में कर्नाटक राज्य की भूमिका से अधिक श्रेय विदेशी निवेश, सर्विस सेक्टर में जबर्दस्त विकास को दिया जाना चाहिए। हालांकि इस विकास की अच्छी खासी कीमत कर्नाटक राज्य की बड़ी आबादी को भुगतना पड़ रहा है। यहां तक कि राज्य की राजधानी बेंगलुरु को आज देश में चोक (जाम) के रूप में सबसे अधिक जाना जाता है।
10 किमी की दूरी को भी पार करने में कई बार घंटों के जाम से गुजरना पड़ता है। अनियंत्रित विकास और रियल एस्टेट द्वारा अनधिकृत कब्जे ने हल्की बारिश में भी पूरे शहर को अक्सर जाम होते देखा है। पिछले वर्ष जिस प्रकार से बाढ़ के हालात शहर में बन गये थे, उसमें कॉर्पोरेट की ओर से राज्य सरकार को स्पष्ट चेतावनी दे दी गई थी कि यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो वे अपना कारोबार देश के किसी अन्य हिस्से में ले जायेंगे।
आगामी विधानसभा चुनाव में जहां शहरी मतदाता बेहतर सार्वजनिक परिवहन सेवा के साथ-साथ, जल निकासी और प्रदूषण मुक्त, स्वच्छ पेयजल को महत्व देंगे वहीं व्यापक कर्नाटक के मतदाताओं के लिए आज भी रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वस्थ्य पोषण एक वास्तविक हकीकत बना हुआ है।
(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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