Sunday, April 28, 2024

विश्व गुरू नहीं मजदूरों का अंतरराष्ट्रीय सप्लायर केंद्र बन रहा है भारत

यह अजीब विडंबना है कि देश के लोकतंत्र को 75 साल से ऊपर हो गए हैं। लेकिन जो पचहत्तर सालों में नहीं हुआ वह इस दौर में देखने को मिल रहा है। देश का प्रधानमंत्री एक मंदिर के सामने खड़ा होकर देशवासियों से वोट की भीख मांग रहा है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बदले वह देश के नागरिकों से एक अदद वोट चाहता है। एक लोकतांत्रिक मुल्क में यह अपने किस्म की अजूबी घटना है। यह काम उस राम के नाम पर किया जा रहा है जिसके राज को आदर्श राज्य के तौर पर पेश किया जाता रहा है। राम राज्य का पैमाना ही प्रजा यानि जनता की खुशियों से नापा जाता था। जिस राज्य में कोई दुखी नहीं था। कोई दीन-हीन नहीं था। हर शख्स पूरे स्वाभिमान के साथ जीवन जीता था। किसी तरह के ऊंच-नीच के भेदभाव की उसमें गुंजाइश नहीं थी। लेकिन क्या पीएम मोदी अपने 10 सालों के शासन में इन कसौटियों पर कहीं खरे उतरते हैं? 

राम की प्रतिमा स्थापित करने से राम राज्य आ जाएगा इस बात को कोई अंध भक्त या बेअक्ल ही मान सकता है। नहीं तो पिछले दस सालों में देश की अर्थव्यवस्था की क्या तस्वीर रही है? लोगों का जीवन स्तर कैसा रहा? स्वास्थ्य और रोजगार की क्या स्थितियां रहीं? आदि तमाम पैमानों पर देश कहां खड़ा है? इन सबके मूल्यांकन के बाद कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। अगर देश की अर्थव्यवस्था की बात की जाए तो सेंसेक्स के गुब्बारे से अर्थव्यवस्था का पेट जितना भी फुला दिया जाए लेकिन समझदार लोग जानते हैं कि यह बुलबुला कितना स्थाई होता है। आसमान से जमीन पर गिरने में उसे चंद मिनट भी नहीं लगते हैं। देश पर कर्जे का बोझ इस कदर बढ़ गया है कि हर नागरिक की पीठ पर लाखों का कर्जा लद गया है। 2014 में जब मोदी जी सत्ता में आए थे तो देश पर कुल कर्जे का बोझ 55 लाख करोड़ रुपया था। इन 10 सालों में यही कर्जा बढ़कर अब 205 लाख करोड़ हो गया है। 

कर्ज लेकर घी पीने की कहावत तो हमने सुनी थी लेकिन मोदी जी इसको चरितार्थ करते दिख रहे हैं। और ऊपर से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनामी बनने की बात भी बीच-बीच में दोहराते रहते हैं। अमूमन तो जिस ग्रोथ रेट से भारत आगे बढ़ रहा था उससे अपने आप उसका उस लक्ष्य तक पहुंचना तय था। लेकिन इस इकॉनामी में धन के वितरण की जो स्थिति है उसमें अमीरों की अमीरी बढ़ी और गरीबों की गरीबी बढ़ने के साथ ही उनकी संख्या भी उसी हिसाब से बढ़ गयी। और अब स्थिति यह है कि गरीबी की रेखा के नीचे जीवन जीने वालों की तादाद 22 फीसदी से ऊपर हो गयी है। धन का पूरा केंद्रीकरण ऊपर के 5 फीसदी हिस्से के हाथ में है। बाकी जनता पीएम मोदी के दिए जा रहे अनाज पर जिंदा रहने के लिए मजबूर है।

सरकार खुद अपने आंकड़ों और बयानों में बता रही है कि देश में 80 करोड़ लोग गरीब हैं और उन्हें अपने दो वक्त की रोटी के लिए सरकारी सहायता की दरकार है। अब कोई पूछ सकता है कि क्या कोई देश अपनी दो-तिहाई आबादी के गरीब रहते खुद के विकसित देश या फिर विश्व गुरू होने का दावा कर सकता है? यह बात वही कर सकता है जिसको अर्थव्यवस्था की या तो रत्ती भर समझ नहीं है या फिर वह पूरी तरह से दिमागी तौर पर दिवालिएपन का शिकार है। बेरोजगारी का आलम यह है कि इसने पिछले 45 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। लोगों ने अब रोजगार पाने की इच्छा ही त्याग दी है। नाउम्मीदी इस स्तर पर पहुंच गयी है।

देश में अच्छे दिन लाने के वादे किये गए थे। 10 साल के बाद की स्थिति यह है कि 22 लाख से ज्यादा ऊपरी हिस्से के लोग देश छोड़कर विदेश में बस गए हैं। और उन्होंने देश में उफनते राष्ट्रवाद से हमेशा-हमेशा के लिए सलामी कर ली है। जिस सूबे को मॉडल बनाकर पीएम मोदी सत्ता में आए थे उसकी हकीकत अब पूरी दुनिया को पता चल रही है। देश भर को राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाने वाले इस सूबे के ऊपरी हिस्से के लोग येन-केन-प्रकारेण विदेश में बस जाने के लिए उद्धत हैं। भले ही उनको वहां मजदूरी करनी पड़े या फिर ट्रक ड्राइवरी या कि पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरना पड़े। उन्होंने किसी भी कीमत पर विदेश की धरती पर बसने की ठान ली है। और इसके लिए वो अपनी जान की बाजी भी लगाने के लिए तैयार हैं।

फ्रांस में रोके गए विमान में आधे से ज्यादा लोग गुजराती थे जो दुबई के रास्ते निकारागुआ पहुंचकर कनाडा या फिर मैक्सिको के रास्ते अमेरिका पहुंचना चाहते थे। ऐसा नहीं है कि इनमें कोई गरीब था। इन सभी ने न्यूनतम 30-70 लाख रुपये तक इसके लिए दे रखे थे। ये ऐसे लोग हैं जो इस देश में रहना ही नहीं चाहते हैं। क्योंकि इन्हें लगता है कि उनके लिए इस देश में कुछ नहीं रखा है। यहां उनका और उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं है। और लाख कोशिशों के बाद भी वो अपने ख्वाबों को यहां पूरा नहीं कर सकते हैं। अब अगर इस देश के भीतर आगे बढ़े हिस्से के लिए इस देश में कुछ नहीं रखा है तो सरकारी अनाज पर पलने वाले देश के बड़े हिस्से के लिए भला क्या बचा है? पिछले दस सालों में सरकार ने देश की जनता को यही दिया है। 

मोदी सरकार इस हकीकत को जानती है। लिहाजा उसकी हरचंद कोशिश है कि इन मुद्दों पर कोई बहस ही न होने पाए। इसीलिए वह कभी मुस्लिम विरोध तो कभी राम मंदिर के एजेंडे को आगे उछालती रहती है। उसने देश में मुस्लिम विरोध का एक ऐसा नशा तैयार कर दिया है जो उसके भक्तों की रोजाना की खुराक बन गयी है। और कश्मीर से लेकर असम और अयोध्या से लेकर दक्षिण के तमिलनाडु तक वह समय-समय पर इसको उद्गारती रहती है और इस बात की गारंटी करती है कि भक्तों को नियमित तौर पर इसकी खुराक मिलती रहे जिससे उन्हें कतई होश में आने का मौका न मिले। राम मंदिर का निर्माण भी उसका इसी दिशा में एक बड़ा पड़ाव है। जिसके सहारे उसे चुनाव की वैतरणी पार करनी है। क्योंकि उसे पता है कि हकीकत अगर सामने आ गयी तो सरकार को लेने के देने पड़ जाएंगे।

हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि भारत दुनिया के लिए मजदूर सप्लाई का केंद्र बन गया है। खुद को विश्व गुरू का तमगा देने वाली सरकार ने इस्राइल, ग्रीस और इटली से इस तरह के समझौते किए हैं। जिसके तहत भारत से इन देशों में सस्ते दर पर काम करने वाले मजदूरों की सप्लाई की जाएगी। इस्राइल ने अपनी कृषि समेत श्रम के तमाम क्षेत्रों से फिलिस्तीनियों को हाल में निकाला है उसकी जगह पर उसने भारत से मजदूर लेने का फैसला किया है। इसी तरह का समझौता मोदी सरकार ने ग्रीस और इटली से भी किया है। एक समझौते के तहत 18 हजार मजदूर इटली भेजे जाने हैं। इस पूरी परिघटना ने एक बार फिर से अंग्रेजी शासन के दौर की गिरमिटिया मजदूरों की यादें ताजा कर दी हैं। जिसमें मजदूरी करने के लिए अंग्रेज यहां के गरीब मजदूरों को बड़ी तादाद में मरीशस से लेकर अफ्रीका के विभिन्न देशों में ले जाते थे।

वैश्विक ताकत बनने का दावा करने वाली मोदी सरकार की यही असलियत है। और देश को उसने कहां पहुंचा दिया है ये समझौते उसकी खुली बयानी हैं। देश में दो करोड़ रोजगार देने के वादे के साथ आयी सरकार ने वह काम किया है जिसकी अभी तक पिछली सरकारें हिम्मत तक नहीं कर सकी थीं। इस पूरी परिघटना ने एक स्वतंत्र और स्वाभिमानी राष्ट्र के तौर पर भारत के पूरे वजूद पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। क्या मोदी और उनके भक्त इस बात की कोई दूसरी मिसाल दे सकते हैं जिसमें कोई राष्ट्र विकसित हो और उसके नागरिक दूसरे देशों की जमीन पर मज़दूरी करने के लिए अभिशप्त हों? लेकिन मोदी शायद अपने भक्तों को यह समझाने में कामयाब हो जाएं कि वैश्विक शक्ति रहते भी मजदूर सप्लाई केंद्र बना रहा जा सकता है। और भक्त मोदी सरकार के इस पक्ष पर कोई सवाल भी नहीं उठाएं। और यहां तक कि अगर वो इसको मोदी का एक और ‘मास्टर स्ट्रोक’ करार देने लगें तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के फाउंडर एडिटर हैं।)

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Osgk
Osgk
Guest
3 months ago

चल chutiya news वाला पहले school में बढ़ाई कर जब reporter banna….i love ❤️ मोदी ❤️

Aditya
Aditya
Guest
3 months ago

मुस्लिम नस्ल के कांग्रेसी प्रवक्ता । मोदी किससे वोट मांग रहे है। क्या लेखक को मुस्लिम यादव युति से जन्मे जाति वादी पारिवारिक सत्ताएं दिखती है। परिवारवादी लोगो का चुनाव तंत्र दिखता है जहां पार्टी में लोकतंत्र नहीं अपितु पारिवारिक विरासत से सत्ता मिलती है।

Vishu
Vishu
Guest
3 months ago

मिर्ची ज्यादा लग रहीं है

VIJAY MEHRA
VIJAY MEHRA
Guest
3 months ago

IT IS VERY TRUE AND INFORMATIVE
DETAILS.
EVERY BODY TO STUDY GIVE WARNING TO CENTRAL GOVT.

जितेन्द्र
जितेन्द्र
Guest
3 months ago

सच तो है। पर‌ अंध विश्वास है लोगों में,
भेदभाव हैं। लोगों में,समय भी नहीं है सरकार से सवाल करने का, हिम्मत तो खत्म है। भारतीय पत्रकारिता के पत्रकारों की छक्के हैं सब पत्रकार बसताली बजाते हैं। देश कि बर्बादी पर

Op patel
Op patel
Guest
2 months ago

Ram mandir 500saal bana hi
Nahi banta to hindu musalman kat pit jaate

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