Sunday, April 28, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

‘एक वोट, एक रोजगार’ अभियान: सबको शिक्षा सबको काम की मांग

नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ युवा शिक्षकों और छात्रों ने काफी सोच-विचार के बाद “एक वोट, एक रोजगार” का अभियान शुरू किया है। इस अभियान की मांग है कि जब एक युवा को 18 वर्ष पूरा करने पर मतदान का अधिकार मिल जाता है, तो उसे रोजगार का अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए। समूह से जुड़े युवकों-युवतियों का कहना है कि हम रोजगार देने के नाम पर सिर्फ सरकारी नौकरी देने की मांग नही कर रहे हैं। रोजगार और सामाजिक सुरक्षा होनी चाहिए। हर युवक को रोजगार मिलेगा तो देश की तरक्की होगी।

एक वोट एक रोजगार अभियान ने पहले प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और फिर जंतर-मंतर पर एक जन संवाद आयोजित कर ‘एक वोट, एक रोजगार’ से संबंधित पांच सूत्रीय मांग को रखा। जनसंवाद में प्रो. आनंद कुमार, प्रो. अरुण कुमार, सुनीलम, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित के साथ भारी संख्या में छात्र-युवा, शिक्षक, बुद्धिजीवी और पत्रकारों की भागीदारी उल्लेखनीय रही।

भारत में इस समय युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है। इस तरह भारत युवा देश है। युवाओं की आंखों में भविष्य का सपना, दिल में एक आदर्श समाज के निर्माण का सपना और व्यक्तित्व ऊर्जा से भरपूर होता है। लेकिन उनके समक्ष संसाधनों का अभाव है। जिसके कारण वह कुछ बेहतर कर पाने की जगह या तो निष्क्रिय होकर बैठ जाते हैं और फिर युवाओं की बड़ी संख्या समाज और देश के लिए अनुत्पादक हो जाता है। वर्तमान व्यवस्था में तिल-तिल मरते युवाओं के सपने देश को अंदर तक कमजोर कर रहा है। ऐसे में देश में एक वोट, एक रोजगार मॉडल को लागू करने की मांग जोर पकड़ रही है।

एक वोट एक रोजगार के संयोजक डॉ. संत प्रकाश दिल्ली विश्वविद्यालय के भगिनी निवेदिता कॉलेज में लंबे समय से पढ़ा रहे हैं। यानि वह एडहॉक शिक्षक हैं। संत प्रकाश कहते हैं कि “दिल्ली विश्वविद्यालय में 15 सालों से पढ़ा रहे एडहॉक शिक्षकों को हटाकर उनके स्थान पर स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है। जब वे स्थायी होने के योग्य नहीं थे तो उनसे 15, 10 और 5 वर्षों तक क्यों पढ़वाया गया।”

वह कहते हैं कि अभी रोजगार के नाम पर ये हो रहा है कि पहले 5 हजार लोगों को संविदा या अस्थायी तौर पर नौकरी पर रखा जाता है। फिर कुछ वर्षों बाद उनको हटाकर 5 हजार लोगों को स्थायी कर दिया जाता है। इसी तरह संविदा पर 2 हजार लोगों को तीन साल के लिए रखा गया। फिर उन्हें हटाकर 2 हजार दूसरे लोगों को रख लिया गया। अब आप बताइये कि 5 और 2 हजार लोग रोजगार पाए? या 7 हजार लोग बेरोजगार हो गए?

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, दिल्ली में एक वोट,एक रोजगार अभियान से जुड़े युवक

जन संवाद में एक स्वर में लोगों ने कहा कि “देश की सरकार द्वारा लंबे समय से जान-बूझकर बड़े पैमाने पर बेरोजगारी की समस्या को नजरंदाज कर रही है, जो वर्तमान सरकार में अपनी पराकाष्ठा पर है। भारत युवाओं का देश है, जिन नौजवानों के हाथ में काम होना चाहिए था, वह काम न होने की स्थिति में अवसाद, नशा और अपराध की तरफ बढ़ रहे हैं। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष करीब पच्चीस हज़ार पढ़े लिखे नौजवानों ने नौकरी नहीं मिलने या नौकरी छिन जाने की स्थिति में आत्महत्या कर लिया।”

जंतर-मंतर पर आयोजित जन संसद में प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि “बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है जिसके परिणाम स्वरूप नौजवान अवसाद, नशा, अपराध की तरफ़ बढ़ रहे हैं, हज़ारों की तादाद में पढ़े लिखे नौजवान रोज़गार नहीं मिलने पर आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं। सरकारी क्षेत्र में जो नौकरियां हैं उन पर बड़ी संख्या में संविदा पर भर्ती की जा रही है, इन पदों पर कार्य करने वाले संविदा कर्मियों को कई साल की नौकरी के बाद अचानक हटा दिया जाता है, कई बार बेरोजगारी की दशा में विस्थापित हुआ यह कर्मी आत्महत्या तक कर लेता है, इसलिए संविदा पर नियुक्तियां बंद हो और जो लोग वहां कार्य कर रहे हैं, उन्हें वहीं स्थायी किया जाए और देश में जितने भी सरकारी पद हैं उन पर तत्काल स्थायी नियुक्ति की जाए।”

पूर्व विधायक एक समाजवादी नेता सुनीलम ने कहा कि “आज यदि युवाओं को काम मिल भी रहा है तो सरकार की तरफ़ से तय न्यूनतम मज़दूरी किसी दफ़्तर या फ़ैक्ट्री में नहीं मिल रही। आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस (AI) ने अब उच्चतम शिक्षा प्राप्त नौजवानों के भविष्य को भी अंधेरे में डाल दिया है। हमारे बुजुर्गों ने राष्ट्र और समाज का निर्माण अकुशल और कुशल श्रमिकों के रूप में किया आज उन्हें पेंशन नहीं मिल रही और जो पेंशन है भी तो भीख की तरह जिसमें उनका बुढ़ापा दयनीय स्थिति में है।”

जंतर-मंतर पर युवाओं के आंदोलन के समर्थन में प्रो. आनंद कुमार

पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने कहा कि “बेरोजगार नागरिकों का इस्तेमाल कोई भी विघटनकारी शक्ति कर सकती है जो घातक हो सकता है। इस समस्या की संवेदनशीलता को समझते हुए हमें इसके निदान की तरफ सोचना होगा।”

एक वोट एक रोज़गार अभियान से विकास सैनी ने कहा कि “हम रोजगार कानून की मांग कर रहे हैं ताकि रोज़गार नहीं मिलने पर अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सके, अभी हमारे देश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जो काम मिल भी रहे हैं उसमे न्यूनतम मजदूरी की कोई गारंटी नहीं है, नर्सिंग स्टाफ, सफाई कर्मी, तकनीशियन, गार्ड आदि किसी को भी सरकार द्वारा तय की गई मजदूरी नहीं मिलती और इसमें से कोई भी कर्मचारी नौकरी जाने के डर से कहीं शिकायत भी नहीं करता, सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान काम के लिए समान वेतन का दिशा निर्देश देने के बावजूद सभी विभागों को संविदा पर कर दिया गया है।”

अभियान से जुड़े युवाओं ने कहा कि संविदा पर रखे गये लोगों के योग्य होने के बावजूद कर्मचारियों की नौकरी जाने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। सभी संविदा कर्मियों को उन्हीं के स्थान पर स्थायी किया जाना चाहिए। सरकारी विभागों में अन्यायपूर्ण संविदा व्यवस्था को समाप्त किया जाए। जनसंख्या बढ़ने की वज़ह से शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, सुरक्षा आदि सभी विभागों में बहुत बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों की आवश्यकता है लेकिन नियुक्ति नहीं हो रही है, उन सभी खाली पदों को तत्काल प्रभाव से भरा जाए, साथ ही सभी नियुक्तियों में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए तथा पेपर लीक जैसे मामलों पर तत्काल अंकुश लगाया जाए और ऐसी घटना को अंजाम देने वालों पर तत्काल कठोर से कठोर कार्रवाई का प्रावधान हो।

अभियान के नेता प्रवीण काशी ने कहा कि “पिछले 75 वर्षों से हम रोज़गार पर नेताओं के भाषण व आश्वासन सुन सुन कर थक चुके हैं अब हमें इन पर भरोसा नहीं। मोदी जी से कहना चाहते हैं कि हमें सम्मानजनक जीवन जीने के लिए रोज़गार का क़ानून चाहिए ताकि बेरोज़गार होने की स्थिति में हम नेता-मंत्री के घर जाने के बजाय कोर्ट जा सके। दिल्ली सरकार न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी के लिए कोई व्यवस्था नहीं बना रही। किसी भी मज़दूर को न्यूनतम मज़दूरी नहीं मिलती। हम केजरीवाल सरकार से यह कहना चाहते हैं कि आप सभी दिल्ली के नौजवानों के न्यूनतम मज़दूरी को सुनिश्चित करने का कोई व्यवस्था बनाए।”

इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे डॉक्टर संत प्रकाश ने कहा कि ‘एक वोट एक रोजगार आंदोलन’ इस देश के हर मतदाता को सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार को सुनिश्चित कराने का आंदोलन है, संविधान के नीति निर्देशक तत्वों, जिसकी बात अनुच्छेद 38 और अनुच्छेद 39 करता है, उसको सुनिश्चित कराने का आन्दोलन है, देश के वास्तविक सम्प्रभु यानी देश की जनता के साथ उनकी चुनी हुई सरकार द्वारा नीति निर्देशक तत्वों में समाहित ‘रोज़गार’ की बात को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने यानी ‘रोज़गार कानून’ बनाकर उनके साथ न्याय करने की बड़ी जिम्मेदारी है।

आंदोलन से जुड़ी पुष्पा ने कहा कि देश मे फ्री राशन, फ्री पानी आदि केवल राजनीतिक बातें है है। सरकारें ऐसा ऐजेंडा चला कर लोगों से केवल वोट बटोरना चाहती है। इससे देश आगे नही जा रहा बल्कि जनता को भिखारी बनता जा रहा है। हमें फ्री नहीं चाहिए हमें काम चाहिए जिससे हम स्वं अपनी जरूरत का सामान खरीद सके, इसलिए एक वोट एक रोजगार लोगों कि जरूरत है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व एडहॉक प्रोफेसर अशोक कुमार जिन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में चल रहे इंटरव्यू में निकाल दिया गया, उनका कहना है कि भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिसका मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में खुद शिकार हुआ हूं, इसलिए भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना बहुत जरूरी है ताकि एक वोट एक रोजगार का सपना साकार हो सके।

जंतर-मंतर पर रोजगार की मांग के समर्थन में महिलाएं

सामाजिक सरोकारों से जुड़े और इस आंदोलन को समर्थन कर रहे जतिन भल्ला का मानना है कि भारत युवाओं का देश है पर जब तक हम इन सब युवाओं को कोई काम नहीं देंगे, कोई रोजगार नहीं देंगे तब तक यह युवा आबादी हमारे लिए एक वरदान ना बनकर एक बोझ बन कर रह जाएगी।

आंदोलन को समर्थन कर रहे विकास सैनी ने कहा कि “देश का अर्थ देश में रहने वाले वाला प्रत्येक नागरिक को सुखी और संपन्न बनाने के लिए यह कानून एक वोट एक रोजगार कानून बनना बहुत जरूरी है इस कानून को केंद्र सरकार व सभी राज्य की सरकार को स्वयं आगे आकर बिना समय गवाएं इस कानून को बनाना चाहिए।”

“एक वोट, एक रोजगार आंदोलन” बेरोजगारी संकट को दूर करने के लिए पांच सूत्रीय मांग है…..

  1. रोज़गार क़ानून ताकि बेरोज़गार होने पर नेता जी के ऑफिस नहीं बल्कि कोर्ट जाएं।
  2. न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी एवं समान काम का समान वेतन।
  3. सभी ख़ाली सरकारी पदों को तुरंत भरा जाए, संविदा प्रणाली समाप्त हो, यदि खाली पदों पर
    कर्मचारियों की संविदा पर नियुक्त हुई हो, तो उन कर्मचारियों को वहीं स्थायी किया जाए।
  4. सभी गांव एवं मोहल्ला में एक रोज़गार कार्यालय।
  5. सभी बुजुर्गों को न्यूनतम मज़दूरी का आधा पेंशन।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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