बिहार में कांग्रेस के प्लान से राजद परेशान, केजरीवाल के पूर्वांचल कार्ड से बीजेपी सकते में

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ठगिनी राजनीति के कई चेहरे होते हैं। यह ऊपर से कुछ और नीचे से कुछ और ही होता है। जब किसी पार्टी के साथ कोई नेता खड़ा रहता है तो वह उसकी बोली बोलता है और जैसे ही वह पाला बदलता है उसके बोल बदल जाते हैं। निशाने पर वही पार्टी होती है जिसकी राजनीति अभी तक वे कर रहे होते हैं।

न उनका कोई अपना चरित्र होता है और न ही जनता के प्रति कोई जिम्मेदारी। इसकी बानगी के रूप  में अभी देश के भीतर कई दलों में पाला बदल कर गए नेताओं के बोल को आप देख और समझ रहे होंगे। हम यहां बात बिहार और दिल्ली की संभावित राजनीति की कर रहे हैं। 

बिहार में एक तरफ महागठबंधन है जिसकी अगुवाई राजद करता है। इस गठबंधन में राजद है, कांग्रेस है और वाम दल शामिल हैं तो बिहार एनडीए में जदयू, हम, बीजेपी और चिराग की लोजपा पार्टी है। कई और दल भी हैं जो कभी इधर तो कभी उधर आते-जाते रहते हैं।

नयी पार्टी के रूप में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी है जो पहली बार बिहार विधान सभा चुनाव में उतरने जा रही है। इस पार्टी का क्या खेल होता है यह तो देखने की बात होगी लेकिन अभी का सच तो यही है कि इस पार्टी से सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही परेशान हैं। 

लेकिन अब तो बिहार में महागठबंधन के भीतर ही खेल होता दिख रहा है। अगले साल बिहार में चुनाव होने हैं। वैसे तो बिहार विधान सभा का काल नवंबर तक का है लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अप्रैल के बाद कभी भी वहां चुनाव हो सकते हैं।

लेकिन मामला यह नहीं है। मामला तो राजद और कांग्रेस के बीच चल रहे घमासान को लेकर है। बिहार विधान सभा चुनाव से पहले जिस तरह से राजद और कांग्रेस में घमासान चल रहा है उससे तो यही लगता है कि अगर यह तनाव ज्यादा बढ़ा तो बिहार में भी इंडिया गठबंधन में फूट पड़ सकती है और राजद-कांग्रेस में अलगाव हो सकता है। 

जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक बिहार इंडिया में घमासान को आगे बढ़ाने का काम राजद सुप्रीमो लालू यादव ने किया है। उन्होंने कहा कि अब इंडिया ब्लॉक की कमान राहुल गांधी की बजाय ममता बनर्जी को दे देनी चाहिए। लालू यादव ने यह बयान ऐसे ही नहीं दिया था।

दरअसल लालू यादव को कांग्रेस के गेम प्लान के बारे में पता चल गया है। इसके बाद उन्होंने रणनीति बदली। लालू यादव को जब पता चला कि कांग्रेस इस बार बिहार में दो बड़े युवा नेताओं को मैदान में उतार रही है और ये दोनों नेता राजद और तेजस्वी की राजनीति को चुनौती दे सकते हैं तब उन्होंने अपना खेल भी शुरू कर दिया है।

बता दें कि लालू यादव कांग्रेस के इन दोनों नेताओं को बिल्कुल ही पसंद नहीं करते। वे मानते हैं कि कांग्रेस के ये दो नेता मैदान में आ गए तो राजद का खेल खराब हो सकता है। 

कांग्रेस का पहला गेम प्लान तो यही है कि वह बिहार में संगठन को पूरी तरह से बदलने को तैयार है। यह बदलाव यूपी की तरह से किये जाने की तैयारी है। यूपी में भी हाल में ही कांग्रेस ने सभी संगठन इकाइयों को ख़त्म किया है और पार्टी में जान देने के लिए नए संगठन की तैयारी चल रही है।

इस संगठन में युवाओं की फ़ौज भरी जानी है और पार्टी में रहकर पार्टी के खिलाफ काम कर रहे नेताओं की छुट्टी की जानी है। वैसे कांग्रेस के भीतर रिमॉडलिंग का दौर चल रहा है और हो सकता है कि 70 साल के ऊपर के कई नेताओं को बैठने के लिए कहा जा सकता है। इसमें उत्तर से दक्षिण तक के बड़े नेता अब घर बैठे देखे जायेंगे। 

तो जो कांग्रेस करीब दो दशक से भी ज्यादा समय से लालू यादव के पीछे चलने को अभिशप्त थी अब लालू के चंगुल से बाहर निकलने को फड़फड़ा रही है। कांग्रेस की इस फड़फड़ाहट से ही लालू यादव परेशान हैं।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस बिहार में बड़े स्तर पर युवा लोगों को शामिल करने जा रही है और इन युवाओं में महिला और छात्रों को भी शामिल किया जा रहा है। लेकिन खेल यहीं तक ही नहीं है। बड़ी बात तो यह है कि कांग्रेस दो बड़े नेताओं को बिहार की बागडोर देने को तैयार है।

ये दोनों नेता हैं पप्पू यादव और कन्हैया कुमार। इन दोनों नेताओं के नाम से ही लालू यादव को चिढ़ है और लालू प्रसाद मानते हैं कि ये दोनों नेता तेजस्वी यादव के लिए चुनौती हो सकते हैं। 

पप्पू यादव और कन्हैया कुमार से लालू यादव और तेजस्वी यादव की अदावत सबको पता है। कन्हैया कुमार को 2019 में बेगूसराय से जीत इसलिए भी नहीं मिल पाई थी क्योंकि राजद ने इस सीट से अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया था। कन्हैया ने इसके बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया था लेकिन वो बिहार की राजनीति से दूर रहे हैं।

2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस उन्हें फिर बेगूसराय से उतारने की तैयारी कर रही थी लेकिन लालू यादव के दबाव में उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया गया। इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें दिल्ली में उतारा। कन्हैया दिल्ली से भी हार गए।

लेकिन कन्हैया अब कांग्रेस के बड़े असेट बन गए हैं। उनके पास भीड़ खींचने की अपार शक्ति है और उनके तर्कों के सामने कुछ देर तक लोग सोचने को मजबूर हो जाते हैं। 

अब कांग्रेस अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में कन्हैया कुमार को आजमाने की तैयारी में है। हो सकता है कि बिहार प्रदेश कांग्रेस में कन्हैया को कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है और ऐसा हुआ तो बिहार के बहुत से युवा कांग्रेस से सम्बन्ध कायम कर सकते हैं।

कांग्रेस के इस खेल से लालू यादव काफी खफा हैं। उनको जैसे ही कांग्रेस के इस प्लान का पता चला उन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व पर ही सवाल उठा दिया। इसके बावजूद भी कांग्रेस इस बार दबने के मूड में नहीं है। इसके साथ ही इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस 70 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है।

हरियाणा और महाराष्ट्र में हार के बाद लालू प्रसाद को लग रहा था कि बिहार चुनाव में उसे कम सीटों पर मनाया जा सकता है लेकिन कांग्रेस ने साफ़ कर दिया है कि वह पिछले चुनाव में जितनी सीटों पर चुनाव लड़ी थी, उतनी सीटों पर ही लड़ेगी। लालू प्रसाद के लिए यह भी बड़ा सिर दर्द है। 

लेकिन लालू यादव को एक बड़ी परेशानी पप्पू यादव से भी है। कांग्रेस बिहार के चुनाव में पप्पू यादव को बड़ी भूमिका के तहत उतारने को तैयार है। लोकसभा चुनाव से पहले पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया था। कांग्रेस उन्हें पूर्णिया से उतारना चाहती थी लेकिन लालू प्रसाद ने वहां से अपने उम्मीदवार बीमा भारती को उतार दिया।

अंत में पप्पू यादव को निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा और जीत कर संसद पहुंचे। लोकसभा चुनाव में राजद नेता तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में कहा था कि अगर पूर्णिया की जनता राजद को वोट देना नहीं चाहती तो वह बीजेपी को वोट दे दे।

ऐसे में लालू प्रसाद को लग रहा है कि अगर पप्पू यादव कांग्रेस की राजनीति करेंगे तो उनके मुस्लिम-यादव समीकरण को भी कमजोर करेंगे और राजद की राजनीति सिमट सकती है।

यही वजह है कि लालू प्रसाद नहीं चाहते हैं कि पप्पू यादव के हाथ  में कांग्रेस चुनावी कमान को सौंपे। अब विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी पप्पू यादव को भी तेजस्वी से बदला लेने का मौका मिल जाएगा। 

आगे बिहार महागठबंधन में क्या कुछ होता है इसे देखने की बात हो सकती है लेकिन अगर कांग्रेस अपने संगठन में बदलाव करती है और पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को मैदान में उतारती है तो राजद से दूरियां बढ़ सकती हैं।

और ऐसा होता है तो एनडीए को लाभ मिल सकता है। ऐसे में कांग्रेस और राजद कोई नयी तरकीब निकालकर ही राजनीति नहीं करेंगे तो खेल और भी ख़राब हो सकता है। 

उधर दिल्ली में चुनावी दुंदुभी बज चुकी है। जनवरी में किसी भी वक्त चुनाव क ऐलान हो सकता है और उम्मीद की जा रही है कि 18 फरवरी से पहले दिल्ली में चुनाव संपन्न हो जाएं। दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की यात्रा पर हैं और संगठन को मजबूत कर रहे हैं।

उन्होंने लगभग सभी पार्टी उम्मीदवारों की भी घोषणा कर दी है। बीजेपी भी पूरी तैयारी के साथ मैदान में न सिर्फ उतर रही है बल्कि उसका लक्ष्य किसी भी तरह से दिल्ली में सरकार बनाने की है। 

दिल्ली में बहुत बड़ा वोट बैंक पूर्वांचलियों का है। इस पर बीजेपी की भी नजर है और आप की भी। कह सकते हैं कि पूर्वांचली अब तक बीजेपी के साथ ज्यादा रहे हैं लेकिन पिछले दो चुनाव में पूर्वांचलियों का अधिकतर वोट आप को मिला है।

इस बार भी केजरीवाल पूर्वांचलियों को साध रहे हैं। दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और बीजेपी को पूर्वांचल विरोधी बताया है।

अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भाजपा पर करारा हमला बोला है। केजरीवाल ने कहा कि, भाजपा पूर्वांचल के लोगों के नामों को वोटर लिस्ट से कटवा रही है। पूर्वांचल के लोगों ने पिछले 30 सालों में दिल्ली का विकास किया है। अब इनका हक छीना जा रहा है। 

दिल्ली में लगभग 30% से अधिक बिहार यूपी के लोग हैं जो लगभग 25 सीटों पर जीत-हार सुनिश्चित करते हैं। इसके अलावा कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां इनकी संख्या 40% से भी अधिक है। यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल ने पूर्वांचल के वोटरों को साधने का प्रयास किया है।

केजरीवाल का यह प्रयास बीजेपी के लिए खतरा माना जा रहा है। बीजेपी को लग रहा था कि लोकसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी पूर्वांचल के लोग बीजेपी के साथ रहेंगे और उसे सत्ता तक पहुंचाएंगे लेकिन जिस तरह से पूर्वांचल को आप साध रही है उससे बीजेपी की परेशानी बढ़ती जा रही है।

इस चुनाव में आप बड़ी संख्या में पूर्वांचलियों को मैदान में उतार रही है और पूर्वांचल के लोग एक हो गए तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। परेशानी तो कांग्रेस की भी बढ़ेगी।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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