आंध्र सीएम रेड्डी के खिलाफ अवमानना कार्यवाही चीफ जस्टिस के पाले में

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एक ओर देश के प्रमुख कानूनविद हैं जो चाहते हैं कि उच्चतम न्यायालय के दूसरे नम्बर के न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी द्वारा लगाये गये आरोपों का निपटारा जल्द से जल्द किया जाए ताकि अगले चीफ जस्टिस की नियुक्ति के समय आरोप बाधा न बनें। दूसरी ओर जवाबदेही की पक्षधर लाबी चाहती है कि इस मामले की गम्भीरता से जाँच हो क्योंकि आरोप सिटिंग वरिष्ठ न्यायाधीश पर लगाया गया है और यह न्यायिक और व्यक्तिगत शुचिता का सवाल है। लेकिन इसी बीच अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने न्यायपालिका के विरुद्ध आरोपों को लेकर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही के लिए सहमति देने से इनकार कर दिया है और कहा है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, उनके प्रधान सलाहकार का आचरण प्रथम दृष्ट्या ‘दुराग्रही’ है, लेकिन इस समय यह मामला चीफ जस्टिस एसए बोबडे के पास है।

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने न्यायपालिका के विरुद्ध आरोप लगाने पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी तथा उनके प्रधान सलाहकार के आचरण को सोमवार को ‘प्रथमदृष्ट्या अवज्ञाकारी’ बताया लेकिन उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की सहमति नहीं दी और कहा कि यह मामला चीफ जस्टिस के समक्ष विचाराधीन है। रेड्डी ने छह अक्तूबर को अभूतपूर्व तरीके से प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि उनकी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को ‘गिराने और अस्थिर करने’ के लिए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है।

अटॉर्नी जनरल ने रेड्डी द्वारा चीफ जस्टिस को भेजे गए पत्र का जिक्र किया और कहा कि मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार अजेय कल्लम द्वारा पत्र की विषय वस्तु को सार्वजनिक करने के लिए संवाददाता सम्मेलन का आयोजन करने से संदेह पैदा होता है। उन्होंने कहा कि इस पृष्ठभूमि में प्रथम दृष्ट्या कथित व्यक्तियों का आचरण अवज्ञाकारी है। हालांकि यह बात गौर करने वाली है कि अवमानना का पूरा मामला मुख्यमंत्री द्वारा चीफ जस्टिस को सीधे लिखे पत्र और कल्लम द्वारा इस संबंध में प्रेस वार्ता करने से संबंधित है। इसलिए मामला चीफ जस्टिस के विचाराधीन है। इसलिए  मेरे लिए मामले को देखना उचित नहीं होगा।’

भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दाखिल अवमानना याचिका के जवाब में वेणुगोपाल ने कहा कि इन कारणों से मैं उच्चतम न्यायालय की आपराधिक अवमानना के लिए कार्यवाही शुरू करने की मंजूरी नहीं देता। किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए शीर्ष विधि अधिकारी की सहमति पूर्व शर्त है।

उपाध्याय ने अपने पत्र में कहा था कि पत्र को सार्वजनिक डोमेन में जारी किए दो सप्ताह हो चुके हैं, और अभी तक, उच्चतम न्यायालय द्वारा उसके खिलाफ कोई भी अवमानना कार्यवाही शुरू नहीं हुई है। इस न्यायालय के एक जिम्मेदार अधिवक्ता के रूप में और न्याय के एक कर्मचारी के तौर पर मैं अपने कर्तव्य में असफल हो जाऊंगा अगर मैंने चीजों को वैसे ही रहने दिया जैसे वे हैं। उपाध्याय ने कहा था कि उनके पास यह मानने के कारण हैं कि आंध्र के सीएम की अभूतपूर्व कार्रवाई न्यायमूर्ति रमना की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा 16 सितंबर विधायक/ सासंदों के खिलाफ आपराधिक ट्रायल को फास्ट ट्रैक करने के लिए पारित आदेश की प्रतिक्रिया थी। उन्होंने उल्लेख किया है कि जगन मोहन रेड्डी भ्रष्टाचार और अनुपातहीन संपत्ति के लिए कई आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, उच्च न्यायालय ने विधायक/ सांसदों के खिलाफ मामलों की दिन-प्रतिदिन सुनवाई शुरू करने के निर्देश पारित किए हैं।

इसके लिए जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ कार्रवाई के लिए उच्चतम न्यायालय में दो याचिकाएं दायर की गई हैं। बार काउंसिल ऑफ इंडिया, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन ने आंध्र सीएम के कृत्य की निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित किया है। एससीबीए के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने हालांकि एससीबीए के प्रस्ताव को समय से पहले बताया और कहा कि आरोपों की सत्यता का पता लगाने के लिए एक जांच की आवश्यकता है। इस तरह का रुख अपनाते हुए दवे ने एससीबीए की कार्यकारी समिति की बैठक से खुद को अलग किया जिसमें प्रस्ताव पर चर्चा हुई।

जाने माने कानूनविद् उपेन्द्र बख्शी ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख में कहा है कि उच्चतम न्यायालय को इस मामले को तेजी से निपटाना चाहिए। न्यायिक जवाबदेही के पक्षधरों ने नए राज्य की राजधानी के रूप में अमरावती को घोषित करने के पहले जस्टिस रमना की दो बेटियों द्वारा खरीदी गई अमरावती में भूमि के बारे में पूरी तरह से जांच पर जोर दिया है। जवाबदेही के पक्षधरों का आग्रह है कि सच्चाई को सामने आना चाहिए और लोगों को यह समझना चाहिए कि संस्थागत अखंडता लोगों के जानने के अधिकार को छीन लेती है। और यदि जांच नहीं होती तो आरोपों का क्या अर्थ रह जाएगा।

उपेन्द्र बख्शी ने कहा है कि गोपनीयता के पक्षधर हमेशा प्रबल होते हैं। याद रखें कि अधिवक्ता उत्सव सिंह बैंस ने एक हलफनामा दायर किया था कि एक निश्चित असंतुष्ट कॉर्पोरेट ने एक बड़ी साजिश रची थी क्योंकि तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने न्यायिक स्वतंत्रता को क्षति पहुँचाने के खिलाफ सख्त न्यायिक कार्रवाई की थी? लेकिन जस्टिस ए के पटनायक ने अक्तूबर, 2019 में उच्चतम न्यायालय को जाँच की सीलबंद कवर रिपोर्ट सौंपी थी? एक साल बीत गये पर इस मामले की सच्चाई उजागर नहीं हुयी।
उपेन्द्र बख्शी ने कहा है कि किसी भी देरी के परिणामस्वरूप एक अनजानी और असंवैधानिक अधिरचना हो सकती है। एक उम्मीद है कि केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद देश को आश्वस्त करेंगे कि जस्टिस की वरिष्ठता का उल्लंघन अतीत की बात है और इसे फिर से करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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