Thursday, April 25, 2024

सुप्रीमकोर्ट के धैर्य की परीक्षा ले रही है मोदी सरकार, फटकार पर पलटी

उच्चतम न्यायालय और मोदी सरकार के बीच खुलकर टकराव देखने को मिल रहा है। मोदी सरकार को पिछले चार चीफ जस्टिसों, जस्टिस खेहर, जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एसए बोबडे के कार्यकाल की आदत पड़ी हुई है। मोदी सरकार उच्चतम न्यायालय में शुतुरमुर्गी चाल चल कर यह देखने का प्रयास कर रही है कि उच्चतम न्यायालय किस हद तक जा सकता है। पहले तो ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट के क्रियान्वयन पर सरकार टालमटोल करती रही जब उच्चतम न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाया तो ट्रिब्यूनलों में चुन-चुनकर नियुक्तियां कर दी। जब इस पर उच्चतम न्यायालय ने कड़ी फटकार लगाई तो सरकार की ओर से कहा गया कि वह पुनर्विचार के लिए तैयार है। इसके पहले पेगासस मामले में भी सरकार तीन चार हफ्ते के टालमटोल के बाद विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से इनकार करके गेंद उच्चतम न्यायालय के पाले में फेंक रखी है।   

ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट को चुनौती देने वाली पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है और कहा है कि उसकी सिफारिश लिस्ट से चुन-चुनकर नियुक्तियां क्यों की जा रही हैं? उच्चतम न्यायालय ने सिफारिश किए गए सभी लोगों को दो हफ्ते के अंदर नियुक्त करने और जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश केंद्र सरकार को दिया है।

इस दौरान अटॉर्नी जनरल और चीफ जस्टिस समेत दूसरे जजों के साथ गर्मागरम बहस हुई। कोर्ट ने ट्रिब्यूनल नियुक्तियों के लिए अपनी सिफारिशों से चुन-चुनकर। उच्चतम न्यायालय ने हो रही नियुक्तियों पर सरकार को फटकार लगाई। उच्चतम न्यायालय ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) और इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (आईटीए टी) में नियुक्तियों पर ये नाराजगी जताई है। सुनवाई में चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि दो हफ्ते के बाद सभी लोगों की नियुक्ति पत्र के साथ वापस आइए। और अगर किसी की नियुक्ति नहीं हुई है तो उसका कारण भी बताइए।

चीफ जस्टिस ने कहा कि मैंने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की नियुक्तियां देखी हैं। अधिक नामों की सिफारिशें की गईं लेकिन नियुक्तियों में ‘चेरी पिकिंग’ की गई। यह किस तरह का चयन है? आईटीएलटी सदस्यों के साथ भी यही किया गया।

चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने हाल ही में राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) और आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) में नियुक्तियों के तरीके के लिए सरकार से नाखुशी व्यक्त की। पीठ ने कहा कि केंद्र ने खोज-सह-चयन समिति द्वारा तैयार की गई चयन सूची में से कुछ नामों को चेरी-पिक किया और चयन सूची में नामों की अनदेखी करते हुए प्रतीक्षा सूची से कुछ नाम उठाए हैं। चयन समिति ने 9 न्यायिक सदस्यों और 10 तकनीकी सदस्यों की सिफारिश की है। नियुक्ति पत्र में 3 नामों को चयन सूची से और अन्य को प्रतीक्षा सूची से चेरी पिक का संकेत देते हैं, चयन सूची में अन्य को अनदेखा करते हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि सेवा कानून में, आप चयन सूची की अनदेखी करके प्रतीक्षा सूची में नहीं जा सकते। यह किस तरह की नियुक्ति है? हम साक्षात्कार आयोजित करने के बाद लोगों का चयन करते हैं और सरकार कहती है कि हम उन्हें नहीं चुन सकते। मैं एनसीएलटी के लिए चयन समिति का भी हिस्सा हूं। हमने न्यायिक सदस्यों के लिए 534 और तकनीकी सदस्यों के लिए 400 से अधिक लोगों का साक्षात्कार किया है। उसमें से, हमने 10 न्यायिक सदस्यों की सूची और 11 तकनीकी सदस्यों की सूची दी है। न्यायिक सदस्यों की सूची में से, उन्होंने 1,3,5, 7 का चयन किया और फिर प्रतीक्षा सूची के लिए चले गए।

चीफ जस्टिस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कोविड के दौरान नामों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए विस्तृत अभ्यास किया और सभी प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं। हमने देश भर में यात्रा की। हमने बहुत समय बिताया। कोविड के दौरान, आपकी सरकार ने हमसे जल्द से जल्द साक्षात्कार आयोजित करने का अनुरोध किया। हमने इतना समय बर्बाद किया। चीफ जस्टिस ने कहा कि नवीनतम नियुक्ति आदेशों के अनुसार, न्यायिक सदस्यों को प्रभावी रूप से केवल एक वर्ष का कार्यकाल मिलेगा। उन्होंने पूछा कि कौन सा जज इस नौकरी में एक साल के लिए शामिल होने जाएगा?

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार को समिति द्वारा अनुशंसित नामों को स्वीकार नहीं करने का अधिकार है। लेकिन इस दलील से पीठ सहमत नहीं हुयी। चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कानून के शासन का पालन करने वाले लोकतांत्रिक देश हैं। हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते।

जस्टिस नागेश्वर राव ने कहा कि अगर सरकार के पास अंतिम शब्द है तो प्रक्रिया की पवित्रता क्या है? चयन समिति नामों को शॉर्ट-लिस्ट करने के लिए विस्तृत प्रक्रिया करती है। टीडीसैट के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। एनसीडीआरसी के लिए चयन समिति के प्रमुख जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एनसीडीआरसी में भी सिफारिशें की गईं, सूची को छोटा कर दिया गया और नियुक्तियां की गईं।

जस्टीस नागेश्वर राव ने कहा कि मद्रास बार एसोसिएशन के मामलों में निर्णय ने निर्देश दिया था कि सरकार को 3 महीने के भीतर सिफारिशों को मंज़ूरी देनी चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि चयन सूची समाप्त होने के बाद प्रतीक्षा सूची को शामिल किया गया था। इसके बाद पलटी मारते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उनके पास सरकार की ओर से यह कहने के निर्देश हैं कि सरकार पुनर्विचार के लिए तैयार है।

मद्रास बार एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने कहा कि एनसीएलटी और आईटीएटी के लिए नवीनतम नियुक्ति आदेशों में उल्लेख है कि नियुक्तियां अगले आदेश तक हैं। इसका मतलब है कि सदस्यों का कार्यकाल किसी भी समय समाप्त किया जा सकता है। दातार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति है, जिसे न्यायालय द्वारा रोकने की आवश्यकता है।

अटॉर्नी जनरल ने माना कि ये सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश तक होने चाहिए थे क्योंकि ट्रिब्यूनल एक्ट की वैधता अब चुनौती के अधीन है। यह सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश तक होना चाहिए था, जिसे शामिल किया जाना चाहिए था ।

चीफ जस्टिस ने एजी से कहा कि श्रीमान एजी अगर आप अदालत से आदेश मांगे बिना कुछ कर सकते हैं तो हमें खुशी है। चीफ जस्टिस ने कहा कि सदस्यों की नियुक्ति ही एकमात्र समाधान है।

अटॉर्नी जनरल ने पीठ को आश्वासन दिया कि नियुक्तियां दो सप्ताह के भीतर की जाएंगी और यदि नियुक्तियां नहीं की जाती हैं, तो ठोस कारण बताए जाएंगे। चीफ जस्टिस ने मामले को स्थगित करते हुए कहा कि हम आपको दो सप्ताह का समय दे रहे हैं। नियुक्तियों के लिए एक व्यापक योजना के साथ आइए।

पिछली सुनवाई पिछले अवसर पर उच्चतम न्यायलय ने ट्रिब्यूनल में रिक्तियों को भरने में देरी और ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट पारित करने के लिए केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की थी, जिसे कोर्ट ने अदालत द्वारा हटाए गए प्रावधानों की वर्चुअल प्रतिकृति करार दिया था। सीजेआई ने शुरुआत में कहा कि इस अदालत के फैसलों का कोई सम्मान नहीं है। आप हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं! कितने व्यक्तियों को नियुक्त किया गया था? आपने कहा था कि कुछ व्यक्तियों को नियुक्त किया गया था? कहां हैं नियुक्तियां? 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधिकरण अधिनियम वस्तुतः मद्रास बार एसोसिएशन में इस न्यायालय द्वारा रद्द किए गए प्रावधानों की प्रतिकृति है। जस्टिस नागेश्वर राव, जिन्होंने पिछले दो मद्रास बार एसोसिएशन के फैसले लिखे थे, ने सॉलिसिटर जनरल से जानना चाहा कि नियुक्तियां अदालत द्वारा पारित विभिन्न निर्देशों के अनुरूप क्यों नहीं की गई हैं। 6 अगस्त को पहले की सुनवाई के दौरान, सीजेआई ने ट्रिब्यूनल की रिक्तियों का एक चार्ट पढ़ा था और देखा था कि न्यायालय को यह आभास हो रहा है कि नौकरशाही नहीं चाहती कि ट्रिब्यूनल कार्य करें।

उच्चतम न्यायालय ने तब केंद्र सरकार से रिक्तियों को समय पर भरने के संबंध में स्पष्ट रुख बनाने के लिए कहा था। कोर्ट ने केंद्र को चेतावनी दी थी कि अगर स्थिति का समाधान नहीं किया गया तो वह सरकार के शीर्ष अधिकारियों को अदालत के समक्ष तलब करेगी, और भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि यह आभास हो रहा है कि नौकरशाही नहीं चाहती कि ये निकाय काम करें। बहुत खेदजनक स्थिति है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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