ये जरनैली सड़क है साहेब!

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ये जरनैली सड़क है साहेब,

तारीखी अज्म से मुलविस,

इसके इकबाल और जलाल की मीनारें गवाह हैं शहँशाहों, हुकमरानों के नापाक मंसूबों की!

ये आवाम की शहादतों में मगनून आज भी ज़िन्दा है!

भारत में अलग-अलग दौर में बहुत से संघर्षों की दास्तानें समेटे हुए है, यहीं से गुजरे हैं सत्ताओं के परिवर्तनों के काफिले!

तक्षशिला और पाटलिपुत्र को जोड़ती भी है!

सचखण्ड के सरोवर की पवित्रता और अकाल तख्त के शब्दों के हौसलों को मोक्ष के घाटों से मिलाती भी है!

आवाम की तवक्को के मनफी माजाक की कीमतें भी दर्ज हैं इसके मोड़ों में! 

किनारों पे खड़े खामोश पेड़ों से ही एक बार मशविरा कर लिया जाये, हकीकतों  के जाने कितने फलसफे खुल जायेंगे!

ये ज़रनैली सड़क हमेशा आवाम के साथ ही रही है, सत्ताओं को मात देते हुये!

मौसमों के अफसाने इसके हर संग ओ मील पे दर्ज हैं!

इसकी पनाह में मीलों तक खेत खलिहान बसे हुये हैं! अनाज इसी जरनैली  सड़क से अपने मुकाम तक पहुंचता है!

मेहनत की इबारत है, तिजारत की रहगुजर नहीं ये ज़रनैली सड़क!

इसके किनारों के दरख्तों की छांव में जाने कितने ही मुसफिर नींद से जगे हैं  ज़िन्होंने अदब और रवायतों को बनाया है!

इसकी एक छोर पे अगर टैगौर का “शोनार बोंगला” और तो दूसरे छोर पे गुरु  गोविन्द सिंह का “सत श्री अकाल” !

मोहब्बत की निशानी “ताज” भी ज़रनैली सड़क को सजदा करता है !

जाने कितनी क्रूर टापों, लाचार मजबूर बे सहारा कदमों का दर्द अपने सीने में  समेटे हुये आज भी ये बेनूर नहीं! 

गुनाहों और मागरूर गुनहगारों को मुआफ करने की फितरत पे इसकी नजीरें  दूर मगरिब में आज भी रंज करती हैं!

इसकी बुलंदियों की मकबूलियत की कहानियां भारत की शिराओं में दौड़ती हैं!

साहेब, इसके बांकपन ने परचम लहराये हैं और इसके गर्द ओ गुबार ने  अहंकार मिटाये हैं!

तारीख गवाह है !

ज़रनैली सड़क से जिसने भी शतरंज की बाज़ी लगाने की कोशिश की मात ही  खायी है!

(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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