पाटलिपुत्र का रण: राजद के निशाने पर होगी बीजेपी तो बिगड़ेगा जदयू का खेल

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”बिहार में बहार, अबकी बार नीतीश सरकार” का स्लोगन इस बार धूमिल पड़ा हुआ है। सूबे की जनता इस बार इस स्लोगन का रट नहीं लगा रही। कहने के लिए पटना के चौराहों पर तरह-तरह के पोस्टर लगे हुए हैं, लेकिन कोई भी पोस्टर नीतीश की कामयाबी के लिए आकर्षित नहीं करते। राजनीतिक  जानकार इन पोस्टरों पर अपनी राय भी रखते हैं। जानकारों का कहना है कि अब पहले जैसा नीतीश का इकबाल नहीं रहा। लोग झूट की राजनीति से त्रस्त भी हो गए हैं। जिस तरह चुनाव से पहले राज्य और केंद्र सरकार घोषणाएं कर रही हैं, उससे जनता में निराशा है। जनता मान गई है कि यह सब ‘चुनावी लॉलीपॉप’ है। सरकार को बिहार में कुछ करना ही था तो पहले क्यों नहीं किया! अब जब चारों तरफ से रोजगार की मांग होने लगी तो बीजेपी-जदयू वाले झांसा देने निकले हैं! इसी झांसे की वजह से जदयू के विधायक जहां-तहां पीटे भी जा रहे हैं। साफ़ है कि इस चुनाव में एनडीए की मुश्किलें बढ़ेंगी।

राजद के निशाने पर बीजेपी
राजद के निशाने पर बीजेपी है। महागठबंधन के भीतर की रणनीति यह है कि राजद का फोकस बीजेपी उम्मीदवारों को टारगेट करना होगा, जबकि महागठबंधन के अन्य घटक दल मिलकर जदयू की राजनीति को चुनौती देंगे। इस समीकरण पर कई तरह के काम चल रहे हैं। राजद के नेता कई प्लान पर काम कर रहे हैं।

बीजेपी का 14 जिलों में नहीं खुला था खाता
पिछले 2015 के चुनाव में बीजेपी को बड़ा धक्का लगा था। पिछले चुनाव में महागठबंधन के साथ नीतीश कुमार भी साथ थे। सीटों की रणनीति ऐसी बनी थी कि बीजेपी को काफी हानि हुई थी और बीजेपी सूबे के 14 जिलों में अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। बीजेपी कई परंपरागत सीटें बचाने में भी असफल हो गई थी, हालांकि इस बार नीतीश फिर से बीजेपी के साथ हैं, लेकिन नीतीश की परेशानी यह है कि अगर वे अपनी जीती सीटें भी नहीं बचा पाती है तो सूबे की राजनीति में बीजेपी उसे कभी भी धोखा दे सकती है, इसलिए नीतीश का फोकस इस बार अपनी सीट बचाने पर होगा। ऐसे में राजद की कोशिश है कि जिन जिलों में बीजेपी का खाता नहीं खुला था वहां इस बार भी उसे मात दी जाए।

बिहार के शिवहर, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, भागलपुर, मुंगेर, शेखपुरा, भोजपुर, जहानाबाद, अरवल और बक्सर ऐसे जिले हैं, जहां महागठबंधन की सियासी ताकत के आगे बीजेपी पूरी तरह से धराशाही हो गई थी। इन 14 जिलों की कुल 61 विधानसभा सीटों में से एक भी सीट पर बीजेपी कमल नहीं खिला सकी थी।  वहीं, जेडीयू ने 29, आरजेडी ने 22, कांग्रेस ने नौ और एक सीट पर सीपीआई एमएल ने जीत का परचम लहराया था। इस बार वाम दल भी महागठबंधन के साथ हैं और माले का जनाधार सूबे के कई इलाकों में ज्यादा है, इसलिए राजद की कोशिश है कि माले के साथ मिलकर बीजेपी को ध्वस्त किया जाए।

भोजपुर इलाका माले का गढ़ रहा है। यहां माले की लड़ाई रणवीर सेना से होती रही है। खबरों के मुताबिक़ भोजपुर इलाके में राजद ने बीजेपी को जमींदोज करने की तैयारी कर ली है।

एनडीए की नजर 32 सीटों पर
इस बार बिहार का चुनावी नजारा काफी दिलचस्प है। एनडीए की कोशिश जहां कांग्रेस, राजद और भाकपा माले की 32 विधानसभा सीटों पर है और उसे किसी भी सूरत में अपने पाले में लाने की है, वहीं राजद की कोशिश बीजेपी को ख़त्म करने की है। जिन 32 सीटों पर एनडीए की नजरें टिकी हैं, अभी महागठबंधन के पास है। बीजेपी इन सीटों को अपने पास लाना चाहती है, जबकि विपक्ष का खेल बीजेपी को हराने का है। बता दें कि  जेडीयू को अपनी सीटें बचाए रखने की चुनौती है तो बीजेपी को अपनी परंपरागत सीटों को वापस राजद और कांग्रेस से छीनने का चैलेंज है। भाजपा अपनी परंपरागत सीटों पर जीत की रणनीति बना रही है। सीटों के बंटवारे में उसे जो भी क्षेत्र मिले हैं, इस बार उसके निशाने पर आरजेडी और कांग्रेस ही रहेगी।

बीजेपी के दिग्गज भी नहीं बचा सके थे सीट
महागठबंधन की लहर में बीजेपी के तमाम दिग्गज नेता भी अपनी परंपरागत सीट नहीं बचा पाए थे। भागलपुर में अश्वनि चौबे के बेटे की पराजय हुई थी, तो आरा की सीट पर विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष अमरेंद्र प्रताप सिंह भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। बीजेपी इस बार नीतीश के सहारे अपनी खोई हुई सियासी ताकत दोबारा से पाने के लिए बेताब है, लेकिन नीतीश की समस्या यह है कि पहले वह सरकार बनाने के लिए कम से कम उतनी सीटें भी जीत सके, जितनी सीटें उसे पिछले चुनावों में मिली थीं। ऐसे में वह किसी भी सूरत में बीजेपी को कोई लाभ पहुंचाने की स्थिति में नहीं होगी। ऊपर से राजद और कांग्रेस का खेल बीजेपी को और भी परेशान किए हुए है। 

बीजेपी के खेल पर महागठबंधन भारी
बीजेपी कई स्तर पर खेल करने में जुटी है। एक खेल तो वह जदयू के साथ मिलकर कर रही है जबकि दूसरा खेल वह अकेले दम पर करती नजर आ रही है। उसकी मंशा इस बार जदयू से ज्यादा सीटें जीतने की है, ताकि जदयू को सबक सिखाया जा सके। इसके लिए बीजेपी ने अपने कई सांसदों को इस काम में लगा दिया है। केंद्रीय कानून मंत्री और पटना साहिब सांसद रविशंकर प्रसाद को सोशल मीडिया, विज्ञापन, पार्टी से जुड़े स्लोगन एवं नैरेटिव समेत अन्य कार्यों के लिए दायित्व सौंपा गया है। इस काम में सांसद राजीव प्रताप रूडी और राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन सहयोग करेंगे।  आरा से सांसद और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह को बूथ स्तर पर मैनेजमेंट के अलावा चुनाव आयोग से जुड़े कार्यों या किसी तरह की शिकायत मामलों का दायित्व सौंपा गया है। वहीं, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय को क्षेत्र भ्रमण कर जनसंपर्क अभियान चलाने की जिम्मेदारी दी गई है।

उधर राजद ने बीजेपी के इस खेल को पलीता लगाने के लिए अपने कई महारथियों को भी सक्रिय कर दिया है। सारण की राजनीति पर पकड़ रखने वाले राजद नेता प्रभुनाथ सिंह भले ही एक हत्या के मामले में आजीवन कैद की सजा पाए हुए हैं, लेकिन यह भी सच है कि सारण और छपरा की राजनीति पर आज भी उनकी पकड़ है। उधर, जेल में बंद शहाबुद्दीन को सिवान की राजनीति की जिमेदारी दी गई है। शहाबुद्दीन की सिवान से लेकर चम्पारण तक की राजनीति पर पकड़ बताई जाती है।

महागठबंधन के निशाने पर जदयू
रणनीति के मुताबिक़ जदयू को मात देने की जिम्मेदारी कांग्रेस, रालोसपा, वीआईपी और वाम दलों को दी गई है। माना जा रहा है कि जदयू के उम्मीदवारों को देखकर ही यहां महागठबंधन अपना उम्मीदवार उतारेंगे। इस काम में कांग्रेस बड़े स्तर पर अपनी तैयारी कर रही है।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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