पंजाबी थिएटर की पहली महिला अभिनेत्री उमा गुरबख्श सिंह प्रीत लड़ी का निधन

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23 मई की सुबह पंजाब में कला-साहित्य और नाटक (थिएटर) के एक ऐसे युग का अंत हो गया, जिसके साथ बेमिसाल इतिहास वाबस्ता है। उमा गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी संयुक्त पंजाब की पहली पंजाबी थिएटर अभिनेत्री थीं। पंजाबी साहित्य के वटवृक्ष माने जाने वाले महान साहित्यकार गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी और जीवित अंतिम संतान।

23 मई की सुबह उमा गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी ने अमृतसर स्थित उस प्रीतनगर में आखिरी सांसें लीं, जिसे कभी खुद गुरुवर रविंद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की दूसरी शाखा का खिताब दिया था। उमा गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी पंजाबी थिएटर की प्रथम महिला अभिनेत्री थीं। उन्होंने अपने पिता गुरबख्श सिंह प्रीत लड़ी की प्रेरणा से सन 1939 में उस वक्त रंगमंच में काम करना शुरू किया, जब पर्दे दारी प्रथा थी और किसी महिला के सार्वजनिक मंच आने की बाबत सोचना भी गुनाह माना जाता था। 

गुरबख्श सिंह प्रीत लड़ी मार्क्सवाद से प्रभावित प्रगतिशील लेखक थे और उन्होंने अपने नाटक ‘राजकुमारी लतिका’ में उमा को राजकुमारी की भूमिका दी। तब पंजाबी समाज में जबरदस्त हड़कंप मच गया था लेकिन गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी और उनकी बेटियां उमा गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी ऐसी हर खिलाफत से बेपरवाह रहे। लाहौर से छपते बेशुमार अंग्रेजी और उर्दू अखबारों में भी इस प्रकरण को रिपोर्ट किया गया था। गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा भी थे। 1944 में हिंदुस्तान में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किए गए एक नाटक ‘हल्ले हुलारे’ का मंचन किया गया। उसमें भी उमा ने अहम भूमिका अदा की थी और इसके लिए उन्हें अंग्रेज सरकार ने सात अन्य कलाकारों के साथ सलाखों के पीछे बंद कर दिया था।         

उमा गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी का जीवन आजादी से पहले के एक अति आधुनिक माने जाने वाले गांव प्रीत लड़ी में बीता। इस गांव में बलराज साहनी, अचला सचदेव और पंजाबी गल्प जगत के सिरमौर नानक सिंह ने भी अपना बहुत सारा वक्त बिताया। उमा जी को ऐसी तमाम महान हस्तियों का साथ बचपन से ही हासिल था। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी प्रीतनगर का दौरा किया था। गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी के स्मारकनुमा कमरे में आज भी अन्य महान शख्सियतों के साथ पंडित जी की तस्वीरें लगी हुईं हैं। अधिकतर में उमा भी उनके साथ हैं।        

शनिवार, 23 मई की शाम उमा जी का अंतिम संस्कार इसी ऐतिहासिक गांव प्रीतनगर में किया गया। तो आज भारतीय और पंजाबी रंगमंच के एक युग का अंत हो गया! 

(पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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