Thursday, April 25, 2024

गलवान घाटी आखिर है किसकी?

15 जून को एक बेहद गम्भीर और व्यथित कर देने वाली खबर, देश को मिली, कि गलवान घाटी जो लद्दाख के भारत-चीन सीमा पर स्थित लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल, एलएसी पर है, में हुयी एक झडप में, हमारे एक कर्नल सुरेश बाबू जो बिहार रेजिमेंट के थे, सहित कुल 20 जवान शहीद हो गए। भारत चीन की सीमा पर स्थित यह घटना भारत चीन विवाद के इतिहास में 1962 के बाद की सबसे बड़ी घटना है जिसकी व्यापक प्रतिक्रिया देश भर में हुई। लेकिन सरकार की तरफ से कोई त्वरित जवाबी कार्रवाई अब तक नहीं की गयी जबकि इसकी पुरजोर मांग देश भर में उठ रही है। हो सकता है सेना, इस हमले का जवाब देने के लिये उचित समय और अवसर की प्रतीक्षा में हो, या कोई अन्य उचित कूटनीतिक और सैन्य रणनीति बना रही हो। 

1962 में जब चीन ने हमला किया था तो गलवान घाटी और पैंगोंग झील के आगे 8 पहाड़ियों वाले घाटी का इलाका जिसे फिंगर्स कहते हैं, एक अनौपचारिक रूप से तय की हुई सीमा रेखा बनी जिसे एलएसी कहा गया। वास्तविक सीमा के निर्धारण और भौगोलिक जटिलता के कारण कभी हम उनके तो कभी वे हमारे क्षेत्र में चले आते थे। 1993 में हुए एक भारत-चीन समझौते के अंतर्गत यह तय किया गया, कि उभय पक्ष हथियार का प्रयोग नहीं करेंगे। लेकिन अचानक, 15 जून को यह घटना हो गयी जिसने हमारी कूटनीति और भारत चीन के बीच चले आ सम्बन्धों के खोखलेपन को उजागर कर दिया। 

समझौते की शर्तें, इस प्रकार हैं, 

1. भारत-चीन सीमा के संदर्भ में, दोनों पक्ष, इस बात पर सहमत हैं कि, वे इस विवाद को शांतिपूर्ण और दोस्ताना बातचीत से हल करेंगे।

कोई भी पक्ष एक दूसरे को न तो धमकी देगा और न ही बल का प्रयोग करेगा। इसका अर्थ यह है कि, जब तक सीमा विवाद का शांतिपूर्ण समाधान न हो जाय तब तक, दोनों ही पक्ष एलएसी की स्थिति का सम्मान करेंगे। 

किसी भी परिस्थिति में कोई भी पक्ष एलएसी का उल्लंघन नहीं करेगा। अगर ऐसा किसी भी पक्ष ने किया भी है तो वह तुरन्त वापस अपने क्षेत्र में चला जायेगा। अगर आवश्यकता होती है तो दोनों ही पक्ष मिल बैठ कर इस मतभेद को सुलझाएंगे। 

2. दोनों ही पक्ष, एलएसी के पास अपना न्यूनतम बल तैनात करेंगे जैसा कि दोस्ताने और अच्छे पड़ोसी वाले देशों के बीच होता है। 

दोनों ही पक्ष आपस में बात कर के अपने-अपने सैन्य बल को कम संख्या में नियुक्त करेंगे। सैन्यबल, एलएसी से कितनी दूरी पर, किस समय और कितना कम रखा जाय, यह दोनों देशों से विचार-विमर्श के बाद तय किया जाएगा। 

सैन्य बल की तैनाती दोनो ही पक्षों के बीच आपसी सहमति से तय की जाएगी। 

3. दोनों ही पक्ष आपसी विचार विमर्श से एक दूसरे पर भरोसा बनाये रखने के उपाय, आपसी विचार विमर्श से ढूंढेंगे। 

दोनों ही पक्ष एलएसी के पास कोई विशेष सैन्य अभ्यास नहीं करेंगे। 

दोनों ही पक्ष अगर कोई विशेष सैन्य अभ्यास करते हैं तो, वे एक दूसरे को इसकी सूचना देंगे।

4. अगर एलएसी के पास कोई आकस्मिक बात होती है तो दोनों ही पक्ष आपस में बैठ कर इस समस्या का समाधान, सीमा सुरक्षा अधिकारियों के साथ मिल कर निकालेंगे। 

ऐसी आपसी मीटिंग और संचार कि चैनल का स्वरूप क्या हो, यह दोनों ही पक्ष आपसी सहमति से तय करेंगे। 

5. दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि, दोनों ही क्षेत्र में कोई हवाई घुसपैठ भी न हो, और अगर कोई घुसपैठ होती भी है तो उसे बातचीत से हल किया जाए। 

दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि, उस क्षेत्र के आसपास, दोनों में से, कोई भी देश हवाई अभ्यास नहीं करेगा।

6. दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि, यह समझौता,  जिसमें, एलएसी के बारे में जो तय हुआ है वह सीमा पर अन्यत्र जो सैन्य नियुक्तियां हैं, उन पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। 

7. दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत होंगे कि, आपसी विचार विमर्श से ही सैन्य निरीक्षण का कोई तंत्र विकसित करेंगे जो सैन्य बल को कम से कम करने पर और इलाके में शांति बनाए रखने पर विचार करेगी। 

8. दोनों ही पक्षों के इंडो चाइना वर्किंग ग्रुप, कूटनीतिक और सैन्य विशेषज्ञों के दल गठित करेंगे जो आपसी विचार विमर्श से इस समझौते को लागू कराने का विचार करेंगे। 

संयुक्त कार्यदल के विशेषज्ञ एलएसी के दोनों तरफ की समस्याओं के समाधान को सुझाएंगे, और कम से कम सेना का डिप्लॉयमेंट कैसे बना रहे, इसकी राह निकालेंगे। 

विशेषज्ञ, संयुक्त कार्यदल को इस समझौते के लागू करने में सहायता देंगे। समय समय पर अगर कोई समस्याएं उत्पन्न होती हैं तो, उन्हें सदाशयता और परस्पर विश्वास के साथ हल करेंगे। 

यह समझौता यूएन की साइट पर उपलब्ध है और सार्वजनिक है। यह समझौता मैंने इसलिए यहां प्रस्तुत किया है कि हमारे सैनिकों के निहत्थे होने के तर्क के बारे यह कहा जा रहा है कि वे 1993 के समझौते के कारण निहत्थे थे, जबकि इस समझौते में ऐसा कोई उल्लेख नही है कि ट्रूप हथियार नहीं रखेंगे। 

15 जून की हृदयविदारक घटना और चीन के धोखे के बाद पूरा देश उद्वेलित था, और इसी की कड़ी में 19 जून को प्रधानमंत्री द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलाई गयी, और उस सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री जी ने चीन के घुसपैठ पर जो कहा उससे देश भर में बवाल मचा। पीएमओ के ट्वीट और एएनआई की खबर के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सर्वदलीय मीटिंग में जो कहा , पहले उसे पढ़ें। पीएम ने कहा, 

” न तो हमारी सीमा में कोई घुसा था, और न ही हमारी चौकी पर किसी ने कब्जा किया था। हमारे 20 जवान शहीद हो गए। जिन्होंने, भारत माता के प्रति ऐसा दुस्साहस किया है, उन्हें सबक सिखाया जाएगा। ” 

प्रधानमंत्री के इस बयान से एक नया रहस्य गहरा गया है कि गलवान घाटी में  असल में हुआ क्या था, और अब वर्तमान स्थिति क्या है ? प्रधानमंत्री के इस बयान पर राजनीतिक दलों सहित बहुत लोगों की प्रतिक्रिया आयी। पर हम राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया को अलग कर दें तो सबसे चिंताजनक प्रतिक्रिया देश के भूतपूर्व सैन्य अफसरों की हुई। सेना के अफसर गलवान घाटी के सामरिक महत्व को समझते हैं और पीएम द्वारा यह कह दिए जाने से कि ‘कोई घुसपैठ हुई ही नहीं थी’, हमारी सारी गतिविधियां जो भारत-चीन सीमा पर अपनी ज़मीन को बचाने के लिये हो रही हैं, वह अर्थहीन हो जाएंगी।

हालांकि इसके एक दिन बाद शनिवार को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने उनके इस बयान पर स्पष्टीकरण दिया और कहा कि गलवान घाटी में हिंसा इसलिए हुई क्योंकि चीनी सैनिक एलएसी के पास कुछ निर्माण कार्य कर रहे थे और उन्होंने इसे रोकने से इंकार कर दिया। लेकिन इस स्पष्टीकरण से जो भ्रम फैला वह दूर नहीं हुआ। 

यह भी खबर आयी कि चीन के कब्जे में हमारे 10 सैनिक थे, जिन्हें चीन ने बाद में छोड़ा। इस पर आज तक भ्रम बना हुआ है। सरकार कह रही है कि, चीन के कब्जे में एक भी सैनिक नहीं था ? पर इंडियन एक्सप्रेस और द हिन्दू की खबर है कि, 10 सैनिक जिसमें कुछ कमीशंड अफसर भी चीन के कब्जे में थे, जिन्हें बाद में छोड़ा गया। अब अगर, सरकार को लगता है कि दोनों प्रतिष्ठित और बड़े अखबार गलत खबर दे रहे हैं तो सरकार उनसे इन खबरों का खंडन करने के लिए कहे और ये खेद व्यक्त करें। 

आखिर गलवान घाटी किसकी टेरिटरी में इस समय है ? हमारी या फिर चीन की ? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है। क्योंकि सारा विवाद ही चीन द्वारा हमारे क्षेत्र में एलएसी पार कर घुसपैठ करने के कारण शुरू हुआ है। पर हमारे पीएम और चीन के प्रवक्ता एक ही बात कह रहे हैं कि कोई घुसा नहीं था तो फिर यह झड़प, 20 सैनिकों की शहादत, और सैनिक अस्पतालों में पड़े हमारे घायल सैनिक, हुए कैसे ? 

यह घटना बेहद गम्भीर है और ऐसे अवसर पर संसद का आपात अधिवेशन बुलाया जाना चाहिए। संसद में सरकार गलवान घाटी और लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक जहां जहाँ चीन घुसपैठ कर रहा है, वहां-वहां के बारे में सरकार विस्तार से एक बयान जारी करे। जनता को संसद के अधिवेशन के माध्यम से सच जानने का अधिकार है और सरकार सच बताने के लिये बाध्य है। सरकार ने शपथ ली है कि, ” मैं भारत की संप्रभुता एवं अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा। ” लेकिन गलवान घाटी के बारे में प्रधानमंत्री का कथन देश की अखंडता के अक्षुण्ण रखने की शपथ से मेल नहीं खाता है। जबकि शपथ की पहली पंक्ति ही यही है। अखंडता और अक्षुण्णता सरकार की पहली प्राथमिकता और परम दायित्व है। 

अब पीएम के ही बयान के आधार पर चीन भी यही कह रहा है कि, वह तो भारत की सीमा में घुसा ही नहीं था। हालांकि सर्वदलीय बैठक में कही गयी बात संसद के दिये गए बयान की तुलना में कम महत्वपूर्ण है, इसलिए भी स्थिति को स्पष्ट करने के लिये संसद का आपात अधिवेशन बुलाया जाना ज़रूरी है। ताकि सरकार स्पष्टता के साथ, अपनी बात कह सके। इस अधिवेशन में केवल एक ही विषय सदन के पटल पर केंद्रित हो जो केवल चीनी सेना द्वारा हमारी सीमा के अतिक्रमण से जुड़ा हो। जैसे, 

● चीन की लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ, 

● गलवान घाटी की वास्तविक स्थिति,

● 20 शहीद और अन्य घायल सैनिकों के बारे में, क्यों और कैसे यह दुःखद घटना घटी है।

● अरुणाचल में चीनी गतिविधियां 

और अंत में, 

● सरकार का अगला कदम क्या होगा, 

इस पर ही केंद्रित हो। 

यह कोई सामान्य देशज प्रकरण नहीं है बल्कि यह मामला सामरिक महत्व के लद्दाख क्षेत्र के गलवान घाटी को चुपके से चीन के हाथों में जाते हुए देखते रहने का मामला है। संसद का अधिवेशन बुलाया जाए और इस मसले पर लंबी बहस हो जिसे पूरा देश देखे। भूतपूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के ट्वीट और बयान जो आ रहे हैं वे व्यथित करने वाले हैं।

सेना के वेटरन्स जिन्होंने कई-कई सफल ऑपरेशन किये हों के, इन बयानों को गम्भीरता से लेना होगा। नेताओं का यह बयान कि हम देश के लिये जान दे देंगे अब तक का सबसे बड़ा जुमले वाला बयान है। देश के लिये जिन्हें जान देनी है वे बहादुर अपनी जान गंवा चुके हैं। पर वे शहीद कैसे हुए, जब न कोई घुसा और न किसी ने कब्ज़ा किया ? यह सवाल मुझे ही नहीं, सबको मथ रहा है। 

लद्दाख में इतनी शहादत के बाद हमने अब तक क्या पाया है ? अब जो चीजें साफ हो रही हैं उससे यह दिख रहा है कि, लद्दाख क्षेत्र में जो हमारे सैन्य बल की शहादत हुयी है वह एक बड़ा नुकसान है। कहा जा रहा है कि सैनिकों के पीछे हटने हटाने को लेकर यह झड़प हुयी थी। अखबार की खबर के अनुसार, 43 सैनिक चीन के भी मारे गए हैं। हालांकि, इस खबर की पुष्टि, न तो हमारी सेना ने की है और न चीन ने। यह एएनआई की खबर है। एएनआई को यह खबर कहां से मिली, यह नहीं पता है।

शहादत की भरपाई, दुश्मन देश की सैन्य हानि से नहीं आंकी जा सकती है। एक भी जवान की शहादत युद्ध के नियमों में एक बड़ा नुकसान होता है।  यह बस, एक मानसिक तर्क वितर्क की ही बात होती है कि, उन्होंने 20 हमारे मारे तो 43 हमने उनके मारे। पर यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि, अपने 20 जवानों को शहीद करा कर, और उनके 40 मार कर, हमने हासिल क्या किया ? 

” भारतीय सेना के इतिहास में, यह पहली बार हुआ है कि, एक कमांडिंग ऑफिसर की इस प्रकार मृत्यु हुयी है। यह चीन की सेना द्वारा की गयी एक हत्या का अपराध है। हमारे सैनिकों को, चीनी पोस्ट पर निःशस्त्र नहीं जाना चाहिए था। निश्चय ही ऐसा करने के लिये कोई न कोई राजनीतिक निर्देश रहा होगा, अन्यथा सेना इस प्रकार निहत्थे नहीं रहती है। ” 

इस समय सबसे ज़रूरी यह है कि

● हम जहां तक उस क्षेत्र में इस विवाद के पहले काबिज़ थे, वहां तक काबिज़ हों और चीन की सीमा पर अपनी सतर्कता बढ़ाएं। 

● चीन को हमसे आर्थिक लाभ भी बहुत है। उसे अभी अभी 1100 करोड़ का एक बड़ा ठेका मिला है और गुजरात मे जनवरी में देश के सबसे बड़े स्टील प्लांट बनाने का जिम्मा भी। इस परस्पर आर्थिक संपर्क को कम किया जाय न कि टिकटॉक को अन्स्टाल और झालरों के बहिष्कार तक ही सीमित रहा जाए। 

● भारत को अपने सभी पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर बनाने और उन्हें साथ रखने के बारे में गम्भीरता से सोचना होगा। इन्हें चीन के प्रभाव में जाने से रोकना होगा। 

● पाकिस्तान से संबंध सुधरे यह फिलहाल तब तक सम्भव नहीं है। इसका कारण अलग और जटिल है। 

अब आज की ताज़ी खबर यह है कि, भारत और चीन के बीच लद्दाख में चल रहे सीमा विवाद पर चर्चा करने के लिए एक बार फिर कोर कमांडर स्तरीय बैठक  चुशुल-मोल्डो बॉर्डर प्वाइंट पर हो रही है। इससे पहले छह जून को हुई बैठक जो, मोल्डो में ही आयोजित की गई थी, में भारत की ओर से 14 कॉर्प्स कमांडर ले.जनरल हरिंदर सिह चीन के साथ बात की थी। उस बातचीत में इस बात पर सहमति बनी थी कि दोनों पक्ष सभी संवेदनशील इलाकों से हट जाएंगे। हालांकि, इसके बाद ही 15 जून की दुःखद घटना घट गयी।

इस कोर कमांडर वार्ता में क्या हल होता है यह तो जब वार्ता के बाद आधिकारिक वक्तव्य उभय पक्ष द्वारा जारी किए जाएंगे तभी बताया जा सकेगा, लेकिन गलवान घाटी पर हमारी जो स्थिति इस विवाद के पूर्व थी, वह स्थिति बहाल होनी चाहिए। उस स्थिति को पुनः प्राप्त करना भारत का प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए। अगर दुर्भाग्य से ऐसा करने में हम चूक गए तो, यह चीन के विस्तारवादी स्वभाव और मंसूबे को और बढ़ावा देगा, जिसका घातक परिणाम भारत-चीन सीमा और संबंधों पर पड़ेगा।  

( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

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