नई दिल्ली। संगठित कचरा – ‘सुरक्षित पर्यावरण अभियान’ द्वारा प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, दिल्ली में एक सार्वजनिक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का विषय था “दिल्ली गैस चैंबर क्यों बनी?”।
पर्यावरणविदों, समाजसेवकों, मीडिया कर्मियों और कचरा बीनने वाले समुदाय के सदस्यों, पर्यावरण पर काम करने वाले लोगों, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया और कई सार्थक विचार साझा किए। इसके साथ ही सभी वक्ताओं ने दिल्ली में बढ़ती जहरीली हवा, कचरा-से-ऊर्जा परियोजना से होने वाले गंभीर प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की।
कार्यक्रम की रूपरेखा और इसकी पृष्ठभूमि रखते हुए कार्यक्रम के संयोजक हिम्मत सिंह ने कहा “जैसा कि हम सभी रोजाना दिल्ली की प्रदूषित हवा से जूझ रहे हैं, एक विश्व स्तर पर प्रतिबंधित परियोजना, “कचरा से ऊर्जा” (Waste to Energy – WtE), कचरा निपटान के लिए दिल्ली पर थोपी जा रही है।
गौरतलब है कि दिल्ली में गाजीपुर, ओखला तेहखंड, सुखदेव विहार और बवाना में WtE प्लांट लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त, बवाना में एक और परियोजना लगाने की तैयारी चल रही है। WtE परियोजना हमारी आजीविका और बाकी अनौपचारिक रिसाइक्लिंग क्षेत्र को खत्म करने का जोखिम उठाती है।
दिल्ली में 160,000 से अधिक लोग शहर से कचरा बीनने और पुनर्चक्रण में शामिल हैं और साथ ही यूपी, पश्चिम बंगाल, बिहार और असम के प्रवासी भी हैं।“
हम दिल्ली के कुल कचरे का 15-20 प्रतिशत कम से कम 42 अलग-अलग श्रेणियों में इकट्ठा और छांटते हैं, जैसे कि कागज, अखबार, कार्डबोर्ड, प्लास्टिक, कांच, धातु, रबर आदि और शहर के कचरे का लगभग 2,000 टन प्रतिदिन पुनर्चक्रण करते हैं।
जबकि कचरा बीनने वालों के सामाजिक और आर्थिक योगदान को शहर के कचरा प्रबंधन की रीढ़ के रूप में विभिन्न अध्ययनों द्वारा मान्यता दी गई है, 53 गांवों और 29 शहरी क्षेत्रों/जनगणना कस्बों में किए गए मसौदा ईआईए के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव आकलन ने हमारी भूमिका और प्रस्तावित WtE संयंत्र के संभावित परिणामों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया, जिसे नगरपालिका के कचरे से रिफ्यूज डिराइव्ड फ्यूल बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
इसका उपयोग बॉयलर फीडस्टॉक के रूप में किया जा सकता है। WtE स्थानीय रीसाइक्लिंग-आधारित व्यवसायों के विकास को रोकता है क्योंकि इसका उपयोग रीसाइक्लिंग, रीमैन्युफैक्चरिंग या मरम्मत प्रयासों के लिए किए जाने के बजाय फीडस्टॉक के रूप में किया जाता है।
हम दिल्ली सरकार द्वारा अपनाई गई इस तरह की विनाशकारी भस्मक-आधारित कचरा प्रबंधन नीतियों को समाप्त करने की मांग करते हैं। ओखला WtE संयंत्र के निवासियों ने लगातार हवा की गुणवत्ता और उत्सर्जन के साथ समस्याओं की सूचना दी है, जिससे संयंत्र के पर्यावरणीय मानकों के अनुपालन के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं, और आज तक अदालत में लड़ाई चल रही है।
इसी तरह, बंडवारी WtE संयंत्र को इसकी संचालन प्रथाओं और प्रदूषण नियंत्रण उपायों की प्रभावशीलता के लिए जांच का सामना करना पड़ा है, जिससे सामुदायिक विरोध और बेहतर नियामक निरीक्षण की मांग हुई है (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण, 2019)।

कार्यक्रम की शुरुआत प्रसिद्ध समाजसेवी और वृत्तचित्र फिल्म निर्माता, तपन बोस, और प्रयाग कुंभ में मारे गए भक्तों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुई। उनकी स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया।
प्रो. कावेरी गिल ने शुरुआती remarks में जोर दिया कि कचरा प्रबंधन की लागत हमेशा पहले से ही हाशिए पर मौजूद वर्ग पर पड़ती है, जिसका जिक्र उन्होंने नए बवाना WtE प्लांट के संदर्भ में किया। उन्होंने जोर दिया कि हमारे पास अकादमिक अध्ययन और सरकार दोनों के पर्याप्त डेटा हैं।
WtE संयंत्रों के परिणामों और पर्यावरण पर इसके प्रतिकूल प्रभावों और दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर डेटा है, जो इस बिंदु पर बेतुका लगता है। कावेरी ने अनौपचारिक क्षेत्रों और श्रमिकों और विशेष रूप से कचरा बीनने वालों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के महत्व पर भी जोर दिया।
इस बीच, प्रोफेसर दिनेश अब्रोल, जो दिल्ली साइंस फोरम के संस्थापक सदस्य रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे हैं, ने WtE पर सरकार का पक्ष प्रस्तुत किया और कहा कि जनता को कैसे गुमराह किया जा रहा है।
वित्त परिषद के प्रावधान बेहद हास्यास्पद हैं और सरकार केवल अपने फैसलों को थोपने के लिए ऐसी रिपोर्ट तैयार करवाती है। उन्होंने कहा कि एक प्रभावी और सहभागी अभियान चलाने की जरूरत है और समाज के हर वर्ग को इसमें जोड़ना होगा।
पर्यावरणविद् सौम्या दत्ता ने पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत प्रकाश डाला और बताया कि दिल्ली और देश में सभी सरकारी परियोजनाएं और नीतियां सभी पर्यावरणीय मानकों को ताक पर रखकर बनाई जा रही हैं। उन्होंने आज के कार्यक्रम की अत्यधिक सराहना की और कहा कि अब पर्यावरण का मुद्दा अकादमिक बहस से निकलकर सार्वजनिक विमर्श का मुद्दा बन रहा है।
इसके साथ ही, पर्यावरणविद और टॉक्सिक लिंक के पीयूष महापात्रा ने भी एक व्यापक पर्यावरण नीति बनाने पर जोर दिया।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल चामड़िया ने पर्यावरण और मजदूरों के प्रति मीडिया की नकारात्मक छवि को उजागर करते हुए कहा कि आज का मीडिया जनता से जुड़े मुद्दों को भटकाने का काम कर रहा है और साथ ही उन्होंने जोर दिया कि पर्यावरण और स्वच्छ हवा की जरूरत सभी के लिए है।

जो लोग सोचते हैं कि वे दिल्ली की प्रदूषित हवा से प्रभावित नहीं होने वाले हैं, वे भ्रम में नहीं हैं। वे भी इस जहरीली हवा की चपेट में आने वाले हैं। उन्होने आगे कहा कि हम लोग गंदगी फैलाने वाले संस्कृति में जी रहे हैं। आवश्यकता है इसे बदलने की। क्योंकि जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक हम गंदगी और दमघोंटू हवा में सांस लेने के लिए अभिशप्त रहेंगे।
सहूर पर्यावरण पत्रिका “ग्रीन टाइम्स” के संपादक उदय भान कौशिक ने दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में पर्यावरण सरकार और कॉर्पोरेट द्वारा हमले के बारे में बताया। कैसे विकास के नाम पर पर्यावरण को रौंदा जा रहा है, उसके बारे में उन्होने गहरी चिंता व्यक्त की।
श्री कौशिक ने गांव में जिस तरह से सामाजिक सहअस्तित्व और पर्यावरण को बचाए रखने के सामूहिक संस्कृति थी, जिससे ना केवल समाज में, बल्कि प्रकृति में संतुलन बना रहता था। हमें फिर से प्रकृति से समंजस्य के साथ जीने की संस्कृति को अपनाना होगा।
सामूहिक जिम्मेदारियों और पर्यावरण के प्रति सहज ग्रामीण संस्कृति ने पर्यावरण को, आसपास के तालाबों और जोहड़ों को बचाने का काम किया। श्री कौशिक ने इसे रेखांकित करते हुए कहा कि पर्यावरण को बचाने की लड़ाई को जन जन तक ले जाना होगा, तभी हमारा अस्तित्व बचेगा।
निदान के कार्यकारी निदेशक अरबिंद सिंह ने जोर दिया: “यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और समय पर लिया गया अभियान है, और हमें कचरे के संकट को हल करने के लिए अपने दिल, दिमाग और आत्मा को समर्पित करना होगा। हर कोई कचरा पैदा करना चाहता है लेकिन समाधान की जिम्मेदारी लेने के लिए अनिच्छुक है। इसे बदलने का समय आ गया है।”
सामाजिक संगठनों की ओर से, “जनपहल” के धर्मेंद्र कुमार ने कहा कि कचरा उत्पादन बढ़ाने वाली नीतियों को बढ़ावा दिया जा रहा है और साथ ही, शहरी नियोजन में किसी भी प्रकार के कचरे के निपटान की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है। हम सभी को उपभोक्तावाद में तेजी से वृद्धि के परिणाम भुगतने होंगे।
कचरा मजदूरों के लिए काम करने वाली संस्था “चिंतन” की कृति गुप्ता ने कहा कि कचरा बीनने वाले मजदूरों को अभी तक मजदूरों के रूप में मान्यता नहीं मिली है। हमें उन्हें मान्यता दिलाने, उनके स्वास्थ्य और कचरा मजदूरों को कचरे पर पहला अधिकार दिलाने पर भी जोर देना चाहिए।
इंडिया ग्रीन पार्टी के संस्थापक सुरेश नौटियाल ने कहा कि पर्यावरण का सवाल एक राजनीतिक सवाल है और कोई भी पार्टी इस मुद्दे पर अपनी प्राथमिकता नहीं बताती है। जबकि यह मुद्दा हम सभी के स्वास्थ्य और जीवन का मामला है। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी का मूल उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल विकास की ओर बढ़ना है।
इस सम्मेलन को कई वक्ताओं ने संबोधित किया, जिनमें प्रमुख श्रमिक संघ कार्यकर्ता आकाश भट्टाचार्य, साजिदा खानम, प्रसार संगठन से एस ए आजाद, दशम से अशोक कुमार टैंक, महिला श्रमिक संघ की अनीता कपूर, एसोच के सचिव डॉ. कमला उपाध्याय, ग्रीन टाइम्स के संपादक उदय भान कश्यप, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता के के नियोगी, सफाई सेना के नेता जय प्रकाश चौधरी, जीरो वेस्ट एलायंस के शशि बी पंडित आदि ने संबोधित किया और जोर दिया कि इस मुद्दे पर तत्काल एक व्यापक अभियान शुरू किया जाना चाहिए।
बैठक का संचालन पत्रकार और संगठित कचरा – सुरक्षित पर्यावरण अभियान के संयोजक हिम्मत सिंह ने किया। अंत में, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सहयोग के लिए धन्यवाद दिया गया।
वैकल्पिक रूप से, हम निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तावित करते हैं:
- प्रस्तावित कचरा-से-ऊर्जा भस्मक परियोजना को खारिज करें।
- सहभागी और विकेन्द्रीकृत कचरा प्रबंधन नीतियों को अपनाएं जो स्वच्छ, सुरक्षित और कचरे के निस्तारण के मुद्दों को संबोधित करने में अधिक प्रभावी हों।
- कचरा बीनने वालों को शामिल करने वाली नीतियों को अपनाकर अनौपचारिक कचरा पुनर्चक्रण क्षेत्र को पहचानें और समर्थन दें।
(प्रेस विज्ञप्ति।)
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