कहर साबित हुई उत्तराखंड में बेमौसम बारिश

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अत्यधिक वर्षा, भूस्खलन और तबाही, जलवायु परिवर्तन के लक्षण साफ हैं। पर हम जलवायु-परिवर्तन को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, बड़े-बड़े समाधान के बारे में सोचते हैं, लेकिन उसके स्थानीय लक्षणों से छोटे-छोटे सबक नहीं लेते। हम पतली, दो लेन की सड़क से काम चलाने के बजाए दो को चार, फिर छह लेन की सड़क बनाते जा रहे हैं। सड़कों की चौड़ाई बढ़ने का मतलब पहाड़ों की कटाई और पेड़ों का विनाश होता है जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ता है। उत्तराखंड में पिछले कई वर्षों से यही हो रहा है। अत्यधिक वर्षा का कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है, पर चौड़ी-चौड़ी सड़कों की वजह से बड़ी-बड़ी गाड़ियों की आवाजाही बढ़ेगी, जिससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ेगा और जलवायु परिवर्तन में तेजी और तीव्रता आएगी। इस छोटी की मोटी बात को हम समझना नहीं चाहते।

उत्तराखंड के एक बड़े इलाके में जितनी वर्षा हुई है, उतनी वर्षा 24 घंटे के भीतर तब से कभी नहीं हुई, जब से रिकार्ड रखे जा रहे हैं। देहरादून मौसम केन्द्र के निदेशक बिक्रम सिंह ने अखबार वालों को बताया कि मुक्तेश्वर मौसम केन्द्र 124 वर्ष पहले 1897 में खुला, पहली बार 19 अक्टूबर को 24 घंटे में 340.8 मिलीमीटर वर्षा हुई। पड़ोस के पंतनगर में 403.2 मिमी वर्षा हुई। इस मौसम केन्द्र की स्थापना 1962 में हुई थी। वर्षा और भूस्खलन की वजह से नैनीताल शहर शेष दुनिया से पूरी तरह कट गया है। शहर से बाहर निकलने वाली तीन सड़कें बह गई हैं। वर्षा और कीचड़ से पूरे शहर की सड़कें और घर तबाह हैं। नैनी झील को घेरने वाला माल रोड बाढ़ में डूब गया। हालांकि वर्षा केवल इसी क्षेत्र में नहीं हुई, पूरे उत्तराखंड में पिछले रविवार से ही कमोबेश लगातार वर्षा होती रही।

केवल उत्तराखंड में नहीं, सुदूर दक्षिण के केरल में भी अत्यधिक वर्षा हुई है और भूस्खलन व तबाही हुई है। मौसम विभाग ने संभावना जताई है कि वर्षा का केन्द्र उत्तराखंड से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ेगा और पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल होते हुए पूर्वोत्तर राज्यों की ओर चला जाएगा, फिर इसके दक्षिणी प्रायद्विपीय क्षेत्र में जाने की संभावना है। अर्थात केरल के पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र और पश्चिमी घाट क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होने की आशंका अभी टली नहीं है। मानसून के आखिरी महीने में वर्षा का यह विस्तार सामान्य घटना कतई नहीं है।

उत्तराखंड में रविवार से हुई वर्षा और भूस्खलन से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कारण है कि पहाड़ों से आए मलवे को जैसे-जैसे हटाया जा रहा है, उसके नीचे दबे लोगों की लाशें निकल रही हैं अभी तक मृतकों की संख्या 70 के आस पास पहुंच गई है। लेकिन सिर्फ मृतकों की संख्या नहीं, घरों और खेतों का जो विनाश हुआ है, वह अधिक मारक है। नैनीताल शहर में भी घरों में मलवे भर गए हैं, कितने गांवों में ऐसी स्थिति है और कितने खेत भूस्खलन में विलीन हो गए हैं और कितनों में मलवा पड़ा है, इसका आंकड़ा अभी निकाला भी नहीं जा सकता।

नैनीताल शहर मंगलवार तक पूरी दुनिया से कटा रहा। दशहरा के समय यह शहर पर्यटकों से भरा रहता है। आसपास के इलाके में भी पर्यटक होते हैं। इसलिए आपदा की वजह से पूरे इलाके में अफरा-तफरी का माहौल है। हेलिकॉप्टरों की सहायता से फंसे पर्यटकों को बचाने, सुरक्षित जगह पहुंचाने का काम चल रहा है। एनडीआरएफ की टीमें उत्तरकाशी, देहरादून, चमोली, अलमोड़ा, पिथौरागढ़, हरिद्वार और गदरपुर में कार्यरत हैं। गोमुख में फंसे पर्वतारोहियों को बचा लिया गया है। सेना के तीन हेलिकॉप्टर बचाव कार्य में लगे हैं।

मानसून के आखिरी महीने अक्टूबर में समूचे देश में अधिक वर्षा हुई है। इस महीने में आमतौर पर होने वाली वर्षा से करीब 36 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है। उत्तराखंड के कुछ इलाकों में 24 घंटो में 500 मिमी वर्षा हुई है, तो कुछ इलाकों में 400 मिमी वर्षा हुई है। मौसम विभाग के अधिकारियों के अनुसार 23 अक्टूबर तक पूर्वी व दक्षिण भारत में जगह जगह वर्षा होने की संभावना है।

केरल में वर्षा पिछले सप्ताह ही शुरू हुई और इडुकी व कोट्टायम जिलों में भूस्खलन से जनजीवन तबाह हो गया। चार बराजों में क्षमता के अधिक पानी आ जाने से उनके फाटक खोल दिए गए जिससे वर्षा जारी रहने पर पेरियार नदी के तटवर्ती इलाकों में पानी भर जाने की आशंका है। निचले इलाके के निवासियों को सुरक्षित जगहों पर चले जाने के लिए कहा गया है। वर्षा के जारी रहने की संभावना है, इसलिए प्रशासनिक स्तर पर पूरी मुस्तैदी बरती जा रही है।
(वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ झा का रिपोर्ट।)

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