लॉकडाउन के दौरान खोजी पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी ने फेसबुक पर ‘जिओ पॉलिटिक्स’ शीर्षक से एक लंबी सीरीज में जो कुछ लिखा था, वह अब व्यवस्थित रूप से एक किताब की शक्ल में आ गया है। दस्तावेजी और परिस्थितिजन्य सबूतों के साथ समकालीन राजनीति की स्याह हकीकत से रूबरू कराती यह पुस्तक रहस्य और रोमांच से भरपूर किसी फिल्म या उपन्यास की तरह है, जिसे एक बार पढ़ना शुरू करें तो फिर अधूरी छोड़ने का मन नहीं करता, क्योंकि बेचैनी और उत्सुकता बनी रहती है।
पुस्तक में उल्लेखित सारे किरदार वास्तविक जीवन में हमारी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वे चमकदार चेहरे हैं, जो जैसे दिखते हैं, वैसे हैं बिल्कुल नहीं। इसीलिए कहा जाता है कि राजनीति में अक्सर जो दिखता है, वह होता नहीं है और जो होता है, वह दिखता नहीं है। यह बात राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर समान रूप से लागू होती है। इसी बात को विस्तार से कारणों और उदाहरणों के साथ इस पुस्तक में सिलसिलेवार पेश किया गया है।

जिओ पॉलिटिक्स यानी भूमंडलीय राजनीति। दुरभि संधियों वाले इस खेल में भ्रष्ट राजनेता होेते हैं, बड़े कॉरपोरेट घराने होते हैं, मीडिया घराने होते हैं और होते हैं दलाल। अपने लक्ष्य यानी पॉवर और पैसे को हासिल करने के लिए ये लोग गिरे हुए से भी गिरा हुआ काम करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस सिलसिले में वे अपने देश के हितों को दांव पर लगाने में भी कोई संकोच नहीं करते हैं। इस खेल के तहत किसी देश में चुनाव को प्रभावित कर सत्ता परिवर्तन कराया जाता है तो कहीं पर षड्यंत्रों के जरिए तख्ता पलट। यह सब करने के सिलसिले में किसी को मार देना या मरवा देना भी शामिल होता है।
पाकिस्तान में फौजी तानाशाह जिया उल हक की विमान हादसे में मौत, भारत में खालिस्तानी आंदोलन, इराक पर अमेरिका का हमला और फिर सद्दाम हुसैन का मारा जाना, सोवियत संघ में मिखाइल गोर्बाचौफ का राष्ट्रपति बनना और फिर सोवियत संघ का विखंडित हो जाना, अफगानिस्तान में तालिबान और सीरिया में इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठनों का उदय, अमेरिका द्वारा उनका पालन-पोषण, अफगानिस्तान में एक दशक तक चला गृहयुद्ध, वहां नजीबुल्लाह और ईरान में शाह रजा पहलवी की हुकूमत का तख्तापलट, ओसामा बिन लादेन, मुल्ला उमर और अल बगदादी जैसे आतंकवादियों का उदय और अंत, सीरिया का गृहयुद्ध, जैसी अनेक घटनाएं जिओ राजनीति से ही ताल्लुक रखती हैं।

नवनीत चतुर्वेदी ने अपनी इस पुस्तक में पिछले पांच दशकों के दौरान भारत से जुड़ी रोंगटे खड़े कर देने वाली कई ऐसी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का तफसील से जिक्र किया है जो, अपने समय में खूब चर्चित हुईं और उनके चलते केंद्र सहित कई राज्यों में सत्ता परिवर्तन हुए। यह सब होने में कुछ लोग फर्श से अर्श पर आ गए तो कुछ गुमनामी की दुनिया में खो गए। कुछ जेल में जीवन बिता रहे हैं तो कुछ इस दुनिया से ही रुखसत हो गए।
पुस्तक में बताया गया है कि किस तरह राजीव गांधी हत्याकांड की जांच के दौरान कुछ मंत्रालयों से महत्वपूर्ण फाइलें चोरी हुईं, यूपीए सरकार में वोल्कर रिपोर्ट के खुलासे के बाद किस तरह विदेश मंत्री नटवर सिंह को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी, तहलका वाला तरुण तेजपाल किस तरह अपनी खोजी पत्रकारिता के दम पर लोगों को ब्लैकमेल करता था, किस तरह उसने आरएसएस मार्का हिंदुत्व के आतंकवादी चेहरे को बेनकाब किया, किस तरह वह इजराइल के जाल में फंसा और फिर किस तरह उसकी शोहरत भरी पत्रकारिता बलात्कार का शिकार हो गई।

यूपीए सरकार के दौरान ही तेल की खोज के सिलसिले में अंबानी घराने की आंखों की किरकिरी बने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी की विमान दुर्घटना में मौत, यूपीए सरकार के दौरान 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला खदानों के आवंटन में कथित भारी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर उसके खिलाफ अण्णा हजारे को बिजूका बनाकर मैदान में उतारना, अरविंद केजरीवाल का उदय, जनरल वीके सिंह का विवादास्पद चाल-चलन, विवेकानंद फाउंडेशन के क्रियाकलाप, चुनाव में गूगल और फेसबुक की भूमिका, ईवीएम मशीनों का खेल, प्रशांत किशोर के चुनाव प्रबंधन की हकीकत, कंधार विमान अपहरण कांड और नोटबंदी का आपस में जुड़ाव आदि को भी लेखक ने बहुत करीने से उजागर किया है।
पुस्तक में नरेंद्र मोदी के संघ प्रचारक से प्रधानमंत्री बनने की कहानी के अनछुए पहलुओं को भी पेश करते हुए लेखक ने बताया है कि उन पर दांव लगाने वाली ताकतों ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए क्या-क्या जतन किए और ये सारे जतन कब से शुरू हुए थे। पुस्तक बताती है कि सिर्फ नरेंद्र मोदी ही नहीं बल्कि राहुल गांधी भी जिओ पॉलिटिक्स के बड़े खिलाड़ी हैं और चूंकि यह बात मोदी भी जानते हैं, इसीलिए उन्हें पप्पू के तौर प्रचारित करने के लिए भाजपा किस तरह करोड़ों रुपए अपने प्रचार तंत्र पर खर्च करती है।

कुल मिलाकर पुस्तक में दी गई जानकारियां बेहद दिलचस्प और सनसनीखेज हैं, जिन्हें पढ़कर कहा जा सकता है कि लेखक ने वाकई यह पुस्तक लिखने का साहसी कारनामा कर बहुत बड़ा जोखिम उठाया है।
सहज और सरल भाषा में लिखी गई पुस्तक की छपाई भी स्तरीय है, लेकिन पुस्तक में कई जगह भाषा की अशुद्धियां अखरती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि पुस्तक के अगले संस्करण में इस कमी को दूर कर लिया जाएगा। 194 पेज की पुस्तक में कुल 26 अध्याय हैं और हर अध्याय 4 से 14 पेज तक का है। हर अध्याय के आखिरी में संदर्भ और साक्ष्य के तौर पर लिंक दिए गए हैं, जिन्हें खोलकर साजिशों के नए आयामों तक पहुंचा जा सकता है। अभी पुस्तक का पहला भाग आया है जो अमेजन पर उपलब्ध है। लेखक के मुताबिक पुस्तक का दूसरा भाग भी जल्द ही आने वाला है।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)
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